बिहार में मात्र 500 रूपये की ‘दिहाड़ी’ पर कोरोना से जंग लड़ रहे एमबीबीएस इंटर्न

Written by sabrang india | Published on: May 14, 2020
पटना। बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का आलम देखिए तो कोरोना जैसी महामारी में भी फ्रंटलाइन पर काम कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों को समय पर पैसा नहीं दिया जा रहा है। इसके अलावा कोरोना के खिलाफ लड़ाई में साथ दे रहे एमबीबीएस इंटर्न को रोज के हिसाब से केवल पांच सौ रुपये दिए जा रहा है। दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के इंटर्न मनोज सिंह ने बताया कि लोन लेकर पढ़ाई की, सोचा था इंटर्नशिप में पैसे मिलेंगे तो कुछ पैसे लोन के चुकेंगे। लेकिन डॉक्टर कहलाने के बावजूद हम मेडिकल इंटर्न को सिर्फ 500 रुपए रोज के हिसाब से मिलता है। मतलब 15 हजार रुपए महीना, लेकिन ज्वाइन किए दो महीना हो गया अब तक पैसा नहीं मिला।



मनोज की तरह ही बिहार के करीब 800 MBBS इंटर्न को इतना ही स्टाइपेंड मिलते हैं। बिहार में हर तीन साल पर डॉक्टरों के स्टाइपेंड में बढ़ोतरी होने का सरकारी बात कही गई थी। लेकिन आखिरी बार साल 2015 में स्टाइपेंड बढ़ाया गया था।

द क्विंट हिंदी की रिपोर्ट के मुताबिक, अब डॉक्टरों के एक एसोसिएशन ने बिहार सरकार से अपने वादे पूरे करने को लेकर चिट्ठी लिखी है। यूनियन रेसिडेंट एंड डॉक्टर्स एसोसिएशन इंडिया के अध्यक्ष और पटना एम्स में काम कर रहे डॉक्टर विनय बताते हैं, "डॉक्टरों पर फूल, मान ,सम्मान और कोरोना वॉरियर्स कहना अच्छी बात है, लेकिन उन वॉरियर्स के लिए स्टाइंपेंड क्यों रोककर रखा गया है? हमने जूनियर डॉक्टर से लेकर इंटर्न के स्टाइपेंड में बढ़ोतरी की मांग करते हुए सीएम नीतीश कुमार से लेकर हेल्थ मिनिस्टर मंगल पांडे को भी चिट्ठी लिखी है। लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। 5 साल से एक ही स्टाइपेंड पर डॉक्टर काम कर रहे हैं।"

बिहार सरकार के अंडर 9 मेडिकल कॉलेज हैं, और सीनियर रेजिडेंट, जूनियर रेजिडेंट और इंटर्न को मिलाकर करीब 3000 डॉक्टर हैं। इससे पहले साल 2019 में भी स्टाइपेंड बढ़ाने की मांग को लेकर जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर गए थे। तब उन्हें आश्वासन मिला था कि उनकी मांग पर जल्द कार्रवाई होगी।

डीएमसीएच के ही एक और इंटर्न डॉक्टर सौरव बताते हैं कि कैसे बिना कोरोना की परवाह किए उनके साथी और वो फ्रंट पर आकर काम कर रहे हैं। सौरव कहते हैं, “मोर्चे पर सबसे आगे तैनात होते हैं, लेकिन सुरक्षा कुछ नहीं।”

“जब कोई मरीज इमरजेंसी वॉर्ड में आता है तो सबसे पहले हम इंटर्न या जूनियर डॉक्टर उसे देखते हैं, चाहे कोरोना का टाइम हो या आम दिन। हफ्ते में कई दिन 16-16 घंटे की ड्यूटी भी होती है, लेकिन स्टाइपेंड के नाम पर 15 हजार रुपए महीना मिलता है।”

डॉक्टर विनय बताते हैं कि बिहार सरकार मेडिकल पीजी स्टूडेंट्स के लिए स्टाइपेंड 50,000 रुपये, 55,000 रुपये और 60,000 रुपये देती है। जबकि बाकी जगह 80 से एक लाख रुपया मिलता है। कोरोना से जंग में हम लोग पूरी शिद्दत से काम कर रहें हैं, कोई भी डॉक्टर पीछे नहीं हट रहा है।

बता दें कि बिहार में डॉक्टर और मरीज का अनुपात का बुरा हाल है। इंडियन काउंसिन ऑफ मेडिकल रिसर्च के नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 के मुताबिक बिहार में 43,000 लोगों पर एक एलोपैथिक डॉक्टर है। 

डीएमसीएच के ही इंटर्न डॉक्टर मनोज कहते हैं, “बिहार में डॉक्टर कम हैं, हम सब इस कोरोना की महामारी के वक्त में काम कर रहे हैं, हमें भले ही पैसा नहीं मिला है फिर भी हम काम नहीं छोड़ सकते हैं, क्योंकि हम मरीज को छोड़ नहीं सकते हैं। हमें स्टाइपेंड सिर्फ 15 हजार रुपया मिलता है, जिसमें से 5 हजार तो खाने में ही खर्चा हो जाता है, फिर कपड़ा और बाकी जरूरत। इतने साल से घर वालों ने पढ़ाया, उन्हें आर्थिक रूप से सहयोग नहीं दे पाता हूं वो अलग लेकिन आगे की पढ़ाई है। अभी एक साल इंटर्नशिप फिर पीजी की तैयारी। डॉक्टर की दुनिया बाहर से बहुत हसीन लगती है लेकिन सच्चाई हम जैसे मिडिल क्लास से आने वाले लोग ही जानते हैं।”

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