"राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो NCRB के अनुसार, भारत में 2022 में 47,000 से अधिक बच्चे लापता हुए हैं। इनमें 71.4% नाबालिग लड़कियां है। चौंकाने वाली व ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि 2018 के बाद से गुमशुदा बच्चों की संख्या में निरंतर बढोतरी देखी जा रही है। यही नहीं, केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा इसी साल जुलाई में संसद में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, देश भर में 2019 से 2021 के बीच 18 साल से ऊपर की 10,61,648 महिलाएं और उससे कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां भी लापता हो रखीं हैं।"
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के नए आंकड़ों के अनुसार, भारत में 47,000 से अधिक बच्चे लापता हैं, जिनमें से 71.4 प्रतिशत नाबालिग लड़कियां हैं। 2022 तक के पांच साल के लिए एनसीआरबी के आंकड़े भी लापता बच्चों के आंकड़ों में ज्यादातर वृद्धि की प्रवृत्ति दिखाते हैं- मसलन, 2021 की तुलना में 2022 में 7.5 प्रतिशत की वृद्धि, 2020 के मुकाबले 2021 में 30.8 प्रतिशत की महत्वपूर्ण वृद्धि, 2019 के मुकाबले 2020 में 19.8 प्रतिशत और फिर 2018 के मुकाबले 2019 में 8.9 प्रतिशत की वृद्धि और 2017 के मुकाबले 2018 में 5.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। अधिकारियों ने कई लापता बच्चों की तलाश कर ली है, लेकिन आंकड़ों में अंतर अभी भी कम नहीं हुआ है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 2022 की एनसीआरबी की वार्षिक रिपोर्ट ‘Crime in India’ तीन दिसंबर को जारी की गई। आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल 83,350 बच्चे (20,380 पुरुष, 62,946 महिलाएं और 24 ट्रांसजेंडर) लापता हुए थे। इसके अलावा, कुल 80,561 बच्चों (20,254 पुरुष, 60,281 महिला और 26 ट्रांसजेंडर) को तलाश लिया गया या उनका पता लगाया गया। गत वर्ष यानी 2022 के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 2022 के दौरान 76,069 बच्चों के अपहरण की सूचना मिली, जिनमें से 62,099 महिलाएं थीं। पिछले साल के आंकड़ों सहित, 51,100 नाबालिगों को ‘अपहरण और एब्डक्शन के बरामद पीड़ितों’ श्रेणी के तहत सूचीबद्ध किया गया है, जिनमें से 40,219 या 78.7 प्रतिशत नाबालिग लड़कियां हैं।
अपहरण की धाराओं के तहत दर्ज़ किए गए लापता बच्चों के मामलों के लिए, एनसीआरबी डेटा को “लापता बच्चों को अपहृत” श्रेणी के अंतर्गत रखता है। यह ऐसी शिकायत मिलने के तुरंत बाद अपहरण की धाराओं के तहत दर्ज की गई एफआईआर से अलग है। खास है कि लापता बच्चों के लिए मानक प्रक्रिया के अनुसार, लापता नाबालिग के बारे में जानकारी मिलने पर, पुलिस शुरुआती जांच और सत्यापन के बाद, भारतीय दंड संहिता की धारा 363 (अपहरण) के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य है।
