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गुजरात चुनाव में दलितों का उत्पीड़न मुद्दा बनना ही था और यह बन रहा है. शुक्रवार को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने रोहित वेमुला की खुदकुशी का मामला उठाया और कहा कि उनकी हत्या हिंदुस्तान की सरकार ने की है. राहुल के इस तर्क में दम है. रोहित मामले पर गौर करें तो पाएंगे कि हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में अंबेडकरवादी छात्रों के आंदोलन को पहले तो जोर-जबरदस्ती दबाने की कोशिश की गई. एबीवीपी से रोहित और उसके दोस्तों की झड़प के बाद केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने उस वक्त मानव संसाधन मंत्री रहीं स्मृति ईरानी को चिट्ठी लिखी थी कि वह इस मामले को देखें.
इसके बाद रोहित और उनके दोस्तों को दंड देने का सिलसिला शुरू हुआ। उनकी स्कॉलरशिप रोक दी गई। इस दौरान रोहित और उनके दोस्तों को हॉस्टल से निकाल दिया गया। इस दौरान रोहित के खिलाफ प्रताड़ना का लंबा दौर चला। और इससे निराश बेहद प्रतिभाशाली रोहित ने आत्महत्या कर ली। लेकिन मौत के बाद भी केंद्र सरकार और बीजेपी ने घृणित राजनीति का सिलसिला जारी रखा और रोहित की जाति को लेकर उन्होंने बयान देने शुरू कर दिए। बीजेपी के बड़े नेता इस बात को साबित करने पर तुले रहे कि रोहित दलित नहीं ओबीसी थे। यह इसलिए था कि मंत्रियों और नेताओं को खिलाफ दलित उत्पीड़न विरोधी कानून में कार्रवाई न हो।
रोहित वेमुला को दलित नहीं ओबीसी साबित करने के लिए सरकार ने पूरा जोर लगा दिया। और इस क्रम में रोहित की मां पर लांछन लगाने का सिलसिला शुरू हुआ। पूरे देश ने देखा कि इस सरकार ने एक दलित स्कॉलर के परिवार के साथ कैसा व्यवहार किया।
अगर किसी निष्पक्ष जांच एजेंसी इस मामले की जांच करती तो इसे रोहित वेमुला की हत्या ही मानती और हत्यारे जेल में होते। लेकिन सरकार एक सदस्यीय समिति ने भी रिपोर्ट देने में पूर्वाग्रह दिखाया।
गुजरात और देश भर में पिछले दिनों जिस तरह से दलितों के खिलाफ अत्याचारों और हमलों का सिलसिला चला, उसमें यह चुनावी मुद्दा बनना ही थी. बीजेपी का यह कहना कहीं से भी समझ नहीं आता कि कांग्रेस इसे मुद्दा बना रही है। अगर केंद्र सरकार दलितों के मुद्दे पर संवेदनशीलता नहीं दिखाएगी तो उसे इस समुदाय का गुस्सा झेलना ही पड़ेगा।