हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए मतदान और एक्जिट पोल के नतीजे निपट जाने के बाद आज ऐसी कोई खबर नहीं है जो सभी अखबारों में निर्विवाद रूप से लीड बनती। अभी तक आप भी ऐसी खबरें पहचान चुके होंगे जिसे एक खास किस्म की पत्रकारिता सीखे, पढ़े और करने वाले लोग लीड बनाते हैं। आज के अखबार दिलचस्प हैं क्योंकि आज ऐसी कोई खबर नहीं थी और यह गोदी पत्रकारिता के समय में पत्रकारों के कनफ्यूजन के साथ उनकी योग्यता को समझने-जानने का भी मौका होता है। मतदान के दिन सीमा पर भारतीय कार्रवाई की खबर के नीचे आधे पन्ने का सत्तारूढ़ दल का विज्ञापन दिलचस्प संयोग हो सकता है। बाकी अखबारों में विज्ञापन चाहे कांग्रेस का था लीड का शीर्षक लगभग एक जैसा था। पर आज जो खबरें लीड हैं उन्हें देखिए जानिए और उनकी विविधता से आज की पत्रकारिता को समझने की कोशिश कीजिए।
आज पी चिदंबरम को जमानत मिलने की खबर द टेलीग्राफ में लीड है और हिन्दुस्तान टाइम्स (सिंगल कॉलम, टॉप), इंडियन एक्सप्रेस (तीन कॉलम) और टाइम्स ऑफ इंडिया (दो कॉलम) में पहले पन्ने पर है। हिन्दी अखबारों में यह खबर दैनिक भास्कर में लीड है पर नवभारत टाइम्स और अमर उजाला में पहले पन्ने पर नहीं है। दैनिक हिन्दुस्तान में पहले पन्ने पर दो कॉलम में है पर बिना विज्ञापन वाले दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण के पहले पन्ने पर सिर्फ सात लाइन में है। दो लाइन के शीर्षक के साथ बताया गया है कि यह खबर राजनीति की खबरों के पन्ने पर है। सुप्रीम कोर्ट में जमानत मिलने की खबर को राजनीति के पन्ने पर रखने का भी मतलब है। उसपर आगे चर्चा करता हूं।
चिदंबरम को जमानत की खबर राजस्थान पत्रिका में भी पहले पन्ने पर नहीं है।
मैंने पहले लिखा है कि किसी खबर को पहले पन्ने पर लगाने के लिए डेस्क पर थोड़े परिश्रम की आवश्यकता होती है। और टेलीग्राफ में यह परिश्रम (जो उसके लिए सामान्य है) शीर्षक में ही दिख रहा है। फ्लैग शीर्षक है, जमानत मिलने के बावजूद पी चिदंबरम हिरासत में रहेंगे। मुख्य शीर्षक है, गवाहों (को प्रभावित करने के) सीबीआई के दावे को सुप्रीम कोर्ट ने तार-तार किया।
दैनिक जागरण ने इस खबर को राजनीति की खबरों के पन्ने पर छापा है और यहां डेस्क पर हुए काम को देखिए - मुख्य शीर्षक है, आईएनएक्स मीडिया मामले में चिदंबरम को सुप्रीम कोर्ट से मिली सशर्त जमानत। उपशीर्षक है, दिक्कतें बरकरार - मनी लांड्रींगग केस में भी जेल में होने के कारण नहीं आ पाएंगे बाहर। इसके साथ इंट्रो है, पूर्व केंद्रीय मंत्री (गृहमंत्री और वित्त मंत्री नहीं?) को विशेष अदालत में पासपोर्ट जमा कराने का भी दिया आदेश। इसके साथ एक और खबर है, हाईकोर्ट ने 63 मून्स कंपनी मामले में जवाब-तलब किया और इसमें हाईलाइट है, कंपनी ने 10 हजार करोड़ रुपये के नुकसान की भरपाई का दावा दायर किया है।
इस तरह, आप समझ सकते हैं कि यह खबर अपने सभी तथ्यों, बिन्दुओं और उनकी महत्ता के लिहाज से क्यों लीड बन सकी है और क्यों राजनीति के पन्ने पर भी छप सकी है। और अगर कोई खबर इतनी खासियतों वाली है तो पहले पन्ने पर होना कोई खास बात नहीं है। खास बात है, पहले पन्ने पर नहीं होना। नवभारत टाइम्स में यह खबर फ्रंट पेज टू पर लीड है। शीर्षक है, चिदंबरम भाग सकते हैं :सीबीआई, हर केस एक जैसा नहीं : कोर्ट। इस लचर या फचीटर शीर्षक के साथ यह खबर फ्रंट पेज टू पर लीड है। अमर उजाला ने इसे कारोबार की खबरों के पन्ने पर लीड बनाया है। शीर्षक है, चिदंबरम को बेल, पर जेल में ही रहेंगे।
