दिल्ली यूनिवर्सिटी में छात्र संघ के चुनाव ईवीएम से कराए जाते है,वैसे कल सुबह मतगणना कर परिणाम घोषित किये जाने थे लेकिन मतगणना में ईवीएम मशीनें उसी समय खराब होने लगती है जिस रांउड से बीजेपी समर्थित एबीवीपी के उम्मीदवार पिछड़ने लगते है, भारी हंगामा मच जाता है यूनिवर्सिटी प्रशासन मतगणना रोक देता है , रात में परिणाम आते हैं और बीजेपी की छात्र इकाई एबीव्हीपी 4 में से 3 सीट जीत जाती है.
आप पार्टी के गोपाल राय कहते हैं कि 'डूसू चुनाव में सचिव के पद पर आठ उम्मीदवारों के अलावा ईवीएम में नौवां बटन नोटा का था. बुधवार को मतदान के दौरान ईवीएम में दसवें बटन पर भी 40 वोट पड़ गए'.
यह चमत्कार कैसे हुआ , किसी को कुछ पता नही है ? एक यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ के चुनाव ईवीएम द्वारा ठीक से होते नही है और पूरे देश के आम चुनाव ईवीएम से निष्पक्षता से किये जाने का दावा किया जाता है.
कल रात में एक चमत्कार ओर होता हैं डूसू चुनाव में ईवीएम मशीनों पर जैसे ही सवाल खड़े होने लगते है अचानक चुनाव आयोग को होश आता है और वह कह देता है कि उसने डीयू को कोई ईवीएम मशीन जारी नहीं की है, चुनाव आयोग के अधिकारी मनोज कुमार रातो रात बयान देते है हमारे ऑफिस से दिल्ली यूनिवर्सिटी को ईवीएम जारी नहीं किया गया है। राज्य चुनाव आयोग ने भी पुष्टि की है कि हमने ऐसी कोई मशीनें जारी नहीं की हैं. ऐसा लगता है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी ने निजी रूप से मशीन मंगवाई है.'
अगर यह बात सच भी है तो और खतरनाक बात है क्योंकि यदि यह मशीनें अलग से बुलवाई गयी हैं तो इसकी जांच होनी चाहिए कि चुनाव आयोग के अलावा ऐसा कौन सा संस्थान है जो देश मे ईवीएम उपलब्ध करा रहा है, ओर वह किस कम्पनी की ईवीएम इस्तेमाल कर रहा है कही वह दिल्ली विधानसभा में दिखाई गयी ईवीएम तो इस्तेमाल नही कर रहा है?
लेकिन इस देश मे ईवीएम को कठघरे में खड़ा कर देना गुनाह है ईवीएम को फूलप्रूफ बताते हुए चुनाव आयुक्त OP रावत देश भर में घूमते है बड़े मीडिया घराने उन्हें उन्हें सर आँखों पर बिठाते है ईवीएम के पक्ष में खूब खबरे छपती है दिखाई जाती है, लेकिन उन मीडिया संस्थानो की यह खबर बताने में नानी मरती है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय ने ईवीएम में गड़बड़ी से सम्बंधित एक जनहित याचिका को सुनना स्वीकार किया है जिसमे याचिका कर्ता ने बेहद महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए है..........
जैसे ....अब तक जितने ईवीएम का निर्माण हुआ है, उनकी संख्या चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में बताई गई संख्या से कहीं ज्यादा है। याचिकाकर्ता का कहना है कि चुनाव आयोग से यह पूछा जाना चाहिए कि इतनी बड़ी संख्या में ईवीएम कहां चले गये ? ओर क्या ईएवीएम अफ़्रीकी देशों में भी अनधिकृत रूप से भेजें गए हैं ?
दूसरा सवाल यह है कि ईवीएम के रखरखाव में चुनाव आयोग निजी कंपनियों के इंजीनियरों का इस्तेमाल क्यो करता है, ओर उस पर रोक क्यो नही लगाई जानी चाहिए? क्यो नही सिर्फ सरकारी अधिकारियों को ही इसके रखरखाव की इजाजत दी जानी चाहिए?
याचिकाकर्ता ने ईवीएम तक पहुंच के लिए अधिकृत इंजीनियरों की सूची प्रकाशित करने और इसे चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों को उपलब्ध कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया है, याचिका में इस सूची को आयोग की वेबसाइट पर भी डालने के निर्देश देने अनुरोध भी किया गया है.
अगले हफ्ते इस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई है.
वैसे पता तो यह भी चला हैं कि चुनाव आयोग के एक्सपर्ट भी अब इस बात को मान गए हैं कि ईवीएम मशीन में इस्तेमाल की जाने वाली चिप विदेशों से आयातित होती है चिप की भारत में मैन्युफैक्चरिंग नहीं होती है। ये मुख्यतौर पर जापान और अमेरिका से मजबूत साख वाली कंपनियों से इंपोर्ट किए जाते है.
