उत्तराखंड: निर्दोष लोगों को निशाना बनाकर अशांति फ़ैलाने वालों पर कार्रवाई की मांग को लेकर जन संगठनों का राज्यपाल को ज्ञापन

Written by sabrang india | Published on: March 22, 2024
दिसंबर 2021 में हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद में हिंदुत्व को लेकर साधु-संतों ने ऐसे बयान दिये जिसके बाद से समय समय पर वहां की फिजाओं में नफरत की घटनाएं होती रही हैं। चाहे वह वनभूलपुरा का मामला हो या पुरोला में अंतर्धार्मिक प्रेम प्रसंग की घटना के बाद से धार्मिक अल्पसंख्यकों का बहिष्कार और पलायन की घटनाएं। इन घटनाओं ने सामाजिक सौहार्द के ताने बाने को छिन्न भिन्न कर दिया है। ऐसे में जन संगठनों ने मिलकर विचार विमर्श के बाद शांति बहाली के प्रयासों पर जोर देते हुए अशांति फ़ैलाने वाली ताकतों पर रोक लगाने के प्रयास हेतु राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा है। 


उत्तराखंड के पुरोला की घटना के बाद पसरा सन्नाटा/ प्रतीकात्मक तस्वीर
 
देहरादून, रुद्रपुर, मुंसियारी, हरिद्वार, भवाली और राज्य के अन्य शहरों में राज्यपाल के नाम पर ज्ञापन सौंपा कर राज्य के जन संगठनों एवं विपक्षी दलों ने सवाल उठाया कि प्रदेश में लगातार निर्दोष लोगों की आजीविका एवं व्यवसाय पर धर्म के आधार निशाना बनाया जा रहा है। ऐसे ही घटनाएं पुरोला, हल्द्वानी के कठघरिया इलाके और हाल में धारचूला में दिखाई दी हैं। कथित अपराध होने के बाद आपराधिक अभियान चलाया जाता है जिसमें निजी सम्पतियों को तोड़फोड़ की जाती है, दुकानों को ज़बरन बंद कराया जाता है और भवन मालिकों पर दबाव बनाया जाता है। 

इस मामले पर जन संगठनों ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसलों और कानून के अनुसार उपरोक्त अपराध गंभीर प्रकृति के हैं लेकिन उनपर कोई कार्रवाई होती नहीं दिख रही है। पुरोला में खुलासा हुआ है कि पूरा अभियान झूठ प्रचार आधारित था, लेकिन फिर भी ज़िम्मेदार व्यक्तियों पर कोई कार्रवाई नहीं दिख रही है। धारचूला सीमान्त इलाके होने से यह आपराधिक अभियान अंतरराष्ट्रीय मुद्दा भी बन सकता है। पिथौरागढ़ के पुलिस प्रशासन ने तत्काल शांति के लिए कदम उठाए हैं और मुकदमा भी दर्ज हुआ है। इन कदमों को स्वागत करते हुए हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा कि यह नाकाफी है। चुनाव के समय उच्चतम न्यायालय के 2018 और 2022 के फैसलों के अनुसार इन अभियानों पर सख्त क़ानूनी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि जनता की सुरक्षा और सामाजिक सौहार्द कायम रहे।  

देहरादून में ज्ञापन पर इंद्रेश मैखुरी, राज्य सचिव, भारत की कम्यूनिस्ट पार्टी (मा - ले); कमला पंत, उत्तराखंड महिला मंच; बालेश बबानिया, राष्ट्रीय रीजनल पार्टी; अनंत आकाश, शहर सचिव, भारत की कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी); शंकर गोपाल, चेतना आंदोलन; भोपाल, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन; सुंदर सिंह चौहान, उत्तराखंड मसीहा समाज; और स्वतंत्र पत्रकार स्वाति नेगी ने भी हस्ताक्षर किया। सृष्ट मंडल ने सिटी मजिस्ट्रेट के माध्यम से ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन की प्रतिलिपि मुख्य निर्वाचन अधिकारी एवं पुलिस महानिदेशक को भी दी गयी है।

