जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी-भाषी लोगों को हाल ही में दिए गए आरक्षण के ख़िलाफ़ गुर्जर और बकरवाल समूह 4 नवंबर को बारामुला से कठुआ तक मार्च करेंगे।
गुर्जर और बकरवाल जॉइंट एक्शन कमेटी के सदस्य शुक्रवार को श्रीनगर में मीडिया को संबोधित करते हुए।
गुर्जर और बकरवाल जॉइंट एक्शन कमेटी के सदस्य शुक्रवार को श्रीनगर में मीडिया को संबोधित करते हुए।
श्रीनगर: गुर्जर और बकरवाल समुदायों के सदस्यों ने इलाक़े में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे को "कमजोर" करने के ख़िलाफ़ 4 नवंबर को उत्तरी कश्मीर के बारामूला से जम्मू के कठुआ ज़िले तक मार्च करने के लिए शुक्रवार को एक ज्वाइंट एक्शन कमेटी (जेएसी) का गठन किया।
जेएसी में गुर्जर-बकरवाल कॉन्फ्रेंस जम्मू कश्मीर, गुर्जर-बकरवाल यूथ वेलफेयर कॉन्फ्रेंस, ऑल ट्राइबल कोऑर्डिनेशन कमेटी, इंटरनेशनल गुज्जर महासभा व गुज्जर-बकरवाल स्टूडेंट यूनियन और निर्वाचित प्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं सहित कई समूहों के सदस्य शामिल हैं। इस कमेटी ने तीन मांगें रखी है।
जेएसी ने जम्मू-कश्मीर कमीशन ऑन सोशियली एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लासेज की रिपोर्ट को भी ख़ारिज कर दिया। इसकी अध्यक्षता सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति जीडी शर्मा ने की। कमेटी ने केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) के पहाड़ी-भाषी लोगों के लिए आरक्षण की सिफारिश की है।
इसने आयोग के पुनर्गठन की मांग करते हुए दावा किया कि इसमें एसटी, एससी और अन्य पिछड़ा वर्ग के सदस्यों की कमी है और कहा कि "उच्च जाति के मुसलमान और हिंदू समाज के लोग हाशिए पर मौजूद लोगों के साथ अदालती निर्णय नहीं कर सकते"। जेएसी ने वन अधिकार अधिनियम, 2006 के उचित कार्यान्वयन की भी मांग की।
जनजातीय कार्यकर्ता और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की आदिवासी शाखा के युवा अध्यक्ष एवं जेएसी के प्रवक्ता तालिब हुसैन ने कहा कि इस मार्च से एसटी के दर्जे को कम करने के ख़िलाफ़ दूर-दराज के इलाकों में आदिवासी समुदायों के बीच जागरूकता बढ़ने की उम्मीद है।
हुसैन ने श्रीनगर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, "न्यायमूर्ति जीडी शर्मा आयोग की हालिया रिपोर्ट ने उन समूहों और समुदायों को प्रस्तावित अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करके सामाजिक न्याय का मज़ाक बनाया है जो अतीत में शासक वर्ग रहे हैं और आर्थिक और सामाजिक रूप से बेहतर हैं।" ।
2011 की जनगणना के अनुसार, कश्मीरी और डोगरा समाज के बाद जम्मू-कश्मीर में गुज्जर-बकरवाल समुदाय को तीसरा सबसे बड़ा स्थानीय समुदाय माना जाता है जिसके 15 लाख सदस्य हैं। दशकों के संघर्ष के बाद 1991 में तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य में इस ख़ानाबदोश समुदायों को एसटी का दर्जा दिया गया था।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा इस महीने की शुरुआत में राजौरी में एक सार्वजनिक रैली में पहाडि़यों के लिए आरक्षण की घोषणा के बाद से ये समुदाय विरोध कर रहे हैं।
गुर्जर और बकरवाल का मानना है कि पहाड़ी लोगों की सामाजिक स्थिति उच्च होती है और वे इस क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों को भी नियंत्रित करते हैं। जेएसी ने एक बयान में कहा, “वे न तो पिछड़े हैं और न ही ग़रीब हैं और उनमें जनजाति की सूची में रहने की कोई आवश्यकता नहीं है। एक जटिल जाति संरचना वाले धर्मों के समूह को जनजाति के रूप में नामित नहीं किया जा सकता है।”
हुसैन ने समुदायों के भिन्न समूह को इथनिक ग्रुप विशेष रूप से पहाड़ी बताने पर सरकार के इरादे पर सवाल उठाया है जबकि पहाड़ी को आदिवासी कार्यकर्ता इन्हें सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई रूप से एक "विविध समूह" कहते हैं।
उन्होंने आगे कहा, “सैयद इथनिकली ब्राह्मण के समान कैसे हो सकता है? सैयद का दावा है कि वे यहां सऊदी अरब से आए थे। इसलिए, वे आदिवासी के समान नहीं हो सकते, जो पीर पंजाल और बारामूला या कुपवाड़ा में रहते हैं।”
कमेटी ने यह भी आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार "वोट के लिए आरक्षण के मुद्दे का राजनीतिकरण कर रही है"। हुसैन ने कहा कि, “हम संविधान को बचाने के लिए लड़ रहे हैं, जिसने दलितों और आदिवासियों जैसे हाशिए के वर्गों को सशक्त बनाया है। हम अपने आंदोलन का समर्थन करने के लिए देश के आदिवासियों तक पहुंचेंगे। यह सिर्फ़ एक स्थानीय नहीं बल्कि राष्ट्रीय मुद्दा है और एसटी वर्ग में ऊंची जातियों के शामिल होने से राष्ट्रीय स्तर पर सभी आदिवासी समुदायों पर असर पड़ेगा।"
