मुस्लिमों के घर तोड़ने के लिए इदरीस के शव को छिपाए रखा: खरगोन हिंसा पर संयुक्त जांच दल की रिपोर्ट

Written by Sabrangindia Staff | Published on: April 28, 2022
रामनवमी के अवसर पर खरगोन में सांप्रदायिक हिंसा के बाद प्रशासन द्वारा अवैध अतिक्रमण के नाम पर अल्पसंख्यक समुदाय के घरों व प्रतिष्ठानों को तोड़ने की कार्रवाई की गई थी।



मध्य प्रदेश के खरगोन में रामनवमी पर हुए साम्प्रदायिक दंगे और स्थिति का जायजा लेने के लिए 25 अप्रैल को संयुक्त जांच दल ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर पीड़ितों और आम जनता से बात की। जांच दल ने इस घटना के पीछे की साजिश का पता लगाकर समाज के साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने वालों को बेनकाब करने के लिए यहां का जायजा लिया। जांच दल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह, सचिव मंडल सदस्य कैलाश लिंबोदिया, इंदौर सचिव सी एल सरावत, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के इंदौर सचिव रुद्रपाल यादव और राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश सचिव स्वरूप नायक शामिल थे।

जांच दल के अनुसार दंगे की पृष्ठभूमि इस प्रकार है:
1. पिछले एक साल से विभिन्न अवसरों पर खरगोन में दोनों समुदायों में तनाव पैदा करने की साजिश हो रही है। 10 मार्च को जब भाजपा उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों में विधानसभा चुनाव जीती तब खरगोन में निकाले गए विजय जुलूस में भी न केवल मस्जिद के बाहर उत्पात मचाते हुए आपत्तिजनक नारे लगाए गए बल्कि, मस्जिद प्रांगण में भी पटाखे फेंक कर उत्तेजना पैदा करने की कोशिश की गई।

2. रामनवमी पर आमतौर पर एक जुलूस निकलता है। इस बार भी जब पहला जुलूस निकला तो अल्पसंख्यक समुदाय ने भी उसका स्वागत किया। जगह जगह पर प्याऊ की व्यवस्था की। तालाब चौक पर उस जुलूस के शांतिपूर्वक समापन हो जाने के बाद भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष श्याम महाजन ने न केवल जलूस को अल्पसंख्यक बस्ती में ले जाने की जिद की, बल्कि एडीशनल एसपी नीरज चौरसिया को देख लेने की धमकी दी बल्कि तुरंत तबादला करवा देने का डर भी बनाया।

3. वहीं से सबको 2 बजे तालाब चौक पर एकत्रित होने के उत्तेजिक आह्वान किये गए। वहां पर शाम 5.30 बजे तक भीड़ को एकत्रित होने दिया गया। भीड़ के पास धारदार हथियार भी थे। वे एक समुदाय विशेष के खिलाफ उत्तेजक और आपत्तिजनक नारे लगा रहे थे। इसी भीड़ ने मस्जिद के बाहर जब नमाज के लिए लोग एकत्रित हो चुके थे, आपत्तिजनक नारे लगाए और गाने बजाए। जिससे विवाद पैदा हुआ। यह जुलूस बिना अनुमति निकाला गया और प्रशासन मूकदर्शक बना रहा।

4. यह जुलूस दंगे का कारण बना। इसका नेतृत्व अनिल कंट्रोल वाला और राहुल दूध डेयरी वाला कर रहे थे। जिनके आरएसएस और उनके विभिन्न संगठनों से रिश्ते हैं। भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष श्याम महाजन तो जुलूस में थे ही, दिल्ली के भाजपा नेता कपिल मिश्रा भी खरगोन में थे और खतरनाक ट्वीट कर रहे थे। जो साबित करता है कि भाजपा संघ परिवार हर कीमत पर दंगा करना चाहता था।

5. सूत्रों के अनुसार इंटेलीजेंस रिपोर्ट में आठ दिन पहले ही प्रशासन को हर स्तर पर सूचना दे दी गई थी कि रामनवमी पर साम्प्रदायिक टकराव हो सकता है। इस सूचना के आधार पर अगर उचित कदम उठाए होते तो इस दंगे को टाला जा सकता था। मगर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी स्वीकारा है कि तालाब चौक पर पर्याप्त पुलिस बल नहीं था।

6. रामनवमी पर हुए विवाद में पुलिस अधीक्षक सहित पांच लोगों को गोली लगना बताया जाता है। इस घटना के बाद गृहमंत्री के बयान कि पत्थरबाजों के घरों को पत्थरों का ढेर कर दिया जाएगा, के बाद तो प्रशासन और पुलिस ने एकतरफा कार्यवाही की मुहिम ही चला डाली जो अभी भी जारी है।

7. प्रशासन की ओर से तोड़े गए सभी मकान और दुकानें अल्पसंख्यक समुदाय की हैं। वह मकान दंगाग्रस्त क्षेत्र से डेढ़ दो किलोमीटर दूर की बस्तियों में भी तोड़े गए हैं, जहां दंगा हुआ ही नहीं।

