राष्ट्रवाद बनाम राष्ट्रद्रोह! बड़ी करामाती पुड़िया है. तुरंत काम करती है. अच्छे-अच्छों को अपने आगोश में ले लेती है. असर भी गजब है. दिमाग बंद हो जाता है और जबान-हाथ-पैर खूब चलने लगते हैं. सींकिया लोगों में भी ताकत ला देती है. मर्दानगी का शर्तिया नुस्खा है. यही नहीं, वक्त पड़ने पर कुछ स्त्रियां भी इसे आजमा कर मर्दाना बन जाती हैं. यकीन न हो तो दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज का वाकया याद कर लें. पिछले दिनों वहां एक कार्यक्रम का बहाना बना कर खूब हंगामा हुआ. हिंसा हुई. ये सब करनेवाले अपने को ‘प्रखर राष्ट्रवादी’ मानते हैं. वे ‘चरित्रवान स्टूडेंट’ हैं. इसलिए, उन्होंने साथी स्टूडेंटों के साथ अपने टीचरों को भी नहीं बख्शा.
इसी हिंसक माहौल के बीच एक लड़की ने चार लाइन लिखीं- ‘मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट हूं. मैं एबीवीपी से नहीं डरती हूं. मैं अकेली नहीं हूं. भारत का हर स्टूडेंट मेरे साथ है.’ सोशल मीडिया पर ‘#स्टूडेंटअगेंस्टएबीवीपी’ के साथ वह डीयू बचाओ अभियान में शामिल हुई. महज चार लाइन लिखी थी, मगर इसके बाद इस लड़की के साथ जहरीली मर्दानगी से लबरेज ‘प्रखर राष्ट्रवादी’ जो सब कह और कर सकते थे, सब कहा और किया. बलात्कार करने और मारने की धमकी दी. बलात्कार को जायज ठहरानेवाले भी निकल आये. मगर अभियान नहीं रुका. लड़की के दोस्त बढ़ते गये. लड़कियां बेखौफ आगे आयीं.
जब यह दांव काम नहीं आया, तब उसे राष्ट्रद्रोही साबित करने की मुहिम शुरू हो गयी. उसका एक पुराना वीडियो निकाला गया. वीडियो में कई छोटे-छोटे हिस्से हैं. उसे राष्ट्र विरोधी साबित करने के लिए उसमें से एक हिस्सा छांटा गया. उसे घुमाया जाने लगा. अब तो बड़े-बड़े सुलतान मैदान में उसे गाली देने के लिए जुट गये. राष्ट्रवाद की पुड़िया करामाती निकली!
आखिर वह है कौन?
वह गुरमेहर कौर है पंजाब की. दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कॉलेज की स्टूडेंट है. उसके सैनिक पिता 1999 में कश्मीर में शहीद हो गये थे. उसकी जिंदगी में मां की अहम भूमिका रही. बचपन में वह पाकिस्तान और मुसलमान से नफरत करती थी. नफरत से वह हिंसक भी हुई, मगर मां के समझाने पर उसे जंग और जंग के असर समझ में आये. अब वह जंग से नफरत करती है. अमन की पैरोकार है. फिर उसके साथ ऐसा सुलूक क्यों?
वह एक लड़की है.
एक लड़की ‘प्रखर राष्ट्रवाद’ के प्रतिनिधि स्टूडेंट संगठन को चुनौती दे रही है, यही बात उन्हें नागवार गुजरी. उसके बारे में एक मंत्री ने कहा, किसी ने उसका दिमाग प्रदूषित कर दिया है. तो किसी साहेब ने लिखा, बेचारी बच्ची है. उसका इस्तेमाल हो रहा है.
यानी ‘प्रखर राष्ट्रवादियों’ का मानना है कि स्त्री के पास दिमाग नहीं होता है. वह सोच नहीं सकती है. वह बोल नहीं सकती है. वह अपने दिल की बात नहीं कर सकती है. अगर किसी ने सोचने-बोलने और दिल की बात कहने की कोशिश की, तो उसे चुप करा दिया जाना चाहिए. चुप कराने का मजबूत हथियार है- बलात्कार. ऐसा नहीं है कि ‘प्रखर राष्ट्रवादियों’ ने किसी लड़की को पहली बार बलात्कार करने की धमकी दी है. वह थोड़ी डरी भी, लेकिन उस जैसी सैकड़ों लड़कियों ने इसके बाद वही लिखा, जो गुरमेहर ने लिखा था. यानी लड़कियां डरी नहीं.