दिप्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में 33,650 लापता बच्चों को अपहृत माना गया। 2021 में इस श्रेणी के तहत आंकड़ा 29,364 था, 2020 में यह 22,222 था, 2019 में ये 29,243 और 2018 में ये 24,429 था। प्रिंट से बात करते हुए दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव, जिन्होंने 14 वर्ष से कम उम्र के 50 या अधिक लापता बच्चों का पता लगाने वाले पुलिस कर्मियों के लिए आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन सहित अतिरिक्त प्रोत्साहन देने की घोषणा की थी, ने कहा, “लापता बच्चों की समस्या पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है। ये बच्चे सड़कों पर आ सकते हैं और अपराधियों से प्रभावित होकर उनके सांठगांठ का हिस्सा बन सकते हैं। अन्य मामलों में उन्हें बेच भी दिया जाता है या, वेश्यावृत्ति और अन्य अवैध गतिविधियों में धकेल दिया जाता है।” उन्होंने कहा, “लापता बच्चों का पता लगाना प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए और अगर ऐसे मामलों पर काम करने वाले पुलिस कर्मियों को उनके काम के लिए लाभ और अन्य प्रोत्साहन का वादा किया जाए तो इससे मदद मिल सकती है।”
बाल तस्करी, बाल विवाह और नाबालिगों के यौन शोषण के खिलाफ काम करने वाले गैर सरकारी संगठन शक्ति वाहिनी के साथ काम करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता ऋषि कांत ने लापता बच्चों के आंकड़ों को “अस्थिर” करार दिया और पहले 24 घंटों में “घटिया जांच” को चिह्नित करते हुए कहा कि ऐसे मामलों की संख्या कहीं अधिक है। कांत ने कहा, “यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह पहले 24 घंटे हैं जो एक लापता बच्चे का पता लगाने में मदद कर सकते हैं। 24 घंटों के बाद, बच्चे के स्वस्थ मानसिक और शारीरिक स्थिति में पाए जाने की संभावना कम है।”
उन्होंने कहा, “इन मामलों को संभालने वाले पुलिस अधिकारियों को यह पता लगाना शुरू करना होगा कि बच्चा किसके साथ गया है, क्या बच्चा पड़ोस में किसी से बात कर रहा था, क्या कोई नया व्यक्ति बच्चे से दोस्ती करने की कोशिश कर रहा था और यह गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज़ होने के तुरंत बाद किया जाना चाहिए। लापता नाबालिग लड़कियों की संख्या हमेशा नाबालिग लड़कों की तुलना में अधिक होती है। इन नाबालिग लड़कियों को अक्सर वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है और फिर मसाज पार्लर का एक नया रैकेट खुल जाता है।” कांत ने कहा, “ऐसे अन्य रैकेट भी हैं जिनमें ये बच्चे फंसे हुए हैं– भीख मांगना, बाल श्रम आदि। अगर पुलिस शुरू से ही तस्करी सहित सभी कोणों और उद्देश्यों की जांच शुरू कर देती है, तो जांच में तेज़ी आती है और बच्चे की तलाश की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।”
हालांकि, डेटा नाबालिगों की तस्करी की एक धुंधली तस्वीर पेश करता है, एनसीआरबी के अनुसार, 2022 में केवल 424 ऐसे मामले दर्ज किए गए। इसके अलावा, केवल 11, जिनमें से 10 लड़कियां थीं में पूरे भारत में वेश्यावृत्ति के लिए बेचे जाने का मामला दर्ज किया गया था। यही नहीं, इन 5 साल के एनसीआरबी आंकड़ों पर नज़र डालने से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश लापता बच्चों की सबसे बड़ी संख्या वाले चार्ट में शीर्ष पर हैं। लापता लड़कियों की संख्या भी लापता लड़कों की तुलना में बहुत अधिक है।
पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश टॉप पर
