किसान नहीं, पूंजीपतियों के लाभ के लिए बनाए गए हैं नए कृषि कानून, सभी को मिलकर होगा लड़ना

Written by Navnish Kumar | Published on: March 28, 2021
मोदी सरकार के नए खेती कानून किसान नहीं, बल्कि उन पूंजीपतियों के लाभ के लिए बनाए गए हैं जिनका आजादी के आंदोलन तक में कोई योगदान नहीं था। दूसरी ओर, इन (कानूनों) का प्रभाव इतना व्यापक है कि इनसे किसान ही नहीं, देश के 98 प्रतिशत मध्यम व निम्न आय वर्ग भी बड़े पैमाने पर प्रभावित होगा। यही नहीं, उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में इसका असर और भी ज्यादा भयावह होगा। दरअसल पहाड़ में पहले ही खेती-किसानी की बुरी दशा है। वन ग्रामों की ज़मीन पर मालिकाना अधिकार (वनाधिकार) नहीं मिलने से किसान परेशान हैं और मजदूर बनने के साथ ही पलायन को भी मजबूर हैं। 



कृषि कानूनों के लागू होने से पहले ही यहां आलम है कि पहाड़ के 1700 गांव खाली हो चुके हैं और करीब 2300 गांव की आधी आबादी पलायन कर चुकी है। इसलिए सरकार को तत्काल तीनों कृषि कानून वापस लेने और एमएसपी को कानूनी दर्जा देना चाहिए। साथ ही पहाड़ के लोगों का वनाधिकार सुनिश्चित करना चाहिए। सब बातें संयुक्त किसान मोर्चा नेताओं ने रामनगर नैनीताल में आयोजित किसान पंचायत में कही।

रामनगर पंचायत में किसान नेताओं ने खुद के आन्दोलनजीवी होने पर गर्व जताते हुए कहा कि देश में लोकतंत्र है और हम सब खुली हवा में सांस ले रहे हैं तो यह सब आन्दोलनजीवियों की ही बदौलत है। यही नहीं, मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं जो भी आन्दोलनजीवियों की ही देन है। इसलिए आज एक बार फिर देश को कॉरपोरेट कंपनियों के खिलाफ मिलकर लड़ना होगा। संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से रामनगर नैनीताल में आयोजित किसान पंचायत में उप्र व उत्तराखंड के किसान बड़ी संख्या में पहुंचे थे तो वन गुर्जर व वन टोंगिया ग्रामीणों की तादाद भी कम नहीं थी।सभी ने तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने का संकल्प लिया। 

पर्वतीय पैंठपड़ाव में आयोजित किसान पंचायत में वक्ताओं ने कहा कि सदी का यह पहला आंदोलन है, जिस पर दुनियाभर के छात्र शोध करेंगे। भविष्य में यह आंदोलन देश के स्वतंत्रता आंदोलन की तरह इतिहास में दर्ज होगा, जिसे पूरी दुनिया पढ़ेगी। कहा केंद्र सरकार इस आंदोलन को कुचलने के मंसूबे बना रही है, जिसका अंजाम सरकार के लिए ठीक नहीं होगा। 

संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राजेंद्र सिंह ने शहीदों को नमन करते हुए कहा कि 20 साल से उत्तराखंड में खेती बर्बाद होने के कारण गांव खाली हो चुके हैं। कहा इन जनविरोधी कृषि कानूनों के खिलाफ सभी वर्गों को एक होना होगा। इसलिए हम लड़ेंगे और जीतकर ही दम लेंगे। भाकियू नेता चौ दिगंबर सिंह ने कहा कि ये लड़ाई केवल किसानों की नहीं हैं, 2 प्रतिशत पूंजीपतियों को छोड़कर देश की 98 प्रतिशत लोगो की लड़ाई हैं। पूंजीपति व्यवस्था से प्रकृति और देश की संपदा को बचाने की लड़ाई हैं। कहा अगर पहाड़ और पहाड़ का किसान सुरक्षित नहीं होगा तो देश नहीं बचेगा। नए कृषि कानूनों से पूरे देश की स्थिति बिगड़ेगी। जगतार सिंह बाजवा, कमांडो रामेश्वर श्योरान व हरनेक सिंह ने सरकार को पूरी तरह से असंवेदनशील बताते हुए किसान आंदोलन को बदनाम करने और देश को बांटने के आरोप लगाएं। सरकार को पूरी तरह से असंवेदनशील बताते हुए कहा कि भोजन जैसी आवश्यक चीज को यह सरकार जनता के लिए जरूरी नहीं मानती, जिसके चलते खाद्य पदार्थों को इसने आवश्यक वस्तु अधिनियम की सूची से बाहर कर दिया है। किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोशिशों की मुखालफत करते हुए वक्ताओं ने कहा कि आज़ादी के आंदोलन में कोई हिस्सेदारी न करने दोरंगे लोग तिरंगे के अपमान का झूठा आरोप देश के अन्नदाता पर लगाकर उसका अपमान करने पर उतारू हैं।

