बिलक़ीस के गुनहगारों की रिहाई के विरोध में बनारस में मार्च व हस्ताक्षर अभियान, मुंबई में प्रदर्शन

Written by Sabrangindia Staff | Published on: August 22, 2022
रविवार, 21 अगस्त को बनारस के बीएचयू गेट और मुंबई के निहाल कॉर्नर, मीरा रोड (पूर्व) पर बिलक़ीस बानो के समर्थन में प्रदर्शन किया गया। बनारस में हस्ताक्षर अभियान चलाकर दोषियों की रिहाई का फैसला वापस लेने की मांग की गई।



वाराणसी: बीएचयू (बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी) गेट पर गुजरात दंगा प्रभावित गैंगरेप पीड़िता बिलक़ीस बानो के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान आयोजित हुआ। यह आयोजन जॉइंट ऐक्शन कमेटी बीएचयू और दखल संगठन के नेतृत्व में हुआ। बीएचयू गेट से लंका रविदास चौराहे तक मार्च निकालकर पर्चे बांटे गए। इसके अलावा मुंबई के निहाल कॉर्नर, मीरा रोड (पूर्व) में बिलकीस बानो मामले का फैसला वापस लेने और सामाजिक कार्यकर्ता व पत्रकार तीस्ता सेतलवाड़ की रिहाई सुनिश्चित करने की मांग की गई। 

बता दें कि 27 फरवरी 2002 को गुजरात में साबरमती ट्रेन में आगजनी के बाद दंगे भड़क उठे थे। पूरा गुजरात साम्प्रदायिक दंगे की चपेट में आ गया था। पुलिस और अन्य सरकारी मशीनरी कुछ कर नहीं पा रही थीं। 3 मार्च को बिलक़ीस के घर हथियार से लैस दंगाई घुस गए थे, जिन्होंने 5 माह की गर्भवती बिलक़ीस के साथ सामूहिक बलात्कार किया। तीन साल की बच्ची का सर दीवार पर पटककर उसकी हत्या कर दी गयी। परिवार की अन्य महिला सदस्यों के साथ भी बलात्कार किया गया और परिवार के 17 सदस्यों में से 7 की हत्या की गई।

पुलिस ने केस दर्ज करने में काफी टालमटोल की। बाद में दबाव बढ़ने पर केस सीबीआई को दिया गया। सीबीआई ने अपनी जांच में पुलिस को केस खराब करने वाले के रूप में लिखा है। मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद 2008 में सभी 11 आरोपियों को उम्र कैद की सजा हुई। लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से इसी 15 अगस्त को इन बर्बर पाश्विक प्रवृत्ति के लोगों को जेल से छोड़ दिया गया।




बनारस में प्रदर्शन की तस्वीरें

हस्ताक्षर अभियान स्थल पर हुई सभा में डॉ. मुनिजा रफीक खान ने कहा कि आज जब हमारा भारत देश अपनी आज़ादी के 76वें साल का जश्न मना रहा है। मौजूदा सरकार आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रही है, करोड़ों रूपए के मीडिया कैंपेन के जरिए इसे एक बड़ा आयोजन बना रही है, पर इसके विपरीत इन सबके बीच राष्ट्रीय आंदोलन और स्वतंत्रता के जिन मूल्यों के खातिर हमारे पूर्वजों ने अपनी कुर्बानी दी थी, वो नष्ट हो रही हैं। तीस्ता सेतलवाड़ और उन जैसे अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं को भाजपा सरकार झूठे और फर्जी आरोपों में जेल में डाल रही है वहीं सामूहिक बलात्कार और हत्या के मुजरिमों को रिहा कर रही है।

मैत्री ने अपने सम्बोधन में कहा कि एक तरफ 15 अगस्त 2022 को लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री ने नारी सम्मान एवं नारी उत्थान की बात कही थी और उसी दिन दूसरी तरफ़, गुजरात की भाजपा सरकार ने बिलक़ीस बानो के 11 बलात्कारियों एवं हत्यारों को रिहा कर दिया। अपराधियों को प्री मेच्योर रिलीज कमिटी द्वारा रिहा किया गया, जिसमें स्थानीय भाजपा विधायक, नगरसेवक और आरएसएस के कार्यकर्ता शामिल थे। इन अपराधियों को भाजपा, आरएसएस और उसकी विचारधारा से जुड़े संगठनों द्वारा माला पहनाकर स्वागत किया गया।

