जितेंद्र कुमार मेघवाल की हत्या पर मानवाधिकार व दलित संगठनों की तथ्यान्वेषण रिपोर्ट

Written by Sabrangindia Staff | Published on: April 2, 2022
पिछले चार साल से 2 अप्रैल, दलित-आदिवासी आंदोलन के लिए विशेष दिन के रूप में माना जाता है क्योंक इस दिन दलित व आदिवासीयों ने सड़क पर उतर कर ऐलान किया कि ‘अजा/जजा (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989’ ( संशोधितः 2015-2018 ) से छेड़छाड़ बिल्कुल बर्दाश्त नहीं है और व्यापक आंदोलन कर जीत हासिल की।



ज्ञात हो कि 20 मार्च 2018 को उच्चतम न्यायालय ने अजा/जजा (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तीन प्रमुख धाराओं को खारिज कर दिया था, प्रमुखता से कि प्राथमिकी अगर पुख्ता पाई गई तब ही दर्ज की आवेदन पर शिकायत हफ्ते भर की जांच के बाद दर्ज की जाएगी। अग्रिम जमानत जो इस कानून के तहत प्राप्त नही कर सकते थे, उसे समाप्त किया। जिससे पुलिस कोई गिरफ़्तारी ना कर सके। 

उच्चतम न्यायालय के इस फैसले को दलित व आदिवासी संगठनों ने खारिज किया व देश भर में आंदोलन किया जिसमें लगभग 11 लोगों पुलिस व जातिवादी ततवों की गोलियों से मारे गए, और हजारों पर मामले दर्ज किये गए और जेल में भी अनेक आंदोलनकारियों को रखा गया। लेकिन केंद्र सरकार ने इस फैसले को लेकर संसद में विधेयक पारित किया और 1989 का कानून संशोधितः 2015 को यथावत रखा। उच्चतम न्यायालय ने भी इस फैसले को बाद पलट दिया। 

हम दलित व मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि आज का दिन दलित आदिवासी समुदाय की जीत का दिन है और उसे इतिहास में दर्ज करना चाहिए और इसी क्रम में हम जितेंद्र कुमार मेघवाल हत्याकांड की तथ्यान्वेषण रिपोर्ट को जारी कर रहे हैं। 

पाली जिले के बारवा गाँव के कोविड स्वास्थ्य कार्यकर्ता जितेंद्र कुमार मेघवाल बाली की अस्पताल से ड्यूटी कर घर लौटते समय चाकुओं से वार करके सूरज सिंह राजपुरोहित एंव रमेश सिंह राजपुरोहित ने निर्मम हत्या कर दी। यह हत्या सुनियोजित तरीके से अंजाम दी गई, प्रदेश और देश भर में आंदोलन और आक्रोश उठा और बारवा गाँव में धरना शुरू हुआ। पुलिस व प्रशासन ने जन दबाव के रहते तत्परता से कार्रवाही की और 2 आरोपी सूरज सिंह व रमेश सिंह को गिरफ्तार किया। कानून के आधार पर प्रशासन ने जितेंद्र कुमार मेघवाल के परिवार को राशि भी तुरंत ही दे दी।

हमारा दलित व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है व आम सहमति है कि पाली जिलें में छुआछूत, भेदभाव, शोषण व अन्याय अत्याचार दलितों के साथ सघन रूप में है जो आंकड़ों में नहीं दर्ज है, जो बहुत ही गंभीर मुद्दा है। साथ ही घोर सामंतवादी व्यवस्था के तहत दलितों द्वारा उनके साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार पर लगभग चुप्पी की संस्कृति व समाज, पुलिस व प्रशासन द्वारा दलित उत्पीड़न को लेकर लगातार इन्कार हम कार्यकर्ताओं के लिए बहुत गंभीर विषय है। इसीलिए जितेंद्र कुमार मेघवाल हत्याकांड की गहराई में जाना बहुत जरूरी हो गया, इस उद्देश्य से संगठनों के संयुक्त जांच दल द्वारा 23 व 24 मार्च को गाँव बारवाँ, तहसील-बाली, पाली का दौरा कर पीड़ित परिवार से मुलाकात व अन्य सभी पक्षों से बात व उक्त घटना के संबंध मे विस्तृत जांच कर यह रिपोर्ट तैयार की गई। यह रिपोर्ट घटना के पीछे छुपे जातिगत द्वेष, आर्थिक असमानता और छुआछूत को संदर्भित करती है।

तथ्यान्वेषण रिपोर्ट के आठ भाग है, 

1. पहला भाग राजस्थान में दलित अत्याचार की स्थिति को दर्शाता है 

2.  दूसरा भाग पाली जिले में दो दशक से जातिवादी तत्वों द्वारा दलितों पर किये जा रहे जघन्य अत्याचारों के बारे में है  

