जब सरकार के पास रोजगार का आधिकारिक डेटा ही नहीं, तो 70 लाख नौकरियां देने की बात किस आधार पर कर रहे पीएम मोदी?

Written by Girish Malviya | Published on: July 3, 2018
कल मोदीजी ने इस इंटरव्यू में ऐसी ऐसी बाते कही है कि सुनकर अचम्भा होता है कि देश का प्रधानमंत्री कैसे इस तरह से बात कर सकता है.



मसलन कल के इंटरव्यू के सबसे चर्चित कथन को ही ले लीजिए वो कहते हैं कि 'पिछले साल 70 लाख से ज्यादा नौकरियां पैदा हुईं हैं' ओर आगे जाकर वह कहते हैं कि समस्या रोजगार देने की नहीं, इसके आंकड़ों के कलेक्शन की है. हमारे पास नए भारत की नई अर्थव्यवस्था में नए रोजगारों का डाटा जमा करने लायक सिस्टम नहीं है.

जब आपके पास रोजगार देने के सम्बन्धी कोई आधिकारिक डाटा ही नही है तो आप 70 लाख नोकरिया देने की बात किस आधार पर कर रहे हैं ?

फिर वो किसी अनजान से एनजीओ के सर्वे का हवाला देते हुए कहते हैं कि भारत मे गरीबी भी घटी है गरीबो की संख्या में कमी आयी हैं इसलिए इसका अर्थ है हमने रोजगार दिया है यह बिल्कुल अजीबोगरीब तर्क है ,इस तर्क के आधार पर तो यह भी माना जाए कि भारत मोदीकाल में महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश है क्योकि ऐसा भी किसी सर्वे में आया है.

सरकार के इन आंकड़ों पर शक करने के बारे में मोदी ने कहा कि जब राज्य सरकारें इतने रोजगार पैदा करने का दावा कर रही हैं तो केंद्र भी कुछ काम कर ही रहा होगा. उन्होंने कहा कि कर्नाटक की पिछली सरकार ने 53 लाख नौकरियों का दावा किया. पश्चिम बंगाल की सरकार का दावा है कि उन्होंने 68 लाख लोगों को रोजगार दिया तो क्या केंद्र रोजगार उपलब्ध नहीं करा रहा होगा ?

आश्चर्य होता है देश का प्रधानमंत्री आज इतना लाचार महसूस कर रहा है कि अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए दो ऐसे प्रदेशों की सरकार के आंकड़े गिना रहा है जहां विपक्ष सत्ता में है,

आप स्टार्टअप की बाते कर रहे हैं 2015 में जो आपने स्टार्टअप योजना बनायी थी उसमें आपने कितने लोगों के स्टार्टअप को लोन देने और कर में छूट देने लायक माना है ?

इनका दिया हर आँकड़ा संदेहास्पद है 12 करोड़ मुद्रा लोन बांटे गए है तो उनकी कोई डिटेल उपलब्ध भी करवाइए की कितने बैंक की कितनी शाखाओं से कितनी राशि के लोन बांटे गए कम से कम ये आँकड़ा तो आपके पास उपलब्ध होगा ?

ज्यादा दूर भी मत जाइए सिर्फ यही जान लीजिए कि जिसे मोदी जी ने इंटरव्यू दिया है यह वही स्वराज्य पत्रिका है जिसके सम्पादकीय निदेशक श्री आर. जगन्नाथन ने नोटबन्दी के कुछ महीनों बाद यह मान लिया था कि नोटबन्दी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत बड़ा डिजास्टर सिद्ध हुई है जगन्‍नाथन ने यह माना था कि उन्‍होंने नोटबन्दी के बारे में गलत अनुमान लगाया।

जगन्‍नाथन ने संपादक के रूप मे इसी स्वराज्य मैगजीन में लिखे एक लेख में कहा था कि ‘यह मिया कल्‍पा (गलती मानने) का समय है।’ ”अब यह स्‍पष्‍ट तौर पर कहा जा सकता है कि नोटबंदी वह आखिरी कदम था जिसने किसानों की कमर तोड़ दी, और किसानों के विरोधों की श्रृंखला तथा कर्ज माफी की राजनैतिक मांग उठनी शुरू हुई।” जगन्‍नाथन के मुताबिक, ”नोटबंदी से इतना नुकसान होगा जितना पहले कभी नहीं हुआ। लगातार पड़े दो सूखों ने भी नोटबंदी जितना आघात नहीं पहुंचाया था। पिछले तीन सालों में मोदी सरकार द्वारा दिखाया गया अच्‍छा काम राज्‍य सरकार के समाजवादी के बुलबुले से धुल जाएगा।”

जगन्‍नाथन ने नरेंद्र मोदी के बारे में लिखा है, ”काले धन की कमर तोड़ने के लिए कड़े फैसले लेने वाले बोल्‍ड नेता जैसा बनने की सोचना अच्‍छा है, मगर यह ठीक बात नहीं कि इसे आधे-अधूरे तरीके से किया जाए

नोटबन्दी ओर जीएसटी से देश की अर्थव्यवस्था पर जो चोट मोदीजी ने की है उसका असर कई दशकों तक महसूस किया जाएगा.

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