यह जो मर्दानगी है, जहर बुझी है. यह स्त्री को सिर्फ जीते जानेवाले शरीर के रूप में ही देख पाती है. वैसे भी बलात्कार विजेताओं का हथियार रहा है. यह मर्दानगी साबित करने का जरिया भी है. साहित्यकार-पत्रकार रघुवीर सहाय ने अरसे पहले लिखा था- ‘स्त्री की देह उसका देश है.’ बलात्कारी मर्दानगी इस देश पर हमला करके उस पर कब्जा करना चाहती है. दुश्मन देश की तरह, स्त्री-देह भी दुश्मन देह हो जाती है. फिर तो जैसे उसके साथ हमें कुछ भी करने का हक मिल जाता है. चाहे वह राष्ट्र का मामला हो या धर्म या जाति का... सब जगह यह इस्तेमाल होता है.
जहर बुझी मर्दानगी को लगता है कि उसके ही विचार सबसे अच्छे हैं. वह अपने विचार से अलग राय बर्दाश्त करने की सलाहियत नहीं रखती है. इसलिए वह ताकत, हिंसा, बरजोरी, नफरत, गैरबराबरी पर फलती-फूलती है. उसे अमन पसंद नहीं है. क्या गुरमेहर के मामले में यह सब होता नहीं दिखता है? इसके बरअक्स, अमन की पैरोकार गुरमेहर का जवाब है-
- रेप की धमकी देना और पथराव? यह मेरा राष्ट्रवाद नहीं है.
- नफरत से आजादी. बोलने की आजादी. अपनी राय रखने की आजादी. सीखने की आजादी. यही मेरा राष्ट्रवाद है.
- जो सत्ता में हैं, वे नहीं तय करेंगे कि देशभक्ति क्या है. राष्ट्रवाद ऐसी भावना है जो दिल के अंदर से आती है. यह देश से प्यार है. देश के लोगों से प्यार है.
चरित्र निर्माण का दावा करनेवाले ‘प्रखर राष्ट्रवादियों’ का एक और मजबूत हथियार है- ‘चरित्र हनन’. जब गुरमेहर के खिलाफ दांव खाली जा रहे थे, तो एक दूसरा पैंतरा शुरू हुआ. स्त्री को चुप कराने का नफरती मर्दानगी का यह भी पुराना पैंतरा है. दिमागदार लड़की को ‘बुरी लड़की’ साबित करो, ताकि उसके हक में बात करने से पहले कोई भी ठिठक जाये.
अचानक एक वीडियो नमूदार हुआ, जिसमें एक लड़की चलती कार में गाने के धुन पर झूमती दिख रही है. दो-तीन दिन यह वीडियो खूब घूमा. जांच-पड़ताल में पता चला कि यह भी ‘प्रखर राष्ट्रवादियों’ के पिछले कई वीडियो की तरह झूठ का प्रचार है. वह लड़की गुरमेहर नहीं है. मगर सवाल तो इससे बड़ा है- नाचती-गाती-मस्ती करती आजाद लड़कियां इन्हें नापसंद क्यों हैं?
अगर अब इन लोगों के मुताबिक ही ‘राष्ट्र’ बनाना है, तो हम जरा सोचें कि वह कैसा होगा? नफरत, हिंसा, ताकत, जंग, गैरबराबरियों से भरा एकरंगा राष्ट्र किन्हें चाहिए?
इस एकरंगे राष्ट्र के चाहनेवालों की राह में सोचने और बोलनेवाली स्त्रियों की बड़ी जमात चुपचाप घर बैठने को राजी नहीं है.
इसलिए हिंसक और नफरती मर्दानगी के विचार के खिलाफ वे आज 10 मार्च को नागपुर में सावित्री बाई फुले की 120वीं बरसी पर देशभर से जुट रही हैं. वैसे, हम मर्दों को भी सोचना चाहिए कि हम किस ओर हैं. क्या हम जहर बुझी मर्दानगी के साथ जहरीला बन कर जीना चाहते हैं?
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है
(प्रभात खबर के सौजन्य से)
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