एक तरफ़ दुनिया भर में पूंजीवाद के सिम्बल शेयर मार्केट में ऐतिहासिक उछाल दिख रहा है और दूसरी तरफ़ लोग ग़रीबी की खाई में धंसते चले जा रहे हैं. भारत का मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग शेयर मार्केट में सेंसेक्स के उछाल से भारत की आर्थिक स्थिति का विवेचन करता है लेकिन भारत की आम ग़रीब जनता का शेयर मार्केट से ताल्लुक न के बराबर होता है. कोरोना काल में जिस तरह से लोगों के रोजगार छीन लिए गए, कर्मचारियों के वेतन में कटौती हुई, जनता घर से लेकर सड़क तक दो वक्त की रोटी के लिए भटकती रही, उनकी जिन्दगी में कोई बदलाव नहीं आया तब भी शेयर मार्केट का सेंसेक्स अपनी ऐतिहासिक ऊँचाई पर था.
8 जनवरी 2020 को सेंसेक्स 40817 अंक पर था वहीं 8 जनवरी 2021 में वह 48569 अंक तक उछला है. जब देश में गरीबी की खाई बढ़ रही है, संपत्ति का केंद्रीकरण हो रहा है तब सेंसेक्स का यह चमत्कार दर्शाता है कि वह देश की वास्तविक आर्थिक स्थिति का प्रमाण नहीं हो सकता. देश की जनता को सरकार, रिजर्व बैंक और वित्तीय संस्थाएं लगातार आंकड़ों के आधार पर बहकाने का काम कर रही है. इस सेंसेक्स के उछाल से ही केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया अपनी पीठ थपथपाते हुए आर्थिक स्थिति पटरी पर लौटने के लिए खुद को सर्टिफिकेट दे रहे हैं.
हाल ही में ऑक्सफैम नाम की संस्था ने दुनियाभर के सर्वे के बाद जो रिपोर्ट पेश की है उसमें भारत की स्थिति आर्थिक मोर्चे पर खराब होते हुए दिख रही है. जनता के लिए वर्ष भर की ह्रदयविदारक दुखदायी आपदा को पूंजीपतियों के अवसर में बदलने की अनोखी कहानी के परिणाम को ऑक्सफैम की रिपोर्ट उजागर करती है.
कोरोना एक वैश्विक आपदा थी लेकिन इस आपदा को दुनिया भर के तथा देश के पूंजीपतियों ने सरकार के साथ मिलकर ख़ुद की संपत्ति में बढ़ोतरी के लिए अवसर में तब्दील किया. यह साफ-साफ ऑक्सफैम की रिपोर्ट से स्पष्ट हो जाता है. आदम गोंडवी लिखित यह लाइन “कोठियों से मुल्क की मयार को मत आंकिये असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है” आज के समय में भी सरकार की नीयत पर कई सवाल खड़े करती है.
इस रिपोर्ट के अनुसार देशभर के अरबपतियों की कोरोना काल में संपत्ति में 35 फ़ीसदी वृद्धि हुई है लेकिन उसके विपरीत देश के 84 फ़ीसदी आम परिवारों को आर्थिक समस्या का सामना कोरोना काल में करना पड़ा है. मुकेश अंबानी 1 सेकेंड में जितनी कमाई कर रहे हैं उतनी कमाई एक आम मजदूर तीन साल में भी मुश्किल से कमाई कर पाता है.
हाल ही में देश के बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी दुनिया भर के रईसों के लिस्ट में चौथे पायदान पर हैं। "The inequality Virus" नाम की इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला-पुरुष समानता पर कोरोना काल में गहरा असर हुआ है.
रोजगार
अर्थव्यवस्था में रोजगार के संगठित क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र ऐसे दो क्षेत्र पाए जाते हैं. भारत में 90 फ़ीसदी से ज्यादा रोजगार असंगठित क्षेत्र में है. कोरोना महामारी के समय में सबसे ज्यादा असर असंगठित क्षेत्र पर हुआ है यह बात किसी से छिपी नहीं है. ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, असंगठित क्षेत्र के 75 फ़ीसदी कर्मचारियों पर कोरोना की सबसे अधिक मार पड़ी है. 12 करोड़ 20 लाख लोगों को रोजगार गंवाना पड़ा. इसमें कंस्ट्रक्शन और फैक्ट्री में काम करने वाले चार से पांच करोड़ मजदूरों पर बेरोजगारी की गाज गिरी है. नौकर और मालिक के ढांचे में बने भारतीय समाज में कोरोना महामारी ने गैर बराबरी और असमानता को तेजी से बढाया है. गैरबराबरी से अपराध बढ़ता है व् अन्य वर्ग के प्रति मन में दुर्भाव आना भी स्वाभाविक है. ऐसी स्थति समाज के लिए भी सही नहीं है.