2022 के आंकड़ों से पता चला है कि पश्चिम बंगाल में लापता बच्चों की संख्या सबसे अधिक है– 12,455 (1,884 लड़के और 10,571 लड़कियां)। और 11,352 बच्चों (2,286 लड़के और 9,066 लड़कियां) के साथ मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है। 2021 में मध्य प्रदेश ने 11,607 बच्चों (2,200 लड़के और 9,407 लड़कियां) के लापता होने की सूचना दी, इसके बाद पश्चिम बंगाल में 9,996 बच्चे (1,518 लड़के और 8,478 लड़कियां) लापता थे। 2020 में, 7,230 लड़कियों सहित 8,751 लापता बच्चों के साथ मध्य प्रदेश शीर्ष पर रहा। पश्चिम बंगाल 7,648 लापता बच्चों (1,008 लड़के और 6,640 लड़कियां) के साथ दूसरे स्थान पर था।
2019 में मध्य प्रदेश फिर से सूची में शीर्ष पर रहा, जहां 11,022 बच्चे लापता थे, जिनमें 8,572 लड़कियां शामिल थीं। पश्चिम बंगाल के लिए, NCRB ने कहा कि उसे 2018 के आंकड़ों का उपयोग करना होगा क्योंकि राज्य ने 2019 के लिए डेटा नहीं दिया था। 2018 में, 7,574 लड़कियों सहित 10,038 बच्चों के लापता होने के साथ मध्य प्रदेश शीर्ष पर था।
अभी भी पता नहीं चल पाया है
2022 के आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में लापता बच्चों की सबसे अधिक संख्या 12,546 पाई गई। हालांकि, राज्य में अभी भी बरामद न किए गए या पता न लगाए गए बच्चों की संख्या सबसे अधिक 6,994 है। मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है, जहां 11,161 बच्चे ढूंढे गए और 3,926 बच्चे लापता हैं। लापता बच्चों की संख्या के मामले में बिहार 6,781 बच्चों के साथ पश्चिम बंगाल से पीछे है, इसके बाद 6,040 ऐसे बच्चों के साथ दिल्ली है। ये आंकड़े संचयी हैं, जिनमें पिछले वर्षों में लापता हुए और अब तक लापता हुए लोगों को ध्यान में रखा गया है।
एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 33,798 लड़कियों सहित 47,313 बच्चे अभी भी लापता हैं, जो लापता बच्चों की कुल संख्या का 71.4 प्रतिशत है। इस आंकड़े में पिछले वर्षों की संख्या भी शामिल है। अपहरण के मामलों में धारा 363 के अलावा, जांच के अनुसार कई अन्य धाराएं जोड़ी जाती हैं, जैसे गुमशुदगी को अपहरण माना जाता है, अन्य किडनैपिंग और एब्डक्शन, भीख मांगने के उद्देश्य से किडनैपिंग और अपहरण, हत्या के लिए किडनैपिंग और अपहरण, अपहरण फिरौती, अपहरण और शादी के लिए मजबूर करने के लिए नाबालिग लड़कियों का अपहरण और नाबालिग लड़कियों की खरीद-फरोख्त के लिए।
पांच वर्षों में पौने तीन लाख बच्चे लापता, लगातार बढ़ रही बच्चों की मिसिंग कम्पलेंट
देश में बच्चों के लापता (मिसिंग) होने के मामले कम नहीं हो रहे हैं। पिछले 5 वर्षों के दौरान ही देश के विभिन्न राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों से 2 लाख 75 हजार 125 बच्चे लापता हुए। चिंताजनक बात यह है कि लापता होने वाले बच्चों में बेटियों की संख्या काफी अधिक है। कुल लापता हुए बच्चों में से 2 लाख 12 हजार 825 बेटियां शामिल हैं। वहीं उत्तरी भारत के राज्यों में इस अवधि में 51 हजार 495 बच्चे लापता हुए हैं।
द ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन राज्यों में सबसे अधिक चिंताजनक स्थिति राष्ट्रीय राजधानी– नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों की है। लापता बच्चों को तलाशने के मामले में केरल देशभर में अव्वल है। वहीं हरियाणा की परफारमेंस भी शानदार रही है। यहां की पुलिस भी लापता बच्चों को तलाशने में काफी एक्टिव है। हरियाणा पुलिस द्वारा गुमशुदा बच्चों की तलाश के लिए ऑपरेशन ‘मुस्कान’ भी चलाया जाता रहा है। इसके तहत दूसरे राज्यों के बच्चों को भी उनके परिवार तक मिलाने में पुलिस को कामयाबी मिली है।