वैसे ईवीएम की इतनी सारी खूबियां देखकर स्वतः ही यह विश्वास हो जाता है कि भाजपा को देश की सत्ता अगले 50 सालों के लिए मिलने वाली है.
आप पार्टी के गोपाल राय कहते हैं कि 'डूसू चुनाव में सचिव के पद पर आठ उम्मीदवारों के अलावा ईवीएम में नौवां बटन नोटा का था. बुधवार को मतदान के दौरान ईवीएम में दसवें बटन पर भी 40 वोट पड़ गए'.
यह चमत्कार कैसे हुआ , किसी को कुछ पता नही है ? एक यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ के चुनाव ईवीएम द्वारा ठीक से होते नही है और पूरे देश के आम चुनाव ईवीएम से निष्पक्षता से किये जाने का दावा किया जाता है.
कल रात में एक चमत्कार ओर होता हैं डूसू चुनाव में ईवीएम मशीनों पर जैसे ही सवाल खड़े होने लगते है अचानक चुनाव आयोग को होश आता है और वह कह देता है कि उसने डीयू को कोई ईवीएम मशीन जारी नहीं की है, चुनाव आयोग के अधिकारी मनोज कुमार रातो रात बयान देते है हमारे ऑफिस से दिल्ली यूनिवर्सिटी को ईवीएम जारी नहीं किया गया है। राज्य चुनाव आयोग ने भी पुष्टि की है कि हमने ऐसी कोई मशीनें जारी नहीं की हैं. ऐसा लगता है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी ने निजी रूप से मशीन मंगवाई है.'
अगर यह बात सच भी है तो और खतरनाक बात है क्योंकि यदि यह मशीनें अलग से बुलवाई गयी हैं तो इसकी जांच होनी चाहिए कि चुनाव आयोग के अलावा ऐसा कौन सा संस्थान है जो देश मे ईवीएम उपलब्ध करा रहा है, ओर वह किस कम्पनी की ईवीएम इस्तेमाल कर रहा है कही वह दिल्ली विधानसभा में दिखाई गयी ईवीएम तो इस्तेमाल नही कर रहा है?
लेकिन इस देश मे ईवीएम को कठघरे में खड़ा कर देना गुनाह है ईवीएम को फूलप्रूफ बताते हुए चुनाव आयुक्त OP रावत देश भर में घूमते है बड़े मीडिया घराने उन्हें उन्हें सर आँखों पर बिठाते है ईवीएम के पक्ष में खूब खबरे छपती है दिखाई जाती है, लेकिन उन मीडिया संस्थानो की यह खबर बताने में नानी मरती है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय ने ईवीएम में गड़बड़ी से सम्बंधित एक जनहित याचिका को सुनना स्वीकार किया है जिसमे याचिका कर्ता ने बेहद महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए है..........
जैसे ....अब तक जितने ईवीएम का निर्माण हुआ है, उनकी संख्या चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में बताई गई संख्या से कहीं ज्यादा है। याचिकाकर्ता का कहना है कि चुनाव आयोग से यह पूछा जाना चाहिए कि इतनी बड़ी संख्या में ईवीएम कहां चले गये ? ओर क्या ईएवीएम अफ़्रीकी देशों में भी अनधिकृत रूप से भेजें गए हैं ?
दूसरा सवाल यह है कि ईवीएम के रखरखाव में चुनाव आयोग निजी कंपनियों के इंजीनियरों का इस्तेमाल क्यो करता है, ओर उस पर रोक क्यो नही लगाई जानी चाहिए? क्यो नही सिर्फ सरकारी अधिकारियों को ही इसके रखरखाव की इजाजत दी जानी चाहिए?
याचिकाकर्ता ने ईवीएम तक पहुंच के लिए अधिकृत इंजीनियरों की सूची प्रकाशित करने और इसे चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों को उपलब्ध कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया है, याचिका में इस सूची को आयोग की वेबसाइट पर भी डालने के निर्देश देने अनुरोध भी किया गया है.
अगले हफ्ते इस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई है.
वैसे पता तो यह भी चला हैं कि चुनाव आयोग के एक्सपर्ट भी अब इस बात को मान गए हैं कि ईवीएम मशीन में इस्तेमाल की जाने वाली चिप विदेशों से आयातित होती है चिप की भारत में मैन्युफैक्चरिंग नहीं होती है। ये मुख्यतौर पर जापान और अमेरिका से मजबूत साख वाली कंपनियों से इंपोर्ट किए जाते है.
वैसे ईवीएम की इतनी सारी खूबियां देखकर स्वतः ही यह विश्वास हो जाता है कि भाजपा को देश की सत्ता अगले 50 सालों के लिए मिलने वाली है.