मई की भीषण गर्मी जारी थी। देश कुछ सुविधाओं को छोड़ पूरी तरह से लॉक था। मजदूरों का पलायन पैदल लगातार जारी था। दोपहर का वक्त था। गांव की तरफ जाने वाली सड़क से लगते चौराहे पर चाय पान की दुकान पर कई लोग इकट्ठा होकर अपनी दिनचर्या पूरी कर रहे थे। यहां लॉक डाउन का असर कभी न दिखा। पुलिस के साहेब लोग आते दुकान बंद कराने पर चाय में से उड़ती इलायची की खुशबू उन्हें चाय पीने पर विवश कर देती। जाते-जाते साहब लोग पान मुंह में ठूसते हुए कहते जाते- थोड़ी देर में बंद कर देना।
जवाब में वहां खड़े बैठे सब लोग एक साथ कह उठते हां साहेब......
ऐसा नहीं है कि साहेब लोग कुछ कार्यवाही नहीं करते थे। कभी कभी सिपाही से कहकर दो चार डंडे हौंकवा देते थे पर कपड़े देखकर। इसमें सफेद और स्वच्छ कपड़ों वालों का फायदा हो जाता था। इतिहास तो यही बताता है कि सुथरे लोगों ने इन दो महीनों में एक भी डंडे न खाए थे। यह क्लास का मामला था।
चाय वाले ने कोयले की बनी भट्टी पर चाय रख दी। सामने दो बेंच रखी हुई थी जिनमें से एक अक्सर पाया बराबर न होने के कारण हिलते रहती। कई बार तो चाय पीने वालों ने चाय बेंच पर रखी और मिट्टी का कुल्हड़ लुढ़क गया। ऐसे में ज्यादा कुछ न होता। सफेद कपड़े पीछे से जीवन भर के लिए दाग ले लेते और कपड़े का मालिक चाय वाले को चार गालियां दे देता था। चाय की दुकान पर खड़े बैठे सभी लोगों के लिए यह आनंद का विषय होता।
उस दिन न हिलने वाली बेंच पर ठाकुर साहब बैठे थे। अब जब ठाकुर साहब बेंच पर बैठ गए थे तो इसका मतलब यह होता था कि उस पांच व्यक्तियों की बेंच पर और कोई नहीं बैठेगा। यह कास्ट का मामला था पर इसे लोग सम्मान वाली बात कहते थे। सामने हिलने वाली बेंच पर दो लोग बैठे थे। एक जो कोई इसी इलाके का था पर उच्च घराने जैसा प्रतीत होते होते दिखता था और दूसरा जो कोई राहगीर था। दूसरा कपड़े लत्ते और जेब में खोंसी गई कलम से अपने पढ़े लिखे होने का आभाष करा रहा था। कुछ लोग और थे जो बस खड़े थे। बात वात करते रहते। कभी कभी विशेष चर्चा भी उठ जाती। मसलन... पाकिस्तान अब एकदम हरामी हो गया है.... पाकिस्तान के पास खाने को दाने भी न बचे हैं..... हमारी सरकार अच्छी न होती तो सबका क्या होता..... बेहतर सरकार मुसीबत में जनता के लिए अच्छे पैकेज का ऐलान करती रहती है.........
इन सब के बीच सड़क पर अन्य प्रदेशों से आ रहे मजदूर पैदल चलते दिख जाते थे। जब वे चौराहे से गुजरने लगते तो लोग उन्हें देखकर थोड़ी देर चर्चा कर लेते थे।
जो अकेली बेंच पर बैठे थे ठाकुर साहब, उनके बगल में नीचे ईंट पर पाखाना स्टाइल में बैठा व्यक्ति ठाकुर साहब को अखबार पढ़कर सुना रहा था। यह उसका रोज का काम था। ठाकुर साहब महज एक तक पढ़े थे। वे मात्राओं वाले शब्द पढ़ने में गलती कर जाते इसलिए वह ईंट पर बैठा व्यक्ति अखबार के मामले में उनका सहायक हो गया था। उसको इसका यह फायदा मिलता कि वह ठाकुर साहब के करीबी जैसा फील करता था। ठाकुर साहब जब चाय बोलते तो वह भी साथ में चाय पीता था जो किसी अचीवमेंट से कम न था।
ईंट पर बैठे व्यक्ति ने गले को खंखारकर अखबार की हेडलाइन पढ़ी- मजदूरों का पलायन अब भी जारी। सरकार दिख रही विफल। कलम खोंसे व्यक्ति के बगल में बैठे व्यक्ति ने कहा- सब अफवाह है। सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाई है। लगातार ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जा रही। अब लोग पैदल चले आ रहे हैं तो सरकार क्या करे?
कलम वाले व्यक्ति ने कहा- सरकार यह क्यों नहीं बताती कि लोग पैदल क्यों चले आ रहे? क्या उतनी ट्रेनें उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं जितनी कि ट्रेनें हैं? यह पूर्ण रूप से सरकार का फेलियर है।
बगल में बैठे व्यक्ति ने कहा- बड़े सरकार विरोधी लगते हो। कहाँ के रहने वाले हो?
कलम वाले ने कहा- जी सलारपुर का।
बगल वाले ने कहा- वहां तो पूरा गउवें देशद्रोहियों से भरा पड़ा है। पिछली बार सब साले विधायक को वोट नहीं दिए थे।
कलम वाले ने कहा- आपको कैसे पता?
बगल वाले ने कहा- अरे सब पता चलता है। मैं तुम्हारी बात से ही बता रहा हूँ कि तुमने विधायक को वोट नहीं दिया था।
कलम वाले ने कहा- यह मेरा निजी मामला है। मैं खुद तय करता हूँ कि वोट किसे देना है। मेरे घर पर भी मैं अपनी राय रख देता हूँ बेस्ट कंडीडेट देखकर। घर वालों में से कौन किसे वोट देगा यह उसका निजी मामला होता है। यही एक संवैधानिक तरीका भी है।
बगल में बैठे व्यक्ति ने कहा- जब घर में ही एकता नहीं तो बात तो सरकार विरोधी करोगे ही न ...सरकार ने कोरोना के दौरान इतने पैकेज बांटे यह सब न दिखता। बस पैदल चलते मजदूर का रोना लेकर बैठ गए।
नीचे ईंट पर बैठे व्यक्ति ने दूसरी हेडलाइन पढ़ी- भारत पाक के बीच तनाव बढ़ा।
ठाकुर साहब गरियाते हुए बोले- ये हरामी साले कभी न सुधरेंगे। कोरोना से लड़ने की औकात नहीं पर आए दिन फायरिंग करते रहते हैं।
सामने की बेंच पे बैठे कलम वाले व्यक्ति ने कहा- जब देश में बड़ी समस्याएं बढ़ने लगती हैं तब इस तरह की खबरें आम हो जाती हैं।
उनके बगल में बैठे व्यक्ति ने पूछा- तो तुमको पाकिस्तान की हरकतों वाली खबर झूठ लग रही ? ठाकुर साहब गलत कह रहे ?
कलम वाले व्यक्ति ने कहा- यह आपको हमको और समस्याओं से भरमाये रखने का तरीका होता है। देश में और भी......
ठाकुर साहब ने बीच में ही बात काटते हुए कहा- अरे ठीक है भाई। आपको जो लगता है वह सही। तुम आगे पढ़ो बे...
नीचे बैठे अखबार फैलाये व्यक्ति ने फिर पढ़ा- AMU में भड़काऊ भाषण के मामले में डॉक्टर कफ़ील की NSA तीन महीनें बढ़ी।
यह खबर सुनकर ठाकुर साहब थोड़ा मुस्कुराये। ठाकुर साहब को मुस्कुराता देख पढ़ने वाला भी मुस्कुराया, चाय वाला भी मुस्कुराया, कलम खोंसे व्यक्ति के बगल में बैठा व्यक्ति भी मुस्कुराया। कलम वाला व्यक्ति उन्हें देखता रहा। उसने बस एक लंबी सांस छोड़ी। उसके बगल में बैठे व्यक्ति ने पूछा- आप इस खबर पर क्या कहेंगे ?
कलम वाले व्यक्ति ने जवाब दिया- यही कि जिसे सम्मान मिलना था, जो समाज का हीरो है वह बस माइनॉरिटी में पैदा होने के कारण यातनाएं झेल रहा है। जो इंसान अपने पैसे लगाकर लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध करवाता हो, चमकी बुखार के वक्त घुटने बराबर पानी में घूम घूमकर बच्चों का इलाज करता हो वह पूज्यनीय .....
बगल में बैठा व्यक्ति खीजकर चिल्लाया- वह सिलेंडर चोर है.... झूठ बोलते हो तुम।
कलम वाला व्यक्ति उसके चिल्लाने से सहमा। पर अपनी साधारण आवाज में ही बोला- यह खबर झूठ है। कोर्ट ने बाकायदा इस मामले में डॉक्टर कफील को बरी किया है। यदि आपको इसके बाद भी वह इंसान दोषी लगता है तो आप व्हाट्सएप पर फैलाई गई अफवाहों के शिकार हैं।
बगल में बैठा व्यक्ति गुस्साया कलम वाले का कॉलर पकड़ लिया। गुस्से में चिल्लाया - हरामी साले... कब से तेरी टर्र टर्र सुन रहा हूँ अब तुझे बताता हूँ....
यह दृश्य देख अखबार पढ़ने वाला अखबार लेकर दूर भागा। ठाकुर साहब कलम वाले का कॉलर छुड़ाने लगे। अगल बगल के लोग तमाशा देखने करीब आ गए और क्या हुआ होगा इसका अनुमान लगाने लगे।
तबतक उस व्यक्ति का फोन बजा जिसने कॉलर पकड़ रखा था... उसने कॉलर छोड़ फोन उठा लिया।
फोन की आवाज सुनकर वह बोला। पैदल क्यों चला आ रहा था। सरकार ने इतनी व्यवस्था तो कर रखी है।
ठाकुर साहब ने पूछा- क्या हुआ?
वह बोला- बहिनिया का लड़का दिल्ली से पैदल चले आ रहा था। रास्ते में पुलिस ने बहुत मार दिया।
ठाकुर साहब बोले- अब तो ट्रेन चल गई है। क्या ट्रेन के लिए नहीं देखा ?
वह बोला- एक हफ्ते से चक्कर काट रहा था। हर बार निराश होकर घर लौटना पड़ता था। मुझे पता ही न था नहीं तो पैसे भेज पर्सनल गाड़ी से बुला लेता।
ठाकुर साहब ने फिर पूछा - ठीक तो है न वह ?
वह बोला - डॉक्टर के पास उसके साथ चल रहे लोग लेकर गए। डॉक्टर ने दवा देकर दो दिन आराम करने को कहा है।
ठाकुर साहब ने फिर पूछा- अब ?
वह उदास आवाज में कलम वाले की तरफ देखते हुए बोला- अब क्या उसे लाने का प्रयास करना होगा। निकम्मी सरकारों ने कुछ ढंग का किया होता तो आज भांजा अनजान जगह पर थोड़ी फंसा होता ।
अब सब अपनी जगह पर बैठे थे। भांजे के मामा ने चाय बोल दी थी उस कलम वाले व्यक्ति के लिए भी और अब इस बात पर मंथन चल रहा था कि बहिनिया का लड़का कैसे वापस आये। कलम वाला व्यक्ति भी अपने कॉन्टेक्ट तलाशने में व्यस्त था। चाय बगल में रखी थंडी हो रही थी...
जवाब में वहां खड़े बैठे सब लोग एक साथ कह उठते हां साहेब......
ऐसा नहीं है कि साहेब लोग कुछ कार्यवाही नहीं करते थे। कभी कभी सिपाही से कहकर दो चार डंडे हौंकवा देते थे पर कपड़े देखकर। इसमें सफेद और स्वच्छ कपड़ों वालों का फायदा हो जाता था। इतिहास तो यही बताता है कि सुथरे लोगों ने इन दो महीनों में एक भी डंडे न खाए थे। यह क्लास का मामला था।
चाय वाले ने कोयले की बनी भट्टी पर चाय रख दी। सामने दो बेंच रखी हुई थी जिनमें से एक अक्सर पाया बराबर न होने के कारण हिलते रहती। कई बार तो चाय पीने वालों ने चाय बेंच पर रखी और मिट्टी का कुल्हड़ लुढ़क गया। ऐसे में ज्यादा कुछ न होता। सफेद कपड़े पीछे से जीवन भर के लिए दाग ले लेते और कपड़े का मालिक चाय वाले को चार गालियां दे देता था। चाय की दुकान पर खड़े बैठे सभी लोगों के लिए यह आनंद का विषय होता।
उस दिन न हिलने वाली बेंच पर ठाकुर साहब बैठे थे। अब जब ठाकुर साहब बेंच पर बैठ गए थे तो इसका मतलब यह होता था कि उस पांच व्यक्तियों की बेंच पर और कोई नहीं बैठेगा। यह कास्ट का मामला था पर इसे लोग सम्मान वाली बात कहते थे। सामने हिलने वाली बेंच पर दो लोग बैठे थे। एक जो कोई इसी इलाके का था पर उच्च घराने जैसा प्रतीत होते होते दिखता था और दूसरा जो कोई राहगीर था। दूसरा कपड़े लत्ते और जेब में खोंसी गई कलम से अपने पढ़े लिखे होने का आभाष करा रहा था। कुछ लोग और थे जो बस खड़े थे। बात वात करते रहते। कभी कभी विशेष चर्चा भी उठ जाती। मसलन... पाकिस्तान अब एकदम हरामी हो गया है.... पाकिस्तान के पास खाने को दाने भी न बचे हैं..... हमारी सरकार अच्छी न होती तो सबका क्या होता..... बेहतर सरकार मुसीबत में जनता के लिए अच्छे पैकेज का ऐलान करती रहती है.........
इन सब के बीच सड़क पर अन्य प्रदेशों से आ रहे मजदूर पैदल चलते दिख जाते थे। जब वे चौराहे से गुजरने लगते तो लोग उन्हें देखकर थोड़ी देर चर्चा कर लेते थे।
जो अकेली बेंच पर बैठे थे ठाकुर साहब, उनके बगल में नीचे ईंट पर पाखाना स्टाइल में बैठा व्यक्ति ठाकुर साहब को अखबार पढ़कर सुना रहा था। यह उसका रोज का काम था। ठाकुर साहब महज एक तक पढ़े थे। वे मात्राओं वाले शब्द पढ़ने में गलती कर जाते इसलिए वह ईंट पर बैठा व्यक्ति अखबार के मामले में उनका सहायक हो गया था। उसको इसका यह फायदा मिलता कि वह ठाकुर साहब के करीबी जैसा फील करता था। ठाकुर साहब जब चाय बोलते तो वह भी साथ में चाय पीता था जो किसी अचीवमेंट से कम न था।
ईंट पर बैठे व्यक्ति ने गले को खंखारकर अखबार की हेडलाइन पढ़ी- मजदूरों का पलायन अब भी जारी। सरकार दिख रही विफल। कलम खोंसे व्यक्ति के बगल में बैठे व्यक्ति ने कहा- सब अफवाह है। सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाई है। लगातार ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जा रही। अब लोग पैदल चले आ रहे हैं तो सरकार क्या करे?
कलम वाले व्यक्ति ने कहा- सरकार यह क्यों नहीं बताती कि लोग पैदल क्यों चले आ रहे? क्या उतनी ट्रेनें उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं जितनी कि ट्रेनें हैं? यह पूर्ण रूप से सरकार का फेलियर है।
बगल में बैठे व्यक्ति ने कहा- बड़े सरकार विरोधी लगते हो। कहाँ के रहने वाले हो?
कलम वाले ने कहा- जी सलारपुर का।
बगल वाले ने कहा- वहां तो पूरा गउवें देशद्रोहियों से भरा पड़ा है। पिछली बार सब साले विधायक को वोट नहीं दिए थे।
कलम वाले ने कहा- आपको कैसे पता?
बगल वाले ने कहा- अरे सब पता चलता है। मैं तुम्हारी बात से ही बता रहा हूँ कि तुमने विधायक को वोट नहीं दिया था।
कलम वाले ने कहा- यह मेरा निजी मामला है। मैं खुद तय करता हूँ कि वोट किसे देना है। मेरे घर पर भी मैं अपनी राय रख देता हूँ बेस्ट कंडीडेट देखकर। घर वालों में से कौन किसे वोट देगा यह उसका निजी मामला होता है। यही एक संवैधानिक तरीका भी है।
बगल में बैठे व्यक्ति ने कहा- जब घर में ही एकता नहीं तो बात तो सरकार विरोधी करोगे ही न ...सरकार ने कोरोना के दौरान इतने पैकेज बांटे यह सब न दिखता। बस पैदल चलते मजदूर का रोना लेकर बैठ गए।
नीचे ईंट पर बैठे व्यक्ति ने दूसरी हेडलाइन पढ़ी- भारत पाक के बीच तनाव बढ़ा।
ठाकुर साहब गरियाते हुए बोले- ये हरामी साले कभी न सुधरेंगे। कोरोना से लड़ने की औकात नहीं पर आए दिन फायरिंग करते रहते हैं।
सामने की बेंच पे बैठे कलम वाले व्यक्ति ने कहा- जब देश में बड़ी समस्याएं बढ़ने लगती हैं तब इस तरह की खबरें आम हो जाती हैं।
उनके बगल में बैठे व्यक्ति ने पूछा- तो तुमको पाकिस्तान की हरकतों वाली खबर झूठ लग रही ? ठाकुर साहब गलत कह रहे ?
कलम वाले व्यक्ति ने कहा- यह आपको हमको और समस्याओं से भरमाये रखने का तरीका होता है। देश में और भी......
ठाकुर साहब ने बीच में ही बात काटते हुए कहा- अरे ठीक है भाई। आपको जो लगता है वह सही। तुम आगे पढ़ो बे...
नीचे बैठे अखबार फैलाये व्यक्ति ने फिर पढ़ा- AMU में भड़काऊ भाषण के मामले में डॉक्टर कफ़ील की NSA तीन महीनें बढ़ी।
यह खबर सुनकर ठाकुर साहब थोड़ा मुस्कुराये। ठाकुर साहब को मुस्कुराता देख पढ़ने वाला भी मुस्कुराया, चाय वाला भी मुस्कुराया, कलम खोंसे व्यक्ति के बगल में बैठा व्यक्ति भी मुस्कुराया। कलम वाला व्यक्ति उन्हें देखता रहा। उसने बस एक लंबी सांस छोड़ी। उसके बगल में बैठे व्यक्ति ने पूछा- आप इस खबर पर क्या कहेंगे ?
कलम वाले व्यक्ति ने जवाब दिया- यही कि जिसे सम्मान मिलना था, जो समाज का हीरो है वह बस माइनॉरिटी में पैदा होने के कारण यातनाएं झेल रहा है। जो इंसान अपने पैसे लगाकर लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध करवाता हो, चमकी बुखार के वक्त घुटने बराबर पानी में घूम घूमकर बच्चों का इलाज करता हो वह पूज्यनीय .....
बगल में बैठा व्यक्ति खीजकर चिल्लाया- वह सिलेंडर चोर है.... झूठ बोलते हो तुम।
कलम वाला व्यक्ति उसके चिल्लाने से सहमा। पर अपनी साधारण आवाज में ही बोला- यह खबर झूठ है। कोर्ट ने बाकायदा इस मामले में डॉक्टर कफील को बरी किया है। यदि आपको इसके बाद भी वह इंसान दोषी लगता है तो आप व्हाट्सएप पर फैलाई गई अफवाहों के शिकार हैं।
बगल में बैठा व्यक्ति गुस्साया कलम वाले का कॉलर पकड़ लिया। गुस्से में चिल्लाया - हरामी साले... कब से तेरी टर्र टर्र सुन रहा हूँ अब तुझे बताता हूँ....
यह दृश्य देख अखबार पढ़ने वाला अखबार लेकर दूर भागा। ठाकुर साहब कलम वाले का कॉलर छुड़ाने लगे। अगल बगल के लोग तमाशा देखने करीब आ गए और क्या हुआ होगा इसका अनुमान लगाने लगे।
तबतक उस व्यक्ति का फोन बजा जिसने कॉलर पकड़ रखा था... उसने कॉलर छोड़ फोन उठा लिया।
फोन की आवाज सुनकर वह बोला। पैदल क्यों चला आ रहा था। सरकार ने इतनी व्यवस्था तो कर रखी है।
ठाकुर साहब ने पूछा- क्या हुआ?
वह बोला- बहिनिया का लड़का दिल्ली से पैदल चले आ रहा था। रास्ते में पुलिस ने बहुत मार दिया।
ठाकुर साहब बोले- अब तो ट्रेन चल गई है। क्या ट्रेन के लिए नहीं देखा ?
वह बोला- एक हफ्ते से चक्कर काट रहा था। हर बार निराश होकर घर लौटना पड़ता था। मुझे पता ही न था नहीं तो पैसे भेज पर्सनल गाड़ी से बुला लेता।
ठाकुर साहब ने फिर पूछा - ठीक तो है न वह ?
वह बोला - डॉक्टर के पास उसके साथ चल रहे लोग लेकर गए। डॉक्टर ने दवा देकर दो दिन आराम करने को कहा है।
ठाकुर साहब ने फिर पूछा- अब ?
वह उदास आवाज में कलम वाले की तरफ देखते हुए बोला- अब क्या उसे लाने का प्रयास करना होगा। निकम्मी सरकारों ने कुछ ढंग का किया होता तो आज भांजा अनजान जगह पर थोड़ी फंसा होता ।
अब सब अपनी जगह पर बैठे थे। भांजे के मामा ने चाय बोल दी थी उस कलम वाले व्यक्ति के लिए भी और अब इस बात पर मंथन चल रहा था कि बहिनिया का लड़का कैसे वापस आये। कलम वाला व्यक्ति भी अपने कॉन्टेक्ट तलाशने में व्यस्त था। चाय बगल में रखी थंडी हो रही थी...