मैं जब भी तीस्ता से मिली, उनसे हर बार कुछ नया सीखा...

Written by sabrang india | Published on: July 12, 2022
* लेखिका शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता व जागरुक नागरिक हैं और उत्तर प्रदेश में रहती हैं।


साथियों के साथ तीस्ता सेतलवाड़ (बीच में) 
  
एक साहसी, निडर, अन्याय के खिलाफ लगातार आवाज़ उठाने वाली संघर्षशील मानवाधिकार कार्यकर्ता का नाम है तीस्ता सेतलवाड़। जिस तरह तीस्ता नदी के पानी को कोई रोक नहीं सकता उसी तरह तीस्ता सेतलवाड के काम को रोका नहीं जा सकता। तीस्ता नदी को सिक्किम और उत्तरी बंगाल की जीवनरेखा कहा जाता है, तो तीस्ता सेतलवाड जीवन रेखा हैं उन गरीब और मज़लूम लोगों की जिनकी लड़ाई कम लोग लड़ते हैं और ये वो लोग हैं जो न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं। तीस्ता संविधान के दायरे में रहकर अन्याय के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने पर विश्वास रखती हैं। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के संविधान को लोगों तक पहुंचाने का काम करती हैं। देश संविधान से चले और लोग अपने अधिकारों को जानें जिससे एक बेहतर समतामूलक समाज बने यही तीस्ता और उनकी संस्था सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस करती है।

मेरी पहली मुलाक़ात तीस्ता से लगभग 25 साल पहले हुई थी जब वो हमारे इंस्टीट्यूट के एक सेमिनार में वक्ता के तौर पर आई थीं। तीस्ता का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा है कि एक बार जो मिल ले और उन्हें सुन ले तो वो प्रभावित हो ही जाएगा। अन्याय चाहे  दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिला के साथ हो या छात्रों, किसानों, पत्रकारों के साथ तीस्ता वहां खड़ी मिलेंगी। अन्याय के खिलाफ लड़ना तो शायद उन्हें विरासत में मिला है। एक बार उन्होंने बताया कि जब आपातकाल लगा तो वो 10 वीं में पढ़ती थीं। उनके पिता ने कहा कि ये पढ़ाई छोड़ो और आपातकाल के खिलाफ आंदोलन के लिए सड़कों पर आ जाओ। देश हित में व जुल्म के खिलाफ लड़ना उन्होंने बचपन से ही सीखा।

मैं जब जब उनसे मिली कुछ न कुछ सीखा। एक बेहतर समाज जिसमें सब बराबर हों, न्याय की प्रक्रिया सबके लिए सामान हो और वो दिखती हो। संविधान लोग ज़्यादा ज़्यादा पढें और नौजवान तबका अपने संवैधानिक अधिकारों को जाने और एक मानवाधिकार कार्यकर्ता बने। तीस्ता के पास इतिहास की भी ज़बरदस्त जानकारी है बल्कि उनका पसंदीदा विषय इतिहास ही है। एक साधन सम्पन्न परिवार से आने के बावजूद तीस्ता को किसी बात का घमंड नहीं है, वो एक साधारण व्यक्ति की तरह लोगों के बीच काम करती हैं फिर चाहे वो उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के गांव हों, सोनभद्र के आदिवासी लोग हों, असम हो या देश के अन्य राज्य। उनकी सादगी, कार्यशैली, दूरदर्शिता, संविधान और कानून की पकड़ उन्हें एक अच्छा ओरेटर के साथ ही ट्रेनर भी बनाती है। अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कैसे लड़ना है वो ये जानती हैं। भारतीय संविधान और इतिहास की वो ज्ञाता हैं अगर इनसाइकिलोपेडिया कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। 

पढ़ने वाले गरीब छात्रों विशेषकर लड़कियों की मदद करना हो या कोविड 19 लॉक डाउन में भूखे लोगों को राशन पहुंचाना हो तीस्ता कभी पीछे नहीं हटीं। यही वजह है कि जो लोग कभी तीस्ता से नहीं भी मिले हैं वो उनकी रिहाई के लिए मंदिर मे पूजा कर रहे हैं और मज़ार पर दुआ मांग रहे हैं। मैं उनसे जब भी मिली, रीचार्ज हुई और लगा कि अभी बहुत पढ़ना है और काम करना है। तीस्ता हमेशा कहती हैं काम बहुत है, तीस्ता के लिए काम कभी ख़त्म नहीं होता। मुझे यकीन है कि वो जेल में भी पढ़ाई कर रही होंगी, लिख रही होंगी और रिहा होने पर एक और किताब लिखेंगी। जेल के अन्दर भी वो अन्याय के खिलाफ और अपने संवैधानिक अधिकारों की बात कर रही होंगी। सरकार ने जेल के अन्दर हो रहे अधिकारों के हनन व अन्याय को करीब से जानने का भी मौका उन्हें दे दिया है।

तीस्ता सीतलवाड एक जुनून का नाम है तभी तो बचपन में परवरिश के दौरान दादा एम सी सीतलवाड (First Attorney General of India) और पिता अतुल सीतलवाड (Senior Lawyer Mumbai High Court) ने जब उन्हें बताया कि सभी भारतीय समान पैदा हुए हैं और उन्हें ये समानता का अनुभव होना चाहिए, ये बात तीस्ता सीतलवाड ने दिल में बैठा ली और ज़िन्दगी का मक़सद तय कर लिया कि लेखन और कार्य दोनों के ज़रिये मज़लूमों, पीड़ितों के साथ हुए अन्याय की लड़ाई लड़ेंगे। तीस्ता अपनी किताब “संविधान की सिपाही – एक संस्मरण” में लिखती हैं कि “ मैं एक ऐसे साधन सम्पन्न परिवार में पैदा हुई, जहां कानून और संवैधानिक मूल्यों को सांस के साथ अंदर सजोया जाता था। आगे लिखती हैं..... मेरा लगातार भरोसा रहा है कि सरकार और उसकी कार्यकारी शक्तियों की गलती को सही करने का तरीका, सिर्फ न्यायपालिका है। कानून का राज एक फलसफे के आधार पर लागू होना चाहिए। भारतीय परिप्रेक्षया में ये फलसफा है, भारतीय संविधान में निहित संवैधानिक विचार और दर्शन। मेरा मानना है कि अदालत को, हिंसा के पीड़ितो से बेरहमी और घृणा से छीन लिए गए जीवन, सम्मान और संपत्ति के लिए ईमानदार न्यायकर्ता होना चाहिए। “ Source : तीस्ता सीतलवाड संविधान की सिपाही – एक संस्मरण, लेफ्टवर्ड बुक्स, 2017  

आज़ाद भारत के कुछ न भूलने वाले जनसंहार 

• आज़ाद भारत के सबसे बड़े जनसंहारों मे से एक नेल्ली जनसंहार माना जाता है। जिसमें दो हजार से भी ज्यादा लोग मारे गए थे। हालांकि गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, यह संख्या तीन हजार से भी अधिक है। यह भीषण जनसंहार 18 फरवरी, 1983 को असम में हुआ था। लेकिन इस भीषण जनसंहार के अपराधियों को सजा तो दूर, उनके खिलाफ मुकदमा तक नहीं चला।  
 
• तीन नवंबर 1984 के सिख विरोधी दंगे भारतीय सिखों के विरुद्ध दंगे नहीं बल्कि जनसंहार थे, जो इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद हुए थे। सरकार का कहना है कि सिर्फ दिल्ली में लगभग 2,800 सिख मारे गए थे और देश भर में 3,350 सिख मारे गए, जबकि गैर सरकारी स्रोतों का अनुमान है कि देश भर में मरने वालों की संख्या 8,000 से 17,000 तक है। सिख विरोधी इस जनसंहार के लिए न्याय आज भी कोसों दूर है।

• 2002 के गुजरात दंगे जिसे 2002 गुजरात पोग्रोम के रूप में भी जाना जाता है। 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के S–6 डब्बे में 58 कारसेवकों की जल जाने के कारण मौत हो गई थी। इस घटना ने नफरत फैलाने का खुला मौका दे दिया। दंगों में गुलबर्ग सोसाइटी जनसंहार में एहसान जाफरी सहित 69 लोग मारे गए थे। ज़ाकिया जाफरी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 63 लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी का गठन किया था।

सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ के एनजीओ ने गुजरात 2002 दंगों में गुलबर्ग सोसाइटी जनसंहार में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफ़री की पत्नी ज़किया जाफ़री की क़ानूनी लड़ाई के दौरान उनका समर्थन किया था। अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा दर्ज मामले में तीस्ता के अलावा आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट और आरबी श्रीकुमार को भी आरोपी बनाया गया है। 

