छत्तीसगढ़: बदहाल अर्थव्यवस्था, जन सरोकार के मुद्दों को लेकर मोदी सरकार के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

Written by Anuj Shrivastava | Published on: October 18, 2019
देश में फैलती मंदी से निपटने में मोदी सरकार की विफलता, अर्थव्यवस्था की बर्बादी, आम जनता की बदहाली के खिलाफ और रोज़ी रोटी के मुद्दों को उठाते हुए, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में राज्य स्तरीय धरना प्रदर्शन किया गया. इस प्रदर्शन में आमजन की रोजी-रोटी से संबंधित समस्याएं उठाई गईं. इस धरने का आयोजन प्रदेश की तीन वामपंथी पार्टियों माकपा, भाकपा और भाकपा (माले)-लिबरेशन द्वारा किया गया था, जिसमें रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, धमतरी, कोरबा, बिलासपुर सहित पूरे प्रदेश से आए सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया.



इस राज्य स्तरीय धरने में वाम नेताओं ने मोदी सरकार द्वारा देशव्यापी मंदी से निपटने के तौर-तरीकों की आलोचना करते हुए मांग की, कि रोजगार सृजन और सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों के जरिए आम जनता की मदद की जाए, ताकि बाज़ार में उपभोग की वस्तुओं की मांग बने. उन्होंने कहा कि ऐसा करने के बजाय यह सरकार देशी-विदेशी कार्पोरेटों की तिजोरियों को ही बैंकों की क़र्ज़ माफ़ी, सस्ते दरों में ब्याज और बेल-आउट पैकेज के जरिये भर रही है. इससे आम जनता और बदहाल होगी और अर्थव्यवस्था बर्बाद.

एक संयुक्त बयान जारी कर इन वामपंथी पार्टियों ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि उसकी नवउदारवादी नीतियों के कारण देश आर्थिक मंदी की गिरफ्त में फंस चुका है. अविचारपूर्ण नोटबंदी, जीएसटी और एफडीआई के फैसलों के कारण देश में जीडीपी की दर में भारी गिरावट आई है, जिससे उद्योग-धंधे और खेती-किसानी दोनों चौपट हो गए हैं और पिछले ढाई सालों में ही साढ़े चार करोड़ लोग अकल्पनीय ढंग से बेरोजगार हो गए हैं.



वामपंथी पार्टियों के नेताओं ने कहा कि मंदी से निपटने के नाम पर मोदी सरकार ने कॉर्पोरेटों और धनी तबकों को आसान बैंक-ऋण, करों में छूट और बेल-आउट पैकेज का जो डोज़ दिया है, उससे अर्थव्यवस्था में न कोई नया निवेश होने वाला है, न नए रोजगार पैदा होने वाले हैं. यह पूरी कसरत कॉर्पोरेट मुनाफों को बनाये रखने की ही है. इन छूटों के जरिये 13 लाख करोड़ रुपये कॉर्पोरेटों की तिजोरी में पहुंचा दिए गए हैं, जबकि ऑटोमोबाइल्स, कपड़ा, निर्माण, इस्पात, बैंक-बीमा, रेलवे, बीएसएनएल, कोयला व प्रतिरक्षा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार छीनने की मुहिम जारी है. वाम नेताओं का मानना है कि निजीकरण-विनिवेशीकरण की इन नीतियों से बेरोजगारी और आर्थिक असमानता में और वृद्धि होगी और आम जनता के जीवन-स्तर में गिरावट आएगी.

उन्होंने कहा कि सरकारी समितियों ने न्यूनतम मजदूरी 450 रूपये करने की मांग की है और यह सरकार 178 रूपये से ज्यादा देने को तैयार नहीं है. यही कारण है कि विश्व भूख सूचकांक में भारत का स्थान 55वें से गिरकर 102वां हो गया है और आज पूरे विश्व के आधे भूखे और कुपोषित लोगों की संख्या हमारे देश में ही है. रोजगार सृजन उन्होंने सरकारी खाली पदों को भी भरने की मांग की.

वक्ताओं ने कहा कि अर्थव्यवस्था के विकास के आंकड़े भी फर्जी है. आइएमएफ, नोबेल प्राप्त अभिजीत बेनर्जी सहित तमाम अर्थशास्त्री इस बात को कह रहे है. बैंकों का दिवालिया होना, रिज़र्व बैंक की रिज़र्व मनी छिनना, सार्वजनिक क्षेत्रों को बेचना इस बात का सबूत है. उन्होंने कहा कि लाभप्रद भारत पेट्रोलियम को, जो इस सरकार इस सरकार के खजाने में हर साल 7000 करोड़ रूपये जमा करती है, उसे औने-पौने दामों में बेचा जा रहा है. बीएसएनएल को बर्बाद कर दिया गया है. रेलवे को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया जारी है. ऐसी सरकार के हाथों देश सुरक्षित नहीं हो सकता. उन्होंने आरोप लगाया कि समस्याओं से जनता का ध्यान भटकने के लिए ही राष्ट्रवाद और सांप्रदायिकता का उन्माद फैलाया जा रहा है.



उन्होंने कहा कि मंदी की असली जड़ आम जनता की लगातार घटती हुई क्रयशक्ति है, जिसके कारण वह अपनी जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा है और इसके कारण मांग में कमी आ रही है. इस बीमारी का ईलाज केवल आम जनता की क्रयशक्ति को बढ़ाकर ही किया जा सकता है. लेकिन इसके विपरीत इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में पिछले वर्ष की तुलना में पूंजीगत व्यय में एक लाख करोड़ रूपये से ज्यादा की कटौती की गई है।

आम जनता की क्रयशक्ति को बढ़ाने तथा मांग पैदा करने के लिए सरकारी खर्चों में बढ़ोतरी करने, सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा करने, रोजगार पैदा करने, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और खेती-किसानी की हालत सुधारने, किसानों को कर्जमुक्त करने, लागत के डेढ़ गुना मूल्य पर उनकी फसल खरीदने, मनरेगा में 200 दिन काम और 600 रुपये रोजी देने व न्यूनतम वेतन-मजदूरी 18000 रुपये मासिक करने, नौजवानों को बेरोजगारी भत्ता देने, प्रतिरक्षा व कोयला क्षेत्र में 100% विदेशी निवेश का फैसला वापस लेने, छंटनीग्रस्त मजदूरों को आजीविका वेतन देने, वृद्धों व विधवाओं को 3000 रुपया मासिक पेंशन देने आदि मांगों पर 16 अक्टूबर को इस राज्य स्तरीय धरना प्रदर्शन का आयोजन किया गया था.

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