नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी की बायोपिक के रास्ते में आई रुकावटें हटने का नाम ही नहीं ले रहीं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री के जीवन पर बनी फिल्म पर चुनाव आयोग द्वारा लगाए 19 मई तक के प्रतिबंध में दखल देने से साफ इंकार कर दिया है।
सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपक गुप्ता की टीम ने याचिका निरस्त करते हुआ पूछा कि अब इस मामले में बचा ही क्या है? मसला यह है कि फिल्म अभी फिल्म रिलीज की जा सकती है या नहीं, तो चुनाव आयोग ने इस पर निर्णय ले लिया है और हम अब इस पर कोई बहस नहीं करना चाहते।
फिल्म को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) से अनुमति मिलने के बाद भी चुनाव आयोग द्वारा फिल्म पर 19 मई तक का प्रतिबंध लगा दिया गया था। जिसके बाद फिल्म के निर्माता सुरेश ओबेरॉय ने सुप्रीम कोर्ट से फिल्म पर लगी रोक हटाने की अपील की थी।
गौरतलब है कि कोर्ट ने चुनाव आयोग को फिल्म देख कर अपनी रिपोर्ट जमा करने को कहा था। जिसके बाद चुनाव आयोग के 6 अधिकारियों के लिए फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग कराई गई थी। पिछले हफ्ते ही अधिकारियों ने सील बंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा की थी।
अधिकारियों के अनुसार फिल्म को बॉयोपिक न कहकर hagiography (असल जिंदगी से अधिक व्यक्ति को अच्छा और आदर्शवादी दिखाने का प्रयास) कहना ठीक होगा। चुनाव आयोग ने कहा कि फिल्म के संवाद, दिखाए गए चिन्ह एवं फिल्म की प्रस्तुति व्यक्ति विशेष को दर्शाती है। इसे चुनाव के दौरान फिल्म रिलीज के लिए स्वीकृति देने से चुनाव में मतदाताओं का रुझान किसी राजनीतिक दल या राजनेता के लिए बढ़ सकता है।
अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए चुनाव अधिकारियों ने फिल्म के ही कुछ उदाहरण अपनी रिपोर्ट में प्रस्तुत कर बताया कि कैसे फिल्म में प्रधानमंत्री को पूर्ण रूप से पाख साफ दिखाया गया है। लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण तक चुनाव आयोग ने उन सभी फिल्मों पर रोक लगा दी है जिनसे किसी भी पार्टी या व्यक्ति विशेष को चुनाव में किसी भी तरह का लाभ हो सके।
सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपक गुप्ता की टीम ने याचिका निरस्त करते हुआ पूछा कि अब इस मामले में बचा ही क्या है? मसला यह है कि फिल्म अभी फिल्म रिलीज की जा सकती है या नहीं, तो चुनाव आयोग ने इस पर निर्णय ले लिया है और हम अब इस पर कोई बहस नहीं करना चाहते।
फिल्म को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) से अनुमति मिलने के बाद भी चुनाव आयोग द्वारा फिल्म पर 19 मई तक का प्रतिबंध लगा दिया गया था। जिसके बाद फिल्म के निर्माता सुरेश ओबेरॉय ने सुप्रीम कोर्ट से फिल्म पर लगी रोक हटाने की अपील की थी।
गौरतलब है कि कोर्ट ने चुनाव आयोग को फिल्म देख कर अपनी रिपोर्ट जमा करने को कहा था। जिसके बाद चुनाव आयोग के 6 अधिकारियों के लिए फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग कराई गई थी। पिछले हफ्ते ही अधिकारियों ने सील बंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा की थी।
अधिकारियों के अनुसार फिल्म को बॉयोपिक न कहकर hagiography (असल जिंदगी से अधिक व्यक्ति को अच्छा और आदर्शवादी दिखाने का प्रयास) कहना ठीक होगा। चुनाव आयोग ने कहा कि फिल्म के संवाद, दिखाए गए चिन्ह एवं फिल्म की प्रस्तुति व्यक्ति विशेष को दर्शाती है। इसे चुनाव के दौरान फिल्म रिलीज के लिए स्वीकृति देने से चुनाव में मतदाताओं का रुझान किसी राजनीतिक दल या राजनेता के लिए बढ़ सकता है।
अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए चुनाव अधिकारियों ने फिल्म के ही कुछ उदाहरण अपनी रिपोर्ट में प्रस्तुत कर बताया कि कैसे फिल्म में प्रधानमंत्री को पूर्ण रूप से पाख साफ दिखाया गया है। लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण तक चुनाव आयोग ने उन सभी फिल्मों पर रोक लगा दी है जिनसे किसी भी पार्टी या व्यक्ति विशेष को चुनाव में किसी भी तरह का लाभ हो सके।