मंदसौर गोलीकांड के एक साल

Written by जावेद अनीस | Published on: June 8, 2018
6 जून को मंदसौर गोलीकांड के एक साल पूरे हो चुके हैं जिसमें कृषि कर्मण अवार्ड के कई तमगे हासिल कर चुकी मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों पर गोलियां चलवाने का खिताब भी अपने नाम दर्ज करवा लिया था. तमाम कोशिशों के बाद भी मध्यप्रदेश के किसान मंदसौर गोलीकांड के जख्म को भूल नहीं पा रहे हैं. सूबे में किसान आन्दोलन एक बार फिर जोर पकड़ रहा है.



किसान संगठनों ने 1 से 10 जून तक पूरे प्रदेश में पूरी तरह से “ग्राम बंद” हड़ताल करने का ऐलान किया है जिसके तहत किसान अपनी उपज की बिक्री नहीं करेंगें. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी 6 जून की तारीख को ही मध्यप्रदेश में अपने चुनावी अभियान के रूप में चुना है. चुनावी साल में किसानों का यह गुस्सा और तेवर शिवराज सरकार के लिये बड़ी चुनौती पहले से ही थी इधर राहुल गांधी की मंदसौर रैली ने इस परेशानी को और बढ़ा दिया है.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के लिये मंदसौर गोलीकांड एक ऐसी घटना है जिसने उनके किसान पुत्र होने की छवि का बंटाधार किया है. पिछले एक साल के दौरान तमाम धमकियों, पुचकार और फरेब के बावजूद किसानों का गुस्सा अभी तक शांति नहीं हुआ है. मंदसौर गोलीकांड के बाद सबसे पहले आन्दोलनकारियों को ‘एंटी सोशल एलिमेंट’ के तौर पर पेश करने की कोशिश की गयी थी और जब मामला हाथ से बाहर जाता हुआ दिखाई दिया तो खुद मुख्यमंत्री ही धरने पर बैठ गये बाद में यह थ्योरी पेश की गयी कि किसान आंदोलन को अफीम तस्करों ने भड़काया और हिंसक बनाया.

शिवराजसिंह चौहान कुछ भी दावा करें कोई भी तमगा हासिल कर लें लेकिन मध्यप्रदेश में किसानों की बदहाली को झुटलाया नहीं जा सकता है. हालत ये हैं कि मध्यप्रदेश में पिछले पांच सालों के दौरान 5231 किसानों व कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की है. सूबे में किसानों की हालत पस्त है, कर्ज और फसल का सही भाव न मिलने के दोहरे मार से वे बदहाल हैं, व्यवस्था ने उन्हें प्‍याज को 1 से लेकर तीन रुपये किलो तक बेचने को मजबूर कर दिया है. भावान्तर का अनुभव भी भयानक है. प्रदेश भर के सभी हिस्सों से किसान द्वारा अपनी समस्याओं को लेकर प्रदर्शन करने की खबरें लगातार आ रही हैं.

इन सबके बीच किसानों को लेकर भाजपा नेताओं के बयान घाव पर नमक छिडकने वाले साबित हो रहे हैं. इसी तरह का ताजा बयान उज्जैन के भाजपा नेता हाकिम सिंह आंजना का है जो पिछले दिनों वायरल हुये एक  वीडियो में किसानों के लिए बहुत ही अपमानजनक और अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुये उन्हें हरामी बेईमान और चोर कहते हुये नजर आ रहे हैं. हालाकि बाद में पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया लेकिन तब तक उनका वीडियो लोगों को मोबाईल में पहुंच चूका था.
 
ऐसे परिस्थितियों में 1 से 10 जून के बीच किसानों का “ग्राम बंद” हड़ताल, मंदसौर गोलीकांड व राहुल गांधी की मंदसौर में रैली ने प्रदेश में सियासत में उबाल ला दिया है. कांग्रेस विधानसभा चुनाव को देखते हुये इसमें मौका देख रही है और इससे शिवराज सरकार की नींद उड़ी हुई है. विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस अध्यक्ष का मध्यप्रदेश में ये पहला कार्यक्रम है जिसे इसे सफल बनाने के लिए कांग्रेस संगठन ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है इसमें दो लाख किसानों को जुटाने का लक्ष्य रखा गया है.