ज़ाहिर तौर पर, जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने केंद्र शासित प्रदेश में सामाजिक जाति की सूची में 15 नई श्रेणियां शामिल कीं जिसको लेकर अधिकारियों का कहना है कि इससे हाशिए पर मौजूद समुदायों को शिक्षा और नौकरी पाने में मदद मिलेगी। हालांकि, उनमें से कुछ ने इस फ़ैसले का विरोध करते हुए कहा कि वे बेहतर प्लेसमेंट के हक़दार हैं।
Courtesy: Newsclick
जेएसी में गुर्जर-बकरवाल कॉन्फ्रेंस जम्मू कश्मीर, गुर्जर-बकरवाल यूथ वेलफेयर कॉन्फ्रेंस, ऑल ट्राइबल कोऑर्डिनेशन कमेटी, इंटरनेशनल गुज्जर महासभा व गुज्जर-बकरवाल स्टूडेंट यूनियन और निर्वाचित प्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं सहित कई समूहों के सदस्य शामिल हैं। इस कमेटी ने तीन मांगें रखी है।
जेएसी ने जम्मू-कश्मीर कमीशन ऑन सोशियली एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लासेज की रिपोर्ट को भी ख़ारिज कर दिया। इसकी अध्यक्षता सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति जीडी शर्मा ने की। कमेटी ने केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) के पहाड़ी-भाषी लोगों के लिए आरक्षण की सिफारिश की है।
इसने आयोग के पुनर्गठन की मांग करते हुए दावा किया कि इसमें एसटी, एससी और अन्य पिछड़ा वर्ग के सदस्यों की कमी है और कहा कि "उच्च जाति के मुसलमान और हिंदू समाज के लोग हाशिए पर मौजूद लोगों के साथ अदालती निर्णय नहीं कर सकते"। जेएसी ने वन अधिकार अधिनियम, 2006 के उचित कार्यान्वयन की भी मांग की।
जनजातीय कार्यकर्ता और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की आदिवासी शाखा के युवा अध्यक्ष एवं जेएसी के प्रवक्ता तालिब हुसैन ने कहा कि इस मार्च से एसटी के दर्जे को कम करने के ख़िलाफ़ दूर-दराज के इलाकों में आदिवासी समुदायों के बीच जागरूकता बढ़ने की उम्मीद है।
हुसैन ने श्रीनगर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, "न्यायमूर्ति जीडी शर्मा आयोग की हालिया रिपोर्ट ने उन समूहों और समुदायों को प्रस्तावित अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करके सामाजिक न्याय का मज़ाक बनाया है जो अतीत में शासक वर्ग रहे हैं और आर्थिक और सामाजिक रूप से बेहतर हैं।" ।
2011 की जनगणना के अनुसार, कश्मीरी और डोगरा समाज के बाद जम्मू-कश्मीर में गुज्जर-बकरवाल समुदाय को तीसरा सबसे बड़ा स्थानीय समुदाय माना जाता है जिसके 15 लाख सदस्य हैं। दशकों के संघर्ष के बाद 1991 में तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य में इस ख़ानाबदोश समुदायों को एसटी का दर्जा दिया गया था।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा इस महीने की शुरुआत में राजौरी में एक सार्वजनिक रैली में पहाडि़यों के लिए आरक्षण की घोषणा के बाद से ये समुदाय विरोध कर रहे हैं।
गुर्जर और बकरवाल का मानना है कि पहाड़ी लोगों की सामाजिक स्थिति उच्च होती है और वे इस क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों को भी नियंत्रित करते हैं। जेएसी ने एक बयान में कहा, “वे न तो पिछड़े हैं और न ही ग़रीब हैं और उनमें जनजाति की सूची में रहने की कोई आवश्यकता नहीं है। एक जटिल जाति संरचना वाले धर्मों के समूह को जनजाति के रूप में नामित नहीं किया जा सकता है।”
हुसैन ने समुदायों के भिन्न समूह को इथनिक ग्रुप विशेष रूप से पहाड़ी बताने पर सरकार के इरादे पर सवाल उठाया है जबकि पहाड़ी को आदिवासी कार्यकर्ता इन्हें सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई रूप से एक "विविध समूह" कहते हैं।
उन्होंने आगे कहा, “सैयद इथनिकली ब्राह्मण के समान कैसे हो सकता है? सैयद का दावा है कि वे यहां सऊदी अरब से आए थे। इसलिए, वे आदिवासी के समान नहीं हो सकते, जो पीर पंजाल और बारामूला या कुपवाड़ा में रहते हैं।”
कमेटी ने यह भी आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार "वोट के लिए आरक्षण के मुद्दे का राजनीतिकरण कर रही है"। हुसैन ने कहा कि, “हम संविधान को बचाने के लिए लड़ रहे हैं, जिसने दलितों और आदिवासियों जैसे हाशिए के वर्गों को सशक्त बनाया है। हम अपने आंदोलन का समर्थन करने के लिए देश के आदिवासियों तक पहुंचेंगे। यह सिर्फ़ एक स्थानीय नहीं बल्कि राष्ट्रीय मुद्दा है और एसटी वर्ग में ऊंची जातियों के शामिल होने से राष्ट्रीय स्तर पर सभी आदिवासी समुदायों पर असर पड़ेगा।"
ज़ाहिर तौर पर, जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने केंद्र शासित प्रदेश में सामाजिक जाति की सूची में 15 नई श्रेणियां शामिल कीं जिसको लेकर अधिकारियों का कहना है कि इससे हाशिए पर मौजूद समुदायों को शिक्षा और नौकरी पाने में मदद मिलेगी। हालांकि, उनमें से कुछ ने इस फ़ैसले का विरोध करते हुए कहा कि वे बेहतर प्लेसमेंट के हक़दार हैं।
Courtesy: Newsclick