 
निवेदक
जन हस्तक्षेप

 
उत्तराखंड के राज्यपाल को प्रेषित ज्ञापन में कहा गया है कि राज्य की संस्कृति हमेशा शांतिपूर्ण और लोकतान्त्रिक रही है। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली, श्री देव सुमन और जयानंद भारती इस प्रदेश के नायक रहे हैं। लेकिन अभी लगातार कुछ तत्वों एवं संगठनों की और से अशांति, हिंसा एवं नफरत को फ़ैलाने के लिए आपराधिक अभियान चल रहे हैं जो संविधान के मूल्य, कानून का राज और चुनाव आचार संहिता के विपरीत है।

विगत एक वर्ष से राज्य के कुछ क्षेत्रों में कथित अपराध होने के बाद आपराधिक अभियान चलाकर निर्दोष लोगों को धर्म एवं समुदाय के आधार पर निशाना बनाया गया है। ऐसी ही घटनाएं पुरोला, हल्द्वानी के कठघरिया इलाके और हाल में धारचूला में दिखाई दी हैं। पुरोला को ले कर खुलासा हुआ है कि पूरा अभियान झूठ प्रचार आधारित था, लेकिन फिर भी ज़िम्मेदार व्यक्तियों पर कोई क़ानूनी कार्रवाई नहीं दिख रही है। कठघरिया में उन्माद और हिंसा फैलाने के आरोपी पर नामजद शिकायत मिलने के बावजूद पुलिस प्रशासन द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी।  

धारचूला में डेढ़ महीने से ऐसे अभियान चलाया जा रहा है। निर्दोष दुकानदारों के दुकानों पर चिन्ह लगाए गए हैं और उन्हें धमकाया गया है कि उस शहर को छोड़ दे। भवन मालिकों पर भी दबाव डाला जा रहा है की वे अपने मुस्लिम किरायदारों को बेदखल करें। सीमान्त इलाके में ऐसे आपराधिक अभियान अंतरराष्ट्रीय मुद्दा भी बन सकता है। पिथौरागढ़ पुलिस प्रशासन ने तत्काल सुरक्षा एवं शांति के लिए कदम उठाये हैं, और मुकदमा भी दर्ज हुआ है, जिन कदमों का हम स्वागत करते हैं, लेकिन यह नाकाफी है।

महामहिम, निजी सम्पतियों को तोड़फोड़ करना, दुकानों को ज़बरन बंद करना, और नफरती जुलुस को निकालना क़ानूनी अपराध है।

अतः  इसलिए चुनाव के समय, जब हर तबका सुरक्षित महसूस कर अपना अधिकार इस्तेमाल करना चाहेंगे, आपसे हमारा निवेदन है कि जनता की सुरक्षा और सामाजिक सौहार्द को कायम रखा जाये और उच्चतम न्यायालय के 2018 और 2022 के फैसलों के अनुसार इन अभियानों पर सख्त क़ानूनी कार्रवाई की जाये।  

निवेदक
 
प्रतिलिपि:
मुख्य निर्वाचन अधिकारी, उत्तराखंड
पुलिस महानिदेशक, उत्तराखंड सरकार


उत्तराखंड में सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने वाली घटनाएं:

बता दें कि अप्रैल 2023 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घोषणा की कि उनका प्रशासन राज्य में सभी गैरकानूनी रूप से निर्मित 'मजारों' (कब्रों) और अन्य संरचनाओं को हटा देगा, "हम भूमि जिहाद को कहीं भी आगे नहीं बढ़ने देंगे।"
 
अगस्त 2023 तक, उत्तराखंड सरकार ने राज्य में 'अनधिकृत' धार्मिक संरचनाओं और वन भूमि पर अतिक्रमण से निपटने के अपने प्रयासों को मजबूत कर दिया था।
 
एक सरकारी अधिकारी ने द प्रिंट को बताया कि लगभग "465 मजार (मकबरे), 45 मंदिर और गुरुद्वारा समिति द्वारा किए गए दो अतिक्रमण" को ध्वस्त कर दिया गया है।
 