हिसार से भाजपा सांसद बृजेंद्र सिंह ने लोकसभा में उठाया मुद्दा
हिसार से भाजपा सांसद बृजेंद्र सिंह ने लोकसभा में यह मुद्दा उठाया था। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से दिए जवाब में प्रदेशवार लापता हुए बच्चों के आंकड़े दिए हैं। मंत्रालय ने पहली जनवरी, 2018 से 30 जून, 2023 तक का डॉटा सदन में रखा। केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ में 550 बच्चे लापता हुए हैं और इनमें 385 बेटियां शामिल हैं। इसी तरह से नयी दिल्ली में लापता हुए 22 हजार 964 बच्चों में से 15 हजार 365 बेटियां हैं। हरियाणा में इन पांच वर्षों में 2512 बच्चे लापता हुए। इनमें 1502 बेटियां हैं। पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश से लापता हुए 547 बच्चों में 394 बेटियां लापता हुई हैं। जम्मू-कश्मीर (लद्दाख सहित) में 214 बच्चे गुमशुदा हुए और इनमें 138 बेटियां शामिल हैं। वहीं पंजाब में लापता हुए 947 बच्चों में 662 बेटियां शामिल हैं।
जम्मू-कश्मीर, चंडीगढ़, पंजाब में सबसे कम शिकायतें
उत्तरी भारत के राज्यों में सबसे कम जम्मू-कश्मीर, चंडीगढ़ और पंजाब में बच्चों के लापता होने की शिकायतें दर्ज हुई हैं। हरियाणा का आंकड़ा भी दूसरे राज्यों की तुलना में कम है। लापता बच्चों को तलाश करने के मामले में इस रीजन में हरियाणा सबसे अव्वल माना जा सकता है। चंडीगढ़ में 347, नई दिल्ली में 16 हजार 463, हिमाचल प्रदेश में 462, जम्मू-कश्मीर में 83, पंजाब में 449, राजस्थान में 8909, उत्तराखंड में 2136 तथा उत्तर प्रदेश में 4905 बच्चों को उनके परिजनों से मिलवाने में पुलिस ने कामयाबी हासिल की है। आंकड़ों के हिसाब से बच्चों खासकर लड़कियों के लिए पूर्व उत्तर राज्य सबसे सुरक्षित हैं। खोये हुए बच्चों को खोजने में बिहार, कश्मीर और उत्तर प्रदेश सबसे फिसड्डी हैं। पांच वर्षों में लक्षद्वीप, पूर्व उत्तर के मिजोरम में एक भी बच्चे के खोने की घटना नहीं हुई। पूर्वोत्तर के अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर व नगालैंड में केवल एक ऐसी घटना दर्ज हुई है।
दो साल में 13 लाख से ज्यादा लड़कियां और महिलाएं हुईं लापता, MP टॉप पर
जुलाई माह के आखिर में संसद में पेश किए गए केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में 2019 से 2021 के बीच 18 साल से ऊपर की 10,61,648 महिलाएं और उससे कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां लापता हो गईं। मध्य प्रदेश में 2019 और 2021 के बीच 1,60,180 महिलाएं और 38,234 लड़कियां लापता हो गईं। 2019 और 2021 के बीच तीन वर्षों में देश में 13.13 लाख से अधिक लड़कियां और महिलाएं लापता हुईं। इनमें से ज्यादातर मध्य प्रदेश से थीं। वहीं इस मामले में पश्चिम बंगाल दूसरे स्थान पर है, जहां इन दो वर्षों में सबसे ज्यादा लड़कियां और महिलाएं लापता हुई हैं।
दरअसल, पिछले हफ्ते संसद में पेश किए गए केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में 2019 से 2021 के बीच 18 साल से ऊपर की 10,61,648 महिलाएं और उससे कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां लापता हो गईं। न्यूज एजेंसी के मुताबिक डेटा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा संकलित किया गया है। संसद को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में 2019 और 2021 के बीच 1,60,180 महिलाएं और 38,234 लड़कियां लापता हुईं।