बीएसएनएल को मोदी सरकार में किस तरह से बर्बाद किया गया? जानिए..

Written by Girish Malviya | Published on: April 7, 2019
यह बात सभी को पता है कि किस तरह से 4g स्पेक्ट्रम BSNL को न देकर बाकी सब कंपनियों दिया गया..... मोदी सरकार की मंशा जियो को प्रमोट करने की थी और उसी को आगे बढाने के लिए बीएसएनएल को धीमा जहर दिया गया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रिलायंस को सिर्फ डेटा सर्विस के लिए लाइसेंस दिया गया था, लेकिन बाद में 40 हजार करोड़ रुपये की फीस की बजाय 1,600 करोड़ रुपये में ही वॉयस सर्विस का लाइसेंस दे दिया गया, लेकिन जियो के पास इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव था और यही से मोदी सरकार ने बीएसएनएल के इंफ्रास्ट्रक्चर को धीरे धीरे जिओ को देना शुरू किया।




2014 में आते ही मोदी सरकार द्वारा एक टॉवर पॉलिसी की घोषणा की ओर दबाव डालकर रिलायंस जिओ इंफोकॉम लिमिटेड से भारत संचार निगम लिमिटेड के साथ मास्‍टर शेयरिंग समझौता करवा दिया इस समझौते के तहत रिलायंस जिओ बीएसएनएल के देशभर में मौजूद 62,000 टॉवर्स का उपयोग कर सकती थी इनमें से 50,000 में ऑप्टिकल फाइबर कनेक्टिविटी उपलब्ध थी। 

यह जिओ के लिए संजीवनी मिलने जैसा था क्योंकि वह चाहे कितना भी पैसा खर्च कर लेती इतना बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर नही खड़ा करती थी, लेकिन उसके लिए एक मुश्किल ओर थी BSNL भी उसके कड़े प्रतिद्वंद्वी में से एक था जिन्हें इन टॉवर से सिग्नल्स मिलते थे। इसलिए मोदी सरकार ने ग़जब का खेल खेला उसने जिओ को इन टावर का निरंतर फायदा मिलते रहे इसके लिए इन टावर्स को एक अलग कम्पनी बना कर उसमे डाल दिया गया। 

मोबाइल टॉवर किसी भी टेलीकॉम ऑपरेटर के लिए सबसे महत्वपूर्ण संपत्ति होते हैं इस कदम का परिणाम यह हुआ कि अब बीएसएनएल को भी इन टावर की सर्विसेज यूज करने का किराया लगने लगा, यह निर्णय 2017 में मोदीं सरकार ने लिया था जिससे बीएसएनएल अपने ही टॉवरों की किराएदार बन गयी। नतीजतन जो कम्पनी 2014-15 में 672.57 करोड़ रुपए के फायदे में आ गई थी इस निर्णय के बाद हजारों करोड़ रुपए का घाटा दर्शाने लगी। 

कुछ समझे आप मोदी सरकार ने बीएसएसएल को 4जी स्पेक्ट्रम अलॉट भी नही किया और उसे बीएसएनएल के टावर भी दिलवा दिए और BSNL को अपनी संपत्ति का किराएदार बना दिया। लेकिन मोदी सरकार यही नही रुकी उसने उन राज्यों में जहाँ उसकी सरकार थी वहां ऐसी पॉलिसी बनाई जिससे जिओ को फायदा पुहंचे ओर बीएसएनएल को कोई मौका नहीं मिले। 

छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार ने एक योजना शुरू की जिसे संचार क्रांति योजना कहा गया 2011 में छत्तीसगढ़ में मोबाईल की पहुंच 29 प्रतिशत थी। छत्तीसगढ़ की विषम भौगोलिक परिस्थितियों एवं कम जनसंख्या घनत्व के कारण दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियां राज्य में नेटवर्क का विस्तार नहीं कर पा रही थी। 

संचार क्रांति योजना के तहत इन क्षेत्रों में टेलीकॉम प्रदाता कंपनी द्वारा नेटवर्क कनेक्टिविटी प्रदाय किये जाने हेतु अधोसंरचना तैयार की जानी थी और 1500 से अधिक नये मोबाईल टॉवर लगाये जाने थे 600 करोड़ रुपये मोबाइल टावरों की स्थापना पर खर्च किये जाने थे, यानी सारा काम सरकारी खर्च पर किया जाना था यह ठेका बीएसएनएल के बजाए जियो को दिया गया। इस तरह से मोदी राज में BSNL को पूरी तरह से बर्बाद करने की दास्तान लिखी गयी।
 

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