फरवरी 2024 में, एक मस्जिद और मदरसे को ध्वस्त करने के बाद विरोध प्रदर्शन हुआ। रिपोर्टों के अनुसार जिसकी स्थिति अभी भी विचाराधीन थी, उसे सील कर दिया गया था और बाद में बनभूलपुरा में अधिकारियों द्वारा ध्वस्त कर दिया गया। विध्वंस को देखते हुए हुई अशांति के कारण छह लोग मारे गए। इस घटना में 5 मुसलमानों की गोली मारकर हत्या कर दी गई, कई अन्य घायल हो गए, और पुलिस की बर्बरता और हिंसा के खतरे के कारण सैकड़ों मुस्लिम परिवारों को क्षेत्र से पलायन करना पड़ा।
 
हल्द्वानी के बनभूलपुरा को हालांकि पहले भी धमकियों और तोड़फोड़ का सामना करना पड़ा है। 2022 में, रेलवे ने दावा किया कि रेलवे की जमीन पर 4365 से अधिक घर बनाए गए हैं और अब, रेलवे विस्तार के लिए इन्हें हटाने की जरूरत है। इसके कारण निवासियों ने व्यापक विरोध प्रदर्शन किया, क्योंकि उनमें से 50,000 लोग बेघर होने और विस्थापन के खतरे का सामना कर रहे थे। स्थानीय लोगों ने तर्क दिया कि वे इस क्षेत्र में 100 वर्षों से अधिक समय से रह रहे हैं। विस्थापित होने के खतरे का सामना करने वाले इन निवासियों में से अधिकांश कथित तौर पर मुस्लिम थे। हालाँकि, जनवरी 2023 से सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने घरों को ध्वस्त करने के उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी।
 
क्या मुसलमानों को चुन-चुनकर निशाना बनाया जा रहा है? स्क्रॉल की एक रिपोर्ट के अनुसार, यहां तक कि स्थानीय समाचार मीडिया ने भी पुष्टि की है कि मुस्लिमों की संपत्तियों, पूजा स्थलों और कब्रों को सरकार द्वारा इस 'अतिक्रमण विरोधी' अभियान में असंगत रूप से निशाना बनाया जा रहा है। स्क्रॉल की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कुछ मंदिरों और अन्य हिंदू संरचनाओं को भी अतिक्रमण के लिए नोटिस जारी किया गया था, जो मुस्लिम स्थलों के पास स्थित थे, लेकिन उन्हें ध्वस्त नहीं किया गया और जमीन स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पूरे राज्य में एक पैटर्न है। स्क्रॉल ने एक निवासी सरवस्त जोशी से बात की, जिन्होंने कहा, “कुछ छोटे और एकांत मंदिरों को छोड़कर, प्रशासन ने वस्तुतः किसी भी अतिक्रमित मंदिर को नहीं छुआ। वहीं कालू सैय्यद मजार के अलावा रामनगर, काशीपुर और हरिद्वार की लगभग सभी मजारें ध्वस्त हो चुकी हैं। पूरे उत्तराखंड राज्य में प्रशासन ने चुन-चुन कर केवल मजारें ध्वस्त की हैं।'


Related:
उत्तराखंड के धारचूला में दुकानें फिर से खुलीं, शांति बहाल होने के बाद FIR दर्ज की गईं: SP
उत्तराखंड: मदरसा विध्वंस के बाद 5 मुस्लिमों की मौत, हलद्वानी MLA बोले- अधिकारियों ने प्रक्रिया में जल्दबाजी की
निवेशकों के केंद्र के रूप में प्रचारित उत्तराखंड में मुस्लिम संपत्तियों को लक्षित करने वाली नीति अपना रही धामी सरकार
हलद्वानी के मुस्लिमों ने पुलिस बर्बरता की कहानियाँ सुनाईं, आधिकारिक आंकड़ों से ज्यादा मौतों का डर: फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट
उत्तराखंड: 91 मुस्लिम दुकानदारों का पंजीकरण रद्द; जनमंच और CPI (ML) के प्रतिनिधिमंडल ने पिथौरागढ़ DM को ज्ञापन सौंपा

बाकी ख़बरें