उत्तर प्रदेश: मुस्लिम युवक की पुलिस हिरासत में गोली मारकर हत्या

Written by sabrang india | Published on: September 22, 2023
चोरी के आरोपी 25 वर्षीय शाहबाज़ को कथित रूप से पुलिस वाहन से बच निकलने का प्रयास करने के दौरान मार डाला गया। सूचना के अनुसार पुलिस वाहन कुछ भेड़ों को रास्ता देने लिए रूका था जहां युवक ने उनसे बचने की कोशिश की थी।
 


उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर के एक युवा मुसलमान व्यक्ति शाहबाज़ की पुलिस द्वारा लोकल कोर्ट में ले जाते समय गोली दाग़कर हत्या कर दी गई। पुलिस के अनुसार वो इस हफ़्ते की शुरूआत में प्रोफ़ेसर आलोक गुप्ता की हत्या के संदिग्ध आरोपी थे और उक्त घटना में उसने उनके परिवार को भी नुक़सान पहुंचाया था। यूपी पुलिस का कहना है कि उन्होंने उसे आत्मरक्षा में मार डाला क्योंकि उसने पुलिस हिरासत से बचने और पुलिस पर गोली चलाने की कोशिश की।

इस हफ़्ते मंगलवार की सुबह क़स्बे के कटरा इळाक़े में एक घटना हुई थी जिसमें शाहबाज़ को दोषी ठहराया जा रहा है। इस दिन चोरों का एक ग्रुप असिस्टेंट प्रोफ़ेसर और ट्रेडर आलोक गुप्ता के घर में दाख़िल हुआ था। जब गुप्ता परिवार ने इसका विरोध किया तो संदिग्ध आरोपियों ने हिंसा शुरू कर दी और वो उनपर चाक़ू से हमला करने लगे। घायल आलेक गुप्ता को पड़ोसी ज़िले बरेली में इलाज के लिए ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया जबकि परिवार के दूसरे सदस्यों की चिकित्सिय देखरेख अभी जारी है।

गुप्ता की हत्या के बाद इलाक़े में तनाव का माहौल था। इलाक़े के व्यापारियों ने बड़ी तादाद में गुप्ता के घर पर जमा होकर पुलिस से फ़ौरन उचित कारवाई की मांग की। लोकल ट्रेडर्स यूनियन ने इलाक़े की सभी दुकानों को बंद करने की धमकी भी दी। रिपोर्ट्स के मुताबिक़ भीड़ आरोपी के घर को बुल्डोज़र से ध्वस्त करने की मांग भी कर रही थी।

यहां यूपी तक का एक वीडियो है जिसमें इन घटनाओं को विस्तार से बताया गया है।



बरेली के इंस्पेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस राकेश सिंह ने भीड़ को संबोधित करते हुए उन्हें आश्वासन दिया कि हत्या के लिए ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ सख़्त मुमकिन कारवाई की जाएगी। इसके साथ ही पुलिस ने कटरा के मोहल्ला सराय से शाहबाज़ को गिरफ़्तार कर लिया। शाहजहंपुर के SP (Superintendent of Police) अशोक कुमार मीना के अनुसार उन्होंने कथित रूप से हत्या के लिए इस्तेमाल हथियार को उनके निर्देश पर फ़ौरन ज़ब्त कर लिया गया था।

