लखीमपुर की घटना पर SC ने स्वत: संज्ञान लेते हुए की सुनवाई, CJI ने पूछा- 'कितनी गिरफ्तारियां हुईं?'

Written by Navnish Kumar | Published on: October 7, 2021
लखीमपुर खीरी की घटना पर सुप्रीम कोर्ट स्वत: संज्ञान लेते हुए, प्रधान न्‍यायाधीश एनवी रमन्ना की बेंच ने गुरुवार को सुनवाई की और रविवार को हुई हिंसा पर यूपी सरकार से स्टेटस रिपोर्ट मांगी। कोर्ट ने सरकार से कल तक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। इस पर कल फिर सुनवाई होगी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा कि उसने मामले में अभी तक कितनी गिरफ्तारियां हुई हैं, कितने आरोपी हैं। मामले में चिट्ठी डालने वाले वकील शिवकुमार त्रिपाठी ने कोर्ट में कहा कि 'लखीमपुर खीरी घटना में कई किसान मारे गए हैं। ये प्रशासन की लापरवाही से हुआ है। अदालत इस मामले में उचित कार्यवाही करे। मैं उम्मीद करता हूं कि कोर्ट हमारे लेटर को गंभीरता से लेगी और दोषियों के खिलाफ एक्शन लेगी। ये मानवाधिकार उल्लंघन का मामला है।' इस पर सीजेआई ने यूपी सरकार से जवाब मांगा। 



यूपी सरकार ने कोर्ट से कहा कि 'घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। एसआईटी का गठन किया गया है। एफआईआर दर्ज की है। हम रिपोर्ट दाखिल कर सकते हैं। इसके बाद कोर्ट ने उसे कल तक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। यूपी सरकार के बयानों पर सीजेआई ने कहा कि 'लेकिन आरोप ये हैं कि आप जांच सही से नहीं कर रहे। यूपी सरकार ने इस पर कहा कि हमने इस मामले में न्यायिक आयोग का गठन भी किया है। कल मामले की सुनवाई रखी जाए। हम सारे जवाब देने की कोशिश करेंगे।

इससे पूर्व सुनवाई शुरू होते ही सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री को मामले को जनहित याचिका के तौर पर दर्ज करने को कहा। चीफ जस्टिस ने कहा कि 'हमने इस मामले को वकील शिव कुमार त्रिपाठी और सीएस पांडा की चिट्ठी पर दर्ज किया है। हमने इसे जनहित याचिका के तौर पर दर्ज करने को कहा था लेकिन कुछ कंफ्यूजन से ये स्वतः संज्ञान के तौर पर दर्ज हो गया। कोर्ट ने दोनों वकीलों को पेश होने को कहा है। सीजेआई के अलावा जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली भी बेंच में शामिल हैं। एनडीटीवी के अनुसार, केस का टाइटल 'लखीमपुर खीरी में हिंसा के चलते जान का नुकसान' है। मीडिया रिपोर्टस और दो वकीलों की चिट्ठी पर सुप्रीम कोर्ट ने यह संज्ञान लिया है। 

गौरतलब है कि लखीमपुर खीरी में रविवार को हुई हिंसा में चार किसानों समेत 8 लोगों की मौत हो गई थी। हजारों की संख्या में किसान यूपी के लखीमपुर खीरी जिले में केंद्रीय मंत्रियों का विरोध करने के लिए जमा हुए थे। किसानों ने केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के खिलाफ लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में रविवार को हुई हिंसा को लेकर केस दर्ज कराया है। किसान नेताओं ने आरोप लगाया था कि मंत्री के बेटे के काफिले में शामिल वाहनों ने प्रदर्शन कर रहे किसानों को कुचला। इसके बाद हिंसा भड़क उठी और 4 किसानों के अलावा काफिले में शामिल चार अन्य लोग भी मारे गए थे। यूपी पुलिस ने लखीमपुर हिंसा मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा समेत 14 के खिलाफ धारा 302, 120बी आदि धाराओं में केस दर्ज किया है। 

केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा ने मंगलवार को स्‍वीकार किया था कि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में जिस कार ने किसानों को कुचला था वह उनकी थी लेकिन वे या उनका बेटा (आशीष मिश्रा) घटना के समय मौजूद नहीं थे। अजय मिश्रा ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा था, 'पहले दिन से ही हम इस बारे में स्‍पष्‍ट हैं कि वह थार (वाहन) हमारी है, यह हमारे नाम पर दर्ज है। यह वाहन, कुछ कार्यकर्ताओं को लेकर किसी को लेने के लिए जा रहा था। मेरा बेटा दूसरी जगह पर था। सुबह 11 बजे से शाम तक, वह एक अन्‍य इवेंट को आयोजित कर रहा था. मेरा बेटा (आशीष मिश्रा) वहां मौजूद था, वहां हजारों की संख्‍या में लोग थे। इसके फोटो और वीडियो भी हैं। यदि आप उसका कॉल रिकॉर्ड और CDR, लोकेशन जानना चाहते हैं.... तो सब चेक कर सकते हैं। हजारों लोग यह हलफनामा देने को तैयार हैं कि आशीष मिश्रा वहां (दूसरे आयोजन में) था। खास है कि दो वकीलों शिव कुमार त्रिपाठी और सीएस पांडा ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर लखीमपुर घटना का संज्ञान लेने की अपील की थी। कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने भी सुप्रीम कोर्ट के मौन पर सवाल उठाया था। 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं कपिल सिब्बल और विवेक तन्खा ने लखीमपुर हिंसा तथा प्रियंका गांधी को हिरासत में लिए जाने को लेकर भी बुधवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर सवाल किया कि प्रियंका की ‘गैरकानूनी गिरफ्तारी’ क्यों की गई तथा गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे के खिलाफ अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? उन्होंने यह भी कहा कि अगर मुख्यमंत्री की ओर से उनके सवालों का जवाब नहीं दिया जाता तो वे उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ कानूनी कदम उठा सकते हैं। दोनों नेताओं के मुताबिक, उन्होंने इस पत्र की एक प्रति प्रधानमंत्री कार्यालय को भी भेजी है। 

कांग्रेस के ‘जी23’ समूह के सदस्य दोनों नेताओं ने पत्र में सवाल किया, ‘प्रियंका गांधी को हिरासत में क्यों लिया गया, जबकि उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 का कोई उल्लंघन नहीं किया था? क्या इसका कोई संकेत था कि वह किसी अपराध को अंजाम देने जा रही हैं? अगर नहीं था तो फिर उन्हें दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 151 के तहत गिरफ्तार क्यों किया गया? उन्होंने यह भी पूछा, ‘धारा 151 के तहत गिरफ्तारी के 24 घंटे के बाद भी क्यों हिरासत में रखा गया? उन्हें उनके वकीलों से मिलने क्यों नहीं दिया गया? किन प्रावधानों के तहत मुख्यमंत्रियों, प्रदेश कांग्रेस कमेटियों के अध्यक्षों और सांसदों को लखनऊ हवाई अड्डे पर रोका गया?’

सिब्बल और तन्खा ने योगी से सवाल किया, ‘प्रियंका गांधी को गैरकानूनी ढंग से गिरफ्तार किये जाने के बाद प्रशासन लखीमपुर खीरी की घटना के उन षड्यंत्रकारियों को लेकर आंखें क्यों मूंदे रखी जिनमें केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का बेटा भी शामिल है? इन हालात में गृह राज्य मंत्री अपने पद पर क्यों बने हुए हैं? प्रधानमंत्री ने उनसे इस्तीफा क्यों नहीं मांगा? उन्होंने जोर देकर कहा, ‘हम इन सवालों के जवाब चाहते हैं। ऐसा नहीं होने पर हम उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ कानूनी कदम उठाने का अधिकार भी रखते हैं क्योंकि इसने न सिर्फ संवैधानिक मूल्यों को कमतर किया है बल्कि कानूनों का उल्लंघन भी किया है।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन लोकुर ने भी प्रियंका गांधी की गिरफ्तारी को 'गैरकानूनी और 'असंवैधानिक' बताया। जस्टिस लोकुर ने प्रशासन द्वारा धारा 144 लगाकर पीड़ित परिवारों से लोगों को मिलने से रोकने को भी ग़लत बताया। उन्होंने कहा कि किसी की मृत्यु हो गई है और यदि कोई उसके परिवार के लोगों से मिल कर सहानुभूति प्रकट करना चाहता है तो ग़लत क्या है? इसी तरह अभियुक्त की गिरफ़्तारी न होने पर भी उन्होंने चिंता जतलाई कि किसी हत्या के मामले में सबसे पहला काम अभियुक्त की गिरफ्तारी होता है। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि ये लोग अभी भी छुट्टा घूम रहे हैं। जस्टिस लोकुर ने जो चिंता जाहिर की, कमोबेश वही बातें विपक्ष भी उठा रहा है।

सवाल ये है कि इस हत्याकांड के आरोपियों पर कानूनी कार्रवाई कब होगी। क्या रसूखदार आरोपी अगर यूं ही आजाद घूमते रहे तो इस बात की आशंका नहीं है कि वे सबूतों को मिटाने की कोशिश कर सकते हैं या भूमिगत हो सकते हैं। एक बार ऐसा हो गया तो फिर पुलिस को भी उन्हें पकड़ न पाने का बहाना रहेगा। कुछ दिनों तक इस मामले की चर्चा रहेगी, फिर जनता को किसी और मुद्दे पर उलझा दिया जाएगा। और इस तरह पीड़ितों को इंसाफ मिलने की उम्मीदें क्षीण होती जाएंगी। अगर ऐसा हुआ तो इसमें न केवल पीड़ितों का नुकसान होगा, बल्कि लोकतंत्र भी घाटे में रहेगा। इस देश में पहले ही ऐसा माहौल बन चुका है कि कानून व्यवस्था सत्ता और शक्तिसंपन्न लोगों के लिए ही है। शेष जनता डरते हुए ही जीती है, कभी शासन के आतंक से, कभी कानून के आतंक से, कभी अराजक तत्वों के आतंक से।

