जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के करीब तीन हफ्ते बाद मंगलवार को दिल्ली के प्रेस क्लब में मीडिया की आज़ादी पर पहली सभा हुई। इस सभा का असर यह हुआ कि कश्मीर में मीडिया पर लगी बंदिशों को राष्ट्र की अखंडता और सम्प्रभुता के नाम पर जायज़ करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट में जाने वाली संस्था प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को अपना पाला बदलना पड़ा। मंगलवार को सभा के बाद काउंसिल ने अपने सदस्यों को एक चिट्ठी भेजते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन की याचिका के संदर्भ में वह प्रेस की आज़ादी का पक्ष लेगा। भसीन की याचिका पर सुनवाई आज होनी है।
इससे पहले केवल कुछ विपक्षी राजनीतिक दलों ने खुलकर कश्मीर पर सरकार के कदम की आलोचना की थी और एक तथ्यान्वेषी दल की प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई थी। बीते 5 अगस्त के बाद ऐसा पहली बार था कि चार प्रमुख प्रेस संगठनों ने मिलकर कश्मीर में मीडिया की आज़ादी पर एक सभा की और तत्काल प्रेस काउंसिल को यू-टर्न लेने को बाध्य कर दिया।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन विमेन्स प्रेस कॉर्प्स, प्रेस असोसिएशन और एडिटर्स गिल्ड के प्रतिनिधियों ने यह सभा प्रेस काउंसिल के उस कदम के खिलाफ आयोजित की थी जिसमें उसने कश्मीर में प्रेस की आज़ादी के दमन को राष्ट्र की अखंडता और सम्प्रभुता के नाम पर जायज़ ठहराया था।
कश्मीर में मीडिया की आज़ादी पर लगे प्रतिबंधों को लेकर लंबे समय से प्रेस संगठनों के बीच एक प्रतिरोध कार्यक्रम की मंत्रणा चल रही थी। इस मसले पर सरकार का दबाव इतना था कि कश्मीर में पांच दिन ज़मीनी हालात का जायज़ा लेकर लौटे एक तथ्यान्वेषी दल को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के प्रबंधन ने अपने परिसर में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक वीडियो तक दिखाने से मना कर दिया था। इस घटना की चौतरफा आलोचना हुई थी और तमाम पत्रकारों के बीच नाराज़गी थी। इसके बावजूद कार्यक्रम की रूपरेखा नहीं बन पा रही थी।
सारा मामला तब बिगड़ा जब प्रेस की आज़ादी को कायम रखने के लिए गठित स्वायत्त संस्था प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में अनुराधा भसीन की याचिका पर हस्तक्षेप करते हुए अपना लिखित प्रतिवाद दर्ज कराया। मंगलवार की सभा में प्रेस असोसिएशन के अध्यक्ष जयशंकर गुप्त ने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया में काउंसिल के सदस्यों से कोई बातचीत नहीं की गयी। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट में अपना प्रतिवाद दर्ज कराने के बाद भी 22 अगस्त को हुई काउंसिल की बैठक के एजेंडे में इस मुद्दे को नहीं शामिल किया गया और सारे सदस्य इस फैसले से अनजान रहे।
वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त, जो हाल ही में दूसरी बार प्रेस असोसिएशन के अध्यक्ष चुने गये हैं और प्रेस काउंसिल के सदस्य भी हैं, उन्होंने काउंसिल के इस मनमाने फैसले पर सवाल उठाया। इसके बाद कई और पत्रकारों ने काउंसिल के चेयरमैन पूर्व जस्टिस चंद्रमौलि प्रसाद के एकतरफा फैसले पर सवाल उठाया जिसके बाद कुछ पत्रकार यूनियनों ने काउंसिल की कार्रवाई के खिलाफ एक साझा वक्तव्य जारी किया।
