कर्नाटक चुनाव: राज्यपाल की ही चलेगी, लोकतंत्र अपनी नियति भोगेगा- ओम थानवी

Written by Om Thanvi | Published on: May 17, 2018
भोर भई। अदालत रात भर जागी। पर संविधान के प्रावधान से छेड़ से इनकार कर दिया। राज्यपाल की ही चलेगी। उनका विवेक, अदालत का विवेक, संविधान का प्रावधान ज़िंदाबाद। लोकतंत्र अपनी नियति भोगेगा।



मज़ा यह है कि कश्मीर, झारखंड, दिल्ली, मणिपुर और गोवा में, फिर मेघालय में तो इसी साल सबसे बड़े दल को नहीं, प्रत्यक्ष बहुमत के दावे को तरजीह दी जा चुकी है। हमारे इसी संविधान के तहत! वह भी विवेक था। यह भी विवेक है। पता नहीं क्या झमेला है।

जो हो, अंगरेज़ी के चैनल सारी रात जागे रहे। हिंदी में कुछ जागे कुछ सोए। रिपब्लिक टीवी भले बदनाम हो, पर उसके बंदों (रिदम और नलिनी?) ने बाज़ी मारी। निराश किया सबसे अज़ीज़ एनडीटीवी-इंडिया ने।

वहाँ पुराना बुलेटिन दुहराया जाता रहा, साथ में ख़ुद का लम्बा विज्ञापन। पर हिंदी के संवाददाता उमाशंकर सिंह और मनोरंजन भारती अंगरेज़ी वाले एनडीटीवी पर मौजूद थे - हिंदी के ठाठ में!

अब हम सोता हूँ। क्योंकि आप जागे हैं। भाजपा मज़ा करे या कांग्रेस, हमें क्या! राजनीति में चोरों के दिन आते हैं और साहूकारों के भी। एक ही पार्टी में दोनों तरह के लोग मिल जाते हैं, कुछ नहीं तो यही भरोसा बाँधकर चादर तान लीजिए! गाय-भैंस, गांधी-जिन्ना, सीता-राम का लीलाकाश बाद में देखेंगे।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। ओम थानवी वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये लेख मूलत: उनके फेसबुक पोस्ट  से लिया गया है।)

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