तीस्ता की संस्था सिटिजंस फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) गुजरात में लगी 2002 की आग को बुझाने का काम कर रही है। तीस्ता अपनी वेबसाइट में लिखती हैं कि,” सिटीजंस फ़ॉर जस्टिस एंड पीस, पिछले 20 वर्षों से गुजरात के 2002 के नरसंहार के उत्तरजीवी और पीड़ित लोगों को न्याय दिलाने के लिए लड़ रही है। यह कानूनी लड़ाई ट्रायल कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बीच आगे-पीछे होती हुई चलती रही है। कुल मिलाकर हम 68 मुकदमों को मजिस्ट्रेट कोर्ट से आगे सुप्रीम कोर्ट तक ले गए हैं और पहले चरण में 172 की सजा को सुनिश्चित करा पाए हैं, जिनमें से 124 को उम्रकैद हुई है। हालांकि इनमें से कुछ, अपील के बाद बदल दी गई हैं, फिर भी सीजेपी की कानूनी लड़ाइयों का सफ़र बेहद अहम रहा है और इसने आपराधिक न्याय-सुधारों के क्षेत्र में, चाहे वह उत्तरजीवियों या पीड़ितों की क्रिमिनल ट्रायल में भागीदारी के अधिकार का सवाल हो, या गवाहों की सुरक्षा का, एक अग्रदूत की भूमिका निभाई है। सीजेपी, न्याय की बेहतरीन मिसालें हासिल करने की अपनी यात्रा को जारी रखने के लिए संकल्पबद्ध है जिससे कि इन घावों को भरने की प्रक्रिया को शुरू किया जा सके। “Source : तीस्ता सीतलवाड संविधान की सिपाही– एक संस्मरण, लेफ्टवर्ड बुक्स, 2017   

आपातकाल की 47 वीं बरसी ( 25 जून 2022) के दिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नरेंद्र मोदी को 2002 में हुए गुजरात दंगों में सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिलते ही सह याचिकाकर्ता तीस्ता को गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आरबी श्रीकुमार, आईपीएस और संजीव भट्ट को धारा 468, 471, 194, 211, 218  और 120बी के तहत केस दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया। हालांकि, 
आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट ने एफिडेविट दिए थे कि वे सीजेपी की लड़ाई में शामिल नहीं थे।

संजीव भट्ट पहले से ही आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे हैं। देश और दुनिया में शायद ये पहली बार हुआ है कि सह याचिकाकर्ताओं को जेल में बंद कर दिया गया है और याचिकाकर्ता बाहर है। हमने अभी तक यही सुना है कि मुकदमे में एक पक्ष जीतता है और एक पक्ष हारता है लेकिन हारने वाले को अपराधी कह कर विभिन धाराओं मे गिरफ़्तार कर लिया जाये और जेल में बंद कर दिया जाए ये पहली बार हुआ है।

याचिकाकर्ताओं की गिरफ्तारी को लेकर देश और दुनिया भर के लोगों में गुस्सा और नाराज़गी है प्रतिदिन लोगों की तीव्र प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। लोगों का मानना है कि गुजरात पुलिस की इस कार्यवाही का मक़सद केंद्र की सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों में भय पैदा करना है। गत कई वर्षो से हम देख रहे हैं कि किस तरह अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगाई जा रही है। नफरत के खिलाफ काम करने वालों को डराया जा रहा है।

मैं पूछना चाहती हूँ कि क्या किसी की कानूनी मदद करना अपराध है। एक औरत जिसका पति दंगे में मार डाला गया वो इंसाफ मांगती फिर रही है तीस्ता, आर बी श्री कुमार और संजीव भट्ट जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओ ने उनकी मदद की तो इसका इनाम जेल मिला। ये क्या संदेश देता है कि कोई अब किसी की मदद न करे, वरना जेल जाओगे। ये कौन सा समाज हम बना रहे हैं। 

आइये तीस्ता सेतलवाड को जानें 

तीस्ता सेतलवाड़ एक प्रसिद्ध वकीलों के परिवार से हैं। उनके दादा एमसी सेतलवाड़ स्वतंत्र भारत के पहले अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया (एजीआई) थे। वह 1950 से 1963 तक भारत के महान्यायवादी रहे। 

उनके पिता यानी तीस्ता के परदादा चिमनलाल हरिलाल सेतलवाड़ 'सर' थे। अंग्रेजी साम्राज्य ने उन्हें ऑर्डर ऑफ द इंडियन अंपायर के नाइट कमांडर की उपाधि से नवाजा था। वे जलियांवाला बाग नरसंहार की जांच के लिए गठित हंटर कमीशन के सदस्य रहे। सी.एच. सेतलवाड़, पंडित जगत नारायण और साहिबजादा सुल्तान अहमद खान से मिलकर बनी कमीशन की माइनॉरिटी टीम ने पाया कि डायर ने हद से ज्यादा बल प्रयोग किया था। ये सभी ब्रिगेडियर-जनरल के खिलाफ एक मजबूत राय रखते थे।  
तीस्ता के पिता अतुल सीतलवाड हाई कोर्ट में वरिष्ठ वकील थे। जिस शहर अहमदाबाद में तीस्ता के लकड़दादा का किसी वक्त हुक्म चला करता था आज उसी अहमदाबाद की साबरमती जेल में तीस्ता बिना किसी अपराध के सज़ा काट रही हैं और वो इसलिए क्योंकि वो इंसाफ की लड़ाई लड़ रही हैं उन्होंने बादशाह से टक्कर ली है। ये लड़ाई सच और झूठ की है, न्याय और अन्याय की है।