यह कार्यवाही इसलिए भी एकतरफा दिखाई पड़ती है कि तालाब चौक की मस्जिद की 9 दुकानों को तोड़ा गया। तीन हिंदू दुकानदारों को तो दुकान तोड़ने से पहले अपना सामान निकालने के लिए कहा गया, जबकि मुस्लिम दुकानदारों का सामान भी दुकानों के साथ ही नष्ट कर दिया गया। सारी कार्यवाही बिना सूचना और बिना किसी आदेश के की गई है। अब न तो जिला प्रशासन और न ही कलेक्टर इसकी जिम्मेदारी ले रहा है।

8. ऐसे ऐसे घरों को तोड़ा गया है, जो तीस तीस साल पहले के बने हुए थे, जिनकी पास पानी बिजली के बिल भी हैं और हाउस टैक्स की रिपोर्ट भी। इसमें हसीना फाखरू का मकान भी तोड़ दिया गया जो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बना था। दोनो हाथ कटे होने के बाद भी पत्थर फेंकने के आरोप में वसीम शेख की गुमटी भी तोड़ दी गई। अयूब खान की 70 साल पुरानी 7 दुकानों को तोड़ दिया गया, जबकि उसके पास पूरे कागजात भी हैं। वह किसी दंगे में भी शामिल नहीं था। उसकी दुकानें इसलिए तोड़ी गई हैं क्योंकि उसके पीछे भाजपा नेता श्याम महाजन की जमीन है। वह उसे बार बार इन दुकानों को उसे बेचने को कहता था, मगर अब दंगे का बहाना बनाकर उसकी दुकानों को तोड़ दिया गया।



9. प्रशासन की सारी कार्यवाही एकतरफा है। जिस प्रकार अल्पसंख्यक समुदाय को आरोपी बनाया गया है, ऐसे लगता है जैसे वोटरलिस्ट को सामने रखकर नाम लिखे गए हों। अल्ताफ अस्पताल में भर्ती था, मगर उसका नाम भी दंगाइयों में है और उसका मकान भी तोड़ दिया गया। आजम 8 अप्रैल से 14 अप्रैल तक कर्नाटक में था और उसका मकान भी तोड़ दिया गया है।

10. शिवम शुक्ला घायल है। पहले उसे गोली लगने की बात कही गई, अब पत्थर लगने की बात कही जा रही है। एसपी सहित जिन पांच लोगों को गोली लगी है, उनकी फोरेंसिक रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं की जा रही है?

11. रमजान के महीने में भी शहर की सारी मस्जिदों को बंद कर रखा गया है। उन्हें क्यों नहीं खोला जा रहा है। यदि धार्मिक स्थल बंद करना है तो दोनों ही तरफ के होने चाहिए थे। मगर ऐसा नहीं किया गया।

इदरीश की मौत
इस दंगे में सबसे महत्वपूर्ण पहलू इदरीस उर्फ सद्दाम की मौत का है। जिसके बारे में विस्तार से बात की जाएगी। प्रश्न यह है कि जब 11 अप्रैल को ही उसकी मौत हो गई थी तो उसे 18 अपैल तक क्यों छिपाया गया?


यह सब क्यों हुआ?
खरगोन और बड़वानी में 10 विधान सभा सीटें हैं। यदि पिछले चार विधान सभा चुनावों पर नजर डाली जाए तो 2003, 2008 और 2013 में भाजपा 6 या 7 सीटों पर जीत दर्ज करती रही है। मगर 2018 के विधान सभा चुनावों में भाजपा 10 में से 9 विधान सभा सीटें हारी है। इसी हार को वह नहीं पचा पा रही है और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कर चुनाव जीतने की साजिशें कर रही है।


संयुक्त जांच दल की मांग
1. बिना अनुमति के निकले जलूस में जो लोग धारदार हथियार और तीन बंदूक लेकर चल रहे थे, उनके खिलाफ कार्यवाही की जाए। एकतरफा कार्यवाही को रोका जाए।

2. जिन मकानों और दुकानों को बिना न्यायालय या कलेक्टर के आदेश के गिराया गया है। उन सबके नुकसान का आंकलन कर उसे तुरंत पूर्ण मुआवजा दिया जाए। इस अवैधानिक कार्यवाही को करने वालों के खिलाफ अपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए।

3. सभी धार्मिक स्थलों को खोला जाए और वहां इबादत करने की अनुमति दी जाए।

4. इदरीस की मौत की सीबीआई जांच की जाए।

इदरीस की मौत 
खरगोन दंगों के पीछे की साजिश का खुलासा इदरीस उर्फ सद्दाम की मौत से जुड़े हुए रहस्यों से होता है, जो इस प्रकार हैं:

पहली कहानी:
11 अप्रैल को रात करीब डेढ़ बजे दो गवाहों ने बताया कि कपास मंडी के बाहर 7-8 लोग एक व्यक्ति को मार रहे हैं। पुलिस के पहुंचने पर वह लोग फरार हो गए। एसपी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि वह लोग और मारो और मारो भी चिल्ला रहे थे।  पुलिस उसे अस्पताल लेकर पहुंची, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। रात को ही उसका शॉर्ट पोस्टमार्टम हुआ जिसमें सिर पर चोट लगने से उसकी मृत्यु होना बताया गया। पुलिस ने 174 में मर्ग कायम कर लिया। अगले दिन 12.53 पर पोस्टमार्टम के बाद बॉडी को इंदौर भेज दिया गया।


