पंजाब के दो मजदूरों ने जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा हिरासत में टॉर्चर करने का आरोप लगाया था। कठुआ की एक कोर्ट ने इस मामले में अब एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया है।

साभार : इंडियन एक्सप्रेस
जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले की एक अदालत ने सोमवार, 22 सितंबर को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। अदालत ने बसोहली स्थित अटल सेतु पर इस साल जून में पंजाब के दो मजदूरों को कथित रूप से हिरासत में प्रताड़ित किए जाने के मामले में एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, कठुआ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अजय कुमार की अदालत ने न केवल एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है, बल्कि मामले की जांच एक 'अनुभवी और स्वतंत्र' पुलिस अधिकारी से कराए जाने का भी निर्देश दिया है।
अदालत ने ये निर्देश पंजाब के पठानकोट जिले के चिब्बर गांव के रहने वाले दो मजदूरों-सुकर दीन और फरीद मोहम्मद-द्वारा दायर एक आवेदन का निपटारा करते हुए जारी किए। दोनों मजदूरों ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि उन्हें गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिया गया और इस दौरान उन्हें टॉर्चर किया गया। उन्होंने यह भी दावा किया कि हिरासत की प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया।
इन मजदूरों के अनुसार, पुलिसकर्मियों ने 30 जून की दोपहर को बसोहली में अटल सेतु पर उन्हें अवैध तरीके से हिरासत में लिया और हिरासत में उन्हें ‘क्रूरतापूर्वक टॉर्चर’ किया।
अदालत के 25 पन्नों के विस्तृत आदेश में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अजय कुमार ने कठुआ के एसएसपी (वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक) को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वे बसोहली थाने में एफआईआर दर्ज करें और एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट (एक्शन टेकन रिपोर्ट) अदालत में प्रस्तुत करें।
पुलिस की ओर से सहायक लोक अभियोजक अंकुश गुप्ता और याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता एस.एस. अहमद, सुप्रिया चौहान, एम. जुल्करनैन चौधरी और विशाल गुप्ता की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने यह स्पष्ट किया कि हिरासत में हिंसा जैसे ‘गंभीर’ आरोपों के मामले में, स्थापित कानून के अनुसार एफआईआर दर्ज करना पुलिस के लिए अनिवार्य है, क्योंकि ये हिरासत में हिंसा के ‘गंभीर’ आरोप हैं।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के 2014 के ऐतिहासिक फैसले - ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार व अन्य - का हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया कि, "यदि किसी सूचना से किसी संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) का खुलासा होता है, तो पुलिस के लिए एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है।"
अदालत ने अपने आदेश में यह माना कि याचिका में लगाए गए आरोप "स्पष्ट रूप से संज्ञेय और कुछ असंज्ञेय अपराधों का खुलासा करते हैं"। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने यह स्पष्ट किया कि मामले के इस प्रारंभिक चरण में पुलिस अधिकारियों द्वारा अपनी निर्दोषता का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह आरोपों की सत्यता पर कोई अंतिम राय नहीं दे रही है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि पुलिस द्वारा इन आरोपों को सिर्फ इनकार करने भर से खारिज नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि पीड़ित मजदूरों ने जुलाई 2025 में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल की थी। इस याचिका में उन्होंने पुलिस पर अवैध हिरासत में रखने और हिरासत के दौरान टॉर्चर करने के गंभीर आरोप लगाए थे।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि पुलिस ने उनके खिलाफ एक बेतुका मामला दर्ज किया है।
याचिकाकर्ता मजदूरों ने अपनी याचिका में बसोहली के मुंसिफ (न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी) भानु भसीन के 30 जून को दिए गए आदेश का भी हवाला दिया। इस आदेश में उल्लेख है कि उसी दिन पुलिस ने याचिकाकर्ताओं को अदालत में पेश किया था और उनके लिए पांच दिन की पुलिस रिमांड मांगी थी।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने बताया कि मुंसिफ ने पाया था कि रिमांड आवेदन के साथ संलग्न उनकी मेडिकल जांच रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर ने आरोपियों को चिकित्सकीय रूप से फिट नहीं पाया था और डॉक्टर ने दोनों आरोपियों की चोटों का उल्लेख किया था।
वकील ने अदालत को यह भी बताया कि दोनों आरोपियों की स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ रही थी, जिसे देखते हुए न्यायाधीश ने उन्हें पुलिस हिरासत की बजाय पांच दिन की न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया था।
मालूम हो कि इस मामले में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने 22 जुलाई को याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनने के बाद बसोहली के उप-विभागीय पुलिस अधिकारी (एसडीपीओ) सुरेश कुमार और 10 अन्य पुलिसकर्मियों को नोटिस जारी किया था।