तीस्ता मानवाधिकार कार्यकर्ता के साथ साथ एक विचारक और लेखिका भी हैं। उनके द्वारा लिखी गई कुछ खास किताबें  “बिहाइंड द मिराज: ए कलेक्शन ऑफ इनफॉर्मेड आर्गुमेंट्स”, 2014, फुट सोल्जर ऑफ द कॉन्स्टिट्यूशन: ए मेमॉयर, 2017, “बियॉन्ड डाउट” जो महात्मा गांधी की हत्या की घटनाओं पर आधारित है उल्लेखनीय हैं। 2021 में तीस्ता सेतलवाड़ ने “दिल्लीज एगनी” नामक पुस्तक का सह-लेखन किया।

राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान जो तीस्ता को मिले हैं उसकी एक लंबी लिस्ट है यहा कुछ का ज़िक्र किया गया है। 

1993 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबार्टिस द्वारा मानवाधिकार के लिए “पत्रकारिता पुरस्कार”

1999 में महाराणा मेवाड़ फ़ाउंडेशन द्वारा “हकीम खान सूर पुरस्कार”

2000 में दलित लिबरेशन एजुकेशन ट्रस्ट द्वारा “मानवाधिकार पुरस्कार”

2021 में इंजील समूह द्वारा “पेक्स क्रिस्टी अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार” 

2002 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस द्वारा “राजीव गांधी राष्ट्रीय सदभावना पुरस्कार” 

2003 में जर्मनी द्वारा “नुनबर्ग अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार पुरस्कार”

2004 में ग्लोबल एक्शन के लिए सांसदों द्वारा “डिफ़ेंडर ऑफ डेमोक्रेसी अवार्ड” 

2004 में विजिल इंडिया मूवमेंट द्वारा “थॉमस नेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड”

2006 में टाटा समूह द्वारा “नानी ए पालकीवाला पुरस्कार”

2007 में सतारा के संबोधि प्रतिष्ठान द्वारा “मातोश्री भीमबाई अंबेडकर पुरस्कार” 

2007 में भारत सरकार द्वारा “पदम श्री”

2020 में ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।

तीस्ता का मानना है कि उनकी चुनौती दंड से मुक्ति की संस्कृति से लड़ना है। यही वो वजह है जो उन्हें प्रेरित करती है।

तीस्ता सेतलवाड़ के होने का मतलब एक बहादुर औरत का पब्लिक स्फीयर में होना है, जिससे देश की साम्प्रदायिक ताकतों और उनके सबसे बड़े आका को डर लगता है। तीस्ता को बर्बाद करने के लिए सरकार ने जितनी ताकत झोंक रखी है, वही तो तीस्ता होने का मतलब है। शायद इसीलिए इतिहासकर रोमिला थापर ने कहा है, “काश तीस्ता जैसे और नागरिक भी होते”। 

तीस्ता की इस लड़ाई में हम उनके साथ हैं उनकी असंवैधानिक गिरफ़्तारी की निंदा करते हैं, और मांग करते हैं कि संविधान की सिपाही को जल्द से जल्द बाइज़्ज़त रिहा किया जाये और उन पर लगी सभी आपराधिक धराएं वापस ली जायें। 

कुछ पसंदीदा पंक्तियां दोस्त तीस्ता और हम सब के लिए हैं -

चले चलो दिलों में घाव ले के भी चले चलो 

चलो लहुलूहान पांव ले के भी चले चलो 

चलो कि आज साथ साथ चलने की ज़रूरतें 

चलो कि ख़त्म हों न जाएँ ज़िंदगी की हसरतें 

चले चलो .....

ज़मीन ख़्वाब ज़िंदगी यक़ीन सबको बांटकर 

वो चाहते हैं बेबसी में आदमी झुकाये सर

वो चाहते हैं जिंदगी हो रोशनी से बेख़बर

वो एक एक करके अब जला रहे हैं हर शहर

जले हुए घरों के ख्वाब लेके भी चले चलो

चले चलो .....

चले चलो... चले चलो... चले चलो... 


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