पटना। बिहार के जहानाबाद जिले के चर्चित सेनारी नरसंहार मामले में पटना हाईकोर्ट ने निचली अदालत का फैसला पलट दिया है। हाई कोर्ट ने दो दशक पहले हुए नरसंहार के मामले में निचली अदालत से 18 मार्च 1999 में 34 लोगों की हत्या के आरोप में दोषी ठहराए गए सभी 13 आरोपियों को बरी कर दिया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पटना हाई कोर्ट के जस्टिस अश्वनी कुमार सिंह और जस्टिस अरविंद श्रीवास्तव की खंडपीठ ने लंबी सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने शुक्रवार को अपना फैसला सुनाते हुए 5 साल पहले निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए सभी 13 आरोपियों को तुरंत रिहा करने का आदेश दे दिया। वकीलों ने बताया है कि गवाह इस स्थिति में नहीं थे कि रात में अभियुक्तों की पहचान कर सके। गवाह यह स्पष्ट नहीं कर पाए कि वो अभियुक्तों को देख पाने में सक्षम थे।
हाई कोर्ट के समक्ष आए अभियुक्तों में कोई भी एफआईआर में नामित नहीं था। वहीं, गवाह घटना स्थल पर एक-दूसरे की उपस्थिति की पुष्टि भी नहीं कर सके। जहानाबाद जिला कोर्ट ने 15 नवंबर 2016 को इस मामले में 10 को मौत की सजा सुनाई थी, जबकि 3 को उम्रकैद की सजा दी थी।
बता दें कि 18 मार्च 1999 की रात प्रतिबंधित नक्सली संगठन के उग्रवादियों ने सेनारी गांव को चारों तरफ से घेर लिया था। जिसके बाद एक जाति विशेष समूह के 34 लोगों को उनके घरों से जबरन निकालकर ठाकुरवाड़ी के पास ले जाया गया, जहां उनकी बेरहमी से गला रेत कर हत्या कर दी गई थी। जिसके बाद जहानाबाद में जातीय और उग्रवादी हिंसा की जो चिंगारी से निकली आग की लपटें लगभग अगले डेढ़ दशक तक पूरे इलाके की शांति को राख करती रहीं।
सेनारी नरसंहार मामले में निचली अदालत के फैसले की पुष्टि के लिए पटना हाई कोर्ट में राज्य सरकार की ओर से डेथ रेफरेंस दायर किया गया, जबकि आरोपी द्वारिका पासवान, बचेश कुमार सिंह, मुंगेश्वर यादव और अन्य की ओर से क्रिमिनल अपील दायर कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी। वहीं सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट सुरिंदर सिंह, पटना हाई कोर्ट के एडवोकेट कृष्णा प्रसाद सिंह, एडवोकेट राकेश सिंह, भास्कर शंकर सहित अनेक एडवोकेट ने पक्ष और विपक्ष की ओर से अपनी दलीलें पेश की।
सेनारी की घटना मामले से संबंधित नरसंहारों की एक श्रृंखला की आखिरी घटना थी जिसमें प्रतिबंधित माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) और रणबीर सेना जैसे उच्च जाति के संगठनों के शामिल होने का संदेह था।
हाल ही में बने अरवल जिले के सेनारी गांव में सवर्ण भूमिहार समुदाय के कम से कम 34 लोग मारे गए थे। पुलिस ने कर्पी थाने में चिंतामणि देवी के बयान के आधार पर मामला दर्ज किया, जिनकी सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी है।