प्रो. आरिफ ने कहा कि बिलक़ीस बानो के गुनहगारों को रिहा कर दिया जाना देश की न्याय व्यवस्था पर एक बड़ा सवालिया निशान है। क्या इस देश में किसी समुदाय विशेष का होना अपराध है? क्या किसी मुजरिम का किसी विशेष समुदाय से होने पर उसके गुनाह माफ़ हो जाते हैं। ऐसी घटनाएं हमारी समृद्ध विरासत पर धब्बा हैं। देश में हर दिन समानता, न्याय और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को कुचला जा रहा है और सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि यह सब सरकार के संरक्षण में किया जा रहा है।

डॉ. इंदु पांडेय ने बताया कि बिलक़ीस बानो मामले में सरकार का कदम उसके बहुसंख्यकवादी एजेंडे के अनुरूप है और इसीलिए भाजपा नेताओं द्वारा इसकी प्रशंसा की जा रही है। साम्प्रदायिक नफरत भारत के लिए एक गंभीर चुनौती है। हम देख रहे हैं कि कैसे सरकार द्वारा संस्थानों का इस्तेमाल भारत के लोगों की सेवा करने के बजाय अपने सांप्रदायिक एजेंडे को स्थापित करने और फैलाने के लिए किया जा रहा है। हम सांप्रदायिक नफरत, हिंसा और जनविरोधी नीतियों की राजनीति को खारिज करते हैं। हम बिलकीस बानो के लिए न्याय चाहते हैं और सभी 11 दोषियों की रिहाई का फैसला वापस लेने की मांग करते हैं।

फजलुर्रहमान अंसारी ने कहा कि पिछले हफ्ते की दो घटनाओं ने भले हमारे झंडे को ना झुकाया हो लेकिन हमारे सर को शर्म से ज़रूर झुका दिया है। राजस्थान जहां एक दलित छात्र को एक टीचर द्वारा सिर्फ इस वजह से पीट पीट कर हत्या कर दी गई कि उसने उस मटके से पानी पी लिया जो ऊंची जाति वालों के लिए था।

दूसरी घटना गुजरात में बिलकिस बानो के सामूहिक बलात्कार और 14 लोगों की हत्याओं के मुजरिमों की भाजपा सरकार द्वारा रिहा करना। इन सब वजहों से हमारा सर शर्म से झुक गया है।

ये उसी भारत देश में हो रहा है जहां कुछ साल पहले दिल्ली में निर्भया गैंगरेप केस में एक बड़ा आंदोलन देश भर में चला इस वजह से कई नए कानून बनाए गए, सांसद के अंदर बाहर महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रदर्शन हो रहे थे। क्या फर्क है बिलकीस बानो और निर्भया केस के गुनहगारों में? निर्भया केस के मुजरिमों को फांसी दी गई थी और बिलकीस बानो केस के मुजरिमों को रिहा किया जा रहा है। इससे भी शर्मनाक बात और क्या हो सकती है। अगर भाजपा की सरकार अपना राज धर्म भूल चुकी है तो अदालतों को तो अपने कानून और इंसाफ को याद रखना चाहिए।

हस्ताक्षर अभियान और मार्च में प्रमुख रुप से नीति, एकता, मैत्री, विजेता, वंदना, चंदा, प्रतिमा, साक्षी, आर्शिया, मृदुला मंगलम, उमाश्री, अनुज, इंद्रजीत राज अभिषेक, रामजनम, अर्जुन, शिव, बीना, शिवांगी, शबनम, काजल, दीक्षा, प्रिया, लंका गुमटी व्यवसायी कल्याण समिति के अध्यक्ष चिंतामणि सेठ, रवि शेखर, धनञ्जय, साहिल आदि सैकड़ों की संख्या में छात्र युवा महिलाएं और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल रहे।




मीरा रोड मुंबई की तस्वीरें

साकेत गोखले की आरटीआई
आरटीआई कार्यकर्ता व राजनेता साकेत गोखले ने भी इस मामले को लेकर सूचना के अधिकार का प्रयोग किया है। साकेत गोखले ने फेसबुक पोस्ट के जरिए यह जानकारी दी है। उऩ्होंने लिखा है, ''बिलकीस बानो मामले के दोषियों की रिहाई के लिए, गुजरात सरकार को *आवश्यक* था कि वह यू/एस 435 सीआरपीसी की छूट से पहले भारत सरकार की सहमति मांगे क्योंकि यह एक सीबीआई जांच का मामला था। गृह मंत्रालय से जवाब मांगा है कि क्या मोदी सरकार ने उनकी रिहाई की अनुमति दी है। सच पता तो चले कि कैसे मोदी का "महिला अधिकारों" पर स्वतंत्रता भाषण हमेशा की तरह खोखला था।''

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