दिल्ली के अखबारों में बंगाल का चुनाव छाया हुआ है। 12 मई को छठे चरण के मतदान के बाद बाकी बची 59 सीटों के लिए मतदान 19 मई को है। छठे चरण में पश्चिम बंगाल की आठ सीटें थीं। इस बार नौ सीटों के लिए मतदान है। 2014 में ये नौ सीटें टीएमसी ने जीती थी। इसके अलावा पंजाब में 13, उत्तर प्रदेश में 13, मध्य प्रदेश और बिहार में आठ-आठ, झारखंड में तीन और चंडीगढ़ की एक सीट पर भी मतदान होना है लेकिन दिल्ली के अखबारों में बंगाल ही छाया हआ है। मेरा मानना है कि ममता बनर्जी से भिड़कर, उन्हें बदनाम करके भाजपा को दूसरी जगह भी चुनावी लाभ मिलने की उम्मीद है। इसीलिए ममता बनर्जी ने आरोपों पर कहा है कि साबित करें नहीं तो जेल भेज दूंगी। जवाब में नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि दीदी इतना हताश हो गई हैं कि मुझे सलाखों के पीछे डालने की धमकी देने लगी हैं (हि्दुस्तान)।
अमर उजाला ने लिखा है कि उत्तर प्रदेश के मऊ में प्रधानमंत्री मोदी ने आरोप लगाया कि ईश्वर चंद्र विद्यासागर की प्रतिमा तृणमूल कांग्रेस के गुंड़ों ने तोड़ी। हमारी सरकार उसी जगह पर पंचधातु की भव्य प्रतिमा स्थापित कर गुंडों का जवाब देगी। मूर्ति तोड़ना कानून व्यवस्था का मामला है। गुंड़ों के खिलाफ कार्रवाई की बात नहीं करके दूसरी भव्य और पंचधातु की (बेहतर) प्रतिमा लगाने का मुद्दा मऊ में किस लिए? इस पूरे मामले में तथ्य यह है कि भाजपा मूर्ति तोड़े जाने को एक सामान्य घटना के रूप में ले रही है और ऐसे व्यवहार कर रही है जैसे दूसरी मूर्ति बना देना भर पर्याप्त होगा। दूसरी ओर, ममता बनर्जी ने कहा है कि भाजपा ने बंगाल का सम्मान तोड़ा। आप देखिए क्या आपके अखबार की खबर से ऐसा कुछ लगता है?
अखबारों में इसे चुनावी जंग के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है और दोनों पक्षों को समान रूप से प्रस्तुत करने की बजाय यह सूचना दी जा रही है कि चुनाव आयोग की कार्रवाई के कारण प्रचार 20 घंटे पहले रुक गया और कार्रवाई हुई जबकि मुझे नहीं लगता कि कार्रवाई उचित और पर्याप्त है। हालांकि वह अलग मुद्दा है। ईश्वर चंद्र विद्यासागर की दूसरी प्रतिमा बनवाने की घोषणा पर ममता बनर्जी ने कहा है, हमारे पास पैसा है, बनवा लेंगे। (दैनिक भास्कर) अखबारों ने बंगाल चुनाव और भाजपा को इतना महत्व दिया है कि साध्वी प्रज्ञा ने गोड्से को देश भक्त बता कर माफी मांग ली तो यह खबर दैनिक जागरण ने पहले पेज पर सिंगल कॉलम में अंदर खबर होने की सूचना में निकाल दी जबकि दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका ने इसे लीड बनाया है।
साध्वी प्रज्ञा की खबर अंग्रेजी अखबारों में भी पहले पन्ने पर या उससे पहले के अधपन्ने पर है लेकिन जागरण ने भाजपा के चुनाव प्रचार को महत्व दिया है जबकि साध्वी प्रज्ञा भी भाजपा की ही सम्मानित और प्रमुख उम्मीदवार हैं। कभी-कभी इससे लगता है कि खबरों के चयन या प्लेसमेंट में कुछेक अखबार जो सेवा करते लगते हैं अपने विवेक का भी इस्तेमाल करते हैं।
