मैं अब भी नहीं समझ पाता कि मोहब्बत में पड़ा लड़का फोन पर लगातार तीन घंटे क्या बतियाता है। न्यू ईयर पर इस बार भी लड़कियों कर साथ छेड़खानी हुई पर खुशी यह कि कुछ बुद्धिमान लोगों ने #not_all_men अभियान नहीं चलाया। ठंड से मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है पर अफसोस कि सरकार तबले की जगह कंबल बाट रही है।
Image: Hanif Malek / Indian Express
आधार पर खबर चलाने पर पत्रकारों पर FIR हो रहे हैं, जनता अब भी पत्रकारों को बिकाऊ बता रही है और सरकार के साथ खड़ी है। कुछ लोग लोकतंत्र को बचाने के लिए लगातार सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं, वे जमीन पर काम कर रहे हैं। वे अब भी एक बेहतर भारत की उम्मीद में हैं। मैं इनसे सीखने की कोशिश करता हूँ। आलू 15 रुपये किलो है पर ग्राहक अब भी 'कुछ कम कर लो न' की रट लगाए बैठे हैं। प्याज चार महीने से 50रुपये/ kg के नीचे नहीं आई। महंगाई के खिलाफ सरकार के विरोध में सड़क पर उतरने वाले लोग ठंडी के कम हो जाने का इंतज़ार कर रहे हैं। सुदूर गांव में 4 डिग्री टेम्परेचर में हल्कू रात भर जागकर अब भी अपनी बची हुई फसल को बचाने के लिए जगता रहता है। अफसोस कि गाय और सांड हलकू को तड़पा-तड़पा कर मार रहे हैं। हल्कू डंडे भी नहीं चला सकता। उसके हाथ कानून से बंधे हुए हैं। सरकार गौ के नाम पर हत्या करने वालों का समर्थन अब भी नहीं करती, वो बात अलग है कि विरोध भी नहीं करती। यूपी वालों ने इस बार के विधानसभा चुनाव में भी एक अलग पार्टी को बहुमत दिया पर पार्टी ने उन्हें पेंटर दिया है जो पूरे प्रदेश को भगवा कर देने में लगा है।
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आधार पर खबर चलाने पर पत्रकारों पर FIR हो रहे हैं, जनता अब भी पत्रकारों को बिकाऊ बता रही है और सरकार के साथ खड़ी है। कुछ लोग लोकतंत्र को बचाने के लिए लगातार सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं, वे जमीन पर काम कर रहे हैं। वे अब भी एक बेहतर भारत की उम्मीद में हैं। मैं इनसे सीखने की कोशिश करता हूँ। आलू 15 रुपये किलो है पर ग्राहक अब भी 'कुछ कम कर लो न' की रट लगाए बैठे हैं। प्याज चार महीने से 50रुपये/ kg के नीचे नहीं आई। महंगाई के खिलाफ सरकार के विरोध में सड़क पर उतरने वाले लोग ठंडी के कम हो जाने का इंतज़ार कर रहे हैं। सुदूर गांव में 4 डिग्री टेम्परेचर में हल्कू रात भर जागकर अब भी अपनी बची हुई फसल को बचाने के लिए जगता रहता है। अफसोस कि गाय और सांड हलकू को तड़पा-तड़पा कर मार रहे हैं। हल्कू डंडे भी नहीं चला सकता। उसके हाथ कानून से बंधे हुए हैं। सरकार गौ के नाम पर हत्या करने वालों का समर्थन अब भी नहीं करती, वो बात अलग है कि विरोध भी नहीं करती। यूपी वालों ने इस बार के विधानसभा चुनाव में भी एक अलग पार्टी को बहुमत दिया पर पार्टी ने उन्हें पेंटर दिया है जो पूरे प्रदेश को भगवा कर देने में लगा है।
'जातिवाद कहाँ है अब ?' यह पूछने वालों की संख्या बढ़ गयी है वो बात अलग की पूछने वाला अगले ही क्षण बोल उठता है- चमार भी अब आंदोलन करेंगे।
मैं खड़े-खड़े सोचता हूँ, आंदोलन करना, अपना हक मांगना यह काम तो सिर्फ सवर्णों का है। दलित सीवर नालों से बाहर आ गया तो गंदगी कौन साफ करेगा ?
तीन साल से भक्त प्रजाति एक के बदले दस सिर का इंतज़ार कर रही है पर अफसोस कि सरकार उदार है और एक के बदले दो सिर दे रही है। मैं अब भी बेवकूफों की तरह दोनों देशों के बीच 'अमन की आशा' वाली निगाहों से देख रहा हूँ। हाँ, बेवकूफों की तरह... क्योंकि इस देश में अब अमन और भाईचारे की बात करने वाला लोगों को बेवकूफ ही तो लगता है।
इतना कुछ हो रहा है पर अब भी प्रेम में पड़ा लड़का फोन पर लगातार तीन घंटे बतियाता है। मैं सोचता हूँ, वह तीन घंटे क्या बतियाता होगा ? क्या वह प्रेमिका से दलित आंदोलन की बात करता होगा ? महंगाई की बात करता होगा ? या फिर लोकतंत्र, नेहरू, गाँधी, अम्बेडकर, भगतसिंह की बात करता होगा ? मैं फिर सोचता हूँ, वह तो मोहब्बत में है, मोहब्बत की बात करता होगा ! आखिर जरूरी भी तो है, इस हिंसा से भरे दौर में मोहब्बत की बात करना।