मोदी सरकार ने जीएसटी का जो हाल किया है उसकी हर ओर आलोचना हो रही है। पहले जीएसटी ने उद्योग को चूना लगाया और जिस उपभोक्ता के फायदे के नाम पर इसे लाया गया था, अब उसे घाटा हो रहा है। सरकार ने उन कंपनियों और इंडस्ट्री पर एंटी प्रॉफटियरिंग मैकेनिज्म के तहत कार्रवाई करने का ऐलान किया है, जो पुराने एमआरपी को नहीं घटाएंगे क्योंकि हाल में उसने आम इस्तेमाल की चीजों पर जीएसटी दरें घटाई गई हैं। कई चीजों पर 28 फीसदी टैक्स था, जिसे 18 फीसदी किया गया है। लेकिन बाजार में यह सुनिश्चित करना कठिन होगा कि ग्राहकों को इसका लाभ मिल रहा है या नहीं।
कंपनियां टैक्स दरों में कमी के बावजूद पुराने एमआरपी में कमी करने में आनाकानी कर रही है और सरकार को लोगों को यह विश्वास दिलाने के लिए बार-बार ऐलान करना पड़ रहा कि जो ऐसा नहीं करेंगे उन्हें कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या बाजार में इस चीज पर निगरानी के लिए मोदी सरकार का मैकेनिज्म इतना मजबूत है कि उपभोक्ताओं को राहत मिल पाएगी।
बाजार में मुनाफाखोरी और गलत तरीके से मुनाफा कमाने पर नियंत्रण पर काबू सरकारी मशीनरी के लिए बेहद मुश्किल होता है। इसलिए मौजूदा सरकार के इस आश्वासन पर विश्वास करना कठिन है कि जीएसटी दरों में कटौती का लाभ उपभोक्ताओं को मिलेगा।
दरअसल, मोदी सरकार ने जिस ठसके से जीएसटी को लागू किया था वो अब गायब होती दिख रही है। एक साथ कई दरें और इन्हें ज्यादा रखने की वजह से उपभोक्ताओं और कारोबारियों दोनों पर इसका असर उल्टा हुआ और सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। मोदी सरकार अब इसमें फंसती नजर आ रही है और उसे बाहर निकलने का रास्ता नहीं दिख रहा है।