आदिवासी और वनाश्रितों की बेदखली के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन

Written by sabrang india | Published on: July 23, 2019
ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल (AIUFWP) के सैकड़ों सदस्यों और टोंगिया वन गांव के वनवासियों ने 19 जुलाई को, हरिद्वार जिला मुख्यालय के विकास भवन में एक शांतिपूर्ण सभा का आयोजन किया। 

इस सभा में हरिपुर टोंगिया, हज़ारा टोंगिया, तीरा टोंगिया, कमला नगर टोंगिया, पुरुषोत्तम नगर टोंगिया, भाटिया नगर टोंगिया के कई पुरुष और महिलाएँ शामिल हुए। वे दोपहर 1 बजे एकत्रित हुए और आदिवासियों व अन्य पारंपरिक वनवासियों के "निष्कासन" पर सुप्रीम कोर्ट के 13 फरवरी, 2019 के आदेश पर चर्चा की। इसके साथ ही जिनके दावों को वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत खारिज कर दिया गया है उनपर चिंता व्यक्त की। उन्होंने वन अधिकार अधिनियम, 2006 के कार्यान्वयन में राज्य सरकार की भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के संबंध में उठाए गए महत्वपूर्ण मुद्दे पर भी जोर दिया। प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी की और जिलाधिकारी कार्यालय में मौन विरोध प्रदर्शन किया।

हरिद्वार के जिला मजिस्ट्रेट दोपहर 2 बजे उनसे मिलने के लिए सहमत हुए। हालांकि, उनकी अनुपस्थिति के कारण हरिद्वार के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट ने उनके द्वारा प्रस्तुत ज्ञापन प्राप्त किया।

इनकी निम्नलिखित चार माँगें थीं,
1. वन अधिकार अधिनियम, 2006 एक महत्वपूर्ण कानून है। इस अधिनियम को लागू करना केंद्र और राज्य सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है।

2. 24 जुलाई को, राज्य सरकार को सर्वोच्च न्यायालय में कानूनी रूप से प्रतिनिधित्व किया जाना चाहिए, जैसा कि 13 फरवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार है।

3. राज्य सरकार को ज़िलापरिषद को सूचित करना चाहिए कि वह सर्वोच्च न्यायालय में मामले को हल करने तक वनाश्रितों को बेदखल करने का आदेश या नोटिस जारी न करे।

4. वर्ष 2009 और 2010 में, टोंगिया वन ग्राम, उत्तराखंड के वनवासियों ने वन अधिकार अधिनियम, 2006 में उल्लिखित प्रक्रिया के बाद अपने दावे प्रस्तुत किए थे। इन दावों को मंजूरी दी जानी चाहिए और उनके संबंधित शीर्षक उन्हें दिए जाने चाहिए।

5. सभी टांगिया गांवों को राजस्व का दर्जा दिया जाना चाहिए।

अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट ने इसे प्राप्त किया और उन्हें पावती की रसीद दी।

इसके बाद वे कार्यालय के बाहर एकत्र हुए और 22 जुलाई को राज्य की राजधानी उत्तराखंड में आयोजित हुई रैली में भाग लेने का निर्णय लिया।

1 और 2 जुलाई को नई दिल्ली में आयोजित भूमि और वन अधिकार पर एक राष्ट्रीय परामर्श बैठक हुई। इसमें शामिल हुए विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा निर्णय लिया गया कि 22 जुलाई को पूरे भारत में अपने-अपने क्षेत्रों में, ब्लॉक स्तर पर, तालुका में आदिवासियों के निष्काषन के विरोध में देशव्यापी प्रदर्शन किया जाएगा। जिसके मद्देनजर सोमवार को देशभर में विभिन्न जगहों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश और सरकार की उदासीनता के खिलाफ प्रदर्शन हुए। 

भूमि अधिकार मंच की तरफ से की गई अपील: 
13 फरवरी, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के कारण लाखों आदिवासियों और अन्य पारंपरिक वन निवास समुदायों को बेदखली का खतरा है। यदि एफआरए के तहत दावों को खारिज कर दिया जाता है, तो राज्यों को आदिवासियों और पारंपरिक वनवासियों को जंगलों से बेदखल करने का निर्देश दिया गया है। देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संशोधन किया और इसे 10 जुलाई, 2019 तक रोक दिया। जबकि 28 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के आदेश को रोकते हुए आदेश जारी रखा, लेकिन वन विभाग अभी भी लोगों को उनकी ज़मीनों को जोतने से रोक रहा है। 13 फरवरी 2019 से कई राज्यों में इस तरह के कई उदाहरण सामने आए हैं। उच्चतम न्यायालय 24 जुलाई, 2019 को विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करने वाला है। भाजपा सरकार कार्पोरेट लूट को बढ़ावा देने के लिए भारतीय वन अधिनियम, 1927 में कठोर संशोधन का भी प्रस्ताव कर रही है। साथ ही आदिवासी लोगों का शोषण किया जा रहा है। 
 

बाकी ख़बरें