वर्धा: लिंचिंग, बलात्कार जैसे मुद्दों पर PM मोदी को पत्र लिखने वाले दलित OBC छात्रों का निलंबन वापस

Written by sabrang india | Published on: October 14, 2019
नागपुर। वर्धा स्थित विश्वविद्यालय के छह छात्रों को परिसर में बिना अनुमति के समारोह आयोजित करने और राजनीतिक नेताओं के खिलाफ मॉब लिंचिंग और बलात्कार जैसे संगीन मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखने पर किया गया निष्कासन रविवार को निरस्त कर दिया गया। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के छात्रों को 9 अक्टूबर को निष्कासित कर दिया गया था, क्योंकि विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने उन पर 21 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए राज्य में आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाया था। छात्रों ने 9 अक्टूबर को विश्वविद्यालय परिसर में गांधी हिल में बसपा संस्थापक कांशी राम की पुण्यतिथि पर एक सभा आयोजित करने की योजना बनाई थी।



उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा अनुमति से इनकार किए जाने के बावजूद वे कार्यक्रम से आगे बढ़ गए थे और बाद में उस रात चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप के बाद उनके निष्कासन के आदेश दिए गए थे। रविवार को अपने आदेश में, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कार्यवाहक रजिस्ट्रार कादर नवाज खान ने कहा कि तकनीकी विसंगतियों और छात्रों को प्राकृतिक न्याय के मद्देनजर निष्कासन रद्द कर दिया गया था। दरअसल सोशल मीडिया पर भी छात्रों के निष्कासन को लेकर विवाद हो गया था। लोगों ने अधिकारियों की लताड़ लगाते हुए कहा था कि ये कदम गलत था।



एक छात्र ने कहा कि 10 अक्टूबर को, निष्कासित किए जाने के एक दिन बाद, छह छात्रों ने पीएम मोदी को एक पत्र पोस्ट किया। छात्रों ने दावा किया था कि विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने उन्हें पीएम को लिखने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, लेकिन आचार संहिता के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं किया था। निष्कासन से छात्रों के समुदाय के साथ-साथ विपक्षी दलों जैसे कांग्रेस में भी भारी आक्रोश पैदा हो गया था जिसने विश्वविद्यालय के अधिकारियों के खिलाफ महाराष्ट्र के मुख्य निर्वाचन अधिकारी से शिकायत की थी। निष्काषित किए गए छात्र दलित और ओबीसी समुदाय से हैं। 

निष्कासन वापसी के पश्चात निष्कासित बहुजन छात्र नेताओं ने बयान जारी कर कहा कि, संघ बनाम संविधान और अन्याय बनाम न्याय की इस लड़ाई में हिंदी विश्वविद्यालय के निष्कासित बहुजन छात्रों की यह जीत संविधान और न्याय की जीत है। महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय प्रशासन ने राष्ट्रव्यापी दबाव में फिलहाल तो हमारा निष्कासन वापस ले लिया है। किंतु विश्वविद्यालय प्रशासन हमें भविष्य में तरह-तरह से प्रताड़ित कर सकता है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। इस लड़ाई में राष्ट्रव्यापी जनसमर्थन ने यह साबित कर दिया है कि देश का बहुमत संविधान, लोकतंत्र व न्याय के पक्ष में है। उन सबों को तहे दिल से शुक्रिया, जिन्होंने हमारी इस लड़ाई में हमारा प्रत्यक्ष-परोक्ष साथ दिया। 

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यह न केवल हिंदी विश्वविद्यालय में छात्रों के लोकतांत्रिक अधिकारों की ही जीत है अपितु यह अन्याय-अत्याचार के खिलाफ इस देश में लड़ी जा रही हर उस लड़ाई की आंशिक विजय है। हम सबों ने आप सभी के साथ मिलकर यह लड़ाई लड़ी है और इस लड़ाई की सफलता का सारा श्रेय आप सभी को ही जाता है। 



जारी बयान में आगे कहा गया है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने हमें असामाजिक तत्व और न जाने क्या-क्या कहा। मीडिया में हमें बदनाम करने की नीयत से झूठी बयानबाजी की। हमारे ही विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों को हमारे खिलाफ खड़ा करने की कोशिश की। उन सभी ने भी हमारी लड़ाई के खिलाफ जमकर प्रोपोगेंडा करने की कोशिश की, किंतु आम जनता की शक्ति के आगे वे कामयाब नहीं हो पाए। बावजूद इसके उन्होंने भी अपने तरीके से इस लड़ाई को मजबूती प्रदान की है। उनके प्रति हमें कोई शिकवा-शिकायत नहीं है। उम्मीद है कि वे जातिगत पूर्वाग्रह से ऊपर उठकर आगे चलकर मॉबलिंचिंग में शामिल होने के बजाय लोकतंत्र, न्याय व संविधान का सम्मान करना सीखेंगे और बेहतर नागरिक बनेंगे। छात्र नेताओं ने हिंदी विश्वविद्यालय के सभी छात्र-छात्राओं और देशभर के छात्र-छात्राओं, बुद्धिजीवियों, राजनीतिक दलों के नेताओं, इलेक्ट्रॉनिक-प्रिंट व वेब मीडिया को आंदोलन का समर्थन करने के लिए आभार व्यक्त किया।

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छात्र नेताओं ने कहा कि हमने जिन मुद्दों पर पीएम मोदी को पत्र लिखा है, उन मुद्दों को हम देश के वर्तमान-भविष्य के लिए बेहद जरूरी मुद्दा मानते हैं और आज भी हम उन मुद्दों पर संघर्ष के लिए प्रतिबद्ध हैं। इन मुद्दों पर हमारी लड़ाई आगे भी जारी रहेगी। हम अपने नायकों को भविष्य में भी याद करते रहेंगे और पीएम-सीएम चाहे कोई भी हो, दमन की परवाह किए बगैर आम जन से संबंधित सवाल पूछते रहेंगे! दलितों-अल्पसंख्यकों के मॉबलिंचिंग से देश का लोकतंत्र खतरे में है। रेलवे-रेलवे स्टेशन, बीपीसीएल, एयरपोर्ट आदि की बिक्री राष्ट्रहित में नहीं है। बैंकों व रिजर्व बैंक की खास्ता हालत पर सरकार को ठोस कदम उठाना ही होगा। कश्मीर के नागरिकों के नागरिक अधिकार मिलने ही चाहिए; बलात्कार व यौन हिंसा की घटनाएं रुकनी ही चाहिए। दलित-आदिवासी नेताओं व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व लेखकों-बुद्धिजीवियों को प्रताड़ित किए जाने को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। इस किस्म के तमाम अन्याय-अत्याचार के खिलाफ देशहित के लिए हम आवाज बुलंद करते रहेंगे! 

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