पिछले दो दिनों से प्रेस काउंसिल में कश्मीर के मसले पर पड़ी फूट की खबरें और संपादकीय विभिन्न अंग्रेज़ी अखबारों में छप रहे थे। इसी घटना ने सभा का रूप लिया और इसी पृष्ठभूमि में चार पत्रकार संगठनों ने मिलकर सभा आयोजित की। दिलचस्प है कि कश्मीर का वीडियो चलाने से सामाजिक कार्यकर्ताओं को रोकने वाला प्रेस क्लब खुद इस सभा का मेजबान और हिस्सेदार रहा, जिसकी नुमाइंदगी अध्यक्ष अनंत बगैतकर ने मंच पर की। इनके अलावा वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा, उर्मिलेश, हरतोश सिंह बल और विभिन्न पत्रकार संगठनों के प्रतिनिधि भी मंच पर उपस्थित रहे।
सभा ने एक संकल्प पारित करते हुए कहा कि वे कश्मीर में मीडियाकर्मियो की गिरफ्तारी और उत्पीड़न का विरोध करते हैं। कवरेज के लिए कश्मीर गए पत्रकारों से बदसलूकी की निंदा करते हुए कहा गया कि यह सभा कश्मीर में मीडिया पर लगी पाबंदियों के संदर्भ में प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष द्वारा एकतरफा तरीके से सुप्रीम कोर्ट जाने का विरोध करने का भी संकल्प लेती है।
सभा में यह मांग रखी गयी कि प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट में लगाये अपने प्रतिवेदन को तत्काल वापिस लें और इस पर चर्चा करने के लिए काउंसिल की बैठक बुलायें। इसके अलावा एक काउंसिल की ओर से एक तथ्यान्वेषी दल कश्मीर भेजने की मांग भी की गयी।
इस सभा से बने दबाव के आगे झुकते हुए प्रेस काउंसिल की सचिव अनुपमा भटनागर की ओर से एक पत्र सदस्यों को भेजा गया जिसमें बताया गया कि काउंसिल ने जम्मू और कश्मीर में मीडिया के परिदृश्य का अध्ययन करने के लिए एक उप-कमेटी गठित की है। कमेटी की रिपोर्ट जब आएगी तब आएगी लेकिन बुधवार को अनुराधा भसीन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान काउंसिल से उसका पक्ष मांगा गया तो वह प्रेस की आज़ादी का पक्ष लेगा और किसी भी किस्म के प्रतिबंध को नकारेगा।
पत्र में कहा गया है कि उप-कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद काउंसिल एक विस्तृत जवाब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करेगा। इस पत्र का काउंसिल के कुछ सदस्यों ने जवाब दिया है और मांग की है कि पहले सुप्रीम कोर्ट में जमा प्रतिवेदन को वापिस लिया जाए क्योंकि वह सदस्यों की सहमति के बिना दाखिल किया गया था।
साभार- मीडिया विजिल
इससे पहले केवल कुछ विपक्षी राजनीतिक दलों ने खुलकर कश्मीर पर सरकार के कदम की आलोचना की थी और एक तथ्यान्वेषी दल की प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई थी। बीते 5 अगस्त के बाद ऐसा पहली बार था कि चार प्रमुख प्रेस संगठनों ने मिलकर कश्मीर में मीडिया की आज़ादी पर एक सभा की और तत्काल प्रेस काउंसिल को यू-टर्न लेने को बाध्य कर दिया।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन विमेन्स प्रेस कॉर्प्स, प्रेस असोसिएशन और एडिटर्स गिल्ड के प्रतिनिधियों ने यह सभा प्रेस काउंसिल के उस कदम के खिलाफ आयोजित की थी जिसमें उसने कश्मीर में प्रेस की आज़ादी के दमन को राष्ट्र की अखंडता और सम्प्रभुता के नाम पर जायज़ ठहराया था।
कश्मीर में मीडिया की आज़ादी पर लगे प्रतिबंधों को लेकर लंबे समय से प्रेस संगठनों के बीच एक प्रतिरोध कार्यक्रम की मंत्रणा चल रही थी। इस मसले पर सरकार का दबाव इतना था कि कश्मीर में पांच दिन ज़मीनी हालात का जायज़ा लेकर लौटे एक तथ्यान्वेषी दल को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के प्रबंधन ने अपने परिसर में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक वीडियो तक दिखाने से मना कर दिया था। इस घटना की चौतरफा आलोचना हुई थी और तमाम पत्रकारों के बीच नाराज़गी थी। इसके बावजूद कार्यक्रम की रूपरेखा नहीं बन पा रही थी।
