माहौल बड़ा अजीब सा था. चारों तरफ बारिश थी. फुटपाथ पर सोने वाले अपना बिस्तर ऊंचे स्थान पर रख रहे थे. कोई घुटने भर पानी में कपड़े मोड़े हुए सड़क पर गड्ढे बचाकर आगे बढ़ रहा था. थैली बैन हो जाने से कोई छोटा-मोटा सब्जी वाला आलू को अखबार में लपेटने का असफल प्रयास किये जा रहा था. इन्हीं सब के बीच मैंने साहब के फिटनेस चैलेंज वाला वीडियो देख लिया.
वाह, क्या अद्भुत नजारा था. मैंने बहुत से बगीचे, गार्डन, बगिया देखी हैं लेकिन यह अपने तरह का पहला 'गोल्डन गार्डन' था. एक-एक घास को, पौधों को, छोटी झाड़ियों को करीने से सजाया गया था जैसे किसी मशहूर चित्रकार ने अपनी सबसे बेहतरीन कला का नमूना पेश किया हो. इस गार्डन को देखकर तो यही लगा कि इसे बनाने में करोड़ों खर्च हुए होंगे. इतने पैसे में तो हजारों फुटपाथ पर सोने वालों के लिए घर बन जाता. खैर ये अलग तरह का मामला है. जब सब के पास घर हो जाएगा तो सरकार के पास मुद्दा ही क्या बचेगा चुनाव लड़ने के लिए.
मैंने साहब के 30000 रुपये प्रति किलो ग्राम भाव के मशरूम खाने वाले नाजुक शरीर को देखा. वह मुझे गुलाब की अंदरूनी पंखुड़ियों सा प्रतीत हुआ. साहब जब उन मुलायम घासों पर अपने नाजुक पैर रखते तो मन विह्वल हो उठता. ऐसा लगता ये मुलायम घासें साहब के नाजुक पैर को घायल कर देंगीं. पर साहब ने चैलेंज एक्सेप्ट किया था तो वे घासों पर से गुजर गए, छोटे-छोटे पत्थरों पर से गुजर गए. वे अपने हाथ में डेढ़ फिट लंबी छड़ी लेकर चल रहे थे. इस छड़ी का भार उठाना उन्हें चैलेंज लगा इसलिए उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया.
खैर उनका एक्सरसाइज पूरा हुआ. मन मे कई सवाल उठे. मैं सोच में पड़ गया. इतना नाजुक एक्सरसाइज कौन करता है भाई ! और मैं साहब के अलावा उस उस दूसरे व्यक्ति को ढूंढ रहा हूँ जो इतने महंगे उद्यान में अकेले एक्सरसाइज करता है. मजे की बात ये की लोग इस एक्सरसाइज से प्रेरणा लेने की बात कर रहे हैं.
2014 में जब साहब चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनें तो उनके सामने बहुत से चैलेंज थे. आये दिन लोग भूख से मार रहे हैं, कभी संतोषी तो कभी कोई और. न जाने अन्न का दाना न मिलने से कितनी मौतें ऐसी होती हैं जो खबर का हिस्सा नहीं बनतीं और लोग नहीं जान पाते कि भूख से भी कोई दम तोड़ दिया. 2017 में एक सर्वे के अनुसार भारत ' ग्लोबल हंगर इंडेक्स' में 119 देशों के बीच 100वें स्थान पर था. भुखमरी दूर करने की बजाय साहब तीस हजार रुपये किलो का मशरूम खाकर अंगड़ाई ले रहा है.
चैलेंज मिला था 5 साल में जनता को बेहतर स्वास्थ्य देने का, अच्छे आधुनिक अस्पताल के निर्माण का पर जुमलों, नारों के अलावा बच्चों की मौत पर चुटकी लेने वाले बयान 'अगस्त में बच्चे मरते ही हैं' के अलावा मिला ही क्या ?
चैलेंज था जनता की आवाज सुनने का, उनकी समस्याएं सुनने का पर साहब ने मन कि बात सुनाकर चैलेंज को अनसुना कर दिया.