अमर उजाला में बंगाल चुनाव को पूरा महत्व दिया गया है, "बंगाल में बवाल : भाजपा और तृणमूल के बीच जुबानी जंग के बाद 20 घंटे पहले प्रचार थमा। आप जानते हैं कि बंगाल में बंवाल का आज तीसरा दिन है। क्या आपको लग रहा है कि यह बवाल इतना गंभीर है कि तीसरे दिन भी लीड बनाया जाए? ऊपर मैंने बताया है कि नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के मऊ में बंगाल की बात की और अमर उजाला की लीड का शीर्षक है, दीदी बंगाल आपकी जागीर नहीं है। मैं इस तथ्य पर बात नहीं कर रहा मुझे लगता है कि बंगाल चुनाव को लगातार तीन दिन ढोना कुछ ज्यादा है। अमर उजाला में आज की लीड का शीर्षक है, दीदी, बंगाल आपकी जागीर नहीं : मोदी। इसे संतुलित करने के लिए दीदी का भी पक्ष है जो दूसरे अखबारों में नहीं है। अमर उजाला ने मोदी के आरोप के जवाब में ममता बनर्जी का आरोप छापा है, "भाजपा ने बंगाल का सम्मान तोड़ा : ममता।"
दैनिक जागरण में भी पश्चिम बंगाल चुनाव की खबर लीड है। फ्लैग शीर्षक है, पश्चिम बंगाल में आर-पार (जैसे अब तक आर पार नहीं होता था या इस बार भी अब शुरू हुआ है)। मुख्य शीर्षक है, पीएम मोदी ने ममता पर किए वार, विपक्ष बना दीदी की ढाल। ऐसे शीर्षक में जवाब छापना जरूरी नहीं होता है पर यहां मामला थोड़ा अलग है। मुख्य शीर्षक के बाद इंट्रो और दो आरोप मोदी के दो ममता बनर्जी के छापने के बाद चार कॉलम के शीर्षक के नीचे दो कॉलम की दो खबरें हैं। एक का शीर्षक है, उत्तर प्रदेश से ही शुरू कर दिए मोदी ने ममता पर हमले। इसपर ममता बनर्जी का जवाब भी दो कॉलम में है, झूठ बोलने पर मोदी को उठक-बैठक करनी चाहिए। मैं जो अखबार देखता हूं उनमें राजस्थान पत्रिका ने बंगाल चुनाव, आरोप आदि से संबंधित कोई खबर पहले पन्ने पर नहीं छापी है। वहां साध्वी प्रज्ञा का बयान है जिसे दैनिक जागरण ने पहले पन्ने पर सूचना के रूप में छापा है। खबर अंदर है।
नवोदय टाइम्स की लीड है, महामिलावटी बौखलाए : मोदी। अखबार ने इसके साथ ममता बनर्जी की खबर छापी है, शीर्षक है, मोदी-शाह पर ममता फिर भड़कीं। मैंने कल लिखा था, यह खबर कल की है। मुमकिन है ममता बनर्जी ने यह बात दोबारा बोली हो। पर कल जब पहली बार कहा तो खबर का नहीं छपना आज इसे छाप कर मोदी के आरोप को प्रमुखता देने के आरोप से बचने की कोशिश की गई है। अखबार ने मोदी के इस आरोप को भी प्रमुखता से छापा है कि बंगाल पुलिस सरकार से साठ गांठ करके मूर्ति तोड़े जाने के सबूत नष्ट कर रही है। नवोदय टाइम्स ने द टेलीग्राफ की तरह यह नहीं बताया है कि नरेन्द्र मोदी इस विषय पर करीब 40 घंटे बाद बोल रहे हैं। और जहां तक मूर्ति खुद तोड़ने और टीएमसी पर आरोप लगाने के बाद (टेलीग्राफ ने वीडियो के हवाले से बताया है कि भाजपा का आरोप गलत है) अब सबूत नष्ट करने का आरोप है - पूरा मामला लगभग वैसा ही है जैसा भाजपा के शासन में होता रहा है। ममता बनर्जी कह ही रही हैं कि मोदी झूठ बोल रहे हैं। मैं कल लिख चुका हूं कि यह सब दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है।
इस बीच आज हिन्दुस्तान में पहले पन्ने पर एक खबर है, "आश्चर्य : बैंक ने घर के साथ 10 बच्चों समेत 50 लीग सील किए" जो दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं दिखी। यह रोहिणी सेक्टर 26 का मामला है। इसलिए हो सकता है अखबारों ने राजधानी की खबरों में छापा हो या नहीं भी छापा हो पर मुझे लगता है कि बंगाल चुनाव को जबरदस्ती आर-पार का बताने से बेहतर होता ऐसी खबर पहले पन्ने पर होती। इसी तरह अमर उजाला में एक खबर है जो बताती है कि बोफर्स तोप खरीद घोटाले में आगे की जांच के लिए अदालत से अनुमति लेने के लिए दाखिल याचिका सीबीआई ने वापस ले ली है। सीबीआई ने कहा है कि वह एक फरवरी 2018 को दाखिल याचिका वापस लेना चाहती है क्योंकि "जानकारों की राय में" आगे जांच के लिए अदालत की अनुमति की जरूरत नहीं है। इसके बाद अदालत ने यह अर्जी वापस लेने की अनुमति दे दी। मुझे इस खबर से जितनी जानकारी मिली उतने ही सवाल खड़े हुए हैं। मैं इंतजार करूंगा कि कोई अखबार इस पर कुछ विस्तार से जानकारी दे पता चलते ही बताउंगा। फिलहाल इतना ही।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