सारा मामला तब बिगड़ा जब प्रेस की आज़ादी को कायम रखने के लिए गठित स्वायत्त संस्था प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में अनुराधा भसीन की याचिका पर हस्तक्षेप करते हुए अपना लिखित प्रतिवाद दर्ज कराया। मंगलवार की सभा में प्रेस असोसिएशन के अध्यक्ष जयशंकर गुप्त ने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया में काउंसिल के सदस्यों से कोई बातचीत नहीं की गयी। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट में अपना प्रतिवाद दर्ज कराने के बाद भी 22 अगस्त को हुई काउंसिल की बैठक के एजेंडे में इस मुद्दे को नहीं शामिल किया गया और सारे सदस्य इस फैसले से अनजान रहे।
वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त, जो हाल ही में दूसरी बार प्रेस असोसिएशन के अध्यक्ष चुने गये हैं और प्रेस काउंसिल के सदस्य भी हैं, उन्होंने काउंसिल के इस मनमाने फैसले पर सवाल उठाया। इसके बाद कई और पत्रकारों ने काउंसिल के चेयरमैन पूर्व जस्टिस चंद्रमौलि प्रसाद के एकतरफा फैसले पर सवाल उठाया जिसके बाद कुछ पत्रकार यूनियनों ने काउंसिल की कार्रवाई के खिलाफ एक साझा वक्तव्य जारी किया।
पिछले दो दिनों से प्रेस काउंसिल में कश्मीर के मसले पर पड़ी फूट की खबरें और संपादकीय विभिन्न अंग्रेज़ी अखबारों में छप रहे थे। इसी घटना ने सभा का रूप लिया और इसी पृष्ठभूमि में चार पत्रकार संगठनों ने मिलकर सभा आयोजित की। दिलचस्प है कि कश्मीर का वीडियो चलाने से सामाजिक कार्यकर्ताओं को रोकने वाला प्रेस क्लब खुद इस सभा का मेजबान और हिस्सेदार रहा, जिसकी नुमाइंदगी अध्यक्ष अनंत बगैतकर ने मंच पर की। इनके अलावा वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा, उर्मिलेश, हरतोश सिंह बल और विभिन्न पत्रकार संगठनों के प्रतिनिधि भी मंच पर उपस्थित रहे।
सभा ने एक संकल्प पारित करते हुए कहा कि वे कश्मीर में मीडियाकर्मियो की गिरफ्तारी और उत्पीड़न का विरोध करते हैं। कवरेज के लिए कश्मीर गए पत्रकारों से बदसलूकी की निंदा करते हुए कहा गया कि यह सभा कश्मीर में मीडिया पर लगी पाबंदियों के संदर्भ में प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष द्वारा एकतरफा तरीके से सुप्रीम कोर्ट जाने का विरोध करने का भी संकल्प लेती है।
सभा में यह मांग रखी गयी कि प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट में लगाये अपने प्रतिवेदन को तत्काल वापिस लें और इस पर चर्चा करने के लिए काउंसिल की बैठक बुलायें। इसके अलावा एक काउंसिल की ओर से एक तथ्यान्वेषी दल कश्मीर भेजने की मांग भी की गयी।
इस सभा से बने दबाव के आगे झुकते हुए प्रेस काउंसिल की सचिव अनुपमा भटनागर की ओर से एक पत्र सदस्यों को भेजा गया जिसमें बताया गया कि काउंसिल ने जम्मू और कश्मीर में मीडिया के परिदृश्य का अध्ययन करने के लिए एक उप-कमेटी गठित की है। कमेटी की रिपोर्ट जब आएगी तब आएगी लेकिन बुधवार को अनुराधा भसीन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान काउंसिल से उसका पक्ष मांगा गया तो वह प्रेस की आज़ादी का पक्ष लेगा और किसी भी किस्म के प्रतिबंध को नकारेगा।
पत्र में कहा गया है कि उप-कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद काउंसिल एक विस्तृत जवाब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करेगा। इस पत्र का काउंसिल के कुछ सदस्यों ने जवाब दिया है और मांग की है कि पहले सुप्रीम कोर्ट में जमा प्रतिवेदन को वापिस लिया जाए क्योंकि वह सदस्यों की सहमति के बिना दाखिल किया गया था।
साभार- मीडिया विजिल