कितना सच है भारतीय मुसलामानों का पाकिस्तान प्यार ?

Written by एच. आई. पाशा | Published on: July 9, 2018
कोई वेब साईट है, hindu republic of india. इसके नाम से पिछले साल से सोशल मीडिया पर एक वीडियो चल रहा है जो बताता है कि भारतीय सेना में महार, मराठा और राजपूत आदि की तरह एक मुस्लिम रेजिमेंट भी होता था. सन 65 में भारत-पकिस्तान के बीच लड़ाई हुई तो इस रेजिमेंट के फौजियों ने पाकिस्तान के खिलाफ लड़ने से इनकार कर दिया.इसके बाद ही मुस्लिम रेजिमेंट को बर्खास्त कर दिया गया. और अब भारतीय सेना में कोई मुस्लिम रेजिमेंट नहीं है. यह मुस्लिम सिपाहियों को उनकी गद्दारी की सजा थी.



विडियो चलाने वालों को इस सफ़ेद झूठ से क्या मिल रहा है, उनके कौन से मक़सद या एजेंडा को मदद मिल रही है, यह तो वही जानें, अफ़सोस और चिंता की बात यह है कि इस वीडियो को लाखों लोग अब तक देख और like कर चुके हैं.

सोशल मीडिया पर यह विडियो वायरल होने के कुछ ही समय बाद एक न्यूज़ चैनल ने दो रिटायर्ड फौजी अफसरों, कर्नल तेज टिक्कू और मेजर जनरल सतवीर सिंह से इसकी पुष्टि मांगी. दोनों ने ही पुरज़ोर तरीके से इस बात का खंडन किया और कहा कि आज़ादी के बाद भारतीय फ़ौज में कोई भी रेजिमेंट मुस्लिम रेजिमेंट नाम से नहीं था. अंग्रेज़ी हुकूमत में एक नहीं बल्कि कई इलाकाई मुस्लिम रेजिमेंट्स थीं. आज़ादी के बाद तय हुआ कि सेक्युलर देश में धर्म या सम्प्रदाय के नाम से रेजिमेंट नहीं हो सकते. एक सिख रेजिमेंट ज़रूर है लेकिन उसकी वजह कुछ ख़ास है.

किस-किस बहाने से भारतीय मुसलमानों पर पाकिस्तान को थोपने की कोशिशें हो रहीं हैं. लोग ज़रा सा भी सामान्य समझ से काम लें तो इस तरह के सारे सफ़ेद झूठ आसानी से समझे जा सकते हैं. पर सवाल है कि समाज को बांटने वालों ने क्या हम सब के ज़हनों में सामान्य समाझ को सामान्य रहने दिया है ?

अगर हिन्दुस्तानी मुसलमानों को पकिस्तान से इतना ही प्यार होता तो बटवारा होते ही वे सब के सब पकिस्तान रवाना हो चुके होते. ऐसा कहाँ हुआ! जितने मुसलमान पाकिस्तान गए, उससे कहीं ज़्यादा यहीं रह गए. यह उनका अपना फैसला था. वे अपने पुरखों की हड्डियों और अपनी जड़ों को छोड़ कर कहीं भी जाने को तैयार नहीं थे. न उन्होंने अलग मुल्क की मांग की थी, न वहां वे जाना चाहते थे. जिन्हें जाना था, जिन्हें पाकिस्तान में रहने में ज़्यादा सुरक्षा लग रही थी वे चले गए.

उस तरह की सोच वाले फौजी भी चले गए. उन मुस्लिम सिपाहियों में भी ज़्यादातर यहीं रहे. इसीलिए पाकिस्तानी फ़ौज में पंजाबियों और सिंधियों की तादाद ज़्यादा है. वजह यही थी कि पंजाबी, सिन्धी और पठान उसी भू खंड के रहने वाले थे जो पाकिस्तान में चला गया. बटवारे के वक़्त जिन मुस्लिम सिपाहियों और अफसरों को अपना मुल्क चुनने के लिए कहा गया था उनमें मेरे अब्बा भी थे. ज़्यादातर हिन्दुस्तानी मुसलामानों की तरह मेरे अब्बा ने भी हिन्दुस्तानी सेना को चुना.छठें और सातवें दशक में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ लड़ाइयों में वह भी शामिल हुए और पूरे जोश-खरोश के साथ हुए. सन 65 के युद्ध में सबसे बड़ा सेना पुरस्कार हवलदार अब्दुल हमीद को उनकी शहादत के बाद मिला. अब्दुल हमीद ग्रेनेडिएर रेजिमेंट से थे. इस रेजिमेंट में मुसलामानों की संख्या सब से ज़्यादा है. 65 की लड़ाई में ग्रेनेडिएर रेजिमेंट की वाफादारी और बहादुरी भारतीय सेना के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज है.

और ये कहते हैं कि मुस्लिम फौजियों ने गद्दारी की. और मानने वालों ने मान भी लिया.

अपने देश और अपने हुक्मरां के लिए मुस्लिम जांबाजों की वफादारी legendary है. जिसकी सेवा में वे रहे दिलो-जान से उनके हो कर रहे. शिवा जी को हिन्दू राष्ट्रीयता का एतिहासिक प्रतीक माना जाता है, उनकी सेनाओं में मुसलामानों की तादाद कुछ कम नहीं थी. उनकी नौसेना का चीफ एक मुसलमान था. अफज़ल खान से उनकी जो मुलाक़ात तय हुई थी उसके लिए उनके साथ जो प्रमुख सलाहकार था वह भी एक मुसलमान था. राणा प्रताप की सेना में अकबर की फ़ौज ( जिसके कमांडर राजा मान सिंह थे ) से लोहा लेने वाले बहुत सारे मुसलमान भी थे. अब कोई चाहे तो इन सारी सच्चाइयों को भी बदल दे. अपनी नौकरियों में मुसलमानों को लेना मुसलामानों पर कोई ख़ास मेहरबानी करना नहीं था. उनकी जीवटता और अपने राजा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता संदेह से परे थी.

सोचने की बात है, हिन्दुस्तानी मुसलामानों को पाकिस्तान से प्यार भला क्यों होने लगा ! पकिस्तान बनने का सबसे ज़्यादा नुक्सान तो उन्ही का हुआ. कैसा नुक्सान हुआ और जो अभी भी हो रहा है उस पर ज़्यादा सिर खपाने की ज़रुरत नहीं है. सब साफ़ है. हाँ, वे पकिस्तान और भारत के बीच अच्छे रिश्तों की कामना ज़रूर रखते हैं. इसकी वजह सिर्फ एक है--खून के रिश्तों वाले वो अज़ीज़ जो उस तरफ हैं. अच्छे रिश्ते का मतलब है उन संबंधों के बने रहने की उम्मीद. सब जानते हैं इस सच को, न मानना अलग बात है.

और आखिर में-- जितने लोग अब तक देश के खिलाफ जासूसी करते पकड़े गए हैं, जिन्होंने हथियारों की धांधली भरी खरीद-फ़रोख्त में करोड़ों का काला धन अर्जित किया, जिन्हें शहीद सैनिकों के लिए ताबूतों की खरीद में भी धांधली करते शर्म नहीं आई, वे क्या वाकई मुसलमान थे ? जवाब दीवार पर लिखा है. पढ़ने वाली नज़र चाहिए.
 

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