प्रश्न
जब दो गवाह मौजूद थे और बता रहे थे कि 7-8 लोग उसे मार रहे थे। उसके सिर और गले पर धारदार हथियार के जख्म थे और शाँर्ट पोस्टमारटम ने भी इसी के कारण मौत होना बताया तो फिर 174 में कायमी क्यों की गई। 174 में मृग कायम तब होता है जब मौत के कारण ज्ञात न हों, जैसे आत्महत्या या रोड एक्सीडेंट। इससे भी बड़ी बात यह कि जब शहर में दंगा हो रहा है। कर्फ्यू में भी स्थिति नहीं संभल रही है, एसपी को गोली लगी है। टीआई घायल हैं, तो फिर मृग कायम कैसे किया?


कहानी नंबर दो:
कपास मंडी का कर्मचारी कमल साल्वे बॉडी लेकर अस्पताल पहुंचता है। उसे सर्जीकल वार्ड में उपचार के लिए भर्ती किया जाता है। इसका अर्थ है कि तब उसकी मौत नहीं हुई थी। उपचार के दौरान उसकी मौत हुई है। वार्ड ब्याय ने सुबह पुलिस को सूचित किया कि भर्ती हुए व्यक्ति की उपचार के दौरान मौत हुई है। मजेदार बात यह है कि तब पुलिस का दरोगा जब पहुंच कर पंचनामा बनाता है तो वही कमल साल्वे जो रात को भर्ती करवाने आया था, सुबह 8.40 पर भी मौजूद होता है? क्या यह संभव है? इस दूसरी कहानी को सामने लाने की वजह क्या है?


कहानी नंबर तीन:
14 अप्रैल को सुबह 11.00 बजे इदरीस के परिवार की शिकायत पर गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर ली जाती है। इसके एक घंटे बाद पुलिस पोस्टमार्टम का हवाला देकर 302/ 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लेती है। 15,16,17 अप्रैल को इस संबंध में किसी को कोई जानकारी नहीं दी जाती है। 17 अप्रैल की रात को इदरीस के परिजनों को इंदौर ले जाकर बॉडी दिखाकर लाश सौंप दी जाती है।

प्रश्न
पुलिस का कहना है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बिना हत्या का मामला दर्ज नहीं कर सकते थे। फिर 14 अप्रैल को हत्या का मामला कैसे दर्ज हो गया जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट तो पुलिस को 18 को मिली है।
 इदरीस के परिजनों को 14 को रिपोर्ट दर्ज होते ही बॉडी दिखाने इंदौर क्यों नहीं ले गए जबकि पुलिस को पता था कि उसने एक बॉडी को इंदौर भेजा है। पुलिस कह रही है कि 14 से 17 के बीच वो बॉडी की शिनाख्त के लिए पता लगा रहे थे। मगर कैसे? क्या कोई प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई? क्या उसका फोटो अखबारों, चैनलों या लोकल चैनलों को जारी कर सूचना सार्वजनिक की गई? तो यह छिपाने के पीछे पुलिस और प्रशासन की मंशा क्या है?

चौथी कहानी:
पुलिस ने पुलिस मुख्यालय से भी इस जानकारी को पांच दिन तक छिपा कर रखा। 15 अप्रैल को पुलिस मुख्यालय को सूचना दी गई। पांच दिन तक इस जानकारी को छिपा कर रखने का अर्थ क्या है? फिर आठ दिन तक तो पुलिस बॉडी की शिनाख्त ही नहीं करवा पाती है। मगर शिनाख्त होते ही तीन आरोपियों और उपयोग में लाई गई तलवार को भी बरामद कर लेती है। इसमें भी परिजनों का कहना है कि उन्होंने 11 लोगों के नाम लिखवाए। पुलिस ने 8 लोगों के नाम लिखे और 3 को ही गिरफ्तार किया गया?

निष्कर्ष
प्रशासन ने ऐसा क्यों किया?


1. यदि पहले दिन ही इदरीस की मौत का खुलासा कर दिया जाता तो फिर जो अल्पसंख्यक विरोधी वातावरण बनाकर मुहिम छेड़ी गई। इसका अवसर हाथ से निकल जाता।

2. यदि पहले दिन ही खुलासा कर देते कि मरने वाला मुसलमान है तो पत्थरबाजी के बहाने जो अल्पसंख्यकों के घर और दुकानें गिराई गईं, प्रशासन वो नहीं कर पाता।

3. इदरीस की मौत पांच दिन तक गृहमंत्री से भी क्यों छिपाई गई, जबकि उनके बयान अल्पसंख्यकों पर दमन की वजह बन रहे थे। गृहमंत्री को इस घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देना चाहिए और इस घटना की उच्च स्तरीय जांच होना चाहिए।

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