माल्या भागा, नीरव मोदी भी भाग गया. चैलेंज तो इन सब को पकड़ने का था पर साहब ने उद्यान में टहलने वाले चैलेंज को स्वीकार कर ये बता दिया कि उन्हें सिंपल टास्क बिलकुल पसंद नहीं.
वाह, क्या अद्भुत नजारा था. मैंने बहुत से बगीचे, गार्डन, बगिया देखी हैं लेकिन यह अपने तरह का पहला 'गोल्डन गार्डन' था. एक-एक घास को, पौधों को, छोटी झाड़ियों को करीने से सजाया गया था जैसे किसी मशहूर चित्रकार ने अपनी सबसे बेहतरीन कला का नमूना पेश किया हो. इस गार्डन को देखकर तो यही लगा कि इसे बनाने में करोड़ों खर्च हुए होंगे. इतने पैसे में तो हजारों फुटपाथ पर सोने वालों के लिए घर बन जाता. खैर ये अलग तरह का मामला है. जब सब के पास घर हो जाएगा तो सरकार के पास मुद्दा ही क्या बचेगा चुनाव लड़ने के लिए.
मैंने साहब के 30000 रुपये प्रति किलो ग्राम भाव के मशरूम खाने वाले नाजुक शरीर को देखा. वह मुझे गुलाब की अंदरूनी पंखुड़ियों सा प्रतीत हुआ. साहब जब उन मुलायम घासों पर अपने नाजुक पैर रखते तो मन विह्वल हो उठता. ऐसा लगता ये मुलायम घासें साहब के नाजुक पैर को घायल कर देंगीं. पर साहब ने चैलेंज एक्सेप्ट किया था तो वे घासों पर से गुजर गए, छोटे-छोटे पत्थरों पर से गुजर गए. वे अपने हाथ में डेढ़ फिट लंबी छड़ी लेकर चल रहे थे. इस छड़ी का भार उठाना उन्हें चैलेंज लगा इसलिए उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया.
खैर उनका एक्सरसाइज पूरा हुआ. मन मे कई सवाल उठे. मैं सोच में पड़ गया. इतना नाजुक एक्सरसाइज कौन करता है भाई ! और मैं साहब के अलावा उस उस दूसरे व्यक्ति को ढूंढ रहा हूँ जो इतने महंगे उद्यान में अकेले एक्सरसाइज करता है. मजे की बात ये की लोग इस एक्सरसाइज से प्रेरणा लेने की बात कर रहे हैं.
2014 में जब साहब चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनें तो उनके सामने बहुत से चैलेंज थे. आये दिन लोग भूख से मार रहे हैं, कभी संतोषी तो कभी कोई और. न जाने अन्न का दाना न मिलने से कितनी मौतें ऐसी होती हैं जो खबर का हिस्सा नहीं बनतीं और लोग नहीं जान पाते कि भूख से भी कोई दम तोड़ दिया. 2017 में एक सर्वे के अनुसार भारत ' ग्लोबल हंगर इंडेक्स' में 119 देशों के बीच 100वें स्थान पर था. भुखमरी दूर करने की बजाय साहब तीस हजार रुपये किलो का मशरूम खाकर अंगड़ाई ले रहा है.
चैलेंज मिला था 5 साल में जनता को बेहतर स्वास्थ्य देने का, अच्छे आधुनिक अस्पताल के निर्माण का पर जुमलों, नारों के अलावा बच्चों की मौत पर चुटकी लेने वाले बयान 'अगस्त में बच्चे मरते ही हैं' के अलावा मिला ही क्या ?
चैलेंज था जनता की आवाज सुनने का, उनकी समस्याएं सुनने का पर साहब ने मन कि बात सुनाकर चैलेंज को अनसुना कर दिया.
माल्या भागा, नीरव मोदी भी भाग गया. चैलेंज तो इन सब को पकड़ने का था पर साहब ने उद्यान में टहलने वाले चैलेंज को स्वीकार कर ये बता दिया कि उन्हें सिंपल टास्क बिलकुल पसंद नहीं.