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साभार : इंडियन एक्सप्रेस
जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले की एक अदालत ने सोमवार, 22 सितंबर को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। अदालत ने बसोहली स्थित अटल सेतु पर इस साल जून में पंजाब के दो मजदूरों को कथित रूप से हिरासत में प्रताड़ित किए जाने के मामले में एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, कठुआ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अजय कुमार की अदालत ने न केवल एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है, बल्कि मामले की जांच एक 'अनुभवी और स्वतंत्र' पुलिस अधिकारी से कराए जाने का भी निर्देश दिया है।
अदालत ने ये निर्देश पंजाब के पठानकोट जिले के चिब्बर गांव के रहने वाले दो मजदूरों-सुकर दीन और फरीद मोहम्मद-द्वारा दायर एक आवेदन का निपटारा करते हुए जारी किए। दोनों मजदूरों ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि उन्हें गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिया गया और इस दौरान उन्हें टॉर्चर किया गया। उन्होंने यह भी दावा किया कि हिरासत की प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया।
इन मजदूरों के अनुसार, पुलिसकर्मियों ने 30 जून की दोपहर को बसोहली में अटल सेतु पर उन्हें अवैध तरीके से हिरासत में लिया और हिरासत में उन्हें ‘क्रूरतापूर्वक टॉर्चर’ किया।
अदालत के 25 पन्नों के विस्तृत आदेश में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अजय कुमार ने कठुआ के एसएसपी (वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक) को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वे बसोहली थाने में एफआईआर दर्ज करें और एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट (एक्शन टेकन रिपोर्ट) अदालत में प्रस्तुत करें।
पुलिस की ओर से सहायक लोक अभियोजक अंकुश गुप्ता और याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता एस.एस. अहमद, सुप्रिया चौहान, एम. जुल्करनैन चौधरी और विशाल गुप्ता की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने यह स्पष्ट किया कि हिरासत में हिंसा जैसे ‘गंभीर’ आरोपों के मामले में, स्थापित कानून के अनुसार एफआईआर दर्ज करना पुलिस के लिए अनिवार्य है, क्योंकि ये हिरासत में हिंसा के ‘गंभीर’ आरोप हैं।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के 2014 के ऐतिहासिक फैसले - ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार व अन्य - का हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया कि, "यदि किसी सूचना से किसी संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) का खुलासा होता है, तो पुलिस के लिए एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है।"
अदालत ने अपने आदेश में यह माना कि याचिका में लगाए गए आरोप "स्पष्ट रूप से संज्ञेय और कुछ असंज्ञेय अपराधों का खुलासा करते हैं"। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने यह स्पष्ट किया कि मामले के इस प्रारंभिक चरण में पुलिस अधिकारियों द्वारा अपनी निर्दोषता का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह आरोपों की सत्यता पर कोई अंतिम राय नहीं दे रही है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि पुलिस द्वारा इन आरोपों को सिर्फ इनकार करने भर से खारिज नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि पीड़ित मजदूरों ने जुलाई 2025 में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल की थी। इस याचिका में उन्होंने पुलिस पर अवैध हिरासत में रखने और हिरासत के दौरान टॉर्चर करने के गंभीर आरोप लगाए थे।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि पुलिस ने उनके खिलाफ एक बेतुका मामला दर्ज किया है।
याचिकाकर्ता मजदूरों ने अपनी याचिका में बसोहली के मुंसिफ (न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी) भानु भसीन के 30 जून को दिए गए आदेश का भी हवाला दिया। इस आदेश में उल्लेख है कि उसी दिन पुलिस ने याचिकाकर्ताओं को अदालत में पेश किया था और उनके लिए पांच दिन की पुलिस रिमांड मांगी थी।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने बताया कि मुंसिफ ने पाया था कि रिमांड आवेदन के साथ संलग्न उनकी मेडिकल जांच रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर ने आरोपियों को चिकित्सकीय रूप से फिट नहीं पाया था और डॉक्टर ने दोनों आरोपियों की चोटों का उल्लेख किया था।
वकील ने अदालत को यह भी बताया कि दोनों आरोपियों की स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ रही थी, जिसे देखते हुए न्यायाधीश ने उन्हें पुलिस हिरासत की बजाय पांच दिन की न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया था।
मालूम हो कि इस मामले में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने 22 जुलाई को याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनने के बाद बसोहली के उप-विभागीय पुलिस अधिकारी (एसडीपीओ) सुरेश कुमार और 10 अन्य पुलिसकर्मियों को नोटिस जारी किया था।
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