कांग्रेस की इस रणनीति ने भाजपा कितनी बैचेनी है इसे राहुल की रैली को लेकर उसकी प्रतिक्रिया से समझा जा सकता है, सबसे पहले जिला प्रशासन द्वारा राहुल गांधी को रैली करने की इजाजत 19 तरह के शर्तों के साथ दी गयी, फिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐलान किया कि वे राहुल गांधी की रैली से पहले 30 मई को किसानों का हाल जानने के लिये मंदसौर जायेंगें, इस दौरान कई किसानों ने सामने आकर मंदसौर प्रशासन पर आरोप लगाया है कि राहुल के रैली में शामिल होने को लेकर उन्हें धमकाया जा रहा है. स्थानीय प्रशासन द्वारा कई किसानों और कांग्रेस नेताओं को प्रतिबंधात्मक नोटिस भी जारी किये गये हैं.

शिवराज सरकार के इस रवैये पर मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा है कि “कितना शर्मनाक है कि प्रदेश का किसान पुत्र  मुखिया जो किसानों को भगवान और ख़ुद को पुजारी कहता है, उसकी सरकार उन्ही भगवान से कुख्यात अपराधी की तरह शांति भंग के बॉन्ड भरवा रही है. मंदसौर गोलीकांड में मृत किसानो के परिजनो तक को नोटिस भेज दिये गये है.”

इधर कांग्रेस एबीपी न्यूज और लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे को लेकर भी उत्साहित है जिसमें उसके वोट शेयर में 2013 के मुकाबले 13 प्रतिशत की बढ़त दिखाया गया है. सर्वे के मुताबिक़ इस बार मध्यप्रदेश में कांग्रेस को 49 फीसदी वोट शेयर मिल सकता है जबकि भाजपा के 34 प्रतिशत वोट शेयर ही मिल सकता है. जाहिर है सर्वे के मुताबिक़ कांग्रेस को बड़ी बढ़त मिल रही है. भाजपा के वोट प्रतिशत में भारी गिरावट भाजपा लिए खतरे की घंटी की तरह हैं

इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी अनौपचारिक रूप से मध्यप्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो चुके है. चुनाव के मद्देनजर उन्हें कोआर्डिनेशन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया है जो एक तरह से बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है. दरअसल कांग्रेस की मूल समस्या ही नेत्ताओं और उनके अनुयायिओं के बीच समन्वय का अभाव होना रहा है. अब दिग्विजय सिंह जैसे नेता को इसके जिम्मेदारी मिलने से इसमें सुधार देखने को मिल सकता है.

इस दौरान उनकी सियासी यात्रा के लिये नयी तारीखों का ऐलान भी कर दिया गया है जो 31 मई से 31 अगस्त तक चलेगी इस दौरान वे अपने कोआर्डिनेशन कमेटी के साथ  हर जिले का दौरा करके प्रदेश भर कार्यकर्ताओं और नेताओं को एकजुट करने का प्रयास करेंगें. हालांकि पिछले दिनों प्रदेश कार्यसमिति की घोषणा होने बाद से ही जिस तरह से आपसी विवाद खुल कर सामने आये हैं उससे लगता है कि कांग्रेस अभी भी आपसी गुटबाजी की पुरानी बीमारी से पूरी तरह से उबार नहीं पायी है.
 
बहरहाल भाजपा के खिलाफ  सत्ता विरोधी लहर, अपनी नयी टीम, एबीपी न्यूज और लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे और किसान समस्या जैसी जमीनी को उठाकर कांग्रेस मैदान में है और उन्होंने अंगद की तरह पैर जमाये शिवराजसिंह चौहान और उनकी सरकार को बैकफूट पर जाने को मजबूर कर दिया है. अब वे अपनी सरकार की उपलब्धियों, खुद के चहेरे के बजाये संगठन के सहारे चुनाव लड़ने का राग अलाप रहे हैं .

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