इसके बाद इस घटना के रोज़ शाम में शाहबाज़ को कोर्ट ले जाया जा रहा था जिसके बाद उसका मेडिकल परीक्षण होना था। इस दौरान जानवरों के एक समूह ने बटालिया गांव के क़रीब हाईवे पर उनका रास्ता ब्लॉक कर दिया जिससे वाहन का संतुलन बिगड़ गया और इंस्पेक्टर मीना के कहने पर फ़ौरन पुलिस सहयोग को बुलाया गया। इस दौरान शाहबाज़ ने पुलिस हिरासत से भागने की कोशिश की और उसने अधिकारियों को मारने की कोशिश भी की। पुलिस ने दावा किया है कि शाहबाज़ को सरेंडर का आग्रह करते हुए चेतावानी भी जारी की गई थी। हालांकि उसने कथित तौर पर पुलिस पर बंदूक़ ताने रखी और पुलिस अधिकारियों को आत्म-रक्षा के लिए गोली चलाने के लिए उकसाया। स्थानीय ख़बरों के अनुसार दूसरा संदिग्ध शहरोज़ भी फ़ायरिंग के दौरान घायल हो गया था हालांकि पुलिस ने इससे इंकार किया है।



दोनों तरफ़ से गोली चलने के कारण शाहबाज़ बुरी तरह घायल हो गया और उसे कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर ले जाया गया जहां डॉक्टर्स ने उसे मृत घोषित कर दिया। शाहबाज़ एक ई-रिक्शा ड्राइवर था और वो आलोक गुप्ता के घर के पास ही एक छोटे से मकान में रहता था।

इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 307 (pertaining to attempted murder), 120B (related to criminal conspiracy) और 397 (involving robbery or dacoity with an intent to cause death or grievous harm) के तहत इस मामले में कटरा पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज की गई है।

ग़ौरतलब है कि पुलिस की इस कार्रवाई के लिए ज़िला पुलिस की तरफ़ से 25,000 और राज्य सरकार की तरफ़ से क़रीब 50,000 की रक़म इनाम देने की घोषणा भी की गई है।

लेकिन इस घटना को लेकर जनता में पुलिस हिरासत के दौरान शाहबाज़ की मौत के हालात के बारे में अनेक सवाल हैं। हिरासत के दौरान हत्या और हिंसा कोई मामूली घटना नहीं है। बल्कि भारत में इन्हें एनकाउंटर का दर्जा हासिल है। न्यायिक हत्याओं को लेकर उत्तर प्रदेश का रिकार्ड काफ़ी ख़राब है। इंडियन एक्सप्रेस की मई 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक़ मार्च 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद ऐसी हत्याओं में ख़ास इज़ाफ़ा हुआ है। इस न्यूज़पेपर के मुताबिक़ इस अवधि में राज्य में क़रीब 186 एनकाउंटर हुए हैं जिसका अर्थ है क़रीब हर 15 दिन में पुलिस द्वारा एक से ज्यादा एनकाउंटर किया जाता है।

जुलाई 2023 की सबरंग इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार गृह मंत्रालय ने राज्य सभा को देश भर में कस्टोडियल मौतों के बढ़ते आंकड़ों के बारे में ज्ञापन सौंपा है। इस डाटा ने एक डिस्टर्बिंग ट्रेंड उजागर किया है जिसके अनुसार कस्टोडियल मौतों के डाटा में पिछले 3 सालों में क़रीब 60% इज़ाफ़ा हुआ है।  इससे भी ख़तरनाक है कि पिछले 2 सालों में ये आंकड़ा 75% की चिंताजनक सीमा को छू गया है। उत्तर प्रदेश में हिरासत में मौतों का आंकड़ा क़रीब दोगुना हो गया है।

केंद्र ने 2021 में न्यायिक हिरासत में क़रीब 1840 मौतों को दर्ज किया जबकि 2020-21 के बीच पुलिस हिरासत के संबंध में देश भर में ये आंकड़ा 100 के क़रीब था। चिंता की बात ये है कि मुसलमान और दलित दोनों ही समाज के निचले तबक़े से ताल्लुक़ रखते हैं और हिंसा के लिए नाज़ुक निशाना हैं। इसके अलावा पुलिस अनेक पूर्वाग्रहों का भी शिकार है। ऐसी घटनाओं ने क़ानून और व्यवस्था के साथ ही देश के लोकतांत्रिक अधिकारों के भविष्य के बारे में भी चिंताएं गहरी कर दी हैं।

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