दो शब्दों का एक वाक्यांश जो बीजेपी के लिए बड़े काम का साबित हुआ है वह है मुस्लिम तुष्टिकरण. जहाँ तक मुझे याद पड़ता है इसका पुरअसर इस्तमाल सबसे पहले सन 85 शाह बानों के मामले में तब हुआ जब राजीव गाँधी सरकार ने मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के मौलवी साहबों से डर कर एक बेसहारा ग़रीब औरत के पक्ष में लिए गए अदालती फैसले को खारिज कर दिया. इससे मुस्लिम औरतों का जो मुसलमानों कि लगभग आधी आबादी है, नुकसान हुआ. बस, मौलवी साहबों के अहम् को तस्कीन मिल गयी. फिर भी इसे मुस्लिम तुष्टिकरण ठहराने में इतना जोर लगाया कि कांग्रेस को लगने लगा कि अगर फ़ौरन अयोध्या वाला बंद ताला खोला न गया तो बड़ा गंभीर नुक्सान हो जाएगा. ताला खुलना था कि बीजेपी का पव बारह हो गया. वह मस्जिद के ताले की नहीं बल्कि बीजेपी की बंद किस्मत की चाभी थी. शुरुआत हुई उसके उत्थान और कांग्रेस के पतन की.
तब से यह वाक्यांश गेरुआ दल के लिए ब्रह्मास्त्र बना हुआ है और आम मुसलामान को बार-बार कंफ्यूज कर रहा है. वह परेशान हो-हो कर सोचता है कि आखिर उसका तुष्टिकरण कब हुआ, किसने किया और उसका नतीजा क्या हुआ ?
बीजेपी के मुताबिक जिन लोगों का इतना गहन और व्यापक तुष्टिकरण होता आया है तो वे आखिर इतने ग़रीब, बेचारे और बेकार क्यों हैं ? सरकारी नौकरियों में इनकी हालत यह है कि फ़ौज में इनकी तादाद एक फ़ीसद भी नहीं है. पुलिस में इनकी गिनती की मिसाल हम उत्तर प्रदेश से लेते हैं. वह इसलिए कि इनका तुष्टिकरण सबसे ज्यादा यहीं देखा जाता हैं. तो उत्तर प्रदेश के सवा लाख के पुलिस बल में ये अपनी 17 फी सदी आबादी के मुकाबले में तीन प्रतिशत से कम हैं. जहाँ तक PAC की बात है तो यहाँ इनकी संख्या तेईस हज़ार सिपाहियों में फ़क़त एक हज़ार के आस-पास है. इससे आप को लगे हाथ PAC इतना फिरका परस्त क्यों है, इसका भी जवाब मिल जाता है.
जो सियासी पार्टिया मुसलामानों की हमदर्द मानी जाती हैं और तुष्टिकरण के मामले में जिनका नाम गेरुआ दल बार-बार उछाला करता है, उनके TRACK RECORD पर अगर आप गौर करें तो वहां आपको हवा-हवाई ही मिलेगी. मुलायम सिंह यादव ने अपने वक़्त में उर्दू कोटा के नाम से मुस्लिम उर्दू मास्टरों की भर्ती चलायी थी. बीजेपी के एतराज़ से ही बचने के लिए उन्होंने इसे मुस्लिम कोटा की बजाए उर्दू कोटा कहा था. इन में से कुछ टीचरों से मैं मिला हूँ. ये वे उर्दू पढ़ाने वाले थे जिनको इक़बाल और ग़ालिब की शायरी का फर्क तक पता नहीं था. साफ़ ज़ाहिर था कि इन्हें या तो पैसे से नौकरी मिली थी या पहुँच से. इनकी उस्तादी से कितना उर्दू का भला हुआ, कितना उर्दू पढ़ने वाले बच्चों का,समझना कुछ मुश्किल नहीं है. मुलायम हों या मायावती, मुसलमानों का भला करने के नाम पर इन्होनें भला किया तो कुछ मौलवी साहबों का और कई बाहूबलियों का. अगर इनके भले को आप मुस्लिम तुष्टिकरण कहना चाहते हैं तो शौक से कह लीजिये.
आज़ाद भारत के पहले आर्मी चीफ करियप्पा ने कहा था कि फ़ौज में मुसलामानों को भर्ती करना RISKY है. सन 65 की भारत-पाक लड़ाई में मुस्लिम सैनिकों ने दिखा दिया कि करियप्पा साहब कितना ग़लत थे. उसके बाद भी मुसलामानों को फ़ौज की नौकरी से दूर रखने का सिलसिला जारी रहा. सन 80 के दशक में जब RSS मज़बूत होने लगा और उसकी सुनी जाने लगी तो प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह उर्फ़ रज्जू भैया ने करियप्पा वाला ख्याल दोहरा दिया. आज तक फ़ौज में मुसलमानों की संख्या इतनी नगंड है कि राजपूत, सिख, मराठा की तरह उनके नाम का रेजिमेंट कायम करने का ख्याल सत्ता धारियों के ज़हन में कभी आया, न कभी आएगा. इस रवैये के लिए BJP को ही क्यों दोष दिया जाये. वह तो आजादी के साठ साल बाद सत्ता में आयी.
सांप्रदायिक दंगों में कुल मिलाकर दसियों हज़ार मुसलमानों के जान-माल का नुकसान हुआ. कितने मुजरिमों को सजा हुई ? कितनी जांचें अपने न्यायपूर्ण निष्कर्ष तक पहुँचीं? हाशिम पुरा और मलियाना का PAC द्वारा क़त्ल आम हमारे सामने है. सरकारी तंत्र का पक्षपात किसी से छुपा नहीं है. बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद मुंबई में नौ सौ से ज्यादा बेगुनाह अपने घरों और कारोबार समेत ख़त्म कर दिए गए. उन दंगों के बाद बम धमाका हुआ और सैकड़ों लोग उसमें मरे. धमाके के आरोपियों को ढूँढ-ढूँढ कर पकड़ा गया और जो पकड़ में नहीं आये उनकी तलाश अब तक जारी है. लेकिन दंगों के आरोपियों का क्या हुआ जिनके नामों को श्री कृष्ण कमीशन की रिपोर्ट ने जग ज़ाहिर कर दिया ? शिव सेना के मनोहर जोशी जिनकी चीफ मिनिस्ट्री के दौरान वह रिपोर्ट आयी उन्होंने यह कहकर उसे ठन्डे बस्ते में डाल दिया कि इस पर कारवाई होने से साम्प्रदायिक सौहाद्र बिगड़ेगा.
पहली बार... पहली बार साम्प्रदायिक दंगों के मुजरिमों को सजा मिली, गुजरात में. इसका श्रेय अगर सरकार लेती तो यह काफी हास्यस्पद होता. इसलिए सरकार ने ऐसा कुछ करने की कोशिश भी नहीं की. सारी दुनिया को पता था था कि इसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ कुछ समर्पित गैर सरकारी संस्थाओं को जाता है. जैसा अक्सर होता आया है, सरकार ने तो सिर्फ रोड़े अटकाने का काम किया.
BJP ने मुस्लिम तुष्टिकरण का शोर मचाया तो बाकी पार्टियों ने तुष्टिकरण का ड्रामा किया. फर्क यह ज़रूर है कि पहले जो मुसलमानों के साथ ज़बानी हमदर्दी ज़ाहिर की जाती थी भगवा दल वह भी करने की ज़रुरत नहीं समझता.वे पुरानी बातें उसके हिंदुत्व अजेंडे में फिट नहीं बैठतीं. उसे तो तुष्टिकरण रोकना है. इसलिए वह उन मुस्लिम बादशाहों को भी खलनायकों की लिस्ट में शामिल कर रही है जो अभी कुछ वक़्त पहले तक अच्छे माने जाते थे. जो भी सड़कें और शहर अब तक पुराने मुस्लिम नामों से जाने जाते थे उनमें कईयों का नाम बदला जा चुका है और कई कतार में हैं. और ताज्जुब नहीं कि आज जो सड़क औरंगजेब रोड से अब्दुल कलाम रोड बन गयी है वह किसी आने वाले कल में किसी और नाम से पुकारी जाने लगे.
तुष्टिकरण नहीं चाहिए, इसीलिए तो योगी आदित्यनाथ ने मुख्य मंत्री बनते ही पहला सबसे ज़रूरी काम यह किया कि लाइसेंस और सफाई के नाम पर लाखों गोश्त व्यापारियों की दुकानें बंद करा दीं. ये ज़्यादातर रोज़ कमाने और रोज़ खाने वाले छोटे-छोटे दुकानदार थे. हज सब्सिडी बंद हो गयी, चलो अच्छा हुआ. मुस्लिम तुष्टिकरण रोकने के लिए ही बाबरी मस्जिद के खंडहर पर राम मंदिर के लिए बार-बार मुसलामानों को धमकियां दी जा रही हैं.
भारतीय संस्कृति का प्रसार करने के नाम पर दसियों करोड़ रुपया लगा कर हिन्दू धर्म को propogate किया जा रहा है. आदित्य नाथ को cm इसीलिए तो बनाया गया कि मुसलमानों के प्रति उनकी नफ़रत legendary रही है. मुज़फ्फर नगर में मुसलमानों को मरवाने वाले संगीत सोम को मंच पर बुला कर pm साहब ने हार पहनाया. किस बात की शाबाशी थी यह ? गिनते रहिये, लिस्ट ख़त्म नहीं होगी. लेकिन खबरदार, इसे हिन्दू तुष्टिकरण मत कहिये. फँस जाएंगे.
तब से यह वाक्यांश गेरुआ दल के लिए ब्रह्मास्त्र बना हुआ है और आम मुसलामान को बार-बार कंफ्यूज कर रहा है. वह परेशान हो-हो कर सोचता है कि आखिर उसका तुष्टिकरण कब हुआ, किसने किया और उसका नतीजा क्या हुआ ?
बीजेपी के मुताबिक जिन लोगों का इतना गहन और व्यापक तुष्टिकरण होता आया है तो वे आखिर इतने ग़रीब, बेचारे और बेकार क्यों हैं ? सरकारी नौकरियों में इनकी हालत यह है कि फ़ौज में इनकी तादाद एक फ़ीसद भी नहीं है. पुलिस में इनकी गिनती की मिसाल हम उत्तर प्रदेश से लेते हैं. वह इसलिए कि इनका तुष्टिकरण सबसे ज्यादा यहीं देखा जाता हैं. तो उत्तर प्रदेश के सवा लाख के पुलिस बल में ये अपनी 17 फी सदी आबादी के मुकाबले में तीन प्रतिशत से कम हैं. जहाँ तक PAC की बात है तो यहाँ इनकी संख्या तेईस हज़ार सिपाहियों में फ़क़त एक हज़ार के आस-पास है. इससे आप को लगे हाथ PAC इतना फिरका परस्त क्यों है, इसका भी जवाब मिल जाता है.
जो सियासी पार्टिया मुसलामानों की हमदर्द मानी जाती हैं और तुष्टिकरण के मामले में जिनका नाम गेरुआ दल बार-बार उछाला करता है, उनके TRACK RECORD पर अगर आप गौर करें तो वहां आपको हवा-हवाई ही मिलेगी. मुलायम सिंह यादव ने अपने वक़्त में उर्दू कोटा के नाम से मुस्लिम उर्दू मास्टरों की भर्ती चलायी थी. बीजेपी के एतराज़ से ही बचने के लिए उन्होंने इसे मुस्लिम कोटा की बजाए उर्दू कोटा कहा था. इन में से कुछ टीचरों से मैं मिला हूँ. ये वे उर्दू पढ़ाने वाले थे जिनको इक़बाल और ग़ालिब की शायरी का फर्क तक पता नहीं था. साफ़ ज़ाहिर था कि इन्हें या तो पैसे से नौकरी मिली थी या पहुँच से. इनकी उस्तादी से कितना उर्दू का भला हुआ, कितना उर्दू पढ़ने वाले बच्चों का,समझना कुछ मुश्किल नहीं है. मुलायम हों या मायावती, मुसलमानों का भला करने के नाम पर इन्होनें भला किया तो कुछ मौलवी साहबों का और कई बाहूबलियों का. अगर इनके भले को आप मुस्लिम तुष्टिकरण कहना चाहते हैं तो शौक से कह लीजिये.
आज़ाद भारत के पहले आर्मी चीफ करियप्पा ने कहा था कि फ़ौज में मुसलामानों को भर्ती करना RISKY है. सन 65 की भारत-पाक लड़ाई में मुस्लिम सैनिकों ने दिखा दिया कि करियप्पा साहब कितना ग़लत थे. उसके बाद भी मुसलामानों को फ़ौज की नौकरी से दूर रखने का सिलसिला जारी रहा. सन 80 के दशक में जब RSS मज़बूत होने लगा और उसकी सुनी जाने लगी तो प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह उर्फ़ रज्जू भैया ने करियप्पा वाला ख्याल दोहरा दिया. आज तक फ़ौज में मुसलमानों की संख्या इतनी नगंड है कि राजपूत, सिख, मराठा की तरह उनके नाम का रेजिमेंट कायम करने का ख्याल सत्ता धारियों के ज़हन में कभी आया, न कभी आएगा. इस रवैये के लिए BJP को ही क्यों दोष दिया जाये. वह तो आजादी के साठ साल बाद सत्ता में आयी.
सांप्रदायिक दंगों में कुल मिलाकर दसियों हज़ार मुसलमानों के जान-माल का नुकसान हुआ. कितने मुजरिमों को सजा हुई ? कितनी जांचें अपने न्यायपूर्ण निष्कर्ष तक पहुँचीं? हाशिम पुरा और मलियाना का PAC द्वारा क़त्ल आम हमारे सामने है. सरकारी तंत्र का पक्षपात किसी से छुपा नहीं है. बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद मुंबई में नौ सौ से ज्यादा बेगुनाह अपने घरों और कारोबार समेत ख़त्म कर दिए गए. उन दंगों के बाद बम धमाका हुआ और सैकड़ों लोग उसमें मरे. धमाके के आरोपियों को ढूँढ-ढूँढ कर पकड़ा गया और जो पकड़ में नहीं आये उनकी तलाश अब तक जारी है. लेकिन दंगों के आरोपियों का क्या हुआ जिनके नामों को श्री कृष्ण कमीशन की रिपोर्ट ने जग ज़ाहिर कर दिया ? शिव सेना के मनोहर जोशी जिनकी चीफ मिनिस्ट्री के दौरान वह रिपोर्ट आयी उन्होंने यह कहकर उसे ठन्डे बस्ते में डाल दिया कि इस पर कारवाई होने से साम्प्रदायिक सौहाद्र बिगड़ेगा.
पहली बार... पहली बार साम्प्रदायिक दंगों के मुजरिमों को सजा मिली, गुजरात में. इसका श्रेय अगर सरकार लेती तो यह काफी हास्यस्पद होता. इसलिए सरकार ने ऐसा कुछ करने की कोशिश भी नहीं की. सारी दुनिया को पता था था कि इसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ कुछ समर्पित गैर सरकारी संस्थाओं को जाता है. जैसा अक्सर होता आया है, सरकार ने तो सिर्फ रोड़े अटकाने का काम किया.
BJP ने मुस्लिम तुष्टिकरण का शोर मचाया तो बाकी पार्टियों ने तुष्टिकरण का ड्रामा किया. फर्क यह ज़रूर है कि पहले जो मुसलमानों के साथ ज़बानी हमदर्दी ज़ाहिर की जाती थी भगवा दल वह भी करने की ज़रुरत नहीं समझता.वे पुरानी बातें उसके हिंदुत्व अजेंडे में फिट नहीं बैठतीं. उसे तो तुष्टिकरण रोकना है. इसलिए वह उन मुस्लिम बादशाहों को भी खलनायकों की लिस्ट में शामिल कर रही है जो अभी कुछ वक़्त पहले तक अच्छे माने जाते थे. जो भी सड़कें और शहर अब तक पुराने मुस्लिम नामों से जाने जाते थे उनमें कईयों का नाम बदला जा चुका है और कई कतार में हैं. और ताज्जुब नहीं कि आज जो सड़क औरंगजेब रोड से अब्दुल कलाम रोड बन गयी है वह किसी आने वाले कल में किसी और नाम से पुकारी जाने लगे.
तुष्टिकरण नहीं चाहिए, इसीलिए तो योगी आदित्यनाथ ने मुख्य मंत्री बनते ही पहला सबसे ज़रूरी काम यह किया कि लाइसेंस और सफाई के नाम पर लाखों गोश्त व्यापारियों की दुकानें बंद करा दीं. ये ज़्यादातर रोज़ कमाने और रोज़ खाने वाले छोटे-छोटे दुकानदार थे. हज सब्सिडी बंद हो गयी, चलो अच्छा हुआ. मुस्लिम तुष्टिकरण रोकने के लिए ही बाबरी मस्जिद के खंडहर पर राम मंदिर के लिए बार-बार मुसलामानों को धमकियां दी जा रही हैं.
भारतीय संस्कृति का प्रसार करने के नाम पर दसियों करोड़ रुपया लगा कर हिन्दू धर्म को propogate किया जा रहा है. आदित्य नाथ को cm इसीलिए तो बनाया गया कि मुसलमानों के प्रति उनकी नफ़रत legendary रही है. मुज़फ्फर नगर में मुसलमानों को मरवाने वाले संगीत सोम को मंच पर बुला कर pm साहब ने हार पहनाया. किस बात की शाबाशी थी यह ? गिनते रहिये, लिस्ट ख़त्म नहीं होगी. लेकिन खबरदार, इसे हिन्दू तुष्टिकरण मत कहिये. फँस जाएंगे.