नई दिल्ली। गैस पीड़ितों के लिए काम कर रहे भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति ने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कोविड काल में पीड़ितों को प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है।

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन की अध्यक्ष हामिदा बी और भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति के सह संयोजक एन जी जयप्रकाश ने विज्ञप्ति जारी कर कहा कि साल 2020 भोपाल गैस पीड़ितों के लिए कहर बनकर सामने आया। पिछले 35 साल से न्याय के लिए संघर्ष कर रहे पीड़ितों को एक बार फिर से संघर्ष करना पड़ा। 22 मार्च को पीएम द्वारा लगाए गए जनता कर्फ्यू के ठीक एक दिन बाद मध्य प्रदेश सरकार ने यह जानते हुए भी कि भोपाल मेमोरियल अस्पताल बीएमएचआरसी राज्य सरकार के अधीन नहीं है, उसे कोरोना उपचार केंद्र बना दिया।
संगठनों का कहना है कि सरकार के इस निर्णय ने पहले से ही कई खतरनाक बीमारियों से जूझ रहे गैस पीड़ितों को झकझोर कर रख दिया. मध्य प्रदेश सरकार के इस फैसले पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए दोनों संगठनों ने स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव, मध्य प्रदेश सरकार पत्र लिखकर इस आदेश को तुरंत निरस्त करने की मांग की।
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कोई कार्रवाई न करते देख ये संगठन सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के समक्ष यह मामला रखने के लिए कहा। इस बीच राज्य सरकार ने अपना पहला फैसला पलटते हुए 15 अप्रैल से भोपाल मेमोरियल अस्पताल में दोबारा से सिर्फ गैस पीड़ितों का उपचार करने का निर्णय लिया।
इस दौरान राज्य सरकार ने दिसंबर 2019 से विधवा पेंशन बंद कर गैस पीड़ितों की पीड़ा बढ़ाने का काम कर दिया। इस फैसले के खिलाफ श्री बालकृष्ण नामदेव के संस्थान भोपाल गैस पीड़ित निराष्रित पेंशन भोगी संघर्ष मोर्चा ने राज्य सरकार के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन किए और अभी तक आवाज उठा रही है। भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति ने भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से मदद की गुहार लगाई।
बीसवीं सदी की इस सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना के पीड़ितों के उपचार और बेहतर जिंदगी के लिए भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति ने चार मांगें रखी हैं:-
1. सरकार 9 अगस्त 2012 के हाई कोर्ट के रिट पिटीशन (सिविल) क्रमांग 50, साल 1998 के निर्णय जिसमें केंद्र सरकार को गैस पीड़ितों को सबसे बेहतर स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने को कहा गया है उसे जल्द लागू करे।
2. सभी मामलों की जल्द सुनवाई और निर्णय के लिए एक विशेष न्यायालय की स्थापना की जाए ताकि त्रासदी के अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके।
3. सभी पीड़ितों की बेहतर देखभाल के लिए हर संभव मदद तत्परता से की जाए।
4. पीड़ितों को साफ पानी, फ्री और बेहतर इलाज की व्यवस्था और नुकसान की भरपाई की राशि के अलावा यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में दबे हुए जहरीले मलबे को हटाने की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाए।

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन की अध्यक्ष हामिदा बी और भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति के सह संयोजक एन जी जयप्रकाश ने विज्ञप्ति जारी कर कहा कि साल 2020 भोपाल गैस पीड़ितों के लिए कहर बनकर सामने आया। पिछले 35 साल से न्याय के लिए संघर्ष कर रहे पीड़ितों को एक बार फिर से संघर्ष करना पड़ा। 22 मार्च को पीएम द्वारा लगाए गए जनता कर्फ्यू के ठीक एक दिन बाद मध्य प्रदेश सरकार ने यह जानते हुए भी कि भोपाल मेमोरियल अस्पताल बीएमएचआरसी राज्य सरकार के अधीन नहीं है, उसे कोरोना उपचार केंद्र बना दिया।
संगठनों का कहना है कि सरकार के इस निर्णय ने पहले से ही कई खतरनाक बीमारियों से जूझ रहे गैस पीड़ितों को झकझोर कर रख दिया. मध्य प्रदेश सरकार के इस फैसले पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए दोनों संगठनों ने स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव, मध्य प्रदेश सरकार पत्र लिखकर इस आदेश को तुरंत निरस्त करने की मांग की।
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कोई कार्रवाई न करते देख ये संगठन सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के समक्ष यह मामला रखने के लिए कहा। इस बीच राज्य सरकार ने अपना पहला फैसला पलटते हुए 15 अप्रैल से भोपाल मेमोरियल अस्पताल में दोबारा से सिर्फ गैस पीड़ितों का उपचार करने का निर्णय लिया।
इस दौरान राज्य सरकार ने दिसंबर 2019 से विधवा पेंशन बंद कर गैस पीड़ितों की पीड़ा बढ़ाने का काम कर दिया। इस फैसले के खिलाफ श्री बालकृष्ण नामदेव के संस्थान भोपाल गैस पीड़ित निराष्रित पेंशन भोगी संघर्ष मोर्चा ने राज्य सरकार के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन किए और अभी तक आवाज उठा रही है। भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति ने भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से मदद की गुहार लगाई।
बीसवीं सदी की इस सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना के पीड़ितों के उपचार और बेहतर जिंदगी के लिए भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन और भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति ने चार मांगें रखी हैं:-
1. सरकार 9 अगस्त 2012 के हाई कोर्ट के रिट पिटीशन (सिविल) क्रमांग 50, साल 1998 के निर्णय जिसमें केंद्र सरकार को गैस पीड़ितों को सबसे बेहतर स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने को कहा गया है उसे जल्द लागू करे।
2. सभी मामलों की जल्द सुनवाई और निर्णय के लिए एक विशेष न्यायालय की स्थापना की जाए ताकि त्रासदी के अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके।
3. सभी पीड़ितों की बेहतर देखभाल के लिए हर संभव मदद तत्परता से की जाए।
4. पीड़ितों को साफ पानी, फ्री और बेहतर इलाज की व्यवस्था और नुकसान की भरपाई की राशि के अलावा यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में दबे हुए जहरीले मलबे को हटाने की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाए।