किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। सिंघु बॉर्डर पर मिनी पंजाब जैसा नजारा है क्योंकि यहां जहां तक भी नजर जाएगी आपको प्रदर्शनकारी किसान व उनके ट्रैक्टर ट्रॉलियां नजर आएंगे। तीन टाइम लंगर यहां चलता रहता है। इसी तरह टिकरी बॉर्डर पर भी नजारा देखने को मिलता है।
PC. Tribune News Service
ट्रिब्यून इंडिया डॉट कॉम ने यहां से जो रिपोर्ट की है वह चौंकाने व हर्ष पैदा करने वाली है। इस रिपोर्ट में यहां आसपास रहने वाले प्रवासी मजदूरों के बच्चों के बारे में बताया गया है।
प्रवासी मजदूर का 12 वर्षीय बेटा राज, जो कक्षा 5 का छात्र है वह भी इस आंदोलन में आता है। हालांकि उसे पता नहीं है कि टिकरी-बहादुरगढ़ सीमा पर पिछले 28 दिनों से हजारों किसान क्यों डेरा डाले हुए हैं। लेकिन वह खुश है, क्योंकि उसे किसानों द्वारा शुरू किए गए लंगर की बदौलत विभिन्न प्रकार के भोजन खाने को मिलते हैं।
उसकी तरह, प्रवासी मजदूरों के बच्चे हर सुबह विरोध स्थल पर आते हैं और शाम को लौट जाते हैं। कोविड की वजह से उनके स्कूल बंद हैं।
राज के अनुसार, "मैं और मेरे दोस्त छुप-छुप कर खेलते हैं, चाय पीते हैं, और बिस्कुट, छोले के साथ चटनी, मिठाई और फल खाते हैं।" हम खाना भी घर ले जाते हैं। राज कहता है कि हमें ऐसा करने से कोई नहीं रोकता। भोजन के अलावा, किसान बच्चों को ऊनी कपड़े भी देते रहे हैं।
किसानों के विरोध के कारण के बारे में पूछे जाने पर, राज ने तुरंत जवाब दिया: "वे अपनी फसलों की कीमत बढ़वाना चाहते हैं।"
उसके दोस्त अविनाश ने उसे टोकते हुए भोलेपन से कहा, "वे ट्रैक्टर-ट्रॉली के साथ यहां हैं क्योंकि सरकार उन्हें उनके गांवों में जाने की अनुमति नहीं दे रही है।"
पास में कक्षा आठवीं की छात्रा सपना थी, जो बिस्कुट और अन्य खाद्य पदार्थों से भरा बैग साथ लिए थी। उसने कहा, “मेरे इलाके के बच्चे और आस-पास के इलाके के लोग किसानों के आने के बाद से यहाँ अच्छा समय बिता रहे हैं। मेरे पिता भी एक बार लंगर चखने यहां आए थे।”
पंजाब के एक किसान जय तीर्थ सिंह ने कहा कि खाने के अलावा, कई प्रदर्शनकारियों ने बच्चों और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों को स्वेटर, जैकेट और कंबल भी दिए थे, क्योंकि वे ठंड में कंपकंपा रहे थे।
एक और किसान जसप्रीत सिंह ने कहा, “कुछ बच्चे ‘किसान एकता ज़िंदाबाद’ के नारे लगाते हैं। वे हमारे रुकने की अवधि के बारे में पूछते हैं। मुझे लगता है कि वे नहीं चाहते कि हम वापस लौटें।”
PC. Tribune News Service
ट्रिब्यून इंडिया डॉट कॉम ने यहां से जो रिपोर्ट की है वह चौंकाने व हर्ष पैदा करने वाली है। इस रिपोर्ट में यहां आसपास रहने वाले प्रवासी मजदूरों के बच्चों के बारे में बताया गया है।
प्रवासी मजदूर का 12 वर्षीय बेटा राज, जो कक्षा 5 का छात्र है वह भी इस आंदोलन में आता है। हालांकि उसे पता नहीं है कि टिकरी-बहादुरगढ़ सीमा पर पिछले 28 दिनों से हजारों किसान क्यों डेरा डाले हुए हैं। लेकिन वह खुश है, क्योंकि उसे किसानों द्वारा शुरू किए गए लंगर की बदौलत विभिन्न प्रकार के भोजन खाने को मिलते हैं।
उसकी तरह, प्रवासी मजदूरों के बच्चे हर सुबह विरोध स्थल पर आते हैं और शाम को लौट जाते हैं। कोविड की वजह से उनके स्कूल बंद हैं।
राज के अनुसार, "मैं और मेरे दोस्त छुप-छुप कर खेलते हैं, चाय पीते हैं, और बिस्कुट, छोले के साथ चटनी, मिठाई और फल खाते हैं।" हम खाना भी घर ले जाते हैं। राज कहता है कि हमें ऐसा करने से कोई नहीं रोकता। भोजन के अलावा, किसान बच्चों को ऊनी कपड़े भी देते रहे हैं।
किसानों के विरोध के कारण के बारे में पूछे जाने पर, राज ने तुरंत जवाब दिया: "वे अपनी फसलों की कीमत बढ़वाना चाहते हैं।"
उसके दोस्त अविनाश ने उसे टोकते हुए भोलेपन से कहा, "वे ट्रैक्टर-ट्रॉली के साथ यहां हैं क्योंकि सरकार उन्हें उनके गांवों में जाने की अनुमति नहीं दे रही है।"
पास में कक्षा आठवीं की छात्रा सपना थी, जो बिस्कुट और अन्य खाद्य पदार्थों से भरा बैग साथ लिए थी। उसने कहा, “मेरे इलाके के बच्चे और आस-पास के इलाके के लोग किसानों के आने के बाद से यहाँ अच्छा समय बिता रहे हैं। मेरे पिता भी एक बार लंगर चखने यहां आए थे।”
पंजाब के एक किसान जय तीर्थ सिंह ने कहा कि खाने के अलावा, कई प्रदर्शनकारियों ने बच्चों और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों को स्वेटर, जैकेट और कंबल भी दिए थे, क्योंकि वे ठंड में कंपकंपा रहे थे।
एक और किसान जसप्रीत सिंह ने कहा, “कुछ बच्चे ‘किसान एकता ज़िंदाबाद’ के नारे लगाते हैं। वे हमारे रुकने की अवधि के बारे में पूछते हैं। मुझे लगता है कि वे नहीं चाहते कि हम वापस लौटें।”