3.  तीसरा भाग बारवा गाँव के सामंती परिदृश्य के बारे में बताता है 

4. चौथा भाग जितेन्द्र कुमार मेघवाल का परिचय और न्याय के लिये उसके संघर्ष पर केन्द्रित है 

5.   पांचवा भाग जितेन्द्र द्वारा दर्ज करवाये गये एट्रोसिटी एक्ट के मुकदमे के बारे में है 

6. छठा भाग जितेन्द्र कुमार की हत्या, दूसरी एफआईआर और जन आक्रोश आन्दोलन के बारे में है  

7. सातवाँ भाग पुलिस, प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की भूमिका को बताता है  

8.  आठवा भाग निष्कर्ष व अनुशंषाओं का है 
 
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष और अनुशंसायें... 
 
जितेंद्र कुमार की हत्या केवल रहन सहन की जलन और मूंछ रखने का ही मसला नहीं है बल्कि यह जितेंद्र द्वारा अपने गाँव और परिवार की मुक्ति के लिए किये जा रहे विगत दो साल के कानूनी संघर्ष की परिणिती है। जो मुकदमा जितेंद्र कुमार मेघवल ने जून 2020 मे दर्ज करवाया था और उसके लिए वह जमकर संघर्ष कर रहा था, वह बारवा के दलितों के लिए न्याय और गुलामी से मुक्ति का प्रतीक बन चुका था, उसकी हत्या दलितों की न्याय की प्रत्याशा की हत्या है। 

बारवा गाँव के दलित भूमिहीनता का दंश झेल रहे हैं, वे सामाजिक और आर्थिक रूप से गुलामी की स्थिति मे जी रहे हैं. वे पिछले पच्चीस साल से अपनी मुक्ति के लिए छटपटा रहे हैं, आज भी वहाँ लोग हाली प्रथा के शिकार है और दलित महिलायें जूते पहन कर नहीं निकल सकती हैं। दलित अपने पर हुए अत्याचार का मुकदमा तक दर्ज नहीं कराएं और डर कर जिएं. पाली जिले के गांवों में आज भी जातिगत छुआछूत, भेदभाव और शोषण तथा जुल्म चरम पर है, गांवों मे जातिगत ठिकाने बने हुए है और उनका कबीलाई नियम लागू है।

जितेंद्र कुमार मेघवाल जैसे स्वाभिमानी संघर्षशील युवा जो कि शिकायतकर्ता था उसकी सुरक्षा करने में शासन प्रशासन नाकाम रहा है, यह न केवल शिकायतकर्ता की हत्या है बल्कि एट्रोसिटी एक्ट की भी हत्या है और कानून के राज का भी कत्ल है।
 
पाली जिले में जातिवाद और धर्मांधता चरम पर है, सवर्ण हिंदुओं ने दलितों के खिलाफ 35 कौम का मोर्चा बना लिया है और अब वे भगवा झण्डा लेकर जय श्री राम तथा जय भवानी के नारे लगाते हुए एससी एसएसटी एक्ट मुर्दाबाद के नारे लगा रहे हैं और हत्या के आरोपियों के समर्थन में भाषण दिए जा रहे हैं. जबकि एक समय मृतक जितेंद्र खुद भी आर एस एस से जुड़ा रहा है, लेकिन कोई भी संगफह से उनको सांत्वना देने नहीं पहुँचा। एक संघी नेता का हत्या के आरोपियों का समर्थन करते वीडियो वायरल हुआ है।

इस क़त्ल को प्रत्यक्ष रूप से भले ही दो लोगों ने अंजाम दिया है लेकिन इसकी योजना बनाने, षड्यंत्र रचने, रेकी करने, हत्या करके भागे भगोड़ों को शरण देने और हत्या के आरोपियों का खुला समर्थन करने जैसे बिन्दुओं पर जाँच को केन्द्रित किया जाये तो पूरी साजिश का पर्दाफाश हो कर अन्य अपराधी भी सामने आ सकते हैं। 

हत्या के आरोपी सूरज सिंह राजपुरोहित और रमेश सिंह राजपुरोहित 13 मार्च 2022 की रात को सूरत से गुजरात मोटरसाइकल लेकर निकले, जिसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट सूरत में दर्ज करवाई गई, ऐसा मृतक जितेन्द्र के परिजनों को पुलिस द्वारा बताया गया है. ऐसी जानकारी मिली है, हालाँकि पुलिस अधिकारियों ने तफ़्तीश जारी रहने के चलते इस बारे में कुछ भी बताने से इंकार किया है, मगर उपरोक्त बात में सत्यता है तो यह भी साजिश के सूत्रों को जोड़ने वाली जानकारी हो सकती है। 