अमर उजाला ने लिखा है कि उत्तर प्रदेश के मऊ में प्रधानमंत्री मोदी ने आरोप लगाया कि ईश्वर चंद्र विद्यासागर की प्रतिमा तृणमूल कांग्रेस के गुंड़ों ने तोड़ी। हमारी सरकार उसी जगह पर पंचधातु की भव्य प्रतिमा स्थापित कर गुंडों का जवाब देगी। मूर्ति तोड़ना कानून व्यवस्था का मामला है। गुंड़ों के खिलाफ कार्रवाई की बात नहीं करके दूसरी भव्य और पंचधातु की (बेहतर) प्रतिमा लगाने का मुद्दा मऊ में किस लिए? इस पूरे मामले में तथ्य यह है कि भाजपा मूर्ति तोड़े जाने को एक सामान्य घटना के रूप में ले रही है और ऐसे व्यवहार कर रही है जैसे दूसरी मूर्ति बना देना भर पर्याप्त होगा। दूसरी ओर, ममता बनर्जी ने कहा है कि भाजपा ने बंगाल का सम्मान तोड़ा। आप देखिए क्या आपके अखबार की खबर से ऐसा कुछ लगता है?
अखबारों में इसे चुनावी जंग के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है और दोनों पक्षों को समान रूप से प्रस्तुत करने की बजाय यह सूचना दी जा रही है कि चुनाव आयोग की कार्रवाई के कारण प्रचार 20 घंटे पहले रुक गया और कार्रवाई हुई जबकि मुझे नहीं लगता कि कार्रवाई उचित और पर्याप्त है। हालांकि वह अलग मुद्दा है। ईश्वर चंद्र विद्यासागर की दूसरी प्रतिमा बनवाने की घोषणा पर ममता बनर्जी ने कहा है, हमारे पास पैसा है, बनवा लेंगे। (दैनिक भास्कर) अखबारों ने बंगाल चुनाव और भाजपा को इतना महत्व दिया है कि साध्वी प्रज्ञा ने गोड्से को देश भक्त बता कर माफी मांग ली तो यह खबर दैनिक जागरण ने पहले पेज पर सिंगल कॉलम में अंदर खबर होने की सूचना में निकाल दी जबकि दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका ने इसे लीड बनाया है।
साध्वी प्रज्ञा की खबर अंग्रेजी अखबारों में भी पहले पन्ने पर या उससे पहले के अधपन्ने पर है लेकिन जागरण ने भाजपा के चुनाव प्रचार को महत्व दिया है जबकि साध्वी प्रज्ञा भी भाजपा की ही सम्मानित और प्रमुख उम्मीदवार हैं। कभी-कभी इससे लगता है कि खबरों के चयन या प्लेसमेंट में कुछेक अखबार जो सेवा करते लगते हैं अपने विवेक का भी इस्तेमाल करते हैं।
अमर उजाला में बंगाल चुनाव को पूरा महत्व दिया गया है, "बंगाल में बवाल : भाजपा और तृणमूल के बीच जुबानी जंग के बाद 20 घंटे पहले प्रचार थमा। आप जानते हैं कि बंगाल में बंवाल का आज तीसरा दिन है। क्या आपको लग रहा है कि यह बवाल इतना गंभीर है कि तीसरे दिन भी लीड बनाया जाए? ऊपर मैंने बताया है कि नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के मऊ में बंगाल की बात की और अमर उजाला की लीड का शीर्षक है, दीदी बंगाल आपकी जागीर नहीं है। मैं इस तथ्य पर बात नहीं कर रहा मुझे लगता है कि बंगाल चुनाव को लगातार तीन दिन ढोना कुछ ज्यादा है। अमर उजाला में आज की लीड का शीर्षक है, दीदी, बंगाल आपकी जागीर नहीं : मोदी। इसे संतुलित करने के लिए दीदी का भी पक्ष है जो दूसरे अखबारों में नहीं है। अमर उजाला ने मोदी के आरोप के जवाब में ममता बनर्जी का आरोप छापा है, "भाजपा ने बंगाल का सम्मान तोड़ा : ममता।"
