संसद सत्र को रद्द किया जाना किसान आन्दोलन के भय का नतीजा

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: December 17, 2020
कोरोना काल के दौरान किसान बिल पारित करवाने के लिए संसद सत्र शुरू किया जा सकता है, बिहार के चुनाव भी हो सकते हैं, मध्य प्रदेश में नयी सरकार भी बनायी जा सकती है. जब कोरोना भारत में तेज़ी से बढ़ रहा था उस समय सरकार ने 15 दिन की देरी से संसद सत्र शुरू किया. मध्य प्रदेश में लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को गिराकर नयी सरकार बनाने की जुगत में लगी सरकार को उस समय कोरोना का ख़तरा महसूस नहीं हुआ. कोरोना काल में ही NEET और JEE के एग्ज़ाम भी हो सकते हैं, पश्चिम बंगाल, बिहार, तमिलनाडु, तेलंगाना में भाजपा की रैलियां हो सकती हैं जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह सहित कई नेता शामिल होते हैं, पूरे देश में शादी समारोह व धार्मिक आयोजन हो सकते हैं लेकिन जब किसानों के सवालों के जवाब देने की बारी आती है तो संसद सत्र कोरोना के बहाने रद्द कर दिया जाता है.



किसानों के डर से रद्द शीतकालीन सत्र 
दिल्ली के बॉर्डर पर 21 दिनों से आन्दोलनरत किसानों के सवालों से भयभीत सरकार ने शीतकालीन सत्र कोरोना का बहाना बना कर रद्द कर दिया है जिसकी औपचारिक घोषणा हो चुकी है. कांग्रेस लोकसभा सदस्य अधीर रंजन चौधरी को लिखे पत्र में केन्द्रीय संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी ने कहा, “सर्दियों का महीना कोरोना महामारी के प्रबंधन के लिहाज से बेहद अहम है, क्यूंकि इसी दौरान संक्रमण के मामलों में वृद्धि दर्ज की गयी है खास कर दिल्ली में, अभी हम दिसंबर के मध्य महीने में हैं और कोरोना का टीका जल्द उपलब्ध होने की उम्मीद है.” जोशी ने यह भी कहा कि उन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से बातचीत की है, उन्होंने भी महामारी को लेकर चिंता जताते हुए शीतकालीन सत्र से बचने की सलाह दी है. इस पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट करके कहा है कि हमेशा की तरह मोदी सरकार सच को छुपा रही है और यह फैसला लेने से पहले विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद से संपर्क भी नहीं किया गया.  

इससे पहले भारतीय लोकतंत्र में दो बार संसद के शीतकालीन सत्र को रद्द किया गया था; पहली बार आपातकाल के समय में जब जनता के अधिकारों को कुचला गया था, दूसरी बार आपातकाल के समय देश की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी की हत्या हो जाने के साल में और तीसरी बार अब. शीतकालीन सत्र सामान्यतः नवम्बर महीने के आखरी सप्ताह या दिसम्बर के पहले सप्ताह में आरम्भ होता है. भारतीय संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक संसद के दो सत्रों के बीच छह महीने से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए.
 
ग़ौरतलब है कि कोरोना काल में मानसून सत्र बुला कर, विपक्ष से बिना चर्चा किए या यूँ कहें कि सारे विपक्षी राजनीतिक दलों को उपेक्षित करके, कॉरपोरेट दोस्तों के हित के लिए किसान विरोधी कृषि बिल को संसद से पारित कर कानून बना दिया जाता है, जिसका विरोध देश भर के किसान कर रहे हैं जिसमें 20 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है. करनाल के संत बाबा राम सिंह जी ने कुंडली बॉर्डर पर देशभर के आंदोलनरत किसानों की दुर्दशा देखकर आत्महत्या कर ली. मोदी सरकार की उदासीनता और मामले को न सुलझाने की लापरवाही हद पार कर चुकी है.

2014 में जब भाजपा पहली बार सत्ता में आयी तो प्रधानमंत्री ने संसद में प्रवेश करने से पहले उसकी चौखट पर माथा टेका था और संसद को 'लोकतंत्र का मंदिर' की संज्ञा देते हुए कहा था कि संसद सत्र का पूरा उपयोग होना चाहिए. इसके सत्र का एक-एक पल कीमती है जिसका उपयुक्त उपयोग होना चाहिए. आज वही मोदी सरकार संसद सत्र को टालकर भारतीय संविधान और संसद का अपमान कर रही है और साथ ही जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुंह फेर रही है. इस भीषण कोरोना काल में सरकारी व प्राइवेट कर्मचारियों को ऑफिस या फील्ड ड्यूटी पर लगाया जा रहा है. बैंक कर्मचारियों, सुरक्षा अधिकारियों/कर्मचारियों, प्रशासनिक अधिकारियों, स्वास्थ्य कर्मचारियों को ऐसी विषम परिस्थिति में अनिवार्य रूप से काम करने को मजबूर कर दिया गया है जिनके बचाव के लिए जरुरी उपकरण तक उपलब्ध नहीं करवाए गए, जिससे कई लोगों की जान तक चली गयी है. दूसरी तरफ संसद में हर तरह ही सुविधा और सुरक्षा बचाव के साधन होने के बावजूद शीतकालीन सत्र रद्द कर दिया गया है. मोदी सरकार का यह दोहरा चरित्र लोकतंत्र का अनादर है. इनका यह ग़ैरज़िम्मेदाराना रवैया देश की आम जनता के साथ धोखा है, जिसने भरोसा करके मोदी सरकार को भारतीय संसद में भेजा है.
   
देश में कोरोना की वजह से कोई भी समारोह, राजनीतिक गतिविधि, सार्वजानिक जमावड़ा नहीं रुक रहा है, नए संसद निर्माण के भूमि पूजन को नहीं रोका गया लेकिन किसानों के सवालों से भयभीत सरकार द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र को रद्द किया गया है. दरअसल केंद्र सरकार संसद सत्र को नहीं बल्कि इस देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था और सरकार से सवाल पूछने की परंपरा पर प्रहार कर रही है. एक तरफ़ जनता के संवैधानिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है तो दूसरी तरफ़ लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है जिसका मुंहतोड़ जबाव मजबूत इरादे के साथ दिल्ली की सड़कों पर जमे आंदोलनरत किसान दे रहे हैं. 

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