इसी अवधि में पश्चिम बंगाल से कुल 1,56,905 महिलाएं और 36,606 लड़कियां लापता हुईं। महाराष्ट्र में इस अवधि में 1,78,400 महिलाएं और 13,033 लड़कियां लापता हुईं हैं। ओडिशा में, तीन वर्षों में 70,222 महिलाएं और 16,649 लड़कियां लापता हो गईं, जबकि इसी बीच छत्तीसगढ़ से 49,116 महिलाएं और 10,817 लड़कियां गायब हो गईं। केंद्र शासित प्रदेशों में, दिल्ली में लड़कियों और महिलाओं के लापता होने की संख्या सबसे अधिक दर्ज की गई। राष्ट्रीय राजधानी में, 2019 और 2021 के बीच 61,054 महिलाएं और 22,919 लड़कियां लापता हो गईं, जबकि जम्मू और कश्मीर में 8,617 महिलाएं और 1,148 लड़कियां लापता हुईं हैं।
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मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 2022 की एनसीआरबी की वार्षिक रिपोर्ट ‘Crime in India’ तीन दिसंबर को जारी की गई। आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल 83,350 बच्चे (20,380 पुरुष, 62,946 महिलाएं और 24 ट्रांसजेंडर) लापता हुए थे। इसके अलावा, कुल 80,561 बच्चों (20,254 पुरुष, 60,281 महिला और 26 ट्रांसजेंडर) को तलाश लिया गया या उनका पता लगाया गया। गत वर्ष यानी 2022 के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 2022 के दौरान 76,069 बच्चों के अपहरण की सूचना मिली, जिनमें से 62,099 महिलाएं थीं। पिछले साल के आंकड़ों सहित, 51,100 नाबालिगों को ‘अपहरण और एब्डक्शन के बरामद पीड़ितों’ श्रेणी के तहत सूचीबद्ध किया गया है, जिनमें से 40,219 या 78.7 प्रतिशत नाबालिग लड़कियां हैं।
अपहरण की धाराओं के तहत दर्ज़ किए गए लापता बच्चों के मामलों के लिए, एनसीआरबी डेटा को “लापता बच्चों को अपहृत” श्रेणी के अंतर्गत रखता है। यह ऐसी शिकायत मिलने के तुरंत बाद अपहरण की धाराओं के तहत दर्ज की गई एफआईआर से अलग है। खास है कि लापता बच्चों के लिए मानक प्रक्रिया के अनुसार, लापता नाबालिग के बारे में जानकारी मिलने पर, पुलिस शुरुआती जांच और सत्यापन के बाद, भारतीय दंड संहिता की धारा 363 (अपहरण) के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य है।
दिप्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में 33,650 लापता बच्चों को अपहृत माना गया। 2021 में इस श्रेणी के तहत आंकड़ा 29,364 था, 2020 में यह 22,222 था, 2019 में ये 29,243 और 2018 में ये 24,429 था। प्रिंट से बात करते हुए दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव, जिन्होंने 14 वर्ष से कम उम्र के 50 या अधिक लापता बच्चों का पता लगाने वाले पुलिस कर्मियों के लिए आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन सहित अतिरिक्त प्रोत्साहन देने की घोषणा की थी, ने कहा, “लापता बच्चों की समस्या पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है। ये बच्चे सड़कों पर आ सकते हैं और अपराधियों से प्रभावित होकर उनके सांठगांठ का हिस्सा बन सकते हैं। अन्य मामलों में उन्हें बेच भी दिया जाता है या, वेश्यावृत्ति और अन्य अवैध गतिविधियों में धकेल दिया जाता है।” उन्होंने कहा, “लापता बच्चों का पता लगाना प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए और अगर ऐसे मामलों पर काम करने वाले पुलिस कर्मियों को उनके काम के लिए लाभ और अन्य प्रोत्साहन का वादा किया जाए तो इससे मदद मिल सकती है।”
