लॉकडाउन का असर: असम में दिहाड़ी मजदूर ने की आत्महत्या, तीन दिन से भूखा था परिवार

Written by Sabrangindia Staff | Published on: April 6, 2020
कोरोना वायरस भारत में लगातार अपना पांव पसार रहा है। देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 4,000 पार चुक है, वहीं 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इस समय देशव्यापी लॉकडाउन के बीच बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनके सामने चंद दिनों में ही खाने तक का जुगाड़ नहीं हो पा रहा है। असम के गुवाहाटी में ऐसा ही एक मामला सामने आया है जहां के दैनिक मजदूर ने अपने बच्चों को भूखा तड़पते छोड़ आत्महत्या कर ली क्योंकि वह उनके लिए खाने का इंतजाम नहीं कर पा रहा था।  



लॉकडाउन के चलते हजारों मजदूर, निम्न आय वर्ग के लोग और प्रवासी मज़दूर अपने परिवारों के लिए खाना नहीं जुटा पाने की असमर्थता के कारण अत्यधिक अवसाद में हैं। हालांकि बहुत सारे सामाजिक संगठन लोगों को भोजन पहुंचाने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं, सरकारी सहायता का भी ऐलान हुआ है लेकिन निम्न आय वर्ग का एक बड़ा तबका भूख के कगार पर पहुंच रहा है। 

11असम के गोलपारा जिले में अगिया पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में आने वाले अंबारी कोचपारा गाँव के 35 वर्षीय दिहाड़ी मजदूर गोपाल बर्मन के मामले को ही लें। उनकी पत्नी और तीन बच्चे लॉकडाउन से पहले से ही गरीबी से जूझ रहे थे, लेकिन जब भोजन और आवश्यक चीजें भी नहीं जुटा पाए और उनके आय के स्रोत सूख गए, तो बर्मन ने खुद को अपने बच्चों को खिलाने में असमर्थ पाया।

बर्मन का परिवार एक अप्रैल को भोजन जुटाने के लिए बाहर निकला था लेकिन तीन दिन तक कोई इंतजाम नहीं हुआ तो उसकी पत्नी के जोर देकर व्यवस्था करने के लिए कहा इस पर दोनों के बीच बहस हुई तो पत्नी ने कुछ रिश्तेदारों से मदद लेने का फैसला किया। इसके बाद बर्मन बाहर निकल गया लेकिन वापस नहीं लौटा। उऩके नाबालिग बच्चे घर पर अकेले थे क्योंकि दोनों पति पत्नी खाना जुटाने की तलाश में निकले थे। जब माता पिता घर नहीं लौटे तो बच्चों ने पड़ोसियों को सूचित किया जिसके बाद वे उनकी तलाश में निकले। पड़ोसियों ने बर्मन को एक पेड़ पर लटका हुआ पाया।

ग्रामीणों को लगता है कि यह घटना इसलिए हुई, क्योंकि गोपाल बर्मन परिवार के लिए आवश्यक वस्तुएं खरीदने के लिए न्यूनतम राशि भी नहीं कमा सकते थे। स्थानीय व्यवसायी, राधेश्याम नाथ ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "यह एक अलग-थलग घटना नहीं है। बहुत से लोग लंबे समय तक लॉकडाउन के कारण अत्यधिक अवसाद में हैं। यदि सरकार जल्द से जल्द उचित कार्रवाई नहीं करती है तो ऐसी कई घटनाएं हो सकती हैं।"

गोलपारा के CJP वालंटियर मोटिवेटर, ज़ेस्मिन सुल्ताना ने कहा, "हमें बड़ी संख्या में असहाय लोगों से फोन आ रहे हैं, जो भुखमरी का सामना कर रहे हैं। सरकार के प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। अगर स्थिति नहीं बदलती है, तो निकट भविष्य में कई लोग मर जाएंगे। हम अपने सीमित संसाधनों के साथ कुछ लोगों की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सरकार को राहत के उपाय करने चाहिए और कम से कम भुखमरी से मौत को रोकने की कोशिश करनी चाहिए।"

शहरी क्षेत्रों में भी, कई कम आय वाले परिवारों को किराए का भुगतान करने में सक्षम होने की अतिरिक्त चिंता है। मुख्यधारा के मीडिया इस बड़े और बड़े पैमाने पर उपेक्षित वर्ग समाज की स्थिति को संबोधित करने में विफल रहे हैं। हालांकि, CJP जैसे कई संगठन मानवीय आधार पर हाशिए पर खड़े लोगों की मदद कर रहे हैं, सहायता की आवश्यकता वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है और कई लोगों को लगता है कि सरकार या बड़े कॉर्पोरेट दाताओं के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। 

बाकी ख़बरें