भाजपा से आयातित नेताओं को कैसे स्वीकारें सामाजिक न्याय के समर्थक ?

Written by विद्या भूषण रावत | Published on: March 28, 2019
नई सरकार को बने अभी एक साल ही हुआ था और पूरे नेता मोदी रंग में रंगे हुए थे. समाजवाद के सहारे संसद में पहुंचे मौसम विज्ञानियों ने भी हिंदुत्व का दामन थाम लिया था और पुनः संसद में पहुँच गए थे. बुंदेलखंड के चित्रकूट क्षेत्र में मैं दो दशको से अधिक समय से आता जाता रहा हूँ और वहां के कोल आदिवासी समुदाय की स्थितियों से वाकिफ भी था और बहुत बार उनके प्रश्नों को कई मंचों पर उठाया भी था. पूरे इलाहाबाद से लेकर कर्वी, चित्रकूट, मानेक्पुर क्षेत्र कोल बहुल है लेकिन मजाल क्या कि इस क्षेत्र से कोई भी पार्टी कभी किसी कोल को टिकट दे. संसद के लिए गुप्ता, वर्मा, पाण्डेय इत्यादि यहाँ के प्रचलित उम्मीद्वार होते हैं.

बात 2015 के आखिर की रही होगी. हमारे मित्र राम जी सिंह जो अब हामारे बीच में नहीं है, ने कोल समुदाय की मांगों को लेकर मनेकपुर में एक जनसुनवाई का आग्रह किया. मैंने उन्हें बताया कि ठीक है मैं कार्यक्रम में सम्मिलित होउंगा लेकिन समुदाय की अच्छी भागीदारी होनी चाहिए. स्थानीय साथियों ने जोर लगाया ताकि एक बड़ा सम्मेल्लन हो और कोलों के सामुदायिक प्रश्नों का उत्तर ढूँढा जा सके या उन्हें सत्ता और तंत्र तक तो पहुंचाया जाए. हालाँकि हम जानते हैं कि सत्ता के लोग इन बातों को भलीभांति जानते हैं.

इस कार्यक्रम की जानकारी स्थानीय सांसद महोदय को लगी तो उन्होंने अपना व्यक्तिगत मैदान सभा करने के लिए दे दिया. साथियों ने सांसद जी को भी आमंत्रित कर दिया. एक सांसद होने के नाते किसी को भी गैर राजनैतिक कार्यक्रम में शामिल होकर अपनी पार्टी के एजेंडे पर बात रखने का अधिकार है और मैं इसे बुरा नहीं मानता.

मैं कार्यक्रम से एक दिन पहले चित्रकूट पहुँच गया तो स्थानीय बाज़ार में कार्यक्रम सम्बन्धी बैनर पढ़कर दंग रह गया. कार्यक्रम को आदिवासी सम्मलेन बताकर भाजपा का बताने की कोशिश की गयी थी. मैंने साथियों से पता किया तो उन्होंने ये कहकर बात ख़ारिज कर दी कि ये सांसद जी के लोगों ने किया होगा, हमारे बैनर पर यह जनसुनवाई ही है. मैंने साफ़ कह दिया था कि ये कार्यक्रम राजनैतिक नहीं है, मतलब किसी राजनैतिक दल का नहीं है. हालाँकि राजनैतिक नेता अपनी बात रख सकते हैं.

कार्यक्रम के दिन सांसद महोदय अपने बड़े हुजूम के साथ वहां पहुंचे तो उनके समर्थकों ने जिंदाबाद के नारे लगाए. फिर कुछ देर हमारे साथियों को सुनने के बाद, सांसद महोदय ने अपनी बात रखनी शुरू की. उनके साथ उनके अपने फोटोग्राफर, किराए वाले पत्रकार, कुछ छुटभैये नेता थे. भीड़ को देखकर वह बहुत खुश थे. उन्होंने बोलना शुरू किया: इतने वर्षों ये हाथ वालों ने आपके हाथ काट डाले, ई साइकिल वालों ने लूट दिया, हाथी वाली ने क्या दिया. सब ने आपको लूटा, आपका शोषण किया, ये सब जातिवादी हैं, किसी को आप से कुछ नहीं मिला लेकिन अब आपका समय है. मोदी जी और अमित शाह जी ही आपका विकास करेंगे. बस चिंता छोडिये. सांसद जी की भाषा बहुत ही घटिया थी जिसे मैं नहीं लिख सकता. उनके बोलने का स्टाइल बिलकुल अमित शाह और नरेन्द्र मोदी वाला था. अपने विरोधियों के लिए निंदा और व्यक्तिगत आक्षेप वाला. 