दैनिक जागरण में भी पश्चिम बंगाल चुनाव की खबर लीड है। फ्लैग शीर्षक है, पश्चिम बंगाल में आर-पार (जैसे अब तक आर पार नहीं होता था या इस बार भी अब शुरू हुआ है)। मुख्य शीर्षक है, पीएम मोदी ने ममता पर किए वार, विपक्ष बना दीदी की ढाल। ऐसे शीर्षक में जवाब छापना जरूरी नहीं होता है पर यहां मामला थोड़ा अलग है। मुख्य शीर्षक के बाद इंट्रो और दो आरोप मोदी के दो ममता बनर्जी के छापने के बाद चार कॉलम के शीर्षक के नीचे दो कॉलम की दो खबरें हैं। एक का शीर्षक है, उत्तर प्रदेश से ही शुरू कर दिए मोदी ने ममता पर हमले। इसपर ममता बनर्जी का जवाब भी दो कॉलम में है, झूठ बोलने पर मोदी को उठक-बैठक करनी चाहिए। मैं जो अखबार देखता हूं उनमें राजस्थान पत्रिका ने बंगाल चुनाव, आरोप आदि से संबंधित कोई खबर पहले पन्ने पर नहीं छापी है। वहां साध्वी प्रज्ञा का बयान है जिसे दैनिक जागरण ने पहले पन्ने पर सूचना के रूप में छापा है। खबर अंदर है।
नवोदय टाइम्स की लीड है, महामिलावटी बौखलाए : मोदी। अखबार ने इसके साथ ममता बनर्जी की खबर छापी है, शीर्षक है, मोदी-शाह पर ममता फिर भड़कीं। मैंने कल लिखा था, यह खबर कल की है। मुमकिन है ममता बनर्जी ने यह बात दोबारा बोली हो। पर कल जब पहली बार कहा तो खबर का नहीं छपना आज इसे छाप कर मोदी के आरोप को प्रमुखता देने के आरोप से बचने की कोशिश की गई है। अखबार ने मोदी के इस आरोप को भी प्रमुखता से छापा है कि बंगाल पुलिस सरकार से साठ गांठ करके मूर्ति तोड़े जाने के सबूत नष्ट कर रही है। नवोदय टाइम्स ने द टेलीग्राफ की तरह यह नहीं बताया है कि नरेन्द्र मोदी इस विषय पर करीब 40 घंटे बाद बोल रहे हैं। और जहां तक मूर्ति खुद तोड़ने और टीएमसी पर आरोप लगाने के बाद (टेलीग्राफ ने वीडियो के हवाले से बताया है कि भाजपा का आरोप गलत है) अब सबूत नष्ट करने का आरोप है - पूरा मामला लगभग वैसा ही है जैसा भाजपा के शासन में होता रहा है। ममता बनर्जी कह ही रही हैं कि मोदी झूठ बोल रहे हैं। मैं कल लिख चुका हूं कि यह सब दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है।
इस बीच आज हिन्दुस्तान में पहले पन्ने पर एक खबर है, "आश्चर्य : बैंक ने घर के साथ 10 बच्चों समेत 50 लीग सील किए" जो दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं दिखी। यह रोहिणी सेक्टर 26 का मामला है। इसलिए हो सकता है अखबारों ने राजधानी की खबरों में छापा हो या नहीं भी छापा हो पर मुझे लगता है कि बंगाल चुनाव को जबरदस्ती आर-पार का बताने से बेहतर होता ऐसी खबर पहले पन्ने पर होती। इसी तरह अमर उजाला में एक खबर है जो बताती है कि बोफर्स तोप खरीद घोटाले में आगे की जांच के लिए अदालत से अनुमति लेने के लिए दाखिल याचिका सीबीआई ने वापस ले ली है। सीबीआई ने कहा है कि वह एक फरवरी 2018 को दाखिल याचिका वापस लेना चाहती है क्योंकि "जानकारों की राय में" आगे जांच के लिए अदालत की अनुमति की जरूरत नहीं है। इसके बाद अदालत ने यह अर्जी वापस लेने की अनुमति दे दी। मुझे इस खबर से जितनी जानकारी मिली उतने ही सवाल खड़े हुए हैं। मैं इंतजार करूंगा कि कोई अखबार इस पर कुछ विस्तार से जानकारी दे पता चलते ही बताउंगा। फिलहाल इतना ही।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)