गुजरात दंगे को लेकर गठित जस्टिस जीटी नानावती आयोग की रिपोर्ट को आज विधासनभा के सामने रखा गया। राज्य के गृहमंत्री प्रदीप सिंह ने कहा कि आयोग ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दिया है। साथ ही आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि तत्कालीन मंत्री हरेन पंड्या, भरत बारोट और अशोक भट्ट की किसी भी तरह की भूमिका साफ नहीं होती है। रिपोर्ट में अरबी श्रीकुमार, राहुल शर्मा और संजीव भट्ट की भूमिका पर सवाल खड़े किए गए हैं।
गृह मंत्री प्रदीप सिंह ने कहा, 'नरेंद्र मोदी पर आरोप लगा था कि किसी भी जानकारी के बिना वो गोधरा गए थे। इस आरोप को आयोग ने ख़ारिज कर दिया है। इसके बारे में सभी सरकारी एजेंसियों को जानकारी थी। आरोप था कि गोधरा रेलवे स्टेशन पर ही सभी 59 कारसेवकों का शवों का पोस्टमॉर्टम किया गया था। इस पर आयोग का कहना है कि मुख्यमंत्री के आदेश से नहीं बल्कि अधिकारियों के आदेश से पोस्टमार्टम किया गया था।'
रिपोर्ट के मुताबिक मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी किसी भी जानकारी के बिना गोधरा गए थे। इस आरोप को पंच ने खारिज कर दिया है। इसके बारे में सभी सरकारी एजेंसियों को जानकारी थी।
गोधरा स्टेशन पर सभी 59 कारसेवक के शवों का पोस्टमॉर्टम किया गया था। आयोग का कहना है कि वहां पर मौजूद अधिकारियों के आदेश पर पोस्टमॉर्टम किया गया था न की मुख्यमंत्री के आदेश पर। संजीव भट्ट ने जो आरोप लगाया था कि हिन्दुओं को अपना गुस्सा निकालने दिया जाए, आयोग का कहना है कि इस मीटिंग में ऐसे कोई आदेश मुख्यमंत्री के जरिये नहीं दिए गए थे। सरकार ने किसी भी तरह के बंद का ऐलान नहीं किया था।
क्या है पूरा मामला
बता दें कि साबरमती एक्सप्रेस में 27 फरवरी 2002 को गोधरा स्टेशन पर आग लग गई थी। इसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे। गोधरा ट्रेन अग्निकांड में मारे गए अधिकतर लोग कार सेवक थे जो अयोध्या से लौट रहे थे। मामले की जांच करने के लिए गुजरात सरकार की तरफ से गठित नानावती आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा था कि एस-6 कोच में लगी आग दुर्घटना नहीं थी, बल्कि उसमें आग लगाई गई थी।
गौरतलब है कि 2002 में दंगों में गुजरात पुलिस पर इस मामले में निष्क्रिय रहने के आरोप लगे थे। तीन दिन तक चली हिंसा में सैकड़ों लोग मारे गए थे जबकि कई लापता हो गए। आरोप लगते हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी दंगाइयों को रोकने के लिए जरूरी कार्रवाई नहीं की। उन्होंने पुलिस दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई न करने के आदेश दिए। बाद में केंद्र की यूपीए सरकार ने दंगों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया था जिसने अपनी रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी को क्लीनचिट दे दी थी।
वहीं इससे पहले गोधरा ट्रेन अग्निकांड मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए 11 दोषियों की सजा फांसी से उम्रकैद में बदल दी थी। एसआईटी कोर्ट ने 1 मार्च, 2011 को गोधरा ट्रेन अग्निकांड मामले में 31 लोगों को दोषी पाया था और 63 को बरी कर दिया था। अदालत ने दोषी पाए गए लोगों में से 11 लोगों को फांसी और 20 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
गृह मंत्री प्रदीप सिंह ने कहा, 'नरेंद्र मोदी पर आरोप लगा था कि किसी भी जानकारी के बिना वो गोधरा गए थे। इस आरोप को आयोग ने ख़ारिज कर दिया है। इसके बारे में सभी सरकारी एजेंसियों को जानकारी थी। आरोप था कि गोधरा रेलवे स्टेशन पर ही सभी 59 कारसेवकों का शवों का पोस्टमॉर्टम किया गया था। इस पर आयोग का कहना है कि मुख्यमंत्री के आदेश से नहीं बल्कि अधिकारियों के आदेश से पोस्टमार्टम किया गया था।'
रिपोर्ट के मुताबिक मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी किसी भी जानकारी के बिना गोधरा गए थे। इस आरोप को पंच ने खारिज कर दिया है। इसके बारे में सभी सरकारी एजेंसियों को जानकारी थी।
गोधरा स्टेशन पर सभी 59 कारसेवक के शवों का पोस्टमॉर्टम किया गया था। आयोग का कहना है कि वहां पर मौजूद अधिकारियों के आदेश पर पोस्टमॉर्टम किया गया था न की मुख्यमंत्री के आदेश पर। संजीव भट्ट ने जो आरोप लगाया था कि हिन्दुओं को अपना गुस्सा निकालने दिया जाए, आयोग का कहना है कि इस मीटिंग में ऐसे कोई आदेश मुख्यमंत्री के जरिये नहीं दिए गए थे। सरकार ने किसी भी तरह के बंद का ऐलान नहीं किया था।
क्या है पूरा मामला
बता दें कि साबरमती एक्सप्रेस में 27 फरवरी 2002 को गोधरा स्टेशन पर आग लग गई थी। इसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे। गोधरा ट्रेन अग्निकांड में मारे गए अधिकतर लोग कार सेवक थे जो अयोध्या से लौट रहे थे। मामले की जांच करने के लिए गुजरात सरकार की तरफ से गठित नानावती आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा था कि एस-6 कोच में लगी आग दुर्घटना नहीं थी, बल्कि उसमें आग लगाई गई थी।
गौरतलब है कि 2002 में दंगों में गुजरात पुलिस पर इस मामले में निष्क्रिय रहने के आरोप लगे थे। तीन दिन तक चली हिंसा में सैकड़ों लोग मारे गए थे जबकि कई लापता हो गए। आरोप लगते हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी दंगाइयों को रोकने के लिए जरूरी कार्रवाई नहीं की। उन्होंने पुलिस दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई न करने के आदेश दिए। बाद में केंद्र की यूपीए सरकार ने दंगों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया था जिसने अपनी रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी को क्लीनचिट दे दी थी।
वहीं इससे पहले गोधरा ट्रेन अग्निकांड मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए 11 दोषियों की सजा फांसी से उम्रकैद में बदल दी थी। एसआईटी कोर्ट ने 1 मार्च, 2011 को गोधरा ट्रेन अग्निकांड मामले में 31 लोगों को दोषी पाया था और 63 को बरी कर दिया था। अदालत ने दोषी पाए गए लोगों में से 11 लोगों को फांसी और 20 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।