कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना ने हाल ही में भारत के पितृसत्तात्मक समाज पर तीखी टिप्पणी करते हुए कि ये ये देश सशक्त महिलाओं के साथ व्यवहार करना नहीं जानता। जस्टिस नटराज रंगास्वामी ने एक संयुक्त तलाक याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस नागरत्ना ने कहा, ‘ये समाज हमेशा स्त्री को नीचा देखता है। हमारा समाज पितृसत्तात्मक है। लोग हमेशा महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, लेकिन ये समाज सशक्त महिलाओं के साथ व्यवहार करना नहीं जानता है। लोग अपने लड़कों को ये नहीं सिखाते कि उन्हें सशक्त महिला के साथ किस तरह व्यवहार करना है। मेरा मानना है कि ये पुरुषों के साथ समस्या है।’
हालांकि, खंडपीठ ने यह भी कहा कि वित्तीय स्वतंत्रता और शिक्षा के साथ एक महिला को यह जानना चाहिए कि उसे परिवार के साथ कैसे पेश आना है और शादी टूटने का कारण नहीं बनना चाहिए।
दरअसल महिला ने वकील के माध्यम से बताया था कि उन्हें अपने पति के साथ रहने में मुश्किल हो रही है, क्योंकि वह अपने माता-पिता की एकमात्र संतान हैं। इस पर अदालत ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि आप अपने माता पिता की एकमात्र संतान है, आप अपने पति को नजरअंदाज नहीं कर सकती हैं।
अदालत ने यह भी कहा कि दंपति को मैरिज काउंसलिंग की कोशिश करनी चाहिए और बेहतर संवाद करना सीखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि ‘शादी कुल मिलाकर एडजस्टमेंट है। यह अंतत: केवल दो लोगों के बीच का मामला होता है। पत्नी के आने के बाद सास को अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई छह जनवरी को निर्धारित की गई है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस नागरत्ना ने कहा, ‘ये समाज हमेशा स्त्री को नीचा देखता है। हमारा समाज पितृसत्तात्मक है। लोग हमेशा महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, लेकिन ये समाज सशक्त महिलाओं के साथ व्यवहार करना नहीं जानता है। लोग अपने लड़कों को ये नहीं सिखाते कि उन्हें सशक्त महिला के साथ किस तरह व्यवहार करना है। मेरा मानना है कि ये पुरुषों के साथ समस्या है।’
हालांकि, खंडपीठ ने यह भी कहा कि वित्तीय स्वतंत्रता और शिक्षा के साथ एक महिला को यह जानना चाहिए कि उसे परिवार के साथ कैसे पेश आना है और शादी टूटने का कारण नहीं बनना चाहिए।
दरअसल महिला ने वकील के माध्यम से बताया था कि उन्हें अपने पति के साथ रहने में मुश्किल हो रही है, क्योंकि वह अपने माता-पिता की एकमात्र संतान हैं। इस पर अदालत ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि आप अपने माता पिता की एकमात्र संतान है, आप अपने पति को नजरअंदाज नहीं कर सकती हैं।
अदालत ने यह भी कहा कि दंपति को मैरिज काउंसलिंग की कोशिश करनी चाहिए और बेहतर संवाद करना सीखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि ‘शादी कुल मिलाकर एडजस्टमेंट है। यह अंतत: केवल दो लोगों के बीच का मामला होता है। पत्नी के आने के बाद सास को अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई छह जनवरी को निर्धारित की गई है।