बाल तस्करी, बाल विवाह और नाबालिगों के यौन शोषण के खिलाफ काम करने वाले गैर सरकारी संगठन शक्ति वाहिनी के साथ काम करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता ऋषि कांत ने लापता बच्चों के आंकड़ों को “अस्थिर” करार दिया और पहले 24 घंटों में “घटिया जांच” को चिह्नित करते हुए कहा कि ऐसे मामलों की संख्या कहीं अधिक है। कांत ने कहा, “यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह पहले 24 घंटे हैं जो एक लापता बच्चे का पता लगाने में मदद कर सकते हैं। 24 घंटों के बाद, बच्चे के स्वस्थ मानसिक और शारीरिक स्थिति में पाए जाने की संभावना कम है।”
उन्होंने कहा, “इन मामलों को संभालने वाले पुलिस अधिकारियों को यह पता लगाना शुरू करना होगा कि बच्चा किसके साथ गया है, क्या बच्चा पड़ोस में किसी से बात कर रहा था, क्या कोई नया व्यक्ति बच्चे से दोस्ती करने की कोशिश कर रहा था और यह गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज़ होने के तुरंत बाद किया जाना चाहिए। लापता नाबालिग लड़कियों की संख्या हमेशा नाबालिग लड़कों की तुलना में अधिक होती है। इन नाबालिग लड़कियों को अक्सर वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है और फिर मसाज पार्लर का एक नया रैकेट खुल जाता है।” कांत ने कहा, “ऐसे अन्य रैकेट भी हैं जिनमें ये बच्चे फंसे हुए हैं– भीख मांगना, बाल श्रम आदि। अगर पुलिस शुरू से ही तस्करी सहित सभी कोणों और उद्देश्यों की जांच शुरू कर देती है, तो जांच में तेज़ी आती है और बच्चे की तलाश की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।”
हालांकि, डेटा नाबालिगों की तस्करी की एक धुंधली तस्वीर पेश करता है, एनसीआरबी के अनुसार, 2022 में केवल 424 ऐसे मामले दर्ज किए गए। इसके अलावा, केवल 11, जिनमें से 10 लड़कियां थीं में पूरे भारत में वेश्यावृत्ति के लिए बेचे जाने का मामला दर्ज किया गया था। यही नहीं, इन 5 साल के एनसीआरबी आंकड़ों पर नज़र डालने से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश लापता बच्चों की सबसे बड़ी संख्या वाले चार्ट में शीर्ष पर हैं। लापता लड़कियों की संख्या भी लापता लड़कों की तुलना में बहुत अधिक है।
पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश टॉप पर
2022 के आंकड़ों से पता चला है कि पश्चिम बंगाल में लापता बच्चों की संख्या सबसे अधिक है– 12,455 (1,884 लड़के और 10,571 लड़कियां)। और 11,352 बच्चों (2,286 लड़के और 9,066 लड़कियां) के साथ मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है। 2021 में मध्य प्रदेश ने 11,607 बच्चों (2,200 लड़के और 9,407 लड़कियां) के लापता होने की सूचना दी, इसके बाद पश्चिम बंगाल में 9,996 बच्चे (1,518 लड़के और 8,478 लड़कियां) लापता थे। 2020 में, 7,230 लड़कियों सहित 8,751 लापता बच्चों के साथ मध्य प्रदेश शीर्ष पर रहा। पश्चिम बंगाल 7,648 लापता बच्चों (1,008 लड़के और 6,640 लड़कियां) के साथ दूसरे स्थान पर था।
2019 में मध्य प्रदेश फिर से सूची में शीर्ष पर रहा, जहां 11,022 बच्चे लापता थे, जिनमें 8,572 लड़कियां शामिल थीं। पश्चिम बंगाल के लिए, NCRB ने कहा कि उसे 2018 के आंकड़ों का उपयोग करना होगा क्योंकि राज्य ने 2019 के लिए डेटा नहीं दिया था। 2018 में, 7,574 लड़कियों सहित 10,038 बच्चों के लापता होने के साथ मध्य प्रदेश शीर्ष पर था।
