गाय के नाम पर हत्या करने वालों को एक नेता जब मालाएं पहनाए तो मामला श्रद्धा का नहीं राजनीति का है

Written by Mithun Prajapati | Published on: July 28, 2018
मॉब लिंचिंग की घटनाओं से मन बड़ा दुःखी होता है। उससे भी ज्यादा तकलीफ तब होती है जब अपने अगल-बगल लोगों को मोबलिंचिंग का समर्थन करते देखता हूँ। माहौल इतना गंदा कर दिया गया है कि लोगों में संवेदना जैसा कुछ बचा ही नहीं है। मैं ये नहीं कह रहा कि  लोग किसी के मरने पर दुःखी नहीं होते हैं। लोग दुःखी होते हैं पर यह दुःख तब होता है जब मरने वाला अपने धर्म का हो। अब संवेदना धर्म देखकर जागती है। संवेदना धर्म की गुलाम हो चुकी है।



मेरे पहचान के एक डॉक्टर हैं। पिछले साल मैं उनके क्लीनिक पर बैठा बातें कर रहा था। बात-बात में उन्होंने बताया कि  फला कस्बे में एक मुस्लिम लड़के ने हिन्दू लड़की से शादी कर ली और माहौल तनाव गड़बड़ाया हुआ है। दंगे जैसी स्थिति बनी हुई है। 

मैंने पूछा- लड़का और लड़की बालिग  थे ? 

वे बोले- हां बालिग थे। पर बालिग और नाबालिग से क्या फर्क पड़ता है। एक मुस्लिम एक हिन्दू लड़की से कैसे शादी कर सकता है ? 

मैंने कहा- भारतीय संविधान दो बालिग हुए लोगों को शादी का अधिकार देता है। यदि वे बालिग थे तो लोगों को शांत रहना चाहिए। ये उनका अपना मामला है। 
डॉक्टर साहब थोड़ा चिढ़ते हुए और गुस्से भरे लहजे में मुझपर चीखे- कैसे हिन्दू हो यार ! एक मुस्लिम लड़का अपने धर्म की लड़की को भगा ले गया और तुम भाषण दे रहे हो। खून नहीं खौला तुम्हारा ?

मैंने कहा- इसमें खून खौलने जैसा क्या है ? हमें तो खुश होना चाहिए कि दो विपरीत धर्म के प्रेमियों   ने इतनी हिम्मत तो दिखाई कि समाज से लड़कर वे शादी कर लिए।  बाकी रही खून खौलने की बात तो खून तो खौलता है जब किसी को शराब पीकर पत्नी को पीटते देखता हूँ, छोटी उम्र में बिटियों को बोझ समझकर ब्याहते देखता हूँ, दहेज के कारण आग में फूंक दी गयी बहन बेटी की खबर पढ़ता हूँ।

वे फिर बोले- वहां स्थिति दंगे जैसी है और आप इस तरह की बातें कर रहे हैं।

मैंने कहा- लोगों को सामने आना चाहिए। बात करनी चाहिए। इसमें गलत कुछ नहीं हुआ है। 

मैंने फिर उनसे पूछा- आपकी क्या राय है ?

वे थोड़ा गंभीर होते हुए बोले- अगर दंगे जैसी स्थिति हुई तो मैं तो जाऊंगा। अपने लोगों को कमजोर होते हुए मैं नहीं देख सकता। 

उनकी बातें सुनकर मैंने सिर पीट लिया। मुझे उनसे यह उम्मीद नहीं थी। एक डॉक्टर से यह उम्मीद नहीं थी। डॉक्टर का काम तो जीवन देना होता है यह आदमी तो दंगे में मारकाट करने को तैयार है। कहाँ मार गयी संवेदना ! 

उस दिन मैंने एक सीख ली। धर्म के नाम पर जहर किसी भी इंसान के अंदर भरा जा सकता है। क्या डॉक्टर क्या वकील क्या इंजीनियर। कुछ महीनें पहले आसिफा वाले मामले में बलात्कारियों के समर्थन में उतरे वकीलों को कौन भूल सकता है !

मोब लिंचिंग की खबर अखबार में पढ़कर मुस्कुराते हुए लोगों को मैंने अक्सर देखा है। एक साहब तो कहने लगे ये मुस्लिम गाय से दूर क्यों नहीं हो जाते !

मैंने कहा- दरअसल मामला गाय का है ही नहीं। मामला हिन्दू-मुस्लिम कर दिया गया है। कल को गधे को भी पूज्यनीय बता दिया जाए तो उसके नाम पर भी लिंचिंग शुरू हो जाएगी। यदि मामला गाय के प्रति श्रद्धा का होता तो गौशाला में एक साथ मरने वाली  गायों के कारण सबसे पहले लिंचिंग गौशाला मालिक की होती।

दरअसल पता तो सब को है कि क्या चल रहा है। पर हकीकत को जानते हुए भी सब मूक बने हैं। गौ के नाम पर जितनी भी लिंचीग हुई है उनमें ज्यादातर गरीब और मजदूर ही रहे हैं। कोई एक वक्त कमाकर परिवार का पेट भरता था तो कोई काम पाने के लिए संघर्ष कर रहा होता था। 

बाकी इतना तो साधारण आदमी भी समझता है कि गाय के नाम पर  मॉब लिंचिंग करने वाले अपराधियों को जब कोई विधायक नेता फूल मालाएं पहनाए तो मामला श्रद्धा का नहीं राजनीति का होता है।

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