सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को पद से हटाने वाली उच्च स्तरीय समिति के सदस्य सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके सीकरी इस समय चर्चा में है। ‘द प्रिंट’ की खबर के मुताबिक आलोक वर्मा के खिलाफ वोट देने वाले जस्टिस सीकरी को मोदी सरकार लंदन स्थित राष्ट्रमंडल सचिवालय पंचायती ट्रिब्यूनल (सीएसएटी) में भेज रही है। बताया जाता है कि भारत की ओर से उन्हें सीएसएटी के लिए नामांकित करने का यह फैसला पिछले महीने लिया गया था। खबरों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज सीकरी 6 मार्च को रिटायरमेंट के बाद सीएसएटी में अपना कार्यभार संभालगे।
द प्रिंट की खबर के मुताबिक पिछले महीने केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने चीफ जस्टिस को इस संबंध में एक पत्र लिखा था। इसमें कहा गया था कि विदेश मंत्रालय ने जस्टिस सीकरी को लंदन स्थित ट्रिब्यूनल में नामांकित करने का फैसला किया है। द प्रिंट को सुप्रीम कोर्ट के कुछ सूत्रों ने बताया है कि सरकार ने इस पद के लिए पहले से ही जस्टिस सीकरी का नाम तय कर लिया था और इस पर उनकी सहमति भी ले ली गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, यह फैसला सरकार में ‘उच्चस्तर’ पर लिया गया था।
सीएसएटी अपने 53 सदस्य देशों के बीच विवादों का अंतिम मध्यस्थ माना जाता है। इसमें अध्यक्ष सहित आठ सदस्य होते हैं जिन्हें राष्ट्रमंडल देशों की सरकारें चुनती हैं। इसके लिए ऐसे व्यक्तियों का चुनाव किया जाता है जिनके पास राष्ट्रमंडल देश में उच्च न्यायिक पदों पर काम करने का अनुभव हो या जो कम से कम 10 वर्ष तक वकील रहा हो। ट्रिब्यूनल के सदस्य का कार्यकाल चार साल का होता है, जिसे एक कार्यकाल के लिए बढ़ाया भी जा सकता है। इस समय इसमें एक पद खाली है और कई मौजूदा सदस्यों का कार्यकाल भी अगले कुछ महीनों में खत्म हो रहा है।
जस्टिस सीकरी के लंदन स्थित ट्रिब्यूनल में नियुक्ति का मामला उस समय सामने आया है, जब कुछ कानूनी जानकार सीबीआई निदेशक को हटाने के पक्ष में जस्टिस सीकरी के वोट की आलोचना कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर आलोक वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करने वाले जस्टिस पटनायक ने भी कहा था कि आलोक वर्मा के खिलाफ प्रथम दृष्टया भ्रष्टाचार के सबूत नहीं थे और उन्हें हटाने का फैसला जल्दबाजी में लिया गया है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी में जस्टिस सीकरी ने सीबीआई निदेशक को हटाने के पक्ष में मत व्यक्त किया था, जबकि विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड्गे ने विरोध में वोट किया था।
द प्रिंट की खबर के मुताबिक पिछले महीने केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने चीफ जस्टिस को इस संबंध में एक पत्र लिखा था। इसमें कहा गया था कि विदेश मंत्रालय ने जस्टिस सीकरी को लंदन स्थित ट्रिब्यूनल में नामांकित करने का फैसला किया है। द प्रिंट को सुप्रीम कोर्ट के कुछ सूत्रों ने बताया है कि सरकार ने इस पद के लिए पहले से ही जस्टिस सीकरी का नाम तय कर लिया था और इस पर उनकी सहमति भी ले ली गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, यह फैसला सरकार में ‘उच्चस्तर’ पर लिया गया था।
सीएसएटी अपने 53 सदस्य देशों के बीच विवादों का अंतिम मध्यस्थ माना जाता है। इसमें अध्यक्ष सहित आठ सदस्य होते हैं जिन्हें राष्ट्रमंडल देशों की सरकारें चुनती हैं। इसके लिए ऐसे व्यक्तियों का चुनाव किया जाता है जिनके पास राष्ट्रमंडल देश में उच्च न्यायिक पदों पर काम करने का अनुभव हो या जो कम से कम 10 वर्ष तक वकील रहा हो। ट्रिब्यूनल के सदस्य का कार्यकाल चार साल का होता है, जिसे एक कार्यकाल के लिए बढ़ाया भी जा सकता है। इस समय इसमें एक पद खाली है और कई मौजूदा सदस्यों का कार्यकाल भी अगले कुछ महीनों में खत्म हो रहा है।
जस्टिस सीकरी के लंदन स्थित ट्रिब्यूनल में नियुक्ति का मामला उस समय सामने आया है, जब कुछ कानूनी जानकार सीबीआई निदेशक को हटाने के पक्ष में जस्टिस सीकरी के वोट की आलोचना कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर आलोक वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करने वाले जस्टिस पटनायक ने भी कहा था कि आलोक वर्मा के खिलाफ प्रथम दृष्टया भ्रष्टाचार के सबूत नहीं थे और उन्हें हटाने का फैसला जल्दबाजी में लिया गया है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी में जस्टिस सीकरी ने सीबीआई निदेशक को हटाने के पक्ष में मत व्यक्त किया था, जबकि विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड्गे ने विरोध में वोट किया था।