दोनों हत्यारोपी अपने अपने मोबाईल सूरत ही छोड़ कर आ गये, ताकि उनकी लोकेशन और इस षड्यंत्र में शामिल अन्य मददगार लोगों की जानकारी नहीं मिल सके और साजिश का पता नहीं चल सके, लेकिन हत्या के आरोपियों के मोबाईल का पिछले दिनों का रिकॉर्ड निकाला जाये तो उससे भी काफी जानकारियां मिल सकती हैं, क्योंकि एक आरोपी सूरज सिंह 13 फरवरी 2022 की एक सोशल मीडिया पोस्ट में हत्या करने की सार्वजनिक मंशा अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर जाहिर कर चुका था। इससे यह स्पष्ट है कि जितेन्द्र कुमार की हत्या की प्लानिंग काफी दिनों से बनाई जा रही थी और यह बहुत सोच समझ कर योजना बद्द तरीके से किया गया क़त्ल है।

पुलिस का कहना है कि आरोपियों ने हत्या में प्रयुक्त लम्बे फ़लक के चाकुनुमा धारदार हथियार रास्ते से खरीदे थे, सवाल यह है कि क्या उन्हें हथियार बेचने वाले अनायास ही मिल गये थे अथवा रास्ते में किसी ने उपलब्ध करवाये थे ? 

जैसा कि बताया जा रहा है कि दोनों आरोपी 13 मार्च को सूरत से मोटर साइकल पर रवाना हुए और 800 किलोमीटर का लम्बा सफ़र करके 14 मार्च को बाली पहुँच गये, क्या यह संभव है कि यहाँ आते ही रेकी करके 15 मार्च को जितेन्द्र मेघवाल की निर्मम हत्या कर डाली या उनको स्थानीय लोगों में से किसी ने पूर्व में रेकी करके सारी सूचनाएं उपलब्ध करवाई?

जितेन्द्र कुमार की हत्या के लिये 15 मार्च का दिन चुना गया जिस दिन जितेन्द्र कुमार के घर में एक धार्मिक फंक्शन था! क्या यह तथ्य 23 जून 2020 को जितेन्द्र कुमार पर हमले से पहले अपनी टिक टोक आईडी पर हत्या के एक अभियुक्त सूरज सिंह राजपुरोहित की उस चुनौती से जुडा हुआ नहीं है, जिसमें उसने चेलेंज किया था कि –‘अब मेघवालों के कोई फंक्शन नहीं होंगे’. जितेन्द्र कुमार मेघवाल द्वारा जून 2020 में दर्ज करवाई प्राथमिकी में यह तथ्य दर्ज है. हत्या के लिये फंक्शन का दिन चुना जाना और एक धार्मिक आयोजन से पहले हत्या कर डालना निश्चित रूप से पूर्व योजना के बिना संभव नहीं है.

हमें लगता है कि हत्या की योजना बनाने और उसे कारित करने में अन्य लोगों का भी सहयोग मिला है, हत्या से पूर्व आरोपियों को रुकवाया गया है और हमला करके भाग कर तख़्तगढ़-आहोर होते हुए उनका बाड़मेर जिले में स्थित राजपुरोहित समुदाय के एक धर्म स्थल में जा कर छिप जाना तथा एक धार्मिक स्थल पर हत्या जैसे घृणित कृत्य करने के आरोपियों को शरण मिलना भी कहीं न कहीं इस हत्या के पीछे सुनियोजित साजिश के बारे में संकेत देती है

जितेन्द्र कुमार मेघवाल हत्याकांड के सम्बन्ध में हमारी मांगे इस प्रकार है -

1-यह कि पीड़ित परिवार को त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए मामले को केस ऑफिसर स्कीम के तहत शामिल कर मामले में आविलम्ब केस ऑफ़िसर नियुक्त किया जाए।

2-यह कि पूर्व में दर्ज मामला FIR No. 134/2020 में न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रकरण की न्यायालय में पैरवी हेतु अनुसूचित जाति/ जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 15 के तहत पीड़ितों की पसंद के अधिवक्ता को नियुक्त किया जाए।

3- यह कि पीड़ितों की सुरक्षा के ध्यान में रखते हुए गांव में तय अस्थाई पुलिस चौकी को स्थाई बनाया जाए।

4-यह कि जिला प्रशासन अपराधों की रोकथाम के लिये अनुसूचित जाति/ जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम नियम 3 के तहत पूर्ववधानात्मक और निवारक कार्यवाही करते हुए आरोपियों के निकट संबंधियों, सेवको, कर्मचारियों और पारिवारिक मित्रों के हथियारों के लाइसेंस को रद्द कर ऐसे हथियार को सरकारी शस्त्रागार में जमा करें।

5-यह कि पीड़ितों गवाहों की सुरक्षा व सम्पति की रक्षा सुनिश्चित करने की दृष्टि से पीड़ितों को अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के नियम 3(v) के तहत हथियार प्रदान करे।

