लोकसभा चुनाव के पांच चरणों के चुनाव हो चुके हैं। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मौकों पर अपनी सरकार की आर्थिक कामयाबियों का खूब बखान किया लेकिन उन्हीं की सरकार के थिंक टैंक रथिन रॉय ने इसकी पोल खोल कर रखी दी है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रथिन रॉय का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था गहरे आर्थिक संकट की ओर बढ़ रही है। रॉय के अनुसार भारत भी ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे धीम गति के विकास शील देशों की राह पर चल पड़ा है और डर है कि आर्थिक मंदी उसे घेर लेगी।
रथिन रॉय ने एनडीटीवी के एक कार्यक्रम में बताया कि वित्त मंत्रालय की मार्च 2019 की मासिक आर्थिक रिपोर्ट में भी यह बात कही गई थी कि भारत की अर्थव्यवस्था 2018-19 में थोड़ी धीमी हो गई। मंदी के लिए जिम्मेदार अनुमानित कारकों में निजी खपत में गिरावट, निश्चित निवेश में मामूली वृद्धि और मौन निर्यात शामिल है। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम बहुत गहरा है।
उन्होंने कहा कि हम एक संरचनात्मक मंदी की ओर बढ़ रहे हैं। यह एक प्रारंभिक चेतावनी है। 1991 के बाद से अर्थव्यवस्था निर्यात के आधार पर नहीं बढ़ रही है। बल्कि भारत की शीर्ष सौ मिलियन (10 करोड़) जनसंख्या के उपभोग पर। उन्होंने कहा कि भारत के दस करोड़ उपभोक्ता देश की विकास गाथा को सशक्त कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इसका मतलब संक्षेप में हम दक्षिण कोरिया नहीं होंगे, हम चीन नहीं रहेंगे, हम ब्राजील की तरह बनेंगे। हम दक्षिण अफ्रीका होंगे। उन्होंने कहा कि दुनिया के इतिहास में देश मध्य आय के जाल से बचते रहे हैं, मगर जो एक बार फंसा तो फिर वह उबर नहीं सका है।
गौरतलब है किजेएम फाइनेंशियल की रिपोर्ट 'रूरल सफारी स्टील ऑन बंपी रोड' में पहले ही कहा जा चुका है कि आम चुनाव के बाद दोपहिया और चार पहिया वाहनों जैसे विवेकाधीन उपभोग में थोड़ी वृद्धि की संभावना है, लेकिन बाजार समर्थित टिकाऊ रिकवरी धीरे-धीरे होगी, जोकि पूर्व अनुमान से ज्यादा मंद रहेगी।
अगली सरकार को देश की बदहाल ग्रामीण अर्थव्यवस्था विरासत में मिलने वाली है, क्योंकि देश की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के अनेक हिस्से अनौपचारिक क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं, जिन्हें पिछले कई महीनों से अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा है और उन्हें उबरने में अभी समय लगे।
रथिन रॉय ने एनडीटीवी के एक कार्यक्रम में बताया कि वित्त मंत्रालय की मार्च 2019 की मासिक आर्थिक रिपोर्ट में भी यह बात कही गई थी कि भारत की अर्थव्यवस्था 2018-19 में थोड़ी धीमी हो गई। मंदी के लिए जिम्मेदार अनुमानित कारकों में निजी खपत में गिरावट, निश्चित निवेश में मामूली वृद्धि और मौन निर्यात शामिल है। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम बहुत गहरा है।
उन्होंने कहा कि हम एक संरचनात्मक मंदी की ओर बढ़ रहे हैं। यह एक प्रारंभिक चेतावनी है। 1991 के बाद से अर्थव्यवस्था निर्यात के आधार पर नहीं बढ़ रही है। बल्कि भारत की शीर्ष सौ मिलियन (10 करोड़) जनसंख्या के उपभोग पर। उन्होंने कहा कि भारत के दस करोड़ उपभोक्ता देश की विकास गाथा को सशक्त कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इसका मतलब संक्षेप में हम दक्षिण कोरिया नहीं होंगे, हम चीन नहीं रहेंगे, हम ब्राजील की तरह बनेंगे। हम दक्षिण अफ्रीका होंगे। उन्होंने कहा कि दुनिया के इतिहास में देश मध्य आय के जाल से बचते रहे हैं, मगर जो एक बार फंसा तो फिर वह उबर नहीं सका है।
गौरतलब है किजेएम फाइनेंशियल की रिपोर्ट 'रूरल सफारी स्टील ऑन बंपी रोड' में पहले ही कहा जा चुका है कि आम चुनाव के बाद दोपहिया और चार पहिया वाहनों जैसे विवेकाधीन उपभोग में थोड़ी वृद्धि की संभावना है, लेकिन बाजार समर्थित टिकाऊ रिकवरी धीरे-धीरे होगी, जोकि पूर्व अनुमान से ज्यादा मंद रहेगी।
अगली सरकार को देश की बदहाल ग्रामीण अर्थव्यवस्था विरासत में मिलने वाली है, क्योंकि देश की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के अनेक हिस्से अनौपचारिक क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं, जिन्हें पिछले कई महीनों से अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा है और उन्हें उबरने में अभी समय लगे।