दूसरी तरफ, अंग्रेजी अखबारों में इस खबर का शीर्षक है, सीबीआई मामले में चिदंबरम को जमानत मिली, ईडी की हिरासत में जेल में रहेंगे (हिन्दुस्तान टाइम्स)। शीर्ष अदालत ने सीबीआई के दावों की धज्जी उड़ाई और चिदंबरम को जमानत दी (इंडियन एक्सप्रेस)। पीसी की जमानत मिली पर ईडी की हिरासत में रहेंगे (टाइम्स ऑफ इंडिया)। इन सबके मुकाबले दैनिक भास्कर में यह खबर लीड है। वहां शीर्षक और दूसरी खबरें देखिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
आज पी चिदंबरम को जमानत मिलने की खबर द टेलीग्राफ में लीड है और हिन्दुस्तान टाइम्स (सिंगल कॉलम, टॉप), इंडियन एक्सप्रेस (तीन कॉलम) और टाइम्स ऑफ इंडिया (दो कॉलम) में पहले पन्ने पर है। हिन्दी अखबारों में यह खबर दैनिक भास्कर में लीड है पर नवभारत टाइम्स और अमर उजाला में पहले पन्ने पर नहीं है। दैनिक हिन्दुस्तान में पहले पन्ने पर दो कॉलम में है पर बिना विज्ञापन वाले दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण के पहले पन्ने पर सिर्फ सात लाइन में है। दो लाइन के शीर्षक के साथ बताया गया है कि यह खबर राजनीति की खबरों के पन्ने पर है। सुप्रीम कोर्ट में जमानत मिलने की खबर को राजनीति के पन्ने पर रखने का भी मतलब है। उसपर आगे चर्चा करता हूं।
चिदंबरम को जमानत की खबर राजस्थान पत्रिका में भी पहले पन्ने पर नहीं है।
मैंने पहले लिखा है कि किसी खबर को पहले पन्ने पर लगाने के लिए डेस्क पर थोड़े परिश्रम की आवश्यकता होती है। और टेलीग्राफ में यह परिश्रम (जो उसके लिए सामान्य है) शीर्षक में ही दिख रहा है। फ्लैग शीर्षक है, जमानत मिलने के बावजूद पी चिदंबरम हिरासत में रहेंगे। मुख्य शीर्षक है, गवाहों (को प्रभावित करने के) सीबीआई के दावे को सुप्रीम कोर्ट ने तार-तार किया।
दैनिक जागरण ने इस खबर को राजनीति की खबरों के पन्ने पर छापा है और यहां डेस्क पर हुए काम को देखिए - मुख्य शीर्षक है, आईएनएक्स मीडिया मामले में चिदंबरम को सुप्रीम कोर्ट से मिली सशर्त जमानत। उपशीर्षक है, दिक्कतें बरकरार - मनी लांड्रींगग केस में भी जेल में होने के कारण नहीं आ पाएंगे बाहर। इसके साथ इंट्रो है, पूर्व केंद्रीय मंत्री (गृहमंत्री और वित्त मंत्री नहीं?) को विशेष अदालत में पासपोर्ट जमा कराने का भी दिया आदेश। इसके साथ एक और खबर है, हाईकोर्ट ने 63 मून्स कंपनी मामले में जवाब-तलब किया और इसमें हाईलाइट है, कंपनी ने 10 हजार करोड़ रुपये के नुकसान की भरपाई का दावा दायर किया है।
इस तरह, आप समझ सकते हैं कि यह खबर अपने सभी तथ्यों, बिन्दुओं और उनकी महत्ता के लिहाज से क्यों लीड बन सकी है और क्यों राजनीति के पन्ने पर भी छप सकी है। और अगर कोई खबर इतनी खासियतों वाली है तो पहले पन्ने पर होना कोई खास बात नहीं है। खास बात है, पहले पन्ने पर नहीं होना। नवभारत टाइम्स में यह खबर फ्रंट पेज टू पर लीड है। शीर्षक है, चिदंबरम भाग सकते हैं :सीबीआई, हर केस एक जैसा नहीं : कोर्ट। इस लचर या फचीटर शीर्षक के साथ यह खबर फ्रंट पेज टू पर लीड है। अमर उजाला ने इसे कारोबार की खबरों के पन्ने पर लीड बनाया है। शीर्षक है, चिदंबरम को बेल, पर जेल में ही रहेंगे।
दूसरी तरफ, अंग्रेजी अखबारों में इस खबर का शीर्षक है, सीबीआई मामले में चिदंबरम को जमानत मिली, ईडी की हिरासत में जेल में रहेंगे (हिन्दुस्तान टाइम्स)। शीर्ष अदालत ने सीबीआई के दावों की धज्जी उड़ाई और चिदंबरम को जमानत दी (इंडियन एक्सप्रेस)। पीसी की जमानत मिली पर ईडी की हिरासत में रहेंगे (टाइम्स ऑफ इंडिया)। इन सबके मुकाबले दैनिक भास्कर में यह खबर लीड है। वहां शीर्षक और दूसरी खबरें देखिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)