6-यह कि पाली ज़िले में पिछले दो दशकों से जिस तरह के जघन्य अपराध घटित हो रहे है उनको ध्यान में रखते हुए जिले में अत्याचार परक क्षेत्र सुनिश्चित कर घोषित किए जाए।

7-यह कि जिले में मौजूदा जातिगत छुआछुत, भेदभाव, शोषण व अन्याय अत्याचार को खत्म करने के लिये सरकार की सभी संस्थाओं के सहयोग से संयुक्त अभियान चलाकर इस जातिवादी वर्चस्व को समाप्त करने का काम किया जायें।

8-यह कि जितेंद्र मेघवाल हत्याकांड जो कि एक ऑनलाइन धमकी ऑफ़्लाइन हिंसा में बदली है जिसकी इस पूरे अपराध में इसका महत्वपूर्ण भूमिका रही है, इसको ध्यान में रखते हुए, हत्या के आरोपी व मृतक जितेंद्र कुमार के सोशल मीडिया अकाउंट की जानकारी जुटाकर उसे पत्रावली में शामिल किया जाए.

9-यह कि प्रथम दृष्टया घटना के क्रम को देखते हुए प्रतीत होता है कि जितेंद्र की हत्या सुनियोजित तरीके से षड्यंत्र पूर्वक रैकी करके की गई है, जिसमे मुख्य आरोपियों के अलावा अन्य सहआरोपी भी शामिल है, उनकी पहचान के लिये आरोपियों के पिछले 1 माह के दौरन की गई टेलीफ़ोन वार्ता का रिकार्ड निकाल जाए तथा उसकी जांच कर पत्रावली में शामिल किया जाए।

10-यह कि पुलिस जांच में स्पष्ट हुआ है कि आरोपियों ने घटना को घटित करने में आपराधिक माइंड का उपयोग किया है, उन्होंने अपने फोन को घर छोड़कर राह चलतें लोगो के फोन से सहआरोपी से सम्पर्क किया है, इसकी पहचान के लिये आरोपियों द्वारा जिस स्थानीय व्यक्ति का  फोन उपयोग लिया गया है, उसके फोन की कॉल डिटेल निकलवाई जाकर पत्रावली में शामिल किया जाए।

11-यह कि स्थानीय तत्वों द्वारा दलितों में असुरक्षा की भवना पैदा करने अन्य समुदाय के लोगो को दलितों के विरुद्ध  भड़काने के उद्देश्य से 35 समाज पंचायत का गठन कर आम पंचायत बुलाई गई है, जो बहुत ही गम्भीर है, इसकी रोकथाम के लिये त्वरित आयोजको के विरुद्ध अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा 3(1)(u) के तहत  मामला दर्ज कर कार्यवाही की जाए।

12- यह कि  जितेंद्र ने दौराने ईलाज अपने बयान दर्ज करवाये है, जिसका वीडियो मौजूद पुलिस अधिकारियों, कर्मचारियों द्वारा बयान गया है,जितेंद्र के इन बयानों को मृत्यु पूर्व बयान मानते हुए, इस वीडियो को पत्रावली में शामिल किया जाए, इसे लुख्य साक्ष्य बनाने के लिये आवश्यक कानूनी प्रक्रिया पूरी की जाए।

13 - यह कि घटना के चश्मदीदों गवाह हरीश कुमार को सुरक्षा प्रदान की जाए।

14- यह कि मृतक के मित्र राजकुमार जिसे चश्मदीद गवाह हरीश ने सबसे पहले फोन करके घटना के बारे में बताया गया था तथा वह कुछ समय बाद हॉस्पिटल में पहुँच गया था,उसके बयान साक्ष्य में दर्ज कर पत्रावली में शामिल किया जाए

15-यह कि मृतक जितेन्द्र कुमार के परिवार को समुचित मुआवजा प्रदान किया जाये और चूँकि यह पूर्णत: भूमिहीन परिवार है,इसलिए कानून के मुताबिक पांच एकड़ जमीन भी आवंटित की जाये 

द्वारा जारी:
कविता श्रीवास्तव ( राज्य अध्यक्ष -पीयूसीएल), भंवर मेघवंशी ( उपाध्यक्ष - पीयूसीएल ) सतीश कुमार ( निदेशक - दलित अधिकार केंद्र ) सुमन देवठिया ( समन्वयक-दलित वीमेन फाइट ) तारा चंद वर्मा (समन्वयक  -अधिकार संदर्भ केंद्र ) भंवर कुमार कुमावत ( कार्यालय सचिव - पीयूसीएल ) कामरेड किशन मेघवाल ( राज्य संयोजक - दलित शोषण मुक्ति मंच ) शैलेष मोसलपुरिया ( सह संयोजक - दलित शोषण मुक्ति मंच ) 

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