पुलवामा हमले के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह को इस्तीफा क्यो देना चाहिए?

Written by Girish Malviya | Published on: February 17, 2019
आप यदि पुलवामा हमले से ठीक पहले जम्मू कश्मीर से आ रही खबरों को ध्यान से पढ़ेगे तो आप जान जाएंगे कि पुलवामा हमला मोदी सरकार की बहुत बड़ी विफलता है.



फरवरी का मध्य हिस्सा पिछले कुछ सालो से जम्मू कश्मीर में बड़ा तनाव लेकर आ रहा है संसद भवन पर हमले के मामले में अफजल गुरु को नौ फरवरी 2013 को फांसी दी गई थी ओर जेकेएलएफ के संस्थापक मोहम्मद मकबूल भट्ट को भी 11 फरवरी 1984 को फांसी दी गई थी उसे भी अफजल की तरह ही तिहाड़ जेल में दफना दिया गया था मकबूल बट कश्मीर में अलगाववाद व आतंकवाद के जनक व जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापक सदस्य माना जाता है इन दोनों की बरसी को लेकर आतंकवादियों के बड़ी वारदात करने की आशंका जताई जा रही थी.

श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग भू-स्खलन और बर्फबारी की वजह से करीब हफ्ते भर से बंद था ,कश्मीर के 2200 लोग जम्मू में फंसे थे जिसमे से कई छात्र भी थे जो एग्जाम देने के लिए सुदूर कश्मीर के इलाकों से जम्मू आए हुए थे वायुसेना के C17 ग्लोबमास्टर विमान से 8 से 12 फरवरी के 4 दिनों में अपनी उड़ानों में कुल 538 लोगों को एयरलिफ्ट किया था इनमें से 319 ऐसे छात्र थे, जिन्होंने गेट परीक्षा में हिस्सा लिया था.
इसी बीच खुफिया एजेंसियों ने एक बड़ा अलर्ट जारी करते हुए कहा कि आतंकी, जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों के डिप्लॉयमेन्ट और उनके आने जाने के रास्ते पर IED से हमला कर सकते हैं. 14 फरवरी 2019 की सुबह आजतक की वेबसाइट यह स्टोरी पब्लिश की गई कमेन्ट बॉक्स में पर आप यह स्टोरी पढ़ सकते हैं.

आजतक' के मौजूद खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट में कहा गया है था कि सभी CRPF के कैम्प और पुलिस के कैम्प पर आतंकी बड़ा हमला कर सकते हैं, इसलिए सभी सुरक्षा बल सावधान रहें. इसके साथ ही एरिया को बिना सेंसिटाइज किए उस एरिया में ड्यूटी पर न जाएं.

08-11 फरवरी तक जम्मू- श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग के बंद होने के कारण छुट्टी बिताकर लौटे सैकड़ों जवान जम्मू के कई कैंपों में फंसे हुए थे जम्मू स्थित ट्रांजिट कैंप में जवानों की भीड़ बढ़ती जा रही थी.

आइजी अजय वीर सिंह चौहान, सीआरपीएफ, जम्मू सेक्टर ने कल यह साफ साफ कहा कि हमने एयरफोर्स से भी मांग की थी कि फंसे जवानों को जम्मू से एयरलिफ्ट किया जाए। ऐसा संभव न होने के कारण जवानों को शुक्रवार तड़के काफिले के जरिए श्रीनगर को रवाना किया गया.

सीआरपीएफ जवानों को भी छात्रों की तरह एयरलिफ्ट किया जा सकता था, बशर्ते केंद्र में सीआरपीएफ अधिकारियों के विमान मुहैया करवाने के निवेदन को मान लिया जाता. बताया जाता है कि अधिकारी एक हफ्ते तक विशेष विमान की मांग करते रहे थे.

इसके बावजूद भी 2500 जवानों को 78 बसों में सड़क मार्ग से ही भेजने का निर्णय लिया गया. लेकिन आपको पता होना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर जैसे क्षेत्रों में सुरक्षा बलों के बड़े जत्थे के आवागमन के लिए एक SOP यानी स्टैंडर्ड ऑपरेशन प्रोसीजर है, काफिला गुजरने से पहले संबंधित इलाके की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार रोड ओपनिंग पार्टी यानी ROP इसके लिए हरी झंडी देती है. आरओपी में सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवान शामिल होते हैं, ROP ने यह क्लीनचिट दी थी या उससे जबर्दस्ती दबाव डालकर यह क्लीनचिट दिलवाई गयी यह जांच का विषय है ?

पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल विक्रम सिंह भी मानते हैं कि कहीं न कहीं लापरवाही हुई है उन्होंने कहा कि 'ऐसे हमले सतर्कता, स्टैंडर्ड आपरेशन प्रोसीजर का पालन करके ही रोके जा सकते है' साफ दिख रहा है कि जो इस केस में नही किया गया जबकि, हमले के बहुत स्पष्ट इनपुट मिले थे राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी इस लापरवाही को स्वीकार किया है!

जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ़्ती की सरकार को बर्खास्त किये जाने के बाद से ही राष्ट्रपति शासन लागू है सुरक्षा की सारी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की ही है हमले के बाद से देश भर में आम कश्मीरी से बदले का माहौल बनाया जा रहा है और ऐसा इसीलिए किया जा रहा है कि जनता इनसे ये सवाल न पूछने लगे जो इस पोस्ट में उठाए गए हैं......

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