सिद्धू के इस्तीफे की खबर बताती है पत्रकारिता की दुर्दशा

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: July 15, 2019
हिन्दी और अंग्रेजी के जो अखबार मैं देखता हूं उनमें अंग्रेजी के इंडियन एक्सप्रेस और द टेलीग्राफ में नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे की खबर पहले पन्ने पर नहीं है। हिन्दी में कोई भी अखबार ऐसा नहीं है जिसमें सिद्धू के इस्तीफे की खबर पहले पन्ने पर न हो। नवजोत सिंह सिद्धू का इस्तीफा एक महीने पुराना है। इसे कल सिद्धू ने खुद ट्वीट किया और कल यह सोशल मीडिया पर छाया हुआ था। आज अखबारों में छाया हुआ है। एक महीने पुराना इस्तीफा अब सार्वजनिक हुआ है तो खबर है पर इससे पता चलता है अखबार वाले कितनी खबर रखते हैं और कैसी खबरें देते हैं। इस पुरानी खबर को पहले पन्ने पर छापने का कोई मतलब नहीं है और अगर छापना था तो पहले पन्ने की खबर यह थी कि सिद्धू ने एक महीने बाद अपने इस्तीफे को सार्वजनिक किया या एक महीने तक उनके इस्तीफे की खबर ही नहीं लगी। हालांकि जिस इस्तीफे की खबर एक महीने तक नहीं लगी वह कैसी खबर?

अंग्रेजी में टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दी में नवोदय टाइम्स ने इसे लीड बनाया है। इसके लिए टाइम्स ऑफ इंडिया ने तो लीड जैसा शीर्षक बना दिया है और उसे हिन्दी में लिखा जाए तो इस प्रकार होगा, "इस्तीफा देने के महीने भर से भी ज्यादा बाद सिद्धू ने पत्र सार्वजनिक किया"। महीने भर पहले इस्तीफा दिया था यह तो पुरानी खबर है। इसे महत्व देना है तो ऐसा ही कुछ किया जाना चाहिए जो नवोदय टाइम्स ने नहीं किया है। सिद्धू ने दिया पंजाब कैबिनेट से इस्तीफा। हालांकि, लाल रीवर्स में उपशीर्षक है, राहुल को 10 जून को ही भेज दी थी चिट्ठी। सिद्धू के इस्तीफे की इस खबर को कर्नाटक में विधायकों और मंत्रियों के इस्तीफे की खबर से मिलाकर देखिए। इस्तीफे स्वीकार करने की जल्दबाजी से देखिए, विधानसभा अध्यक्ष ने कहा है कि इस्तीफे सही प्रारूप में नहीं है फिर भी जल्बाजी देखिए और आप समझ सकेंगे कि आपके अखबार वही खबर देते हैं जो उन्हें दी जाती है या देने के लिए कहा जाता है। वे कोई छिपी हुई खबर या छिपाई जाने वाली सूचना नहीं देते हैं या नहीं के बराबर देते हैं।

सिद्धू के इस्तीफे की यह खबर इतनी महत्वपूर्ण है कि अमर उजाला ने आधे पन्ने का विज्ञापन होने के बावजूद बताया है कि अंदर के पन्ने पर खबर है और दैनिक जागरण ने मास्ट हेड पर दी जाने वाली अकेली सूचना इस खबर को बनाया है। हालांकि, सूचना इस्तीफे की नहीं, 34 दिन बाद राज खोलने की है। और चूंकि यह राज अखबार खुद नहीं खोल पाया इसलिए इसने इस खबर या सूचना या राज को अंदर के पन्ने पर रखा है। आजकल यह माना जाता है, बहुत सारे लोगों की शिकायत भी है कि अखबार सरकार या भाजपा के पक्ष में है। अमूमन ऐसा देखता भी है पर इस खबर से पता चल रहा है कि वे भाजपा के पक्ष में हैं, कांग्रेस के खिलाफ भी होंगे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे कांग्रेस के खिलाफ खबर ढूंढ़ने-देने में मेहनत करते हैं। उन्हें पंजाब के (सिद्धू जैसे मंत्री) के इस्तीफे की खबरे महीने भर नहीं थी पर भाजपा के महासचिव रामलाल की आरएसएस में वापसी हो गई ये खबर वे उसी दिन बता देते हैं।

कल आपने कई अखबारों में पहले पन्ने पर पढ़ा होगा कि भाजपा महासचिव (संगठन) रामलाल 13 वर्षो तक पार्टी में रहने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में लौट गए हैं। संघ में वह अखिल भारतीय सहसंपर्क प्रमुख होंगे। आज सिद्धू के इस्तीफे की खबर जरूर महत्वपूर्ण है। पर यह अंदर हो सकती थी। कुछ फॉलोअप (आम बोलचाल में मसाला या पैडिंग) के साथ बड़ी या लंबी भी की जा सकती थी। पहले पेज पर ही रखना था तो शीर्षक में थोड़ा खेल करना था – पर नहीं। राजनीतिक कारणों से सिद्धू का इस्तीफा महत्वपूर्ण है तो वही खबर है। यह नहीं कि महीने भर हमें हवा भी नहीं लगी। दैनिक जागरण में (और दूसरे अखबारों में भी) आज पहले पन्ने पर खबर है, कर्नाटक के बागी विधायक मानने को तैयार नहीं, एक दिन पहले इस्तीफा वापस लेने की बात कहने वाले कांग्रेस के बागी विधायक एमटीबी नागराज पलट गए हैं। उन्होंने कहा है कि इस्तीफा वापस लेने का सवाल ही नहीं।

