नोटबंदी हुई तो किसी को कारण पता नहीं था। ना उद्देश्य ना लक्ष्य। कालाधन, आतंकवाद, डिजिटल अर्थव्यवस्था, नकली नोट – हर चीज की चर्चा थी। पर जब नोटबंदी नाकाम रही, किसी ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली। किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया। ना प्रधानमंत्री, ना वित्त मंत्री, ना आर्थिक सलाहकार ना भारतीय रिजर्व बैंक। देश को नुकसान हुआ। सैकड़ों मरे। और अर्थव्यवस्था का कबाड़ा हो गया। और आज भी इस व्यर्थता की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता है।
अब एनआरसी और सीएबी। किसी के पास अवैध घुसपैठियों से संबंधित आंकड़ा नहीं है। कोई नहीं बता रहा है कि तथाकथित अवैध घुसपैठियों को कौन अपने देश में वापस लेगा। कोई नहीं बता रहा कि एनआरसी का खर्चा कितना है, डीटेंशन कैम्प में लोगों को रखने में कितना खर्च होने का अनुमान है। किसी भी खर्चे को बजट में भी शामिल नहीं किया गया है। उन्हें बस करना है। इस कल्पित विश्वास के साथ कि अवैध घुसपैठियों ने देश को काफी नुकसान पहुंचाया है। कोई संख्या नहीं। कोई उद्देश्य नहीं। कोई डाटा नहीं। अहमदाबाद की एक पॉश बस्ती में रहते हुए एक परसेप्शन (अनुभूति) भर बना दी गई है।
कश्मीर के बाद अब उत्तर पूर्व। देश का सबसे सुंदर और लगभग अछूता इलाका। अच्छे लोग। अग्रणी सोच। हमारे समय से आगे। उनसे कहा जा रहा है कि खुद को भारतीय साबित करें। पहले एनआरसी जिसने 19 लाख भारतीयों की नागरिकता पर सवाल उठाए। और जब पता चला कि इनमें 13 लाख हिन्दू हैं तो सीआरबी हिन्दुओं को नागरिकता देने का रास्ता बना रहा है जबकि मुस्लिम को डीटेंशन कैम्प्स में जाना पड़ेगा। बर्बरता को कानूनी जामा पहना दिया गया।
किसलिए? कितना खर्च करके? कितने अवैध घुसपैठिए हैं? धार्मिक आधार पर क्यों बांटना? क्यों हिन्दू पाकिस्तान बनना? किसी ने उस बुनियादी आंकड़े की मांग नहीं की जिसके लिए भारत को यह सब करना चाहिए? इसका कारण क्या है? इससे नागरिकों को क्या लाभ होगा?
अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद हमलोगों ने कश्मीर के लोगों को त्याग दिया है। अब हम असम, मणिपुर, मिजोरम आदि के लोगों को छोड़ रहे हैं। हम अपने ही लोगों को त्याग रहे हैं। अपने ही देश में। झेलिए। हम धर्मांध थे, हैं और रहेंगे। हम जन्म से कट्टर हैं। और घृणा से भरी इस मानसिकता से बाहर निकलने में अभी कुछ और पीढ़ियां लगेंगी। तब तक, चीयर लीडर बने रहिए और एक समाज को बर्बर बनाए जाने का आनंद लीजिए।
Peri Maheshwer की पोस्ट का अनुवाद।
अब एनआरसी और सीएबी। किसी के पास अवैध घुसपैठियों से संबंधित आंकड़ा नहीं है। कोई नहीं बता रहा है कि तथाकथित अवैध घुसपैठियों को कौन अपने देश में वापस लेगा। कोई नहीं बता रहा कि एनआरसी का खर्चा कितना है, डीटेंशन कैम्प में लोगों को रखने में कितना खर्च होने का अनुमान है। किसी भी खर्चे को बजट में भी शामिल नहीं किया गया है। उन्हें बस करना है। इस कल्पित विश्वास के साथ कि अवैध घुसपैठियों ने देश को काफी नुकसान पहुंचाया है। कोई संख्या नहीं। कोई उद्देश्य नहीं। कोई डाटा नहीं। अहमदाबाद की एक पॉश बस्ती में रहते हुए एक परसेप्शन (अनुभूति) भर बना दी गई है।
कश्मीर के बाद अब उत्तर पूर्व। देश का सबसे सुंदर और लगभग अछूता इलाका। अच्छे लोग। अग्रणी सोच। हमारे समय से आगे। उनसे कहा जा रहा है कि खुद को भारतीय साबित करें। पहले एनआरसी जिसने 19 लाख भारतीयों की नागरिकता पर सवाल उठाए। और जब पता चला कि इनमें 13 लाख हिन्दू हैं तो सीआरबी हिन्दुओं को नागरिकता देने का रास्ता बना रहा है जबकि मुस्लिम को डीटेंशन कैम्प्स में जाना पड़ेगा। बर्बरता को कानूनी जामा पहना दिया गया।
किसलिए? कितना खर्च करके? कितने अवैध घुसपैठिए हैं? धार्मिक आधार पर क्यों बांटना? क्यों हिन्दू पाकिस्तान बनना? किसी ने उस बुनियादी आंकड़े की मांग नहीं की जिसके लिए भारत को यह सब करना चाहिए? इसका कारण क्या है? इससे नागरिकों को क्या लाभ होगा?
अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद हमलोगों ने कश्मीर के लोगों को त्याग दिया है। अब हम असम, मणिपुर, मिजोरम आदि के लोगों को छोड़ रहे हैं। हम अपने ही लोगों को त्याग रहे हैं। अपने ही देश में। झेलिए। हम धर्मांध थे, हैं और रहेंगे। हम जन्म से कट्टर हैं। और घृणा से भरी इस मानसिकता से बाहर निकलने में अभी कुछ और पीढ़ियां लगेंगी। तब तक, चीयर लीडर बने रहिए और एक समाज को बर्बर बनाए जाने का आनंद लीजिए।
Peri Maheshwer की पोस्ट का अनुवाद।