हमले के दौरान मारे गए लोगों में मधुकर कुमार, ओमप्रकाश उर्फ रोहित शर्मा, भुखान शर्मा, नीरज कुमार, ओमप्रकाश, राजेश कुमार, संजीव कुमार, राजू शर्मा, जितेंद्र शर्मा, वीरेंद्र शर्मा, सच्चिदानंद शर्मा, ललन शर्मा, अवधेश शर्मा, कुंदन शर्मा, धीरेंद्र शर्मा, अमरेश कुमार, राम दयाल शर्मा, सत्येंद्र कुमार, उपेंद्र कुमार, विमलेश शर्मा, परीक्षित नारायण शर्मा, रामनरेश शर्मा, चंद्रभूषण शर्मा, अवधकिशोर शर्मा, संजीव कुमार, श्यामनारायण सिंह, नंदलाल शर्मा, रामस्लोग शर्मा, ज्वाला शर्मा, पिंटू शर्मा, रामप्रवेश शर्मा, रंजन शर्मा, जितेंद्र शर्मा, वीरेंद्र शर्मा शामिल थे।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पटना हाई कोर्ट के जस्टिस अश्वनी कुमार सिंह और जस्टिस अरविंद श्रीवास्तव की खंडपीठ ने लंबी सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने शुक्रवार को अपना फैसला सुनाते हुए 5 साल पहले निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए सभी 13 आरोपियों को तुरंत रिहा करने का आदेश दे दिया। वकीलों ने बताया है कि गवाह इस स्थिति में नहीं थे कि रात में अभियुक्तों की पहचान कर सके। गवाह यह स्पष्ट नहीं कर पाए कि वो अभियुक्तों को देख पाने में सक्षम थे।
हाई कोर्ट के समक्ष आए अभियुक्तों में कोई भी एफआईआर में नामित नहीं था। वहीं, गवाह घटना स्थल पर एक-दूसरे की उपस्थिति की पुष्टि भी नहीं कर सके। जहानाबाद जिला कोर्ट ने 15 नवंबर 2016 को इस मामले में 10 को मौत की सजा सुनाई थी, जबकि 3 को उम्रकैद की सजा दी थी।
बता दें कि 18 मार्च 1999 की रात प्रतिबंधित नक्सली संगठन के उग्रवादियों ने सेनारी गांव को चारों तरफ से घेर लिया था। जिसके बाद एक जाति विशेष समूह के 34 लोगों को उनके घरों से जबरन निकालकर ठाकुरवाड़ी के पास ले जाया गया, जहां उनकी बेरहमी से गला रेत कर हत्या कर दी गई थी। जिसके बाद जहानाबाद में जातीय और उग्रवादी हिंसा की जो चिंगारी से निकली आग की लपटें लगभग अगले डेढ़ दशक तक पूरे इलाके की शांति को राख करती रहीं।
सेनारी नरसंहार मामले में निचली अदालत के फैसले की पुष्टि के लिए पटना हाई कोर्ट में राज्य सरकार की ओर से डेथ रेफरेंस दायर किया गया, जबकि आरोपी द्वारिका पासवान, बचेश कुमार सिंह, मुंगेश्वर यादव और अन्य की ओर से क्रिमिनल अपील दायर कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी। वहीं सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट सुरिंदर सिंह, पटना हाई कोर्ट के एडवोकेट कृष्णा प्रसाद सिंह, एडवोकेट राकेश सिंह, भास्कर शंकर सहित अनेक एडवोकेट ने पक्ष और विपक्ष की ओर से अपनी दलीलें पेश की।
सेनारी की घटना मामले से संबंधित नरसंहारों की एक श्रृंखला की आखिरी घटना थी जिसमें प्रतिबंधित माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) और रणबीर सेना जैसे उच्च जाति के संगठनों के शामिल होने का संदेह था।
हाल ही में बने अरवल जिले के सेनारी गांव में सवर्ण भूमिहार समुदाय के कम से कम 34 लोग मारे गए थे। पुलिस ने कर्पी थाने में चिंतामणि देवी के बयान के आधार पर मामला दर्ज किया, जिनकी सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी है।
हमले के दौरान मारे गए लोगों में मधुकर कुमार, ओमप्रकाश उर्फ रोहित शर्मा, भुखान शर्मा, नीरज कुमार, ओमप्रकाश, राजेश कुमार, संजीव कुमार, राजू शर्मा, जितेंद्र शर्मा, वीरेंद्र शर्मा, सच्चिदानंद शर्मा, ललन शर्मा, अवधेश शर्मा, कुंदन शर्मा, धीरेंद्र शर्मा, अमरेश कुमार, राम दयाल शर्मा, सत्येंद्र कुमार, उपेंद्र कुमार, विमलेश शर्मा, परीक्षित नारायण शर्मा, रामनरेश शर्मा, चंद्रभूषण शर्मा, अवधकिशोर शर्मा, संजीव कुमार, श्यामनारायण सिंह, नंदलाल शर्मा, रामस्लोग शर्मा, ज्वाला शर्मा, पिंटू शर्मा, रामप्रवेश शर्मा, रंजन शर्मा, जितेंद्र शर्मा, वीरेंद्र शर्मा शामिल थे।