शिक्षा
प्रत्यक्ष शिक्षा से ऑनलाइन शिक्षा तक का सफर कोरोना काल के मूल बदलाव में से रहा. शिक्षा क्षेत्र के डिजिटल होने से असमानता बढ़ी है. अमीर बच्चों को वैकल्पिक शिक्षा मिल गयी जिससे गरीब के बच्चे नदारद रह गए. देश के 20 फ़ीसदी गरीबों में से 3 फ़ीसदी लोगों के घरों में कंप्यूटर और 9 फ़ीसदी घरों में इंटरनेट उपलब्ध है. ऐसे हालात में शिक्षा की स्थिति और दिए गए शिक्षा के स्तर को आसानी से समझा जा सकता है.
स्वास्थ्य
कोरोना मरीजों की संख्या में दुनिया भर में भारत में दूसरे नंबर पर मरीज पाए गए हैं. गरीब, असुरक्षित समाज में कोरोना का फैलाव अधिक रहा है. अत्यधिक बसाव वाली ग़रीब बस्तियों में तुलनात्मक रूप से कोरोना का फैलाव भी अधिक रहा है. शिक्षा क्षेत्र की तरह स्वास्थ्य भी कॉर्पोरेट घरानों के लिए एक व्यवसाय है जिससे मुनाफ़ा पाने का काम किया जाता है. कोरोना महामारी के समय में इसमें दिन दोगुनी रात चौगुनी के तर्ज पर इजाफ़ा हुआ है. कोरोना महामारी की आड़ में अन्य बीमारी से ग्रस्त लोगों की तरफ़ ध्यान नहीं दिया गया और अनगिनत लोग अपनी जान गवां बैठे.
महिला पुरुष असमानता
पहले से ही स्त्री-पुरुष असमानता की समस्या झेल रहे भारत में कोरोना महामारी में असमानता की दीवार बड़ी गहरी हो गयी है. कोरोना से पहले महिला बेरोजगारी का दर 15 फ़ीसदी था जो कोरोना काल में 18 फ़ीसदी तक जा पहुंचा. महिलाओं का रोजगार गवानें से कुल घरेलू उत्पादन में 218 अरब डॉलर का नुकसान देश को उठाना पड़ा है. लॉकडाउन में जिन महिलाओं की नौकरियां बची रही उनमें से 33 फ़ीसदी महिलाओं को वेतन कटौती का सामना करना पड़ा है. फैमिली प्लानिंग प्रोग्राम का काम बंद होने के कारण 29 लाख 50 हजार महिलाओं की समय से पहले प्रसुति हुई है और 18 लाख गर्भपात. इसी के साथ 2165 माताओं के मृत्यु दर में भी वृद्धि हुई है. कुल मिलाकर कहा जाए तो घरेलू हिंसा और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार में बढ़ोतरी हुई है.
कोरोना काल में देश के असामनता से भरे हालत को ऑक्सफैम की रिपोर्ट में "The inequality Virus" नाम दिया गया. जाति, धर्म के गैरबराबरी के साथ साथ भारत में एक बड़ा वर्ग आर्थिक गैरबराबरी का सामना कर रहा है. गैरबराबरी की इस खाई को कॉर्पोरेट घरानों और सरकार के द्वारा लगातार बढाया जा रहा है जो कोरोना महामारी का बहाना देकर देश को खोखला कर रहा है.
8 जनवरी 2020 को सेंसेक्स 40817 अंक पर था वहीं 8 जनवरी 2021 में वह 48569 अंक तक उछला है. जब देश में गरीबी की खाई बढ़ रही है, संपत्ति का केंद्रीकरण हो रहा है तब सेंसेक्स का यह चमत्कार दर्शाता है कि वह देश की वास्तविक आर्थिक स्थिति का प्रमाण नहीं हो सकता. देश की जनता को सरकार, रिजर्व बैंक और वित्तीय संस्थाएं लगातार आंकड़ों के आधार पर बहकाने का काम कर रही है. इस सेंसेक्स के उछाल से ही केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया अपनी पीठ थपथपाते हुए आर्थिक स्थिति पटरी पर लौटने के लिए खुद को सर्टिफिकेट दे रहे हैं.
हाल ही में ऑक्सफैम नाम की संस्था ने दुनियाभर के सर्वे के बाद जो रिपोर्ट पेश की है उसमें भारत की स्थिति आर्थिक मोर्चे पर खराब होते हुए दिख रही है. जनता के लिए वर्ष भर की ह्रदयविदारक दुखदायी आपदा को पूंजीपतियों के अवसर में बदलने की अनोखी कहानी के परिणाम को ऑक्सफैम की रिपोर्ट उजागर करती है.
कोरोना एक वैश्विक आपदा थी लेकिन इस आपदा को दुनिया भर के तथा देश के पूंजीपतियों ने सरकार के साथ मिलकर ख़ुद की संपत्ति में बढ़ोतरी के लिए अवसर में तब्दील किया. यह साफ-साफ ऑक्सफैम की रिपोर्ट से स्पष्ट हो जाता है. आदम गोंडवी लिखित यह लाइन “कोठियों से मुल्क की मयार को मत आंकिये असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है” आज के समय में भी सरकार की नीयत पर कई सवाल खड़े करती है.