मैं पीछे खड़ा बोल रहा था, सांसद जी, ये पार्टी का कार्यक्रम नहीं है, हमने आपको दूसरो की निंदा के लिये नहीं बुलाया है, लेकिन वो उसको इग्नोर करते रहे. हद तो तब हो गयी जब उन्होंने कहा कि वह आज के जमावड़े से बहुत खुश हैं और सबको एक एक कम्बल देना चाहते हैं. दरअसल नवम्बर शुरू हो चुका था और ठंड भी आ ही रही थी. मैंने कोलों के बीच इतना जीवन बिताया है. मेरी तरक्की में इनका बहुत बड़ा योगदान है. मैंने सोचा बिल्कुल सही कह रहे हैं. कोलों के जंगल में आपने अपना मंगल ग्रह खोल दिया लेकिन कोलों के पास रहने को घर नहीं है. सांसद जी कम्बल से ही नहीं रुके, उन्होंने घोषणा की कि मेरी पत्नी भी आज बहुत खुश हैं. वो कोल महिलाओं के दर्द को जानती हैं और वो इन अब महिलाओं को जो यहाँ आई है, एक-एक साडी देना चाहती हैं. उन्होंने अपने लोगों से कहा कि सबके नाम पते नोट कर लो ताकि उन्हें हम साडी दे सकें. मुझे बहुत गुस्सा आया, मैंने पीछे से कहा सांसद जी ये कार्यक्रम जन सुनवाई है, साड़ी-कम्बल बांटने का कार्यक्रम नहीं है, कृपया कोल समुदाय की जल जंगल जमीन के प्रश्नों पर कुछ बोलिए. लेकिन वह लगातार मेरी बातों को ध्यान नहीं दिए. वैसे नेताओं को ये लगता है कि धरती पर उनसे ज्यादा समझदार और ताकतवार कोई है ही नहीं. हममें से भी अधिकांश लोग अलग-अलग कार्यक्रम करके ये ही सोचते हैं कि 'देश सेवा' के लिए सांसद बनना ही आवश्यक है जैसे कोई और कोई कार्य ही नहीं कर रहे और इन्होंने इतने तीर चला दिए हैं कि सबकुछ संपन्न हो चुका.

खैर, सांसद महोदय ने भाषण समाप्त किया और वो मंच से निकलकर जाने लगे. हमारे मित्र रामजी ने कहा कि आपको धन्यवाद प्रस्ताव रखना है. मैंने उन्हें कहा कि मुझे अपनी बात रखनी है और सांसद की बात का जवाब भी देना है. मैंने मंच से अपना वक्तव्य शुरू किया कि सांसद महोदय को बहुत धन्यवाद कि वे यहाँ आये. लेकिन मैं लोगों से साफ़ कहना चाहता हूँ कि आपकी समस्याओं का समाधान साडी और कम्बल से नहीं होने वाला. हमने सांसद महोदय को कोल समुदाय के जल जंगल जमीन के सवालों पर अपनी बात रखने के लिए बुलाया लेकिन इस मसले पर वह कुछ नहीं बोले. ऐसा नहीं है कि उन्हें पता नहीं है कि बुंदेलखंड का जो हिस्सा उत्तर प्रदेश में है, वहां कोल को अनुसूचित जनजाति का दर्जा ही नहीं मिला है. जबकि वहीं से एक किलोमीटर पर मध्य प्रदेश में कोल आदिवासी दर्जा प्राप्त है. सांसद के चेलों ने मुझे घेरने की कोशिश की लेकिन कुछ कर नहीं पाए.

दरअसल, ये महोदय इलाहाबाद से लेकर बाँदा तक नियंत्रण चाहते हैं. उन्होंने पहले भी प्रयास किये बांदा चित्रकूट से और हिंदुत्व की आंधी में वह इलाहाबाद से चुनाव जीत गए और सुना है कि माननीय महोदय ने अभी हिंदुत्व का चोगा निकाल फिर से समाजवाद जिंदाबाद का नारा लागना शुरू कर दिया है और ख़ुशी में गदगद पार्टी ने उन्हें पुनः उसी क्षेत्र से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है.

लोगों ने मेरी बात को सुना और मुझे उम्मीद है उसे याद भी रखेंगे कि सांसद महोदय ने मुलायम सिंह यादव, समाजवादी पार्टी, मायावती, बहुजन समाज पार्टी का कैसे मजाक उड़ाया.

इसी मानेकपुर चित्रकूट में एक दूसरे सांसद ने एक बार मेरी इस बात पर कि ये सीट आदिवासियों के लिए सुरक्षित घोषित की जानी चाहिए, को ये कह कर ख़ारिज किया कि इससे आदिवासियों का बहुत नुकसान हो जाएगा. मुझे ये समझ नहीं आया कि आदिवासियों को संसद और विधान सभाओं में भागीदार बनाने से उनका क्यों नुकसान होगा?

उत्तर प्रदेश के सामाजिक न्याय के लोगों को सोचना पड़ेगा, उनके विमर्श में कोल, थारू, बाल्मीकि, हेल्ला, डॉम, बन्स्फोर, कलंदर, हलालखोर, आदि समुदाय कहां है? क्या इनके लिए कोई जगह है या नहीं?

सामाजिक न्याय से संबधित बहुत से साथी आज इसी झंझावत में फंसे हैं कि वो उन लोगों को सिर्फ पार्टी के नाम पर कैसे वोट करें जो दलितों की हत्या के आरोपी हों, या जिनका हिंदुत्व की शक्तियों के साथ जनम जन्म का साथ है और वे केवल अपने लिए आपके यहाँ आये है.

हम चाहते हैं कि सपा बसपा अपने मेहनतकश काडर का सम्मान करें और हर वक़्त राजनैतिक मजबूरियों के नाम पर अपने निष्ठावान लोगों को किनारे न लगाएं. गाँवों में लोगों में बहुत उत्साह भी है और बहुत स्थानों पर असमंजश और नाराजगी भी. उम्मीद है पार्टी नेतृत्व कार्यकर्ताओं की बात सुनकर कार्यवाही करेगा.

लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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