लखीमपुर खीरी की घटना में गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा और उनके बेटे पर लगातार उंगलियां उठ रही हैं। इसके बाद कम के कम नैतिकता की खातिर ही मोदी सरकार को उनसे इस्तीफा ले लेना चाहिए था। लेकिन मंत्री अपने पद पर ही हैं, बल्कि उनकी गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात भी हुई है। भाजपा उन्हें बर्खास्त न करके शायद ब्राह्मण वोटबैंक को बचा रही है। लेकिन जरा से चुनावी लाभ में कहीं बड़ा राजनैतिक नुकसान भाजपा को न हो जाए, ये देखना चाहिए। 

इस घटना के जो वीडियो सामने आए हैं, उसमें नजर आ रहा है कि जानबूझकर किसानों पर गाड़ी चढ़ाई गई, फिर भी आरोपी अब तक पहचाने नहीं गए हैं। अब लखीमपुर में किसानों को रौंदने वाले उन तीन कारों के काफिले में शामिल मंत्री के बेटे के समर्थक और प्रत्यक्षदर्शी का एक वीडियो सामने आया है। वीडियो में एक पुलिसकर्मी उससे पूछताछ कर रहा है। जिसमें समर्थक स्वीकार करता है कि जिस गाड़ी ने किसानों को रौंदा था उसमें केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी का बेटा आशीष मिश्रा सवार था। हालांकि मंत्री पिता और उनके बेटे ने इस बात से इंकार किया है कि आशीष मिश्रा मौके पर मौजूद था। सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहे ये वीडियो सही हैं या इनमें छेड़छाड़ की गई है, इसके बारे में पुलिस को जल्द सूचित करना चाहिए क्योंकि इसमें जितनी देर होगी, भाजपा उतना ज्यादा घाटे में रहेगी।

घटना में पीड़ित किसानों के साथ मुआवजे का जो खेल योगी सरकार ने खेला है, उसका भी कोई अच्छा संदेश नहीं गया है। उप्र सरकार ने पीड़ितों के लिए 45-45 लाख के मुआवजे का ऐलान किया, जबकि कांग्रेस की छत्तीसगढ़ और पंजाब की सरकारों ने 50-50 लाख के मुआवजे का ऐलान किया है। वैसे तो जान की कीमत कुछ लाख रूपयों में नहीं लगाई जा सकती, लेकिन जनता यह देख रही है कि मंदिर बनाने के लिए करोड़ों की राशि इकठ्ठा करने वाली भाजपा मुआवजा देने में कैसे पीछे रह रही है। आपदा में अवसर तलाशने वाली भाजपा ने अपने लिए हर परिस्थिति में वोट बटोरने की गुंजाइश देखी है। पुलवामा से लेकर सीएए तक, नोटबंदी से लेकर लॉकडाउन तक हर आपदा में चुनाव जीतने की जुगत लगाई है, लेकिन इस बार किसानों पर आई आपदा भाजपा के लिए नए अवसरों का द्वार बंद कर सकती है।

किसान नेता योगेंद्र यादव ने मीडिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि किसान-आंदोलन के उभार के साथ यह सोच कि मीडिया किसी की साख बना और बिगाड़ सकती है, भी सिर के बल आ खड़ा हुआ है। कहां तो मीडिया किसान-आंदोलन की साख गिराने में लगी थी और कहां आलम ये आ पहुंचा है कि अब किसान आंदोलन के कारण ही मीडिया की साख को बट्टा लग रहा है।

उधर, दिल्ली से लखीमपुर के लिए निकले राहुल गांधी काफी जहद्दोजहद के बाद लखीमपुर पहुंचे। राहुल गांधी के साथ बहन प्रियंका गांधी, पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल और दीपेंद्र हुड्डा हैं। कांग्रेस नेता हिंसा में मारे गये किसान लवप्रीत सिंह आदि मृतक किसानों व पत्रकार के परिजनों से मिलने पहुंचे हैं। जहां उन्होंने शोक संतप्त परिवार से बात की और उनके प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की। कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा कि लखीमपुर खीरी में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी, स्व लवप्रीत के मां-पिता व दोनों बहनों से मिले। उनका दुख साझा किया। उन्होंने आगे कहा कि पहाड़ सी पीड़ा में सांत्वना के दो बोल भी मरहम का काम करते हैं। उन्होंने न्याय के संघर्ष में परिवार का साथ निभाने का संकल्प भी किया।

उधर, राज्य सरकार ने समझौते के तहत मामले में हाईकोर्ट के रिटायर न्यायाधीश प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया है जो लखीमपुर कांड की जांच करेगा। दो महीने में जांच पूरी की जानी है, जांच आयोग का कार्यालय लखीमपुर खीरी में होगा।

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