इस रिपोर्ट के अनुसार देशभर के अरबपतियों की कोरोना काल में संपत्ति में 35 फ़ीसदी वृद्धि हुई है लेकिन उसके विपरीत देश के 84 फ़ीसदी आम परिवारों को आर्थिक समस्या का सामना कोरोना काल में करना पड़ा है. मुकेश अंबानी 1 सेकेंड में जितनी कमाई कर रहे हैं उतनी कमाई एक आम मजदूर तीन साल में भी मुश्किल से कमाई कर पाता है.
हाल ही में देश के बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी दुनिया भर के रईसों के लिस्ट में चौथे पायदान पर हैं। "The inequality Virus" नाम की इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला-पुरुष समानता पर कोरोना काल में गहरा असर हुआ है.
रोजगार
अर्थव्यवस्था में रोजगार के संगठित क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र ऐसे दो क्षेत्र पाए जाते हैं. भारत में 90 फ़ीसदी से ज्यादा रोजगार असंगठित क्षेत्र में है. कोरोना महामारी के समय में सबसे ज्यादा असर असंगठित क्षेत्र पर हुआ है यह बात किसी से छिपी नहीं है. ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, असंगठित क्षेत्र के 75 फ़ीसदी कर्मचारियों पर कोरोना की सबसे अधिक मार पड़ी है. 12 करोड़ 20 लाख लोगों को रोजगार गंवाना पड़ा. इसमें कंस्ट्रक्शन और फैक्ट्री में काम करने वाले चार से पांच करोड़ मजदूरों पर बेरोजगारी की गाज गिरी है. नौकर और मालिक के ढांचे में बने भारतीय समाज में कोरोना महामारी ने गैर बराबरी और असमानता को तेजी से बढाया है. गैरबराबरी से अपराध बढ़ता है व् अन्य वर्ग के प्रति मन में दुर्भाव आना भी स्वाभाविक है. ऐसी स्थति समाज के लिए भी सही नहीं है.
शिक्षा
प्रत्यक्ष शिक्षा से ऑनलाइन शिक्षा तक का सफर कोरोना काल के मूल बदलाव में से रहा. शिक्षा क्षेत्र के डिजिटल होने से असमानता बढ़ी है. अमीर बच्चों को वैकल्पिक शिक्षा मिल गयी जिससे गरीब के बच्चे नदारद रह गए. देश के 20 फ़ीसदी गरीबों में से 3 फ़ीसदी लोगों के घरों में कंप्यूटर और 9 फ़ीसदी घरों में इंटरनेट उपलब्ध है. ऐसे हालात में शिक्षा की स्थिति और दिए गए शिक्षा के स्तर को आसानी से समझा जा सकता है.
स्वास्थ्य
कोरोना मरीजों की संख्या में दुनिया भर में भारत में दूसरे नंबर पर मरीज पाए गए हैं. गरीब, असुरक्षित समाज में कोरोना का फैलाव अधिक रहा है. अत्यधिक बसाव वाली ग़रीब बस्तियों में तुलनात्मक रूप से कोरोना का फैलाव भी अधिक रहा है. शिक्षा क्षेत्र की तरह स्वास्थ्य भी कॉर्पोरेट घरानों के लिए एक व्यवसाय है जिससे मुनाफ़ा पाने का काम किया जाता है. कोरोना महामारी के समय में इसमें दिन दोगुनी रात चौगुनी के तर्ज पर इजाफ़ा हुआ है. कोरोना महामारी की आड़ में अन्य बीमारी से ग्रस्त लोगों की तरफ़ ध्यान नहीं दिया गया और अनगिनत लोग अपनी जान गवां बैठे.
महिला पुरुष असमानता
पहले से ही स्त्री-पुरुष असमानता की समस्या झेल रहे भारत में कोरोना महामारी में असमानता की दीवार बड़ी गहरी हो गयी है. कोरोना से पहले महिला बेरोजगारी का दर 15 फ़ीसदी था जो कोरोना काल में 18 फ़ीसदी तक जा पहुंचा. महिलाओं का रोजगार गवानें से कुल घरेलू उत्पादन में 218 अरब डॉलर का नुकसान देश को उठाना पड़ा है. लॉकडाउन में जिन महिलाओं की नौकरियां बची रही उनमें से 33 फ़ीसदी महिलाओं को वेतन कटौती का सामना करना पड़ा है. फैमिली प्लानिंग प्रोग्राम का काम बंद होने के कारण 29 लाख 50 हजार महिलाओं की समय से पहले प्रसुति हुई है और 18 लाख गर्भपात. इसी के साथ 2165 माताओं के मृत्यु दर में भी वृद्धि हुई है. कुल मिलाकर कहा जाए तो घरेलू हिंसा और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार में बढ़ोतरी हुई है.
कोरोना काल में देश के असामनता से भरे हालत को ऑक्सफैम की रिपोर्ट में "The inequality Virus" नाम दिया गया. जाति, धर्म के गैरबराबरी के साथ साथ भारत में एक बड़ा वर्ग आर्थिक गैरबराबरी का सामना कर रहा है. गैरबराबरी की इस खाई को कॉर्पोरेट घरानों और सरकार के द्वारा लगातार बढाया जा रहा है जो कोरोना महामारी का बहाना देकर देश को खोखला कर रहा है.