भारतीय राजनीति का काला अध्याय है राफेल सौदा

Written by Girish Malviya | Published on: July 24, 2018
राफेल डील भारत की राजनीति में मोदीकाल का वह काला अध्याय है जो इस सरकार तथाकथित घोटाला मुक्त शासन कहे जाने को पूरी तरह से बेनकाब कर देता है.



कल कांग्रेस ने जो पीएम और रक्षा मंत्री दोनों के ही खिलाफ लोकसभा में विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने की घोषणा की है वह बिल्कुल सही कदम है.

इस देश मे राजनीतिक घोटालों का लंबा इतिहास रहा है किसी जमाने मे सरकार के मंत्री रिश्वत लेते हुए पकड़ा जाते थे उसे घोटाला कहा जाता था फिर समय बदला ओर शर्तो में परिवर्तन कर घोटाले किये जाने लगे अब यह जो नया जमाना आया है उसमे ये तरीके भी पुराने पड़ गए हैं अब तो पिछले दरवाजे से कांट्रेक्ट अपने चहेते कारपोरेट को दिलवा दिया जाता है ओर घोटाला सम्पन्न हो जाता है.

सबसे बड़ा आश्चर्य तो इस डील में इसी बात का है कि इसमें रिलायंस डिफेंस कैसे शामिल कर लिया गया क्या उसे लड़ाकू विमान बनाने का कोई अनुभव है ? और जिसे अनुभव था यानी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड उसे मोदी सरकार ने इस डील से दूध में मक्खी की तरह निकाल के बाहर फेक दिया, क्या यही है आपका 'मेक इन इंडिया' ?

जो कांग्रेस ने समझौता किया था उसमे सबसे बड़ी शर्त यह थी कि टेक्नोलॉजी ट्रांसफर होगा यानी सिर्फ 18 विमान फ्रांस में बनेंगे बाकी 108 विमान भारत में बनेगे ओर वो हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ही बनाएगी.

लेकिन मोदी सरकार ने अपने चहेते अम्बानी को ठेका दिलवाने के लिए पूरी डील ही केंसल कर एक नयी डील साइन की जिसमे टेक्नोलॉजी ट्रांसफर जैसी टर्म को ही हटा दिया ओर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के बजाए अम्बानी को साझेदार बना दिया गया जिसे ऑफसेट पार्टनर कहा गया उसे 50 प्रतिशत का ऑफसेट पार्टनर बनाया गया जबकि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स सिर्फ 30 प्रतिशत का ऑफसेट पार्टनर था वैसे इस तरह के पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप यानी ppp में शर्त होती है कि ऑफसेट पार्टनर अनुभवी होना चाहिए लेकिन इस मामले में चुने गए पार्टनर के पास फाइटर तो छोडिए किसी भी तरह का एयरक्रॉफ्ट बनाने का अनुभव नहीं है.

अब आप यह समझिए कि यह डील किन परिस्थितियों में की गयी आपको याद होगा कि डेढ़ से दो साल पहले लगभग एक महीने तक मीडिया पर सुबह से शाम तक सिर्फ और सिर्फ भारत पाकिस्तान सीमा पर तनाव के दृश्य दिखाए जा रहे थे, पठानकोट ओर उरी हमले का बार बार जिक्र कर इन आतंकी हमले से देश मे एक उग्र राष्ट्रवाद का माहौल तैयार किया गया और धीरे से फ्रांस से हुए इस सौदे पर ग्रीन सिग्नल दे दिया गया मीडिया चैनल चिल्ला चिल्ला कर बताने लगे कि ये लड़ाकू विमान पाकिस्तान के एफ-16 का सटीक जवाब है. पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करने के लिए राफेल से बेहतर कोई हथियार नहीं है. मीडिया ने लोगों के दिमाग में यह बिठा दिया कि राफेल का सौदा भारत के लिए हर मायने में मुनाफे का सौदा है.

इस जल्दबाजी में किये गए समझौते में 2017 में रक्षा मंत्री ने कहा कि 36 राफेल इमरजेंसी में खरीदे गए हैं लेकिन अगर ऐसा है तो समझौता होने के इतने महीनों बाद भी एक रफाल भारत को अब तक क्यों नहीं मिला?

मोदी सरकार राफेल को कांग्रेस सरकार द्वारा तय क़ीमत से तिगुनी से ज्यादा क़ीमत देकर ख़रीदने की जानकारियों को जिस तरह से छुपा रही हैं वह दिखा रहा है कि यह महज आरोप नही है यह सच्चाई है.

इस सौदे में समझने लायक बात यह हैं कि दसों को कॉन्ट्रैक्ट इसलिए मिला था क्योंकि राफेल भारतीय इलाके के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया गया था इसलिए ही 5 कम्पनियों को रिजेक्ट कर फ्रांसीसी कम्पनी दसो को चुना इसलिए उसे खुद राफेल भारतीय परिस्थितियों के हिसाब से चेंज करने चाहिये थे इसके लिए मूल कीमत की तिगुनी कीमत चुकाना एक मूर्खता पूर्ण कदम है.

जिन अपग्रेड की कीमत प्रति विमान $ 10 मिलियन से अधिक नहीं है उसके $ 243 मिलियन प्रति विमान की कीमत चुकाई जा रही हैं उदाहरण के लिए प्रति जेट मिसाइल इंटिग्रेशन की कीमत $ 2 मिलियन से भी कम है हेलमेट माउंटेड डिस्प्ले सिस्टम (एचडीएमएस) इजरायल के एलबिट द्वारा बनाये गये हैं जो यूएस $ 0.4 मिलियन के है

तो हम वही राफेल के बेसिक मॉडल कुछ छोटे अपग्रेड के साथ मूल लागत से तीन गुना ज्यादा दामो पर क्यो खरीद रहे है यह तो खुल्ली लूट है.

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