अभी भी पता नहीं चल पाया है
2022 के आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में लापता बच्चों की सबसे अधिक संख्या 12,546 पाई गई। हालांकि, राज्य में अभी भी बरामद न किए गए या पता न लगाए गए बच्चों की संख्या सबसे अधिक 6,994 है। मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है, जहां 11,161 बच्चे ढूंढे गए और 3,926 बच्चे लापता हैं। लापता बच्चों की संख्या के मामले में बिहार 6,781 बच्चों के साथ पश्चिम बंगाल से पीछे है, इसके बाद 6,040 ऐसे बच्चों के साथ दिल्ली है। ये आंकड़े संचयी हैं, जिनमें पिछले वर्षों में लापता हुए और अब तक लापता हुए लोगों को ध्यान में रखा गया है।
एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 33,798 लड़कियों सहित 47,313 बच्चे अभी भी लापता हैं, जो लापता बच्चों की कुल संख्या का 71.4 प्रतिशत है। इस आंकड़े में पिछले वर्षों की संख्या भी शामिल है। अपहरण के मामलों में धारा 363 के अलावा, जांच के अनुसार कई अन्य धाराएं जोड़ी जाती हैं, जैसे गुमशुदगी को अपहरण माना जाता है, अन्य किडनैपिंग और एब्डक्शन, भीख मांगने के उद्देश्य से किडनैपिंग और अपहरण, हत्या के लिए किडनैपिंग और अपहरण, अपहरण फिरौती, अपहरण और शादी के लिए मजबूर करने के लिए नाबालिग लड़कियों का अपहरण और नाबालिग लड़कियों की खरीद-फरोख्त के लिए।
पांच वर्षों में पौने तीन लाख बच्चे लापता, लगातार बढ़ रही बच्चों की मिसिंग कम्पलेंट
देश में बच्चों के लापता (मिसिंग) होने के मामले कम नहीं हो रहे हैं। पिछले 5 वर्षों के दौरान ही देश के विभिन्न राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों से 2 लाख 75 हजार 125 बच्चे लापता हुए। चिंताजनक बात यह है कि लापता होने वाले बच्चों में बेटियों की संख्या काफी अधिक है। कुल लापता हुए बच्चों में से 2 लाख 12 हजार 825 बेटियां शामिल हैं। वहीं उत्तरी भारत के राज्यों में इस अवधि में 51 हजार 495 बच्चे लापता हुए हैं।
द ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन राज्यों में सबसे अधिक चिंताजनक स्थिति राष्ट्रीय राजधानी– नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों की है। लापता बच्चों को तलाशने के मामले में केरल देशभर में अव्वल है। वहीं हरियाणा की परफारमेंस भी शानदार रही है। यहां की पुलिस भी लापता बच्चों को तलाशने में काफी एक्टिव है। हरियाणा पुलिस द्वारा गुमशुदा बच्चों की तलाश के लिए ऑपरेशन ‘मुस्कान’ भी चलाया जाता रहा है। इसके तहत दूसरे राज्यों के बच्चों को भी उनके परिवार तक मिलाने में पुलिस को कामयाबी मिली है।
हिसार से भाजपा सांसद बृजेंद्र सिंह ने लोकसभा में उठाया मुद्दा
हिसार से भाजपा सांसद बृजेंद्र सिंह ने लोकसभा में यह मुद्दा उठाया था। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से दिए जवाब में प्रदेशवार लापता हुए बच्चों के आंकड़े दिए हैं। मंत्रालय ने पहली जनवरी, 2018 से 30 जून, 2023 तक का डॉटा सदन में रखा। केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ में 550 बच्चे लापता हुए हैं और इनमें 385 बेटियां शामिल हैं। इसी तरह से नयी दिल्ली में लापता हुए 22 हजार 964 बच्चों में से 15 हजार 365 बेटियां हैं। हरियाणा में इन पांच वर्षों में 2512 बच्चे लापता हुए। इनमें 1502 बेटियां हैं। पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश से लापता हुए 547 बच्चों में 394 बेटियां लापता हुई हैं। जम्मू-कश्मीर (लद्दाख सहित) में 214 बच्चे गुमशुदा हुए और इनमें 138 बेटियां शामिल हैं। वहीं पंजाब में लापता हुए 947 बच्चों में 662 बेटियां शामिल हैं।
