खाने को नहीं है आहार, भक्त बने हैं चौकीदार

Written by मिथुन प्रजापति | Published on: March 19, 2019
बही चुनाव की फिर बयार
भक्त बने हैं  चौकीदार

खाने को नहीं आटा घर में
खोपड़ी रूखी तेल न सर में
एक पहर सब भूखे सोए
चूल्हे में नहीं आग किचन में

बनिया के यहां हजार उधार
भक्त बने हैं चौकीदार

नौकरी का जुगाड़ नहीं है
ठप्प पड़ा, व्यापार नहीं है
फूटी कौड़ी मुश्किल से जुटती
घर में मूठी दाल नहीं है।

पढ़े लिखे सब बैठे बेरोजगार
भक्त बने हैं चौकीदार

बैंक लूटकर नीरव भागे
सुसाइड करें किसान अभागे
साहब चैन की नींद है सोता
मन की बात के गोले दागे।

कारपोरेट की है ये सरकार
भक्त बने हैं चौकीदार

बेरोजगारों से पकौड़े तलवाता
कभी उनपर लाठियां चलवाता
सूट बूट टाई में बैठा
कभी वह मन की बात सुनाता

खाये मशरूम रेट तीस हजार
भक्त बने हैं चौकीदारी

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