अगर आप चाहते हैं कि बची रही धरोहर, बनी रहे काशी तो सबको साथ आना होगा

Written by अनूप श्रमिक | Published on: March 23, 2018
21 मार्च को बनारस के पराड़कर भवन में "बची रही धरोहर बनी रहे काशी" के विषय पर एक गोष्ठी का आयोजन रखा गया जिसमें बनारस को सरकार द्वारा कॉरपोरेट के हाथों नीलाम करने की साजिश की चर्चा की गई. इस मौके पर सामाजिक एवं राजनैतिक कार्यकर्ता अनूप श्रमिक ने फेसबुक पर अपील जारी की है. जिसमें लिखा है कि....


आप सभी को इस पोस्ट के माध्यम से सूचित करना चाहता हूं कि बनारस के घाटो के पास खास कर विश्वनाथ मंदिर से लेकर मणिकर्णिका घाट ललिता घाट तक लगभग दो सौ मकानों को तोड़ कर पाथ वे बनाने की योजना चल रही है जिसकी संभावित लागत लगभग 700 करोड़ की है.

काशी की धरोहरों को मोदी से बचाइये...

वहीं दूसरी ओर राजघाट पुल से काशी स्टेशन और तोतापरी मठ से होते हुए सर्वसेवा संघ कैम्पस तक नितिन गडकरी के परिवहन मंत्रालय के तहत टर्मिनल बनाने की प्लानिंग है. वाटरवेज योजना (जल मार्ग योजना) सुना है दस हज़ार करोड़ की परियोजना है ये. साथ ही नमामि गंगे, स्वछता अभियान, मुद्रा लोन, शहरी आजीविका मिशन ,कौशल वृद्धि, हृदय, प्रधानमंत्री आवास परियोजना, उस्ताद योजना, अंडरग्राउंड विद्युतीकरण, पार्को का सुन्दरीकरण और ऐसी तमाम विकास योजनाओं को सरकार ने कॉरपोरेट के हाथों अरबों डॉलर में ठेके पर दे दिया है. 

अब इन योजनाओं के तहत घाट के किनारे कुछ मंदिर और पुराने मकान भी धराशाई हो रहे हैं. जब धर्म पर बात आई तब जा के जनता की आँख खुली और गोलबंदी शुरू हुई है. लेकिन मैं बनारस के नागरिक समाज को बनारस का कुछ यथार्थ बता देना चाहता हूँ.

यहां 24 हज़ार पटरी व्यवसायी पिछले 2 साल से अपने स्थायी वेंडिंग जोन की न्यायपूर्ण मांग के लिए भटक रहे हैं. 200 की संख्या में गरीबों और सफाई कर्मियों की बस्तियां हैं जो सैकड़ों साल से रह रहे हैं और शासन प्रशासन उन्हें लगातार उजाड़ने में लगा है.

10 हज़ार की आबादी के लिए 80 सफाईकर्मियों की आवश्यकता होती है लेकिन 35 लाख के आबादी वाले शहर के पास सिर्फ 4 हज़ार सफाईकर्मी उपलब्ध है जब की आवश्यकता 28 हज़ार सफाई कर्मियों की है.

सैकड़ों तांगे बग्घी वाले जो आज़ादी के पहले से अपनी सेवाएं राहगीरों और शादी विवाह में देते आ रहे थे उन्हें प्रशासन ने शहर से बाहर खदेड़ कर निकाल दिया है.
बनारस के लहरतारा स्थित कबीर की जन्मस्थली के बड़े तालाब में कूडे का अंबार और सुअरों का जमावड़ा लगा पड़ा है.

ये वही शहर है जहां हज़ारों कुंड तालाब कुएं हुआ करते थे जिन्हें पाट पाट कर गलत ढंग से कालोनियां मॉल खोले गये और स्कूल चलाये जा रहे हैं उनको कोई नही हटाता, असि नदी को ऐसे ही मार दिया गया.

ये वही शहर बनारस है जहाँ हज़ारों दलितों बुनकरों एवं अन्य गरीबों के बच्चे गरीबी के कारण कुपोषण का शिकार हो कर मर जा रहे हैं. प्रदूषण के मामले में ये शहर भारत के टॉप थ्री में खड़ा है.

#गंगा वरुणा अस्सी नदियां विलुप्त होते जा रही हैं. इन सब पर पता नही क्यों बनारस के हम नागरिक समाज पिछले कई दशकों से चुप बैठे हुए हैं. ऐसे में क्या हम उम्मीद करें कि हम इस लिए सजग हैं कि हमारा धर्म संकट में है? तो हम क्या वाकई अपने धर्म स्थल बचा पाएंगे? जब हमारे नदी नाले कुंड तालाब के अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगें और दूषित पर्यावरण से लोग मरने लगे हो तो सवाल तो है कि हम क्या करेंगे मंदिर मस्जिद बचा के? जब हमारी प्राकृतिक सम्पदा और पारम्परिक काम और ज्ञान की धरोहर ही नष्ट हो जायेगी?

और क्या करेंगे हम ऐसे धर्म को बचा के जब कुपोषण से गरीब बच्चे मरने लगें गरीबों की बस्तियां उजड़ने लगें छोटे रोजगार वालों के रोजगार ही छीन जायें मछुआरों की आजीविका ही छीनते हुए हम चुप चाप रहे?

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अगर बचाना है बनारस को और बनाये रखना है बनारस के मिजाज को तो एक साथ इन सभी समस्याओं को ले कर धर्म जाति वर्ग से ऊपर उठके हिन्दू मुस्लिम एक जुट होकर सरकार की नीतियों के विरोध में सड़क पर उतरें. असली लड़ाई तभी खड़ी होगी.

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