जम्मू-कश्मीर, चंडीगढ़, पंजाब में सबसे कम शिकायतें
उत्तरी भारत के राज्यों में सबसे कम जम्मू-कश्मीर, चंडीगढ़ और पंजाब में बच्चों के लापता होने की शिकायतें दर्ज हुई हैं। हरियाणा का आंकड़ा भी दूसरे राज्यों की तुलना में कम है। लापता बच्चों को तलाश करने के मामले में इस रीजन में हरियाणा सबसे अव्वल माना जा सकता है। चंडीगढ़ में 347, नई दिल्ली में 16 हजार 463, हिमाचल प्रदेश में 462, जम्मू-कश्मीर में 83, पंजाब में 449, राजस्थान में 8909, उत्तराखंड में 2136 तथा उत्तर प्रदेश में 4905 बच्चों को उनके परिजनों से मिलवाने में पुलिस ने कामयाबी हासिल की है। आंकड़ों के हिसाब से बच्चों खासकर लड़कियों के लिए पूर्व उत्तर राज्य सबसे सुरक्षित हैं। खोये हुए बच्चों को खोजने में बिहार, कश्मीर और उत्तर प्रदेश सबसे फिसड्डी हैं। पांच वर्षों में लक्षद्वीप, पूर्व उत्तर के मिजोरम में एक भी बच्चे के खोने की घटना नहीं हुई। पूर्वोत्तर के अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर व नगालैंड में केवल एक ऐसी घटना दर्ज हुई है।
दो साल में 13 लाख से ज्यादा लड़कियां और महिलाएं हुईं लापता, MP टॉप पर
जुलाई माह के आखिर में संसद में पेश किए गए केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में 2019 से 2021 के बीच 18 साल से ऊपर की 10,61,648 महिलाएं और उससे कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां लापता हो गईं। मध्य प्रदेश में 2019 और 2021 के बीच 1,60,180 महिलाएं और 38,234 लड़कियां लापता हो गईं। 2019 और 2021 के बीच तीन वर्षों में देश में 13.13 लाख से अधिक लड़कियां और महिलाएं लापता हुईं। इनमें से ज्यादातर मध्य प्रदेश से थीं। वहीं इस मामले में पश्चिम बंगाल दूसरे स्थान पर है, जहां इन दो वर्षों में सबसे ज्यादा लड़कियां और महिलाएं लापता हुई हैं।
दरअसल, पिछले हफ्ते संसद में पेश किए गए केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में 2019 से 2021 के बीच 18 साल से ऊपर की 10,61,648 महिलाएं और उससे कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां लापता हो गईं। न्यूज एजेंसी के मुताबिक डेटा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा संकलित किया गया है। संसद को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में 2019 और 2021 के बीच 1,60,180 महिलाएं और 38,234 लड़कियां लापता हुईं।इसी अवधि में पश्चिम बंगाल से कुल 1,56,905 महिलाएं और 36,606 लड़कियां लापता हुईं। महाराष्ट्र में इस अवधि में 1,78,400 महिलाएं और 13,033 लड़कियां लापता हुईं हैं। ओडिशा में, तीन वर्षों में 70,222 महिलाएं और 16,649 लड़कियां लापता हो गईं, जबकि इसी बीच छत्तीसगढ़ से 49,116 महिलाएं और 10,817 लड़कियां गायब हो गईं। केंद्र शासित प्रदेशों में, दिल्ली में लड़कियों और महिलाओं के लापता होने की संख्या सबसे अधिक दर्ज की गई। राष्ट्रीय राजधानी में, 2019 और 2021 के बीच 61,054 महिलाएं और 22,919 लड़कियां लापता हो गईं, जबकि जम्मू और कश्मीर में 8,617 महिलाएं और 1,148 लड़कियां लापता हुईं हैं।
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