वक्ताओं ने केंद्र की मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान करते हुए कहा कि खुद 35 साल तक भीख मांगकर गुजारा करने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पूंजीपति मित्रों के लाभ के लिए पूरे देश की जनता को भीख मांगने की स्थिति में ले जाना चाहते हैं, जिसे देश की किसान बिरादरी कभी नहीं होने देगी। इससे पूर्व किसान पंचायत में युवा किसान नवरीत सिंह सहित सभी शहीद किसानों को श्रद्धांजलि दी गई। नवरीत के पिता सरदार साहब सिंह भी किसान पंचायत में पहुंचे थे।

प्रमुख वनाधिकार कार्यकर्ता तरुण जोशी, दीवान कटारिया, मुनीश कुमार, ललिता रावत, पीसी तिवारी आदि ने कहा कि पंचायत में पहाड़ के किसानों के सवालों, वन ग्राम व गोट-खत्ते वासियों की भूमि पर मालिकाना हक पर चर्चा की। कहा कि देश में सरकार ने किसानों के लिए पहले से ही कम मंडियों की व्यवस्था की है। पहाड़ों में तो किसानों की उपज खरीदने के लिए ज्यादातर जगहों पर मंडियां ही नहीं हैं।

तरुण जोशी ने कहा कि पहाड़ में 3.5 से 6 प्रतिशत ही जमीन ही किसानों के लिए हैं और पहाड़ की खेती पूरी तरह जंगल पर निर्भर हैं। सरकार वनाधिकार को लेकर भी गंभीर नहीं हैं। नतीजा वन ग्रामों की ज़मीन पर मालिकाना अधिकार (वनाधिकार) नहीं मिलने से किसान परेशान हैं और मजदूर बनने के साथ ही पलायन को भी मजबूर हैं। कृषि कानूनों के लागू होने से पहले ही यहां आलम हैं कि पहाड़ के 1700 गांव खाली हो चुके हैं और करीब 2300 गांव की आधी आबादी पलायन कर चुकी हैं। सरकार अब इनकी खाली जमीनों को भी छीन कर, कारपोरेट और वन विभाग को सौंप देना चाहती हैं। कहा यही सब कारण हैं कि उत्तराखंड में वनों का क्षेत्रफल 64% से बढ़कर 72% हो गया हैं। वही अब धान की खेती को भी सरकार कानूनी करने जा रही हैं। इसके लिए व्यक्ति नहीं, बल्कि कंपनियों को ही अनुमति दी जाएगी। कहा पहाड़ के बूते ही मैदान ऊपजाऊ बनता हैं। इसलिए पहाड़ नहीं बचेगा तो मैदान भी नहीं बचेगा। इसलिए तराई हो या मैदान, भाभड़ हो या पहाड़, पर्वतीय किसानों, वनवासियों व आदिवासियों सभी को मिलकर किसान आंदोलन के साथ खड़ा होना होगा।

अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव अशोक चौधरी ने शहीदे आजम सरदार भगत सिंह को याद करते हुए कहा कि किसान आंदोलन में करीब 300 किसान शहीद हो गए है जिनकी कुर्बानी व्यर्थ नहीं जाएगी। बल्कि देश मे आंदोलन और बढ़ेंगे, चाहे सरकार कितने ही जुल्म क्यों न कर लें। चौधरी ने कहा कि भगत सिंह ने गांधीजी को पत्र लिखा था कि 15 साल में अंग्रेज चले जाएंगे लेकिन हमारी लड़ाई केवल अंग्रेजों से मुक्ति-भर की नहीं हैं बल्कि पूंजीवादियों, जातिवादी और सांप्रदायिक ताकतों से मुक्त करने की भी हैं। हुआ भी यही, अंग्रेज चले गए लेकिन व्यवस्था वही रही। बल्कि कहें तो और खराब हो गई हैं। नए कृषि कानूनों से खेती बाड़ी पर कंपनियों की पकड़ मजबूत हुई हैं और सरकार कंपनियों के साथ हैं। पब्लिक सेक्टर खत्म किया जा रहा है। राजनीतिक पार्टी पूंजीपतियों की दलाली में लगी हैं, इसी से किसान मजदूर का यह आंदोलन ही हैं जो देश को एक नए दौर में लेकर जाएगा। नए तरह की जनवादी राजनीति का जन्म होगा। वनाधिकार आंदोलन की बुनियाद में भी यही सब हैं। जो संपत्ति लोगों में बंटनी हैं, उसे माफिया कंपनी लूट रही हैं। चौधरी ने कहा कि इतने सब पर भी मोदी सरकार कृषि कानूनों को वापस नहीं लेगी। ऐसा हुआ तो मोदी की ही नौकरी चली जाएगी।

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