आइए, अब देखें कि शीर्षक के अलावा, खबर में क्या सूचना है। किस अखबार ने क्या बताया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की पहली लाइन है, मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह से भिड़ंत के बाद महीने भर से ज्यादा समय तक कार्यालय में अनुपस्थित रहने को लेकर बने ससपेंस को खत्म करते हुए पंजाब के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने इतवार को इस्तीफा देने के अपने निर्णय को सार्वजनिक किया। इसे 10 जून को राहुल गांधी को सौंपा गया था। अखबार ने बताया है कि पदभार नहीं संभालने के खिलाफ किसी कार्रवाई से बचने के लिए अब उन्होंने इस्तीफा सार्वजनिक किया है।

नवभारत टाइम्स में पहले पन्ने पर छोटी सी खबर है और विस्तार अंदर के पन्ने पर है। इसमें कहा गया है, पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने 6 जून को सिद्धू से स्थानीय निकाय और पर्यटन एवं सांस्कृतिक मामलों के विभाग वापस ले लिए थे और उन्हें ऊर्जा एवं नवीकरणीय ऊर्जा विभाग का प्रभार सौंपा था। कैबिनेट में फेरबदल के दो दिन बाद 8 जून को सरकार के महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में तेजी लाने के लिए मुख्यमंत्री द्वारा गठित मंत्रणा समूहों से भी सिद्धू को बाहर रखा गया था। ... कांग्रेस नेता अहमद पटेल को सिद्धू और सिंह के बीच समस्याएं सुलझाने की जिम्मेदारी दी गई थी। सिद्धू ने पिछले महीने दिल्ली की अपनी यात्रा के दौरान पटेल से मुलाकात की थी लेकिन पार्टी ने इसे सद्भावना मुलाकात करार दिया था।

अमर उजाला में पहले पन्ने पर तो छोटी सी खबर है, अंदर तीन कॉलम की खबर का शीर्षक है, "सिद्धू का कैप्टन की टीम से इस्तीफा। उपशीर्षक है, ड्रामा या हकीकत : राहुल को 10 जून को भेजा, सीएम को आज तक नहीं मिला।" इसी खबर में अंदर लिखा है, एक अन्य ट्वीट में सिद्धू ने लिखा, वह पंजाब के सीएम को भी जल्द अपना त्यागपत्र भेज रहे हैं। इसके बावजूद अखबार को सीएम के मीडिया सलाहकार ने बताया और अखबार ने हमें बताया है, "सीएमओ को अभी तक इस्तीफा नहीं मिला है।" इसी खबर में जब यह लिखा है कि सिद्धू ने कहा कि वे जल्द ही सीएम को अपना इस्तीफा भेजेंगे तो अखबार को साफ-साफ लिखना चाहिए कि सिद्धू नाटक कर रहे हैं पर वह भी नहीं है। हालांकि, ट्वीटर पर क्या हुआ यह बताने के बहाने नभाटा ने यह सब जरूर बताया है। राजस्थान पत्रिका में यह खबर सिगल कॉलम में है

दैनिक जागरण ने लिखा है, "पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा विभाग में बदलाव से नाराज नवजोत सिंह सिद्धू ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने इस्तीफा 10 जून को राहुल गांधी को सौंपा था, लेकिन इसे 34 दिन बाद रविवार को सार्वजनिक किया। इस्तीफा भी राहुल को संबोधित है, जो सरकारी स्तर पर कोई मायने नहीं रखता है। हालांकि बाद में सिद्धू ने पुन: ट्वीट कर कहा कि वह अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को भी भेज देंगे, लेकिन देर शाम तक उनका इस्तीफा मुख्यमंत्री के पास नहीं पहुंचा था।" विडंबना यह है कि इसके बावजूद इसी इस्तीफे की खबर लगभग सभी अखबारों में पहले पन्ने पर है, 34 दिन बाद भी। और 34 दिन तक इस्तीफे की खबर नहीं पाने वाले अखबारों को मुख्यमंत्री कार्यालय ने कल ही बता दिया कि इस्तीफा भेजने के लिए कह कर भी सिद्धू ने मुख्यमंत्री कार्यालय को इस्तीफा नहीं भेजा और किसी अखबार ने सिद्धू से कोई बात नहीं की। या नहीं लिखा है